आमने-सामनेः समाजसेविका डा.रितु गर्ग

आमने-सामनेः समाजसेविका डा.रितु गर्ग

जिंदगी में तरक्की की दिशा तय करने और समेटने की कला कोई सीखे तो डा.रितु गर्ग से। इन्हें सिर्फ डाक्टरी नहीं नहीं आती, व्यापार का नब्ज जांचना भी उन्हें बखूबी आता है। शायद तभी कुछ ही सालों में इन्हें तमाम अवार्ड मिल गए हैं। अचरज की बात यह है कि वह आज जिस मुकाम पर हैं, वहां पहुंचकर कोई बड़ा ख्वाब नहीं पाला है। रितु की कामयाबी का किस्सा बहुत कम लोग जानते हैं। मुजफ्फरनगर से आकर काशी को अपनाने के साथ ही अपने चिकित्सकीय व्यवसाय फैलाने में जितना संघर्ष किया वह अचरज का विषय है। अचरज इस बात का भी हो सकता है कि बेलौस जिंदगी जीने वाली डा.रितु ने हिन्दुस्तानी संस्कारों को नहीं छोड़ा है।इन्हें अपनी संस्कृति, समाजिक नियमों और संस्कारों से अगाध प्रेम है।  जबसे वह बड़े-बड़े मंचों को साझा करने लगी हैं, अफवाहों और अटकलों का बाजार गर्म है। लोगों को लगता है कि राजनीति में उतरने की कवायद है, लेकिन ये बातें सतही हैं।

 

राजनीति का गलियारा नहीं, मेरी जिंदगी का पड़ाव 

विजय विनीत
संघर्ष की आंच में तपकर निकली स्त्री के चेहरे पर एक चमक और सादगी होती है। आप डा. ऋतु गर्ग से जब कभी मिलेंगे, आपको मुस्कान और आत्मीयता से लिपटी इन्हीं दो चीजों का उपहार मिलेगा। वह सिर्फ चिकित्सक की भूमिका में नहीं, इनके दिल में एक बड़ी खदबदाहट है इतिहास बनाने का। वह बड़े-बड़े मंचों पर दिखती हैं। लोग कयास लगाते हैं कि राजनीति के अखाड़े में घुसने की कवायद में जुटी हैं, लेकिन सच यह नहीं है। कहती हैं, राजनीति अंधेरा गलियारा मानती। इन गलियारों में सिर्फ सौदेबादी होती है। मैं नीतियों का समर्थक हूं, व्यक्तियों का नहीं। मेरा नेता नीति है, संविधान है और विधान है। मेरा नेता मिरजापुर और नौगढ़ के जंगलों में रहने वाला भूखा नंगा आदमी है। मेरा नेता गांव में रहने वाला गरीब इंसान है। त्रासदी से जूझ रही महिलाओं की आवाज मुझे सोने नहीं देतीं। उनकी परेशानियां मुझे पुका रही हैं। पुकार का मंत्र विश्वसनीय बनाने में जुटी हूं। महिलाओं को संबल देने की कोशिश में जुटी हूं। समाजिक अन्याय के खिलाफ जनमानस बनाने का प्रयास कर रही हूं। माता-पिता ही नहीं, मेरे पति ने संघर्ष की प्रेरणा दी है। जहां विकास की बात आएगी, आदर्श की बात आएगी, मजबूत इरादों के साथ लड़ूगीं।
सवालः 21वीं सदी में भी स्त्री पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं है। तमाम चित्रकार, मूर्तिकार, कवि, वास्तुविद, संगीतज्ञ हुए, लेकिन सभी बड़े नाम पुरुषों के खाते में दर्ज हुए। क्या सृजन का सारा काम पुरुषों ने किया है। 
जवाबः बात उल्टी है। स्त्री पुरुष को पैदा करने में इतना बड़ा श्रम कर लेती है कि उसे लगता है कि और कुछ सृजन करने की जरूरत नहीं है। स्त्री के पास अपना एक क्रिएटिव एक्ट है। पिता-पति सहयोग दें तो स्त्रियां हर रोज तरक्की का नया आयाम रच सकती हैं। गरीब महिलाओं के घर जाइए। पता चल जाएगा। महिलाएं ही घरों को मंदिर की तरह पवित्र बनाती हैं। दरअसरल स्त्री की संभावनाओं, पोटिंशयलिटी, आयामऔर उनकी ऊंचाइयों की गिनती ही नहीं की जाती है। गांव हो या शहर, स्त्रियां निरंतर सृजन के नए-नए आयाम खोजती हैं। फिर भी कोई नोबल प्राइज उनके लिए नहीं है। स्त्रियों को सोचने के लिए, दिशा देने के लिए, सोचने के लिए पुरुषों को ही आधार देना होगा। मुझे मेरे पति ने आधार दिया, तभी मैं इस मुकाम पर पहुंची हूं। हमारा मेडिकल कालेज है और अस्पताल भी। मेरे पति गर्व के साथ कहते हैं कि मेरी तरक्की की, सफलता की आधारशिला ऋतु ने ही रखी है।
सवालः क्या आपको लगता है कि समाज में महिलाओं की स्थिति को कमतर आंका जाता हैैै?
जवाबः बड़े-बड़े चोर, कुख्तात डकैत, माफिया, हत्यारे आदमी मिल जाएंगे, लेकिन उसमें एसी महिलाएं खोजना मुश्किल होगा। जिन्होंने सुंदर सा घर बनया हो, जिन्होंने बेटा-बेटियां पैदा की हों, जिन्हें बड़ा करने में मां की सारा ताकत, सारी प्रार्थना, सारा प्रेम लगा दिया हो इसका कोई हिसाब नहीं मिलेगा। जो पूरा इतिहास है, पुरुषों का ही इतिहास है, इसीलिए युद्धों का, हिंसाओं का इतिहास है। महिलाओं की स्वीकृति बढ़नी चाहिए। महिलाओं को लेकर शहरों में पुरुषों का नजरिया बदला है, लेकिन गांवों में लड़कियां आज भी लड़कों से कमतर आंकी जाती हैं। जिस स्त्री स्वीकृत होगी, विराट मनुष्यता में उतना ही स्थान पा लेगी, जितना पुरुष का है। तब इतिहास दूसरा दिशा लेना शुरू कर देगा।इसी के लिए मैं संघर्ष कर रही हूं।महिलाओं को हुनर सिखाकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में जुटी हूं। कई शराबी पुरुषों की पत्नियों को सिलाई मशीनें दी हैं। हमारे स्कूल के छात्रों के अलावा अस्पताल के स्टाफ के तमाम कपड़े ये महिलाएं ही सिलती हैं। मैं डंका नहीं पीटना चाहती। हम इतिहास के धुधलेपन से चीजों को देखते हैं।मैं चाहती हूं कि इतिहास लिखने वाले एसी स्त्रियों का भी उल्लेख करें, जिनकी सृजनात्मक शक्ति को अनदेखा किया जाता रहा है।
सवालः अपनी सफलता का श्रेय किसे देती हैं?
जवाबः सफल होने के लिए सबसे पहले अपने ऊपर विश्वास होना चाहिए। आपके अंदर दृढ़ता और समस्याओं से जूझने की ताकत और पति का समर्थन और सहयोग मिलना चाहिए। हर क्षेत्र में खुली प्रतियोगिता है। मेरिट को अधिक महत्व दिया जाता है। इसी आधार पर हम सफल हुए। मुजफ्फरनगर से बनारस आए तो हमारे पास कोई साधन नहीं था। मैने शुरुआत शून्य से की है।

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