झरोखा यादों का : विश्वविख्यात ठग नटवरलाल के साथ दस घंटे, तीन दिन

झरोखा यादों का : विश्वविख्यात ठग नटवरलाल के साथ दस घंटे, तीन दिन

नटवरलाल उर्फ मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव

ठगी का पर्याय नटवरलाल की जिंदगी किसी अफसाने से कम नहीं। बनारस की कैंट थाना पुलिस ने नवंबर 1987 में उसे गिरफ्तार किया। करीब डेढ़ हफ्ते तक वो पुलिसिया हिरासत में रहा। इस दरम्यान लगातार तीन दिनों तक हमारी उससे मुलाकात हुई। नटवर से करीब दस घंटे तक हुई बातचीत को हमने विधिवत टेप भी किया। मगर अफसोस, इस टेप को चलाने के लिए कैसेट निकाला तो उसके फीते चिपके हुए मिले। मन में विचार कौंधा कि नई पीढ़ी को बताई जाए नटवरलाल की कारस्तानियां, ताकि लोग धूर्तों और ठगों का शिकार होने से बच सकें।

 

कुख्यात ठग नटवरलाल ने बनारस में हासिल की थी धूर्त विद्या में महारत…!

विजय विनीत

धूर्तता और ठगी के पर्याय नटवरलाल उर्फ मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव के किस्से आज भी अबूझ पहेली की तरह हैं। यह ऐसा शख्स था, जिसने तीन बार ताजमहल बेचा और दो मर्तबा लाल किला। राष्ट्रपति भवन से लेकर संसद तक का सौदा कर डाला। बीसवीं सदी के सबसे कुख्यात और तेज-तर्रार ठग नटवरलाल ऐसा व्यक्ति था जिसकी आंखें किसी के दस्तखत की फोटोकापी कर लेती थीं और उंगलियां उसे हूबहू कागजों पर उकेर दिया करती थीं। सबसे पहले उसने अपने पड़ोसी को ठगा। सेम साइन करके उसके खाते से हजारों रुपये उड़ा दिए। शिकायत पर पिता ने नटवर की पिटाई की तो वह कोलकाता भाग गया। वहां उसने एलएलबी की डिग्री ली और धूर्त विद्या की भी। छद्म नामों से उसने ठगी की अनेक वारदातों को अंजाम दिया।

भेष बदलने और देश-दुनिया की खबरों पर गहरी पकड़ रखने वाला नटवरलाल उस समय काफी चर्चा में आया जब कांग्रेस के कद्दावर नेता नारायण दत्त तिवारी का नकली पर्सनल असिस्टेंट बनकर दिल्ली के कनाट प्लेस स्थित सुरेश शर्मा की घड़ियों की दुकान में पहुंचा। उन दिनों देश के पीएम राजीव गांधी हुआ करते थे। बताया कि पीएम कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को घड़ियां भेंट करना चाहते हैं। उसने करीब 93 घड़ियों की डिमांड की। सौदा तय करने के बाद अगले दिन घड़ियों की डिलेवरी लेने की बात कही। दुकानदार से घड़ियों की डिलेवरी लेने के बाद उसके स्टाफ को लेकर नार्थ ब्लाक पहुंच गया। उन दिनों पीएम का दफ्तर भी वहीं हुआ करता था। भुगतान के तौर पर नटवर ने दुकानदार को 32,829 रुपये का बैंक ड्राफ्ट दिया। दुकानदार सुरेश शर्मा के पैरों की जमीन उस वक्त खिसक गई जब यह पता चला कि बैंक ड्राफ्ट ही नकली है। नटवर कभी तत्कालीन वित्तमंत्री वीपी सिंह, तो कभी बनारस के जिला जज या फिर यूपी के मुख्यमंत्री के नाम पर अलग-अलग शहरों में बड़े दुकानदारों को चूना लगाकर रफ्फूचक्कर होता रहा। साल 1970-90 तक ठगी में सक्रिय रहा नटवरलाल। वेषभूषा और नाम बदलकर उसने सैकड़ों को करोड़ों की चपत लगाई।

