नए कृषि कानूनों का आखिर इतना विरोध क्यों ?

नए कृषि कानूनों का आखिर इतना विरोध क्यों ?

जोर पकड़ता जा रहा कृषि कानून विरोधी आंदोलन 

डॉ रामेश्वर मिश्र

नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान आन्दोलन को दो महीने हो गए, उत्तरोत्तर यह आन्दोलन कमजोर होने के बजाय पूरे देश में बढ़ता जा रहा है, आखिर क्यों इन नए कृषि कानूनों इतना विरोध हो रहा है। दो डिग्री से भी कम तापमान में हमारे देश के किसान खुले आसमान में बैठे हैं और लगातार किसानों द्वारा नए कृषि कानूनों को पूर्णतया समाप्त करने की माँग की जा रही है। किसानों के साथ-साथ मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी नए कृषि कानूनों को पूर्णतया समाप्त करने की माँग कर रही है। राहुल गाँधी ने 30 सितम्बर 2020 को नए कृषि कानूनों का विरोध करते हुए कहा कि नए कृषि कानून के बाद देश में ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह वेस्ट इंडिया कंपनी आ जाएगी। कांग्रेस द्वारा लगातार नए कृषि कानून का विरोध किया जा रहा है और नए कृषि कानून को काला कानून, देश की नींव को कमजोर करने वाला एवं अंग्रेजों वाला कानून कहा जा रहा है। नए कृषि कानून के विरोध में 19 जनवरी 2021 को राहुल गाँधी द्वारा ‘खेती का खून: तीन काले कानून’ नामक शीर्षक से उद्धृत एक पुस्तक का अनावरण किया गया, आखिर क्यों कांग्रेस पार्टी नए कृषि कानूनों को खेती का खून कह रही है, यह विषय आज के परिदृश्य में बहुत ही विचारणीय है। कांग्रेस द्वारा अपने पूर्व के मार्ग दर्शकों के राजनीतिक विचारों को आत्मसात करते हुए नए कृषि कानूनों का विरोध किया जा रहा है जिसके आलोक में महात्मा गाँधी जी के कथन को समझा जा सकता है जो कानून तुम्हारे अधिकारों की रक्षा न कर सके उसकी अवहेलना करना तुम्हारा कर्तव्य है, कांग्रेस पार्टी इसी विचार को आत्मसात करते हुए नए कृषि कानून का विरोध कर रही है।

कांग्रेस पार्टी और किसानों के विरोध को समझने के लिए सरकार द्वारा लाये गए नए कृषि कानूनों के कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को समझाना होगा जिसके अनुसार मोदी सरकार ने आवश्यक वस्तु कानून 1955 में संशोधन कर धारा 3 की उप धारा 1 में अतिरिक्त उप धारा 1(A) को जोड़ते हुए अनाज, दाल, आलू, प्याज और खाद्य तेल जैसी वस्तुओं की असीमित मात्रा में जमाखोरी को छूट दे दी है। इसमें प्रावधान है कि जल्दी नष्ट होने वाली वस्तुएं फल, फूल व सब्जी के दाम जब तक 100 प्रतिशत तक न बढ़ जाते तब तक सरकार भावों को नियंत्रण में करने के लिए जमाखोरी पर कोई रोक नही लगाएगी तात्पर्य यह है कि 100 रूपये कीमत की वस्तु 200 रूपये तक बढ़ने के बाद ही उस पर सरकार द्वारा नियंत्रण का प्रावधान है। इसी प्रकार जल्द नष्ट न होने वाली फसलों जैसे अनाज आदि के दामों में जब तक 50 प्रतिशत की वृद्धि नही हो जाती तब तक जमाखोरी पर कोई पाबन्दी नही लगाई जाएगी तात्पर्य यह है कि 100 रूपये कीमत की वस्तु 150 रूपये तक बढ़ने के बाद ही उस पर सरकार नियंत्रण लगाएगी। इस संशोधन में यह भी कहा गया है कि दामों में 50 और 100 प्रतिशत की वृद्धि होने के बावजूद भी मूल्य निर्धारक प्रतिभागियों के उपर कोई भी नियंत्रण नही लगाया जायेगा जिसका अर्थ यह है कि दामों में बेतहाशा वृद्धि की सूरत में भी चुनिंदा व्यापारियों को जमाखोरी की पूर्णतया छूट रहेगी। इस कानून द्वारा प्रदत्त जमाखोरी में छूट के के अधिकार का दुष्परिणाम हमें हाल के महीने में देखने को तब मिला जब सरकार ने दिसंबर 2020 में खाने के तेल के आयात पर रोक लगा दी जिससे सोयाबीन तेल का भाव 80 रुपया लीटर से बढ़कर 145 रूपये लीटर हो गया जिसका लाभ किसानों के इतर चंद तेल व्यापारियों को हुआ।

