जुर्म के गर्भ में खबरें टटोलता है जांबाज क्राइम रिपोर्टर

जुर्म के गर्भ में खबरें टटोलता है जांबाज क्राइम रिपोर्टर

अखबार हो या खबरिया चैनल, क्राइम रिपोर्टर बनना हर पत्रकार का सपना होता हैैै। सिर्फ क्राइम रिपोर्टर ही ऐसा शख्स होता हैै जिसकी समाज में सबसे ज्यादा धाक होती है। नवोदित पत्रकार अगर क्राइम रिपोर्टर बनना चाहते हैं तो उनके लिए यह रपट मील का पत्थर साबित हो सकती है। पहली बार पढ़ें क्राइम रिपोर्टिंग की नई तकनीक पर रोशनी डालने वाला आलेख। जानें इसकी बारीकियों और कानूनी पहलुओं को।

समाज को अपराधियों से सतर्क करती है अपराध पत्रकारिता

विजय विनीत 

खींचो न कमानों को, न तलवार निकालो।

जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।।

पूर्वांचल के मशहूर शायर अकबर इलाहबादी की ये पंक्तियां अपने दौर की निष्पक्ष और ताकतवर पत्रकारिता को बयां करती हैं। पत्रकारिता में जोखिम है और जुनून है। अगर आप क्राइम रिपोर्टर बनना चाहते हैं तो जान की परवाह किए बगैर जुर्म के गर्भ से खबरों को निकालने का माद्दा रखना होगा। अपराध की खबरें महज किसी वारदात की सूचना भर नहीं होतीं। ये खबरें समाज को अपराधियों से सावधान करती हैं। जनता को जागरूक भी करती हैं। अपराधों के नए तौर-तरीकों से बचने का संदेश भी देती हैं। अफसोस की बात यह है कि लोग अपराध की खबरों को गंभीरता से नहीं लेते और अपराधियों के शिकंजे में फंस जाते हैं। कभी ठगों के जाल में, तो कभी देश विरोध ताकतों की जाल में।

क्राइम रिपोर्टिंग महज घटना की सूचना तक सीमित नहीं है। इस विधा के जरिए लोगों को कानून और मानवाधिकारों के बारे में जागरूक किया जाता है। ये खबरें अपराध पीड़ितों के अधिकारों से वाकिफ तो कराती ही हैं, पुलिस के कर्तव्यों से रूबरू कराती हैं। दरअसल, क्राइम रिपोर्टिंग बेहद गंभीर और जिम्‍मेदारी से किया जाना वाला कार्य है। अपराध पत्रकारिता के चलते लोगों को उसमें होने वाली सजा के बारे में जानकारी मिल जाती है। सजा की तीव्रता को दिखाए जाने से बहुत से अपराध रुक जाते हैं। फकत पुलिस के दावे के आधार पर किसी को मुजरिम करार देना क्राइम रिपोर्टिंग नहीं होती है। आरोपी मुजरिम है या नहीं, यह सिर्फ अदालतें तय कर सकती हैं।

अक्‍सर देखा जाता है कि पुलिस डकैती को लूट और लूट को चोरी में दर्ज करती है। पुलिस जब डकैती या लूट के मामलों को सुलझाने का दावा करती है तब क्राइम रिपोर्टर को चौकन्ना होकर काम करना चाहिए। यह पड़ताल करनी चाहिए कि पुलिस ने जो मामलाा सुलझाने का दावा किया है क्‍या वे सभी मामले वारदात के बाद दर्ज किए थे अथवा नहीं? क्या आईपीसी की सही धारा लगाई गई है? यह तभी संभव है जब क्राइम रिपोर्टर को आईपीसी की प्रमुख धाराओं की पुख्ता जानकारी होगी। क्राइम रिपोर्टरों को रोजाना सिर्फ चुनौती और दबाव ही नहीं, तनाव एवं प्रतिस्‍पर्धा से मुकाबला करना पड़ता है। पत्रकारिता के क्षेत्र में अगर किसी रिपोर्टर की पहचान का दायरा सबसे बड़ा होता है तो वह है क्राइम रिपोर्टर। यह दायरा उसे उम्दा काम करने के लिए अभिप्रेरित और प्रोत्साहित करता है।

पत्रकारिता का रोचक पक्ष है क्राइम रिपोर्टिंग

अपराध पत्रकारिता का रोचक पक्ष है। दुनिया भर में अपराध की खबरों को पाठक बड़ी दिलचस्पी से पढ़ते हैं। इसीलिए हत्या, लूट, डकैती से लेकर चेनस्नेचिंग तक की घटनाएं अखबरों में प्रमुखता से छपती हैं। इन खबरों को प्रकाशित करने के पीछे अखबारों का मकसद लोगों को सतर्क करना होता है। किसी की हत्या होने पर इलाके का हर व्यक्ति उस घटना से खुद को जुड़ा पाता है। घटना क्यों, कैसे और किस लिए हुई? हत्यारे की गिरफ्तारी हुई कि नहीं? यह जानने की उत्कंठा हर व्यक्ति को होती है। जहां इंसान पर अपराध होता है उसे कुछ समय के लिए पाठक अपने ऊपर आया संकट की तरह से समझता है। इसीलिए वह अपराध के समाचारों को दिलचस्पी के साथ पढ़ना और अपने निकट संबंधियों से घटनाओं के बारे में जानकारी शेयर करता है।

अपराध कभी थमते नहीं। कोई भी अखबार अपराध की घटनाओं से अपने पाठकों को वंचित नहीं रखना चाहता है। इसलिए सभी अखबारों में आपराधिक घटनाओं को कवर करने के लिए विशेष रूप से संवाददताओं की नियुक्ति की जाती है। इन्हें क्राइम रिपोर्टर के नाम से जाना जाता है। अपराध की खबरें तैयार करना कठिन काम होता है। उसके लिए सिर्फ मानसिक ही नहीं, शारीरिक श्रम की जरूरत पड़ती है। नए और नौजवान संवाददाताओं के लिए क्राइम रिपोर्टिंग चुनौती भरा कार्य होता है। यह प्रशिक्षण का ऐसा मैदान होता है जहां गुंडे-बदमाश ही नहीं, पुलिस-अधिवक्ता और नेता हर किसी से साबका पड़ता है। कई बार बड़ा दबाव भी झेलना पड़ता है। ऐसे में क्राइम रिपोर्टिंग कोई आसान काम नहीं है।

हमेशा सूझबूझ से करें खबरों का संकलन

समाचार संकलन करने में कई बार ऐसी चुनौतियां सामने आती हैं जिसे लिखते समय काफी चौकन्ना और सूझबूझ की जरूरत पड़ती है। अपराध और अपराधियों के बारे में जानकारी जुटाना बड़ा जोखिम भरा काम होता है। कई बार संवाददाताओं को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। जान हथेली पर रखकर काम करना पड़ता है। अपमान सहना पड़ता है और शारीरिक कष्ट भी। क्राइम रिपोर्टिंग ऐसी सनसनीखेज बीट मानी जाती है जिससे होकर गुजरने वाला संवाददाता भविष्य में किसी भी चुनौतपूर्ण बीच की रिपोर्टिंग आसानी से कर सकता है।

माफिया और प्रभावशाली अपराधियों के बारे में लिखने पर कभी-कभी जान के लाले तक पड़ जाते हैं। ऐसे मामलों में पत्रकार तभी ईमानदारी से काम कर पाता है जब अखबार का प्रबंधन और संपादक उसके साथ खड़ा होता है। क्राइम रिपोर्टिंग में जितना श्रम करना पड़ता है उतना किसी भी क्षेत्र में मेहनत नहीं करनी पड़ती है। बड़ी चुनौतियों और रुकावटों से रोजाना दो-चार होना पड़ता है। फिर भी जिंदगी से जुड़ी इस विधा की अहमियत कभी घटने वाली नहीं है।

कैसे बनें साहसी क्राइम रिपोर्टर?

अच्छे क्राइम रिपोर्टर को काफी भागदौड़ करनी पड़ती है। पुलिस के आला अफसरों से लेकर होमगार्ड तक से दोस्ती गाठनी पड़ती है। घटनाओं की जांच और जानकारी हासिल करने के लिए पुलिस ही नहीं, बदमाश चरित्र के लोगों से संपर्क साधना पड़ता है। यह अपने आप में एक अच्छा अनुभव होता है। अच्छा क्राइम रिपोर्टर महत्वपूर्ण घटनाओं का हर समय पीछा करता रहता है। उसे एक तरह की बड़ी और गंभीर साधना करनी पड़ती है। साहसी पत्रकार आज भी माफिया, नक्सली अथवा आतंकवादी गिरोहों की परवाह किए बगैर समाचारों के पीछे छिपी घटनाओं की तलाश करते हैं। वास्तविकता को उजागर करते हैं। पुलिस प्रशासन को सलाह देने की कोशिश भी करते हैं।

अपराध की घटनाओं में सतर्कता बरतना बेहद जरूरी होता है। मृतक अथवा हत्यारे का गलत नाम अथवा तथ्यों में गलती के गंभीर नतीजे सामने आते हैं। कई बार मानहानि जैसे मुकदमें तक झेलने पड़ते हैं। ऐसे मुकदमों में भारी-भरकम धनराशि की मांग की जाती है। क्राइम रिपोर्टर को कानून के सभी पहलुओं का ज्ञान होना जरूरी है। जिन समाचारों में कानून का उल्लेख होता है, उसे अधिक विश्वसनीय और प्रभावी माना जाता है। पाठकों के दिलों में उतरने वाले समाचार न सिर्फ संवाददाता, बल्कि अखबार की विश्वनीयता को बढ़ाते हैं।

विदेशों में सभी सुविधाओं से लैस होते हैं क्राइम रिपोर्टर

विकिसत देशों के क्राइम रिपोर्टर हर तरह के संसाधनों और सुविधाओं से लैस होते हैं। वे घटना पर पहुंचकर स्पाट रिपोर्टिंग कर सकते हैं। भारत में संवाददाताओं को ज्यादातर मामलों में पुलिस अधिकारियों की सूचनाओं पर निर्भर रहना पड़ता है। कई बार थाने के सिपाही अथवा होमगार्ड से ऐसी जानकारी मिल जाती है जो व्यवस्था को हिला देने तक का मद्दा रखती है।

संवाददाता को इस बात का ज्ञान होना जरूरी है कि कौन सा समाचार किस स्तर के अधकारी अथवा कर्मचारी से मिल सकता है। अस्पताल, मुर्दाघर, फायर ब्रिग्रेड, एंबुलेंस सेवा विभाग में क्राइम रिपोर्टरों की अच्छी घुसपैठ होनी चाहिए। मजिस्ट्रेट के दफ्तर और न्यायालय भी अपराध समचारों के प्रमुख केंद्र होते हैं। रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, विश्वविद्लय सहित भीड़भाड़ वाले स्थान भी अपराध संबंधी समाचारों के सूत्र बनते हैं।

अपराध की घटनाएं पाठकों के लिए रुचिकर जरूर होती हैं, लेकिन खबरों में अपराधियों का महिमामंडन कतई नहीं करना चाहिए। साथ ही अतिरंजित, मनगढ़ंत और चटक-मटक भाषा का इस्तेमाल समाचारों में कतई नहीं करना चाहिए। भावुकता अथवा उत्तेजना में लिखा गया समचार अक्सर संवाददाताओं के लिए मुसीबत का सबब बन जाता है। कई बार बड़े हादसे संवाददाताओं को हिलाकर रख देते हैं। विमान-ट्रेन दुर्घटना, फौजदारी, अग्निकांड के दौरान क्षत-विक्षत लाशों के बीच चीखते-चिल्लाते घायलों को देखकर कई रिपोर्टर घटना स्थल से भाग खड़े होते हैं।

सड़क हादसों की ऐसे करें कवरेज

भाग-दौड़ भरी जिंदगी में वाहन हासदों की बाढ़ सी आने लगी है। इन घटनाओं को संवाददाता गंभीरता से नहीं लेते। यह जानने की कोशिश ही नहीं करते कि सड़क हादसे में किसी इंसान की मौत से उसके परिवार और आसपास के क्षेत्र पर क्या असर पड़ेगा? अपराध और कानून संबंधी मामलों की रिपोर्ट की सबसे अच्छी बात यह है कि यह केवल रोजमर्रा का साधारण काम नहीं है। एक तरह से यह समाजसेवा भी है। अपराध की घटनाओं में पाठक गूढ़ सवालों का जवाब जानने के उत्सुक रहते हैं। जो अखबार पाठकों की जिज्ञासा को शांत कर पाने में सक्षम होते हैं उन्हें ज्यादा पसंद किया जाता है।

सांप्रदायिक अथवा राजनीतिक दलों के बीच झड़प या दुर्भावना का प्रभाव समूचे समाज पर पड़ता है। ऐसे मामलों में संवाददाताओं को विशेष रूप से सतर्कता बरतनी चाहिए। संवाददाता को ऐसे समाचर देते समय संयम से काम लेना चाहिए और यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि समाज के प्रति उसका कुछ कर्तव्य है। आगजनी, बाढ़, तूफान, हत्या, डकैती, गिरफ्तारी आदि के संबंध में रिपोर्ट पुख्ता जानकारी के आधार पर ही देनी चाहिए। ऐसे मामलों में वे संवाददाता ज्यादा बेहतर रिपोर्ट तैयार करते हैं जिनके सूत्र (खास व्यक्ति) पुलिस मुख्यालय, थाना और न्यायालय में होते हैं। इन स्थानों पर कुछ खास व्यक्तियों से तालमेल बनाए रखना आवश्यक होता है।

अखबारों में जब के अपराध की घटनाओं की गहनता से समीक्षा होने लगी है तब से सभी अखबारों और चैनलों के क्राइम रिपोर्टर एक संगठन के रूप में कार्य करने लगे हैं। ऐसे संवाददाताओं को अखबारी दुनिया में सम्मानजनक स्थान नहीं मिल पाता है। संवाददाताओं को गिरोह के रूप में लामबंद होकर काम करने के पीछे मजबूरी यह होती है कि उसे थाने पर जाकर रिकार्ड देखने अथवा पकड़े गए अपराधी से बातचीत करने का अधिकार नहीं होता है। पुलिस शाम को प्रेस ब्रीफिंग भेजती है जिसमें सिर्फ उसकी उपलब्धियों का ही बखान होता है।

क्राइम रिपोर्टिंग करते समय बरतें ये सावधानी

0 अपराध की घटनाओं में गिरफ्तारी का समाचार देने से पहले यह जानना जरूरी हो जाता है कि अमुक व्यक्ति को दंड व्यवस्था की किस धारा के तहत गिरफ्तार किया गया है। आवश्यक दस्तावेज न मिलने पर पुलिस अफसर का समाचार में हवाला दिया जाना चाहिए।

0 किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी और हिरासत में लिया जाना अलग-अलग बातें हैं। पुलिस पूछताछ के लिए किसी व्यक्ति को हिरासत में ले सकती है। अपराध में वांछित होने की पुष्टि होने पर गिरफ्तारी दर्शायी जाती है।

0 किसी व्यक्ति की फरारी अथवा पुलिस द्वारा तलाश किए जाने की खबर नाम-पता के साथ तक नहीं छापी जानी चाहिए जब तक उसके खिलाफ रपट दर्ज नहीं हो जाती।

0 क्राइम रिपोर्टिंग में एक-एक शब्द भाव और अर्थ बदल देते हैं। आमतौर पर रिपोर्टर लिखता है कि अमुक व्यक्ति पर हत्या का मुकदमा चल रहा है। यह लिखना गलत है। छापा यह जाना चाहिए कि अमुक व्यक्ति पर हत्या करने का आरोप लगाकर मुकदमा चलाया जा रहा है।

0 पुलिस को दिए गए बयानों का कानूनी तौर पर विशेष महत्व नहीं होता है। जब तक कोई व्यक्ति कोर्ट में अपना अपराध कुबूल नहीं कर लेता तब तक पुलिसिया बयान को प्रकाशित करने से संवाददाताओं को बचना चाहिए। आमतौर पर पुलिस के सामने अपराध कुबूल करने वाले कोर्ट में मुकर जाते हैं।

0 पुलिस को दिए गए बयान को बयान अथवा स्पष्टीकरण कहकर ही छापना चाहिए। कोर्ट में कोई व्यक्ति तब तक अपराधी नहीं होता, जब तक वह कानून की नजर में अपराधी नहीं है। उसे अभियुक्त लिखा जाना चाहिए।

0 आत्महत्या के मामलों में विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए। सुसाइड नोट नहीं छापनी चाहिए। समाचार में यह लिखा जा सकता है कि मामला आत्महत्या का लगता है। ऐसे मुद्दों पर अटकलबाजी नहीं करनी चाहिए।

० हत्या अथवा आत्महत्या का मामला संवाददाता को बहुत कुछ सोचने को बाध्य करता है, लेकिन उसके पास कोई ऐसा साधन नहीं है, जिससे वह किसी संगीन मामले की गुत्थी को सुलझाने का दावा कर सके।

0 संगीन अपराधों के बारे में पुलिस के अधिकारी कुछ ही बता दें तब भी उस पर आंख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए। संवाददाता को वास्तविकता का कम समय में खोजबीन करनी चाहिए। पुलिस और अखबारों की शब्दावली में भी अंतर होता है। कई बार धाराएं भी अलग-अलग बातें कहती हैं।

0 हिंसा के दौरान अफवाहें तेजी से फैलती हैं। अफवाहें भी कई बार नरसंहार का कारण बन जाती हैं। ऐसे में संवाददाता को जोखिम लेकर खुद मौके पर पहुंचना चाहिए। विशेष सावधानी बरतने के बावजूद उपद्रव की रिपोर्टिंग में संवादताओँ को आलोचनाएं झेलनी पड़ती हैं।

0 क्राइम रिपोर्टर को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि पुलिस के अफसर आज जो कह रहे हैं, कल उस पर टिके रहेंगे। पुलिस खुद क्राइम रिपोर्टरों के सहयोग से जांच को आगे बढ़ाती है। अपराधी की गिरफ्तारी के बाद उसके बारे में संवाददाता को जानकारी देने में आनाकानी अथवा गुमराह करती है।

इससे बचें

हिंसा का महिमामंडन नहीं होना चाहिए। किसी हिंसात्मक कार्य, सशस्त्र लूटपाट व आतंकवादी गतिविधियों को महिमामंडित नहीं करना चाहिए। कहीं से ऐसा न लगे कि अपराधकर्म अपराधी की ओर से की गई घोषणा या उसकी मौत को लोगों की निगाह में महिमामंडित किया गया है। कई बार पत्रकार अपराधियों को हौसलाबुलंद पदवी देकर नवाजते हैं और हिंसा का महिमामंडन करने से बाज नहीं आते। अपराध की रिपोर्टिंग करते समय ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए।

 अपराध की खबरों की भाषा

अपराध की खबरों की भाषा पुलिसया नहीं होना चाहिए। पुलिस के रोजनामचे की भाषा ग्राह्य नहीं है। कई बार क्राइम रिपोर्टर अपराधियों का महिमामंडन करते हैं। उनके अपराध करने के तरीके का खबरों में इस तरह से बखान करते हैं जैसे जांबाज जवान सीमा पर युद्ध में अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हैं। क्राइम रिपोर्टरों को खबरों में शालीन भाषा का प्रयोग करना चाहिए।

क्राइम रिपोर्टर तीन शब्दों का सर्वाधिक इस्तेमाल करते हैं। ये शब्द हैं, खुलासा, भंडाफोड़ और पर्दाफाश। तीनों शब्दों का अर्थ अलग-अलग होता है। खुलासा ऊर्दू शब्द है। इसका अर्थ संक्षिप्त होता है, न कि खोलना। किसी घटना का रहस्य उजागर करने के मामले में इस शब्द का प्रयोग कतई नहीं करना चाहिए।

भंडाफोड़ शब्द का प्रयोग अप्रकट तथ्यों का रहस्य उजागर होने के बाद गया जाना चाहिए। मसलन- जब अचानक कोई तस्कर, बदमाश, गिरोह का पकड़ लिया जाए। बदमाशों के पकड़े जाने पर चौकाने वाली बातें भी उजागर हों। पर्दाफाश का प्रयोग उस दशा में किया जाना चाहिए जब पुलिस अथवा सीबीआई की विवेचना के दौरान नई और रहस्य की बातें उजागर हों। पुलिस के के कामकाज में उर्दू शब्‍दों का इस्तेमाल ज्यादा होता है। क्राइम रिपोर्टरों को चाहिए कि उर्दू का शब्दकोश लेकर पुलिस शब्दावली का सही अर्थ जान लें।

क्राइम रिपोर्टरों के पक्ष में एक बड़ा फैसला

क्राइम रिपोर्टरों के पक्ष में दिल्ली उच्च न्यायालय का एक बड़ा फैसला है, जिनसे उन्हें वाकिफ होना जरूरी है। फैसले के मुताबिक घटना स्थल पर तैयार की गई एक पत्रकार की डायरी, पुलिस के रोज़नामचे की तरह एक बेहतरीन शुरुआती साक्ष्य हो सकता है। यह फैसला उच्च न्यायालय ने गोवध आंदोलन के मामले में दिया था। पत्रकारों को चाहिए कि वे डायरी पर ही खबरें नोट करें। यह डायरी कोर्ट में साक्ष्य भी बन सकती है। क्राइम रिपोर्टरों को मानहानि के मुकदमों से बाहर निकाल सकती है। अपराध के आंकड़ों और घटनाओं को संकलित करने में उनकी मुश्किलें आसान कर सकती है।

कुछ और बातें जानें क्राइम रिपोर्टर

संज्ञेय-असंज्ञेय अपराध, जमानती-गैर जमानती अपराध, एफआईआर, रोजनामचा, डीडी इंट्री, तहरीर, रूक्‍का, कलंदरा, विसरा और पंचानामा के बारे में क्राइम रिपोर्टरों को पुख्ता जानकारी होनी चाहिए। हिरासत और गिरफ्तारी में अंतर समझना भी बेहद जरूरी है। तफ्तीश आदि के बारे में पुख्ता जानकारी रखने वाले क्राइम रिपोर्टिंग ज्यादा प्रभावशाली होते हैं। क्राइम रिपोर्टिंग में 24 घंटे सतर्क रहना पड़ता है। अपराध की सूचना मिलते ही मौका-ए-वारदात पर सबसे पहले पहुंचने का जुनून रिपोर्टर में रहता है, जो उसे चुस्‍त और चौकन्‍ना रखता है।

किसी भी घटना में क्राइम रिपोर्टर पुलिस के बयान के साथ अभियुक्त से भी बात करें। उसके बयान को भी लिखें। गिरफ्तार व्यक्ति की हैसियत, बैकग्राउंड, सामाजिक आधार को ध्यान में रखते हुए जांच करें। इस मामले में पुलिस से सवाल भी करें। गिरफ्तार किए व्यक्ति का पुलिस रिकार्ड भी देखें। पुलिस, पीड़ित, अभियुक्त का बयान, सामाजिक आधार पर जो खबर निकलेगी वह पुलिसिया कहानी से जरूर अलग होगी। पुलिस का तिकड़म भी सामने ला सकती है। खबर लिखने के बाद उसे पूरी तरह भूल न जाएं। एक अंतराल के बाद फालोअप जरूर करें। बेहतर स्टोरी निकल कर सामने आएगी।

खबरिया चैनलों में क्राइम रिपोर्टिंग

अखबारों की सुर्खियां बनने वाली अपराध की घटनाएं अब खबरिया चैनलों की भी सुर्खियां बनने लगी हैं। इन चैनलों पर अब चौबीस घंटे अपराध की खबरें दिखाई जाने लगी हैं। तकरीबन सभी न्यूज चैनलों में अब अपराध पर विशेष कार्यक्रम तैयार किए जाने लगे हैं। राजनीतिक खबरों को जगह मिले या न मिले, क्राइम की खबरें जरूर जगह पाती हैं। चाहे चैनल कैसे भी हो। क्राइम की खबरों को चैनलों पर पहली हेडलाइन बनाने पर कोई एतराज नहीं करता।

खबरिया चैनलों के मालिकों को भी अब समझ में आ गया है कि मनोहर कहानियां और सत्यकथा की तरह अपराध की खबरें ही उनकी टीआरपी बढ़ा सकती हैं।  दर्शक की रूचि राजनीति से कहीं ज्यादा अपराध की खबरों में होती है। अपराध की खबरों के कलेवर को लगातार ताजा, दमदार और रोचक बनाए रखना बहुत जरूरी है।

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