कुख्यात ठग की जालसाजी के किस्से भले ही दुनिया भर में सुनाए जाते हैं, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यह शातिर ठग मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव से कैसे नटवरलाल बन गया? दरअसल, नटवरलाल नवंबर 1987 में दूसरी मर्तबा बनारस पुलिस के शिकंजे में आया। कैंट थाना पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था। पांच से सात नवंबर के बीच हमने इस कुख्यात ठग से तीन चरणों में लंबी गुफ्तगू की। उसी दौरान नटवर ने यह राज खोला कि बनारस में रहकर ही उसने धूर्त विद्या में महारत हासिल की। यह वो दौर था जब देश भर के व्यवसायी रेशमी लाल रुमाल वाले बनारसी ठगों से कांपा करते थे।

नटवरलाल ने पहले कामर्स की पढ़ाई की और बाद में वकालत की डिग्री ली, लेकिन प्रैक्टिस की धूर्त विद्या की। दुनिया के नामी कारोबारी टाटा, बिड़ला ही नहीं, उसने धीरू भाई अंबानी तक को ठग लिया। उसके ऊपर ठगी के करीब चार सौ मामले दर्ज हुए। 19 मामलों में अदालतों से उसे 113 साल की सजा हुई, लेकिन देश की कोई भी जेल उसे लंबे समय तक अपने यहां कैद नहीं कर पाई। वो नौ बार गिरफ्तार हुआ, लेकिन आठ बार जेल से फरार होने में कामयाब रहा। वह जब चाहता था, जेल से बाहर निकल जाता था। आखिरी बार 24 जून 1996 को उसने पुलिस को चकमा दिया। उस समय उसकी उम्र करीब 75 बरस थी।

वाक्या कुछ इस तरह है। दिल्ली की तिहाड़ जेल से नटवर को लेकर पुलिस की टीम कानपुर के लिए रवाना हुई। उसे रेलवे स्टेशन पर लाया गया तो वो जोर-जोर से हांफने लगा। बीमारी के बहाने एक हवलदार को दवा और दूसरे को पानी लेने के लिए भेजा। तीसरे से टायलेट तक पहुंचाने जाने की बात कही।  उस वक्त वह व्हील चेयर पर बैठा था। पुलिलस वालों को पुख्ता यकीन था कि नटवर असहाय है और वह कहीं भाग नहीं सकता। बाथरूम में घुसा तो लौटा ही नहीं। नाटकीय ढंग से वो रफ्फूचक्कर हो गया। देश भर की खुफिया एजेंसियां भी उसका सुराग नहीं लगा सकीं।

हिन्दी, अंग्रेजी, बंगला, तमिल, नेपाली, गुजराती के अलावा भोजपुरी भाषाओं में धारा-प्रवाह बोलने में माहिर नटवरलाल सहजता से हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। उसका दावा था कि बिना उसकी मरजी के देश की कोई भी जेल पांच दिनों से ज्यादा समय तक उसे कैद में नहीं रख सकती।

मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव उर्फ नटवरलाल के ढेरों किस्से-कहानियां हैं, लेकिन यह कोई नहीं जानता कि जिस नाम से वो फेमस हुआ उसे वह पहचान बनारस ने दी। दुनिया जानती है कि जब तक बनारस किसी को सर्टिफिकेट नहीं देता है तब तक वो जगत प्रसिद्ध नहीं होता। चाहे भगवान बुद्ध हों, कबीर हों या फिर रविदास। मिथिलेश कुमार को नटवरलाल नाम बनारस ने ही दिया था। पांच नवंबर 1987 को मुझे दिए इंटरव्यू में इस कुख्यात ठग ने खुद यह राज खोला था।

साल 1946 में मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव ठगी का गुर सीखने बनारस आया था। उन दिनों वह रामापुरा में रहता था। रामापुरा से लगायत गोदौलिया और चौक तक के इलाके में उन दिनों लाल रुमाल वाले ठगों का जलवा था। नटवर बनारसी ठगों से धूर्त विद्या पढ़ने आया था, लेकिन उसने बनारस के कई ठगों को खुद ही ठग लिया।
नटवरलाल रामापुरा की एक आलीशान कोठी में ठाटबाट से रहता था। मुहल्ले लोग उसे बहुत बड़ा अफसर मानते थे और कारोबारियों में वह बड़े पूंजीपति के रूप में सरनाम था। वह धनवानों को ठगता और गरीबों में पैसा बांट देता। कुछ दिन लखपति रहता और बाद में कंगालपति हो जाता था।

मिथिलेश से नटवरलाल बनने की कहानी भी जान लीजिए। बनारस में उसने पहली ठगी साल 1946 में की। तत्कालीन टेक्सटाइल कमिश्नर बिलोड़ी का असिस्टेंट सेल्स अफसर बनकर उसने दो मशहूर व्यापारियों से चौदह और पंद्रह हजार का चेक लिया। बाद में माल की फर्जी बिल्टी दे दी। वारदात को अंजाम देने के बाद वह तीन दिनों के लिए अपने गांव बंगरा (जीरादेई-बिहार) चला गया। बिल्टी नकली साबित होने पर व्यापारियों ने स्टेट बैंक आफ इंडिया से शिकायत की। इसी बीच नटवर चेक भुनाने बैंक पहुंचा तो व्यापारियों ने उसे पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया। जेल जाने से पहले उसने पुलिस वालों से अर्ज किया कि उसे एक बार नटवर की प्रार्थना करने का अवसर दे दें। बस, तभी से मिथिलेश नाम छोड़कर उसे हर कोई नटवरलाल पुकारने लगा। नटवरलाल कहता था, “मैं इसे ठगी नहीं, धूर्त विद्या यानी धूर्त दर्शन विज्ञान मानता हूं।’

मुझे दिए इंटरव्यू के दौरान नटवर ने बताया था कि वह नटवर यानी भगवान श्रीकृष्ण का अनन्य भक्त है। गर्व है कि उसे नटवरलाल की उपाधि बनारस से मिली है। इस ठग को उन गिरहकटों से काफी चिढ़ थी जो लोगों की जेबें तराशते हुए पकड़े जाते थे और जेल में दाखिल होते थे तो खुद को नटवरलाल बताने लगते थे। नटवर की बातों में इस बात पर तल्खी झलकती थी कि उसका नाम अब बहुत सस्ता हो गया है। हर गिरे-पड़े ठग और हर ठगी की वारदात का निशाना उसे ही बनाया जाता था।

नटवरलाल के नाम पर देश भर में भले ही सैकड़ों मामले दर्ज किए गए हों, लेकिन वह अधिसंख्य वारदातों में शरीक होने के लिए कतई तैयार नहीं था। उसका कहना था कि पुलिस बहुत से मामलों में उसे बेवजह घसीटती रही है। उसके नाम का फायदा उठाकर बहुत से नकली नटवरलाल अपना धंधा चमकाते रहे और सभी वारदातें उसके नाम पर दर्ज की जाती रहीं, क्योंकि नटवरलाल का नाम बदनाम जो था।

एक रोज मैंने नटवरलाल से सवाल किया, “अपने जीवन पर बनी फिल्म नटवरलाल कभी देखी? तब उसका जवाब हैरान करने वाला था। उसका कहना था, -‘जो खुद अभिनेता है वो नकली नौटंकी देखकर क्या करेगा?’

इंटरव्यू में उसने यह भी कहा, “जेल जाने के बाद वो फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन और निर्माता के खिलाफ मुकदमा दायर करेगा। उन्होंने इजाजत के बगैर मेरी जिंदगी पर फिल्म मिस्टर नटवरलाल क्यों बनाई? सबको जेल कराऊंगा। बिना किसी की अनुमति के उसके जीवन की कहानी लिखना, उस पर फिल्म बनाना गैरकानूनी और गंभीर अपराध है। फिल्म वालों से हरजाना लिए बगैर नहीं मानूंगा। उसे गरीबों के लिए बहुत कुछ करना है। हरजाने से मिलने वाला सारा धन गरीबों को बांटना चाहता हूं।’

बनारस से नटवरलाल की उपाधि पाने वाले मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव ठगी को अपराध मानता ही नहीं था। जिस बेफिक्री और आत्मविश्वास के साथ वो सवालों का जवाब देता था उससे लगता था कि गिरफ्तारी के बाद भी उसे तनिक भी घबराहट नहीं है। घड़ियों की ठगी के मामले में आखिरी बार नटवर को तीन नवंबर 1987 को बनारस में पकड़ा गया। वह गाहे-बगाहे भ्रामक बयान देकर बनारस के कैंट थाना पुलिस को परेशान भी किया करता था। लाख प्रयास के बावजूद घड़ियों की ठगी के मामले में पुलिस कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं जुटा सकी। साथ ही कोई ऐसा राज भी नहीं उगलवा सकी जिसके दम पर उसे लंबी सजा हो सके। करीब डेढ़ हफ्ते तक थाने में रखने के बाद थक-हारकर 12 नवंबर 1987 को उसे चौकाघाट स्थित जिला कारागार भेज दिया गया।

नटवरलाल ने मुझसे रहस्य की कई गूढ़ बातें साझा की। यह भी बताया कि कैंट थाना पुलिस के सामने अपनी असलियत क्यों उजागर की? दरअसल, नटवरलाल कुछ दिनों तक आराम करना चाहता था। साथ ही सरकारी खर्च पर कराना चाहता था अपनी बीमारी का इलाज। उस समय उसके पैरों में कुछ दिक्कत थी। वह जेल में रहकर जोरदार लिखा-पढ़ी करना चहता था कि उसकी बुद्धि का इस्तेमाल देशहित में की जाए ताकि जीवन के अंतिम दिनों में भारत के लोगों का कल्याण कर सके। उसकी तीसरी और अंतिम इच्छा थी फिल्म नटवरलाल के निर्माताओं और अभिनेताओं पर मुकदमा ठोंकने की। उसकी दिली हसरत थी कि वो उनसे भारी-भरकम हरजाना वसूले और गरीबों-अपाहिजों को बांटकर सुकून हासिल करे।

नटवरलाल से मैं जब-जब मिला, हर बार वह रहस्य और रोमांच से लवरेज दिखा। मुझसे अपनी जिंदगी के कई अबूझ पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की। यह बताया कि उसने एक मर्तबा तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को खत लिखकर अर्ज किया था कि उसके दिमाग का इस्तेमाल देश सेवा के लिए करें। उन दिनों वो तिहाड़ जेल में बंद था। नेहरूजी ने तत्कालीन वित्तमंत्री गुलजारीलाल नंदा को नटवर से मिलने के लिए भेजा। नटवर ने नंदा से अर्ज किया, -“वह पूरी गारद के साथ मुझे एक बार अमेरिका भेज दें। मैं भारत के सारे कर्ज भरवा दूंगा। लेकिन मेरी बात नहीं मानी गई। तब मजबूरन सरकार को अपना करतब दिखाना पड़ा। ताजमहल, लालकिला, सांसद भवन और राष्ट्रपति भवन तक का सौदा करके बताना पड़ा कि वह कोई ऐरा-गैरा नहीं है। दिमाग है उसके पास।’

नटवर का कहना था कि अगर समय रहते सरकार चेत गई होती तो भारत सोने की चिड़िया होती। जिन अंग्रेजों ने देश को लूटा था, वह उन्हें लूटकर हिसाब-किताब बराबर कर लेता।’

हमने सवाल दागा, “ठगी का पहला अपराध कब, क्यों और कहां किया? जो जवाब मिला वह कम हैरान करने वाला नहीं था। नटवरलाल के मुताबिक साल 1937 में कलकत्ता में पहली ठगी की और उस मामले में 22 सितंबर 1939 में आठ माह की सजा हुई।

पूरा वाकया जानिए। उन दिनों नटवर पढ़ाई करने बिहार से कलकत्ता पहुंचा था। पोस्ट लैंप के नीचे बैठकर किताबें पढ़ा करता था। एक रोज कलकत्ता के बड़े साहूकार केशवराम की नजर पड़ी। साहूकार ने अपने बेटे को पढ़ाने के लिए उसे ट्यूटर के तौर पर रख लिया। कुछ दिनों बाद नटवर ने साहूकार से पढ़ाई के लिए पैसे उधार मांगे। सेठ ने एडवांस देने से इनकार कर दिया। नटवर चिढ़ गया। उसने रूई के कारोबारी केशवराम से करीब साढ़े चार लाख रुपये ठगा और चंपत हो गया।

नटवर कहता था कि पढ़ाई के दौरान ही पूंजीपतियों के प्रति उसके मन में गहरी नफरत पैदा हो गई थी। उसने तय कर लिया था कि जब भी मौका मिलेगा धूर्त विद्या का इस्तेमाल करके वह पूंजीपतियों का पैसा निकालेगा और अपना व देश के गरीबों का खर्च चलाएगा।

नटवर ने जिस किसी को ठगी का शिकार बनाया, उसमें उसे असफलता कभी नहीं मिली। वह कहता था, “ देख लेना। देश की कोई भी पुलिस मुझे हमेशा के लिए जेल में नहीं रख पाएगी। मैंने कोई हत्या, कत्ल, डकैती का जुर्म थोड़े ही किया है। मैं सरकार को एक मौका और दूंगा। वह नहीं सुनेगी तो कुछ दिनों बाद बाहर आ जाऊंगा और अपना काम शुरू करूंगा। जेल में ज्यादा दिन रह गया तो गरीब और अपाहिज कैसे जिंदा रह पाएंगे?’

नटवरलाल ने मुझसे कई और गूढ़ बातें साझा कीं। साफ-साफ कहा कि मेरी बुद्धि और कलम ही मेरे हथियार हैं। असलहों का इस्तेमाल करना मैं नीच काम समझता हूं। इस तरह तो मेरा कुछ भी काम नहीं हो सकता। मैं शांति और प्रेम से रहने वाला हूं। आपसे मैं थोड़ा नौटंकी करता हूं। आप मेरी चाल में आकर रुपये देते हैं और उन रुपयों को लेकर मैं चला आता हूं। ये भला कोई अपराध है? इस काम में मुझे हथियार की कोई जरूरत नहीं पड़ती। बुद्धि के आगे सब बेकार की चीजें हैं।

“बनारस में गिरफ्तारी से पहले पांच दशक तक मैने धूर्त दर्शन विज्ञान का इस्तेमाल किया। मुझे जेल की कोई चिंता नहीं। जैसे मैं बाहर था, वैसे अंदर रहूंगा। मेरे लिए कोई फर्क नहीं पड़ता। हां, गरीबों की चिंता हमेशा सालती रहती है। गिरफ्तारी के पहले मैं खुलेआम घूमा करता था। बड़े-बड़े नेताओं और अफसरों से मिलता था। बराबर बातचीत भी होती थी। कभी कोई नहीं समझ पाया कि मैं यानी नटवरलाल उनसे बात कर रहा हूं। देश भर में मेरी तस्वीरें लाखों स्थानों पर चस्पा कराई गईं, फिर भी कोई नहीं पहचान सका।’

“हैरत में हूं कि धूर्त विद्या को लोग अपराध क्यों मानते हैं? मैं समझता हूं कि अगर आपके पास दौलत की दरिया बह रही है और मुझे उसकी जरूरत है तो उसमें से एक लोटा लेकर मैने अपनी प्यास बुझा ली, भूख मिटा ली, क्या यह अपराध है? जो काम मैं करता हूं, वही भगवान श्रीकृष्ण यानी नटवर भी करते थे। वो भी गोपियों की दही चुराकर अपनी भूख मिटा लिया करते थे। मैं भी वही करता रहा हूं। रही बात कानून की तो कानून हम बनाते हैं, आप बनाते हैं। उसे तोड़ते भी हम और आप ही हैं। इसिलए मेरी नजर में ऐसा कोई कानून नहीं है जो धर्त दर्शन विज्ञान को अपराध साबित करे। कानून वह है जो तोड़ा न जा सके और अगर कोई तोड़े तो बिना भेदभाव के सजा पाए, जैसा प्रकृति का नियम है।’

विश्वविख्यात ठग नटवरलाल ने हमसे वो राज भी खोल डाला था कि वो जेल से कैसे बेधड़क बाहर आ जाता था। उसका कहना था, “ जीवन में बहुत सी बातें होती हैं जिन्हें लोग मजाक मानते हैं। उन बातों पर शक करना तो दूर, किसी का उनकी ओर ध्यान ही नहीं जाता। जहां पहुंचकर इनसान की सोच खत्म हो जाती है, उसके आगे मैं सोचना शुरू करता हूं। विपरीत स्थितियों का फायदा उठाने का आदी रहा हूं।’

बनारस में नटवरलाल की गिरफ्तारी अबूझ पहेली की तरह हुई। कैंट थाने के तत्कालीन इंस्पेक्टर रामदेव शुक्ल मुझसे कोई राज नहीं उगलवा सके। अंत में हारकर उन्होंने मुझे बाप कहकर हाथ जोड़ दिए। इस बीच उन्होंने मेरी खूब सेवा की। जो कुछ मांगा, सब कुछ दिया। किसी तकलीफ का एहसास तक नहीं होने दिया। इंस्पेक्टर की सज्जनता और कर्तव्य के प्रति निष्ठा ने मुझे झुकने पर विवश कर दिया। सोचा कि अगर मैं अपना राज उजागर कर दूंगा तो सरकार उन्हें तरक्की दे देगी और वो आगे भी अच्छा काम करेंगे। काफी सोचने-समझने के बाद उन्होंने मुझसे कोई पूछताछ नहीं की। वादे के मुताबिक 03 नवंबर 1987 को मैंने रहस्योद्घाटन किया, “ मैं नटवरलाल हूं। फिर भी किसी को यकीन नहीं हुआ। कई तर्क दिए और अपनी ठगी के किस्से सुनाए, तब यकीन हुआ पुलिस को। यहां तक कहना पड़ा कि पुलिस खुद सुबूत जुटाए और साबित करे कि मैं नटवरलाल हूं या कोई और हूं। मुझे अपने हर वारदात की तारीख, समय और साल याद है। लेकिन उसकी तस्दीक करना पुलिस का काम है। मैं सुबूत नहीं छोड़ता। यदि पुलिस के पास से मेरा रेकार्ड और तस्वीर गायब हो जाए तो मैं क्या कर सकता हूं?’

कई मायने में नटवर हमें साफ दिल इनसान लगा। उससे यह जानने की कोशिश की कि पुलिस की तारीफ करके वो कोई नया नाटक तो नहीं खेलना चाहता? तब नटवर भावुक हो गया। कहा, “दगाबाजी करके हमने कभी कोई फायदा नहीं उठाया। जिसके प्रति हमारी श्रद्धा होती है, उसके हम गुलाम हो जाते हैं। जिससे मेरी बहस हो जाती है, उस वक्त उसे यह बताने की कोशिश करता हूं कि देखो मैं तुम्हारा उस्ताद हूं।’

‘बताना चाहता हूं कि साल 1957 में मैं लखनऊ के जिला जेल में कैद था। जेल का अधीक्षक ईसाई था। उसने मेरे साथ दुर्व्यवहार किया। अपमान करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। उसी दिन उसे बता दिया कि एक महीने के अंदर उसकी नौकरी चली जाएगी। ठीक पच्चीसवें दिन मैं जेल से कप्तान की वर्दी पहनकर बाहर निकला। उस रोज वही जेल अधीक्षक मुझे नहीं पहचान सका, बल्कि उसने मुझे सलामी ठोंकी। मुझे कार में बैठाने के बाद कई बार सैल्युट  दागा। बोला, “जाइए’। नीले रंग की कार में बैठकर मैं चला आया। मेरी फरारी के बाद वह जेल अधीक्षक मुअत्तल कर दिया गया। उन सभी जेलकर्मियों की नौकरी भी चली गई  जिन्हें मुझ पर नजर रखने के लिए तैनात किया गया था।’

कैंट थाने में नटवर से लगातार मेरी बातें होती रहीं। एक रोज मैने सवाल किया, ‘अपनी धूर्त विद्या का करतब मुझे भी तो दिखाइए। यदि हो सके तो कुछ मंत्र दे दीजिए? तब नटवरलाल के चेहरे पर मुस्कान तैर गई। कहा, “यकीन करो, मैं धूर्त विद्या का प्रवक्ता हूं। मेरे पास कुछ ऐसी कलाएं हैं जिससे पूरे देश की भुखमरी मिट सकती है। देश के पास बेशुमार दौलत आ सकती है। हिन्दुस्तान का कोई बच्चा भूखा नहीं सोएगा। यदि सरकार ज्योतिष विद्या जैसे झूठे ज्ञान को मान्यता दे सकती है तो फिर मेरे प्रस्तावों पर वो गंभीरता से विचार क्यों नहीं करती? थाने में बैठकर मैं अपनी कला का प्रदर्शन करने लग जाऊं तो कई पुलिस वालों की नौकरियां चली जाएंगी। अगर बनारस के सभी अफसर मिलकर मेरी विद्या का, मेरी कला का प्रदर्शन देखने को तैयार हो जाएं तो मैं सब कुछ दिखा सकता हूं। घंटे-दो घंटे में बीस-पच्चीस हजार रुपये लाकर उनके हाथों पर रख दूंगा। मेरे जीवन का लक्ष्य ठगी नहीं, देश को प्रगतिशील बनाने का है।’

नटवर से मैं जब भी मिलता, पहला सवाल यही करता, कहां और कितनी है आपकी संपत्ति? तब वो मुझे घूरता और कहता, “मेरी संपत्ति के पीछे क्यों पड़े हो? मेरी जितनी संपत्ति थी, उसे मैंने खुद ही बरबाद कर दी। मैं हमेशा शाही जीवन गुजारता रहा हूं। तुम्हारे जैसा मेरा बेटा राजेंद्र कुमार मर गया। मेरी याद में बीवी ललिता देवी पागल होकर दुनिया से रुखसत हो गई। जब मैं जेल में होता था, तब ललिता ही मेरी खैर-खबर लिया करती थी। उसके लगातार खत आते थे। जवाब यदा-कदा ही दे पाता था। परिवार में सिर्फ एकमात्र मेरा भाई बचा है, जिसका मुझसे कोई संबंध नहीं है। जो कुछ कमाता था, गरीबों में बांट देता था। मेरे पास कोई ऐसी संपत्ति नहीं, जिसे मैं बता सकूं। इलाहाबाद में मैं जिस कमरे में रहता था, पुलिस वहां छापामार चुकी है। सब कुछ खंगाल चुकी है। एक झाड़ू के अलावा उसे कुछ भी नहीं मिला।’

“ हां अगर मैं आज यहां से छूट जाऊं तो फिर मेरे पास पैसे ही पैसे होंगे। मुझे इस बात का डर नहीं है कि कोई मुझे पहचान लेगा। मैं चुनौती देता हूं कि पुलिस मुझे छोड़कर पकड़ ले। कोई पहचानकर दिखा दे। यह भी बता देना चाहता हूं कि मैने अपना चेहरा बदलकर कभी धंधा नहीं किया। इतना जरूर है कि तुम्हारे जैसे पत्रकार से अभी तक मेरा पाला नहीं पड़ा था। क्या उम्र होगी तुम्हारी? देखने से तुम तो बिल्कुल बच्चे लगते हो। देखना, एक दिन तुम बहुत आगे जाओगे। यदि जल्द लखपति बनना चाहते हो मुझसे मिलते रहना। जेल में भी और बाहर भी, फायदे में रहोगे।’

“तुमने मोहन सिंह का नाम सुना होगा। उसने कुछ महीने पहले 27 नवयुवकों को गुप्तचर की नौकरी देकर उन्हीं के जरिए बंबई में एक जेवर की दुकान से करीब तीस हजार रुपये के आभूषण ले गया। पहले वो बेकार था। मारा-मारा फिर रहा था। वह मेरी बहुत सेवा करता था। मैं उसे बराबर पैसा देता रहता था। एक दिन कहने लगा, ‘चचा!  एक कला हमें भी दे दो। मैंने उसे एक गुर बताकर समझा दिया। बाकी उसने खुद अपनी समझदारी से काम लिया।’

दुनिया के सबसे चर्चित ठग नटवरलाल की कहानी किसी तिलस्म से कम नहीं है। आखिर तक उसने कोई गिरोह क्यों नहीं खड़ा किया? इस बारे में उसका अलग ही तर्क था। वो कहता था, ‘अकेले में फंसने का चांस बहुत कम होता है।’ शायद यही वजह रही कि उसने बिहार, यूपी, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश से लगायत मुंबई और दिल्ली में बेधड़क ठगी की वारदातों को अंजाम दिया। पकड़ा तभी गया, जब आराम फरमाने के लिए उसके दिल ने अलार्म बजाया। जब भी बाहर निकलने का मंसूबा दिल में उपजा तो देश की कोई जेल उसे सलाखों में कैद नहीं रख सकीं। गच्चा ऐसा देता कि जेल अफसर उसे बाहर निकालते और सैल्युट भी मारते थे।

कुख्यात ठग नटवरलाल 25 जून 1996 को जब दिल्ली रेलवे स्टेशन से फरार हुआ तब उस समय उसकी उम्र थी करीब 84 बरस। साल 1912 की उसकी पैदाइश थी। नटवरलाल के गांव बंगरा के लोगों के मुताबिक नटवर की अब मौत हो चुकी है। जिस साल वह दिल्ली से फरार हुआ था,  उसी साल उनकी मौत हो गई थी। उसकी बेटी और दामाद ने रांची में अंतिम संस्कार किया।

करीब चार सौ मामलों में पचास से अधिक फर्जी नामों से ठगी करने वाला सिर्फ दो लोगों पर गुमान करता था। एक खुद पर और दूसरे भारत के पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद पर। दरअसल दोनों का रिश्ता बिहार के सीवान जिले से जुड़ा हुआ था। नटवर पिता रघुनाथ प्रसाद श्रीवास्तव रेलवे में रेवेन्यू कलेक्टर थे। भाई गंगा प्रसाद जीरादेई में रहते हैं। इकलौती बेटी की शादी हो चुकी है और वो अपने फौजी पति के साथ रांची में रहती है।

ठगी में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त इस अपराधी की बड़ी खासियत यह रही कि इसने किसी को न तो बंदूक दिखाकर लूटा और न ही किसी हथियार का इस्तेमाल किया। वह अकेले ठगी करता था और धन गरीबों में बांट देता था। जीरादेई इलाके के लोग आज भी इसे कुख्यात ठग नहीं, नेक इनसान मानते हैं। इस गांव में शायद ही कोई ऐसा परिवार होगा, जिसकी मदद नटवरलाल ने नहीं की होगी।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!