यहां आखों से बात करते थे दो गांवों के लोग

यहां आखों से बात करते थे दो गांवों के लोग

पुल बना तो जुड़ गए दिल, घट गई हथियानी और गोरारी की दूरी
सांसद महेंद्र नाथ पांडेय भूले चुनावी वादा, नहीं बनवा सके दूसरा बड़ा पुल
कड़ाहे में बैठकर ग्रामीण पार करते थे चंद्रप्रभा नदी, दूर हो गई मुश्किलें

चंदौली से सत्य प्रकाश की रिपोर्ट

 चंदौली जिले के दो गांव ऐसे हैं जहां के लोग पहले आंखों से बात करते थे। तब न मोबाइल था, न इंटरनेट। चिट्ठी से ही संदेश पहुंच पाता था। लोग बीमार पड़ते थे… मुसीबतें आती थीं… दिल में तड़प होती थी, लेकिन मिल नहीं पाते थे। जानते हैं क्यों? एक गांव है गोरारी जो बारिश में फुंफकार मारने वाली चंद्रप्रभा नदी के दक्षिणी छोर पर है तो दूसरा हथियानी उत्तरी छोर पर बसा है। पुल न होने से गर्मियों में भी दोनों गांवों के लोग एक-दूसरे के यहां नहीं आ-जा पाते थे।
हथियानी के ग्रामीणों को चंदौली और गोरारी वालों को चकिया पहुंचने में पसीना छूटता था। दोनों के गांवों के बीच पुल न होने से लोगों को बेवजह मीलों ज्यादा दूरी तय करनी पड़ती थी। आजादी के बाद किसी राजनीतिज्ञ ने इस गांव का दर्द समझा तो वे थे तत्कालीन सांसद जवाहरलाल जायसवाल। चुनाव जीते तो उन्होंने महज 15 लाख रुपये में ऐसा पुल बनवा दिया, जिससे दोनों गांवों की दूरियां मिट गर्इं। दिल मिल गए। रास्ता घट गया। मुश्किलें आसान हो गर्इं।
हथियानी गांव के ग्राम प्रधान संजू यादव के पिता अम्बिका यादव बताते हैं कि चंद्रप्रभा नदी के किनारों पर बसे दोनों गावों के लोग एक दूसरे से नदी के पार खड़े आखों-आखों मे बातें कर संदेशों का आदान-प्रदान करते थे। लोग इस पार से उस पार जाने के लिए गर्मी का इंतजार करते थे। गर्मियों में नदी नहीं के बराबर रहता है। तभी लोग एक दूसरे से मिल पाते थे। दूसरे मौसमों मे अगर नदी पार जाना जरूरी होता था तो लोग गुड़ बनाने की कड़ाहियों में बैठकर, जान जोखिम में डालकर नदी पार करते थे। एक व्यक्ति कड़ाहे के साथ तैर कर दूसरे कड़ाहे को धकेलता था। रिश्तेदार भी गोरारी गांव में आने से कतराते थे। कारण, दूसरे रास्ते से गांव में आने मे लगभग आठ से तेरह किलोमीटर की अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती थी। अम्बिका बताते हैं कि हथियानी और गोरारी दोनों गांवों के लोगों ने कई नेताओं के चौखट पर मत्था टेका, गुहार लगाई। लेकिन किसी ने पुल बनवाने कि जिम्मा नहीं उठाया।  सपा नेता जवाहर लाल जायसवाल को टिकट मिला तो ग्रामीणों में उम्मीदें जगीं।

जवाहरलाल जायसवाल ने पूरा किया वादा

चुनाव के समय श्री जायसवाल ने ग्रामीणों से वादा किया कि हारे तब भी पुल बनवाएंगे और अपने पैसे से। ग्रामीणों को यकीन नहीं हुआ। जवाहरलाल अपने वादे को नहीं भूले। चुनाव जीते तो सबसे पहले हथियानी पहुंचे। नापी कराई और महज छह महीने में मजबूत पुल बनवाकर दोनों गांवों की दूूरी मिटा दी। ऐसा पुल जिसे बनाने में उस समय भी 50 लाख से ज्यादा की लागत आती थी। बाबूलाल यादव बताते हैं कि पुल के बन जाने से उनके गांव में अब एक छोटा बाजार विकसित हो गया है। पहले रास्ते के किनारे दोनों तरफ बड़ी-बड़ी खार्इं थी। दूर-दूर तक आदमी दिखाई नहीं देते थे। अब बाजार जैसी चहल-पहल रहती है।
गोरारी के ग्राम प्रधान लोकनाथ विश्वकर्मा बताते हैं कि नदी पर पुल न होने की स्थिति में उनके गांव में जाने के लिए काटा से होते हुए लगभग 6 से 7 किलोमीटर की दूरी ज्यादा नापनी पड़ती थी। अब गोरारी, तेतरिया भदौलिया, त्रिभुवनापुर, राममाड़ो सहित दर्जनों गांव पुल बनने की वजह से एक दूसरे से जुड़ चुके हैं। प्रद्युम्न चौहान ने कहा कि अगर पुल दो लेन का होता तो बड़े वाहनों की आवाजाही शुरू हो जाती। उन्होंने बताया कि मौजूदा सांसद महेंद्र नाथ पांडेय ने चुनाव में बड़ा पुल बनवाने का वादा तो जरूर किया, पर बाद में भूल गए। राजाराम यादव, प्रसिद्ध चौहान, छोटे लाल चौहान, विक्रमा बताते हैं कि नदी पर पुल न होने पर गोरारी गांव के लोगों की मुश्किलें तब बढ़ जाती थीं, जब घर में कोई बीमार पड़ता था। लोग जिला चिकित्सालय जाने के लिए 13 किलोमीटर की अतिरिक्त यात्रा करते थे। पूर्व सांसद जवाहर लाल जायसवाल द्वारा पुल बनवा दिए जाने से जिला चिकित्सालय की दूरी सिमटकर आधी रह गई।

सांसद का नाम पुल से गायब

डवक। दर्जनों गांवों को पुल के सहारे चंदौली से जोड़कर ग्रामीणों का दिल जीतने लाले सांसद जवाहर लाल जायसवाल का नाम आज पुल के शिलापट्ट से गायब है। पुल पर लगे शिलापट्ट पर तत्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष अमलावती यादव द्वारा जीर्णोद्धार कराये जाने की सूचनाएं तो अंकित हैं, लेकिन सांसद निधि से निर्मित पुल पर कहीं भी उनके नाम का जिक्र नहीं है। बाबूलाल यादव ने बताया कि हथियानी सड़क के किनारे शिलापट्ट लगा है, जिस पर पुल के निर्माण और सांसद से संबंधित सूचनाएं लिखी हुई हैं। देखे जाने पर शिलापट्ट तो मिला, लेकिन एक दुकान की आड़ में छिप गया है। नई पीढ़ी इस पुल के इतिहास के अपरचित है, क्योंकि तत्कालीन सांसद जवाहर जासवाल के शिलापट को छिपा दिया गया है। ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि उक्त शिलापट्ट को दोबारा पुल के समीप ऐसा लगाया जाये ताकि पुल को बनवाकर तरक्की की राह खोलने वाले तत्कालीन सांसद जवाहर जायसवाल को नई पीढ़ी जान सकें।
प्रस्तुति: सत्य प्रकाश

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