मोदी सरकार के दूसरे नए कृषि कानून ‘किसान उपज, व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) कानून 2020’ की धारा 2(M) में ट्रेड एरिया को परिभाषित किया गया है जिसमे फैक्टरी परिसर, उद्योगपतियों के भंडारण के साइलो और किसी भी प्रकार के स्थान और ढाँचे को शामिल किया गया है, धारा 4 के मुताबिक इस ट्रेड एरिया में पूरे देश से व्यापार की छूट होगी। इस ट्रेड एरिया में व्यापर हेतु सरकार द्वारा किसी भी प्रकार का कर या शुल्क अधिरोपित नही किया गया है जबकि पूर्व से स्थापित मंडियों में व्यापार हेतु निर्धारित कर देना जरूरी है। इस प्रकार सरकार अपनी दोहरी नीति के तहत जहाँ ट्रेड एरिया को किसी भी प्रकार के कर से मुक्त रखा है वहीं दूसरी तरफ सरकारी मंडियों पर कर अधिरोपित कर मंडियों में व्यापार की सुगमता को कम कर मंडियों के खात्मे का योजना बना डाली है और इससे किसान अपनी उपज की बिक्री हेतु पूँजीपतियों के जाल में पूर्णतया फँसता चला जायेगा। मोदी सरकार द्वारा अधिरोपित नए कृषि कानून में अध्याय 3 की धारा 8 में विवादों के निपटारे हेतु एसडीएम उसके बाद कलेक्टर या एडिशनल कलेक्टर के समकक्ष अधिकारी नियुक्त किये गए है। विवाद न सुलझने की स्थिति में 60 दिनों के भीतर भारत सरकार के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी के समक्ष अपील करने का अधिकार होगा। इस कानून के अध्याय 5 की धारा 15 में किसी भी सिविल कोर्ट को संज्ञान लेने तक का अधिकार नही दिया गया है।

मोदी सरकार के तीसरे नए कृषि कानून ‘कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020’ में कहीं भी न्यूनतम समर्थन मूल्य का जिक्र नही किया गया है। इस कानून की धारा 4 की उपधारा 4 के अनुसार किसान और पूँजीपतियों के बीच हुए समझौते के तहत किसान अपनी फसल की क़्वालिटी, ग्रेड और स्तर समझौते में लिख कर देंगें और फसल कटाई या वितरण के समय पूँजीपतियों द्वारा नियुक्त योग्य पारखी से फसल की जाँच करवानी होगी जिसमे किसानों को क़्वालिटी, ग्रेड और स्तर के नाम पर पूर्णतया पूँजीपतियों के रहमोकरम पर निर्भर रहना पड़ेगा। इस कानून की धारा 7 के 1 और 2 में कहा गया है कि इस कानून के तहत किये गए अनुबंध राज्य सरकार के खरीद-फरोख्त कानून के दायरे से बाहर रहेंगें अर्थात इस कानून के माध्यम से भी पूँजीपतियों का किसानों की उपज के खरीद-फरोख्त पर पूर्ण आधिपत्य होगा।

इस प्रकार नए कृषि कानून में प्रदत्त जमाखोरी के अधिकार से जहाँ मुनाफाखोरी, मंहगाई और गरीबी में वृद्धि होगी वहीं खाद्य आपूर्ति में कमी देखने को मिलेगी। ट्रेड एरिया स्थापित होने से सरकारी मंडियों का संचालन धीरे-धीरे समाप्त होगा, किसानों की उपज के न्यूनतम समर्थन मूल्य की अनदेखी के साथ-साथ फसल की क़्वालिटी, ग्रेड और स्तर के नाम पर किसानों को पूँजीपतियों के रहमोकरम पर रहना होगा। किसान और पूँजीपतियों के बीच मतभेद की स्थिति में सिविल कोर्ट का प्रावधान न होना आदि ऐसे अनेक तथ्य हैं जो नए कृषि कानून के विरोध के लिए उत्तरदायी हैं जिसका दुष्प्रभाव किसानों के साथ-साथ आम जनमानस पर भी पड़ेगा।

डॉ रामेश्वर मिश्र

वाराणसी

(08765595416)

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