बनारस के महाश्मशान घाट पर इसलिए थिरकती हैैं तवायफें

बनारस के महाश्मशान घाट पर इसलिए थिरकती हैैं तवायफें

जिल्लत के जीवन से मुक्ति चाहती हैैंं तवायफें

विजय विनीत

दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी बनारस के  मणिकर्णिका घाट के बारे में कहा जाता है कि जो शरीर यहां पर अग्नि को समर्पित किया जाता है वो जन्म मरण के बंधन से पार हो जाता है। इस घाट पर दुखों के बीच साल का एक वक्त ऐसा भी होता है जब पांवों में घुंघरू बांध तबले की थाप पर कुछ पैर थिरक उठते हैं। चैत्र में नवरात्र की सप्तमी को शमशान में मौतों के मातम के बीच नृत्य करती नगरवधुएं आश्चर्य का विषय हो सकतीी है, लेकिन वो कामना करती हैं कि उन्हें इस जिल्लत के जीवन से मुक्ति मिले।

हिंदू मिथकों के मुताबिक मणिकर्णिका घाट को महाश्मशान कहा जाता है क्योंकि भगवान शंकर की पत्नी पार्वती की मणि यहाँ गिरी थी, यहाँ दाह संस्कार करने से सीधे व्यक्ति को मोक्ष की प्रप्ति होती है, इसीलिए यहाँ 24 घंटे शव दाह होता है। बनारस में एक बार चिता और महफिल का गवाह बनता है मणिकर्णिका घाट। यह घाट जो सदियों से मौत और मोक्ष का भी गवाह बनता आया है। चैत्र नवरात्रि की रात यहां मस्ती में सराबोर एक चौंका देने वाली महफ़िल सजती है। एक ऐसी महफ़िल जो जितना डराती है, उससे कहीं ज्यादा हैरान करती है।

नाचने वाली नगर वधुएं खुुुद को मानती हैैंं खुशनसीब

चिताओं के बीच नृत्य करने वाली लड़किया बदनाम गलियों की नगर वधुएं होती हैं। कल की नगरवधु यानी आज की तवायफ। मणिकर्णिका घाट पर नगर वधुओं को न तो यहां जबरन लाया जाता है, न ही इन्हें धन-दौलत देकर बुलाया जाता है। सालों पुरानी परंपरा है जिसे निभाने ये नगर वधुएं भी मोक्ष के लिए महाश्मशान को खुश करने आती हैं। ये नगर वधुएं जीते-जी मोक्ष हासिल करने आती हैं। प्रार्थना करती हैं कि अगले जन्म में उन्हें तवायफ का कलंक न झेलना पड़े। जीते-जी मोक्ष पाने की मोहलत बस नवरात्र की सिर्फ एक रात देती है। मसान के बगल में मौजूद शिव मंदिर में शहर की तमाम नगरवधुएं इकट्ठा होती हैं और फिर भगवान शिव के सामने जी-भरकर  नाचती हैं। यहां नाचने वाली नगर वधुएं खुद को बेहद खुशनसीब मानती हैं।

सैकड़ों साल पुरानी है यह परंपरा

बनारस के मर्णकर्णिकाघाट पर यह सब कुछ यूं ही नहीं शुरू हुआ था। सैकड़ों साल पुरानी है यह परंपरा। पौराणिक मान्यता के मुताबिक बनारस के राजा मान सिंह एक बार बाबा मशान नाथ के दरबार में मत्था टेकने गए। वहां कार्यक्रम पेश करने के लिए जाने-माने नर्तकियों औरुु कलाकारों को बुलाया गया। लेकिन चोटी के कलाकारों ने यहां आने से साफ इनकार कर दिया। राजा ने नृत्य कराने का ऐलान कर रखा था। वह पीछे हटते भी तो कैसे? उधेड़बुन में कई दिन गुजर गए। किसी को कोई उपाय नहीं सूझा तो फैसला लिया गया कि शहर की बदनाम गलियों में रहने वाली नगरवधुओं को इस मंदिर में डांस करने के लिए बुलाया जाए। नगरवधुओं ने राजा का न्योता सहर्ष स्वीकार कर लिया। तभी से महाश्मशान के बीच नृत्य की परंपरा शुरू हुई और अब तक चली आ रही है।

बदलते समय के साथ नगर वधुओं ने अपना चोला बदला। इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए बाकायदा मुंबई समेत देश भर से बारगर्ल को बुलाया जाने लगा है। आयोजन को सफ़ल बनाने के लिए पुलिस-प्रशासन के नुमाइंदे खुद इस महफिल का हिस्सा बनते हैं। इस परंपरा की जड़ें कितनी गहरी हैं इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बनारस आने वाले कई विदेशी सैलानी भी इस ख़ास मौके को देखने से खुद को नहीं रोक पाते।

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