बुढ़ापा रोकने का मंत्र सीख रहे किसान

बुढ़ापा रोकने का मंत्र सीख रहे किसान

पूर्वांचल में अब बुढ़ापा रोकने वाले शिमला मिर्च की खेती होगी। लखनऊ के रहमानखेड़ा स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिक किसानों को रंगीन शिमला मिर्च की खेती के लिए करने में जुटे हैं। उन्हें सलाह दी जा रही है कि वे हरे रंग के बजाय रंग-बिरंगे शिमला मिर्च की खेती करें। लाल रंग का शिमला मिर्च बोएंक्योंकि इस मिर्च में एंटी आक्सीडेंट के तत्व बहुत अधