मानवता के लिए धड़कता है संतोषी शुक्ला का दिल

मानवता के लिए धड़कता है संतोषी शुक्ला का दिल
बनारस में मामूली परिवार में जन्मी, पली-बढ़ी संतोषी शुक्ला अब एक ऐसी शमा जला रही हैं जिसकी लौ से कुपोषण,गरीबी, बेरोजगारी, महिलाओं की अशिक्षा और मानवाधिकार हनन रफ्ता-रफ्ता खत्म मिटने लगा है। संतोषी पिछले चार सालों से समाज के अंतिम आदमी की बदरंग जिंदगी में खुशिहाली की शमा जला रही हैं। इरादे नेक हैंइसलिए कामयाबी भी मिल रही है। संतोषी शुक्ला दीक्षा महिला कल्याण शोध संस्थान की अध्यक्ष हैं। इस संस्था को बनारस की बेटियां संचालित कर रही हैं। अपनी पाकेटमनी से गरीब घरों की बेटियों के अलावा आशक्त महिलाओं की मदद कर रही हैं। जिन मलिन बस्तियों की बेटियां क..ख…ग…घ… नहीं जानती थे वो दीक्षा महिला कल्याण शोध संस्थान के प्रयास से अंग्रेजी के जुमले बोलने लगी हैं। 
    संतोषी शुक्ला और संस्था की प्रेरणा एवं सहयोग से तमाम लड़कियां कालेज जाती हैं। संतोषी के दिल में बनारस की गरीब, निरक्षर महिलाओं और बच्चों के लिए हर वक्त खदबदाहट मची रहती हैं। दरअसल संतोषी शुक्ला का दिल मानवता के लिए धड़कता है। वह जब-तब काशी में इंसानियत की ऐसी आधारशिला रख जाती हैं जिसकी मिसाल देश में कहीं देखने को नहीं मिलती। हाल में काशी अनाथालय में अनाथ बेटियों को तोहफे दिए तो उनके दर्द को भी साझा किया।
संतोषी शुक्ला एक मीडिया संस्थान से जुड़ी हैं, लेकिन उनका लक्ष्य हिमालय की तरह ऊंचा है। बनारस का अस्सी मुहल्ला रहा हो या सामने घाट की मलिन बस्तियां या फिर शहर की वो दलित बस्तियां जहां पहुंचते ही लोग नाक-भौं सिकोड़ने लगते हैं। संतोषी शुक्ला अपनी टीम के साथ जाकर वहां मजलूमों की सेवा करती हैं। उन मजलूमों की जिनकी चिंता न तो सरकार को हैन ही सुनहरे विष्य का ख्वाब दिखाकर वोट हासिल करने वाले नेताओं को। संतोषी शुक्ला की टीम की मदद से सैकड़ों बेटियों में शिक्षा की नई ललक जगी है। गरीब घरों की तमाम लड़कियां दीक्षा महिला कल्याण शोध संस्थान के दम पर स्कूल-कालेजों में पढ़ रही हैं। इन्होंने यहां शिक्षा ही नहींप्रेरणा-आदर्श की ऐसी सशक्त मिसाल पेश की है जिससे मलिन बस्ती की तमाम बेटियां मलाला की तरह अपने देश का नाम रौशन करने का इरादा रखती हैं। ये बेटियां उन लोगों की हैं जिन्हें इलाके के लोग पहले शराबी और नशेड़ी के रूप में जानते थे। मानवीयता के लिए शुरू की गई दीक्षा महिला कल्याण शोध संस्थान की मुहिम अब रंग लाने लगी है। संस्था की टीम में सुश्री विनीता वाजपेयी, नूतन सिंह,चित्रा राय, शैली सिंह, पायल पटेल, शोभा यादव, दीक्षा श्रीवास्त, शिल्पी सिंह समेत काशी की सैकड़ों बेटियां महिलाओं के उत्थान और रोजगार के लिए जी-जान से जुटी हैं।    
संतोषी शुक्ला कहती हैंजब तक अशिक्षित महिलाओं की शिक्षा और अमानवीयता के खिलाफ जंग में हमारी जीत नहीं हो जाती तब तक हमारी मुहिम जारी रहेगी।  संतोषी अपना प्रचार नहीं चाहतीं। कहती हैंगरीबों, दिव्यांगों और अशिक्षित महिलाओं का मुद्दा चर्चा का नहींआचरण का विषय है। इन मुद्दों पर बहस और चर्चा तो बहुत होती हैलेकिन जरूरतमंदों को फायदा पहुंचाने की बात आती है तो लच्छेदार बात करने वाले भाग खड़े होते हैं। मानवाधिकार का सबसे बड़े दुश्मन वे लोग हैं जो सिर्फ ढोल पीटते हैं। गरीबों के श्रम और संपदा का शोषण करते हैं। देशों की प्राकृतिक संपदा पर नजरें गड़ाए रहते हैं। पूंजी अपने आप में बुरी नहीं हैउसके गलत उपयोग में बुराई है। आज दुनिया में सिर्फ खुद को बेहतर दिखाने और बर्चस्व की जंग मची है। शिक्षा और मानवाधिकार सभी के लिए समान होता हैलेकिन वास्तव में इसका फायदा उसे ही मिल पाता है जिसे या तो इसकी जाकारी हो या कोई संसाधन। 
     सुश्री शुक्ला मानती हैं कि भारत में महिलाओं को अधिकार उनकी हैसियत देखकर मिलता है। वह इसे गलत और शर्मनाक मानती हैं। कहती हैं कि महिलाओं के अधिकार का हनन उन्हीं इलाकों में अधिक होता है जहां साक्षरता का स्तर अपेक्षाकृत कम होता है। इसी लिए वह बेटियों को शिक्षित करने और असहाय महिलाओं को अत्मनिर्भर बनाने में जुटी हैं। दीक्षा महिला कल्याण शोध संस्थान की अध्यक्ष संतोषी शुक्ला मानना है कि जीवन में हर चीज बैलेंस होना चाहिए। गरीबी-अमीरी का फर्क तो मिटना ही चाहिए। 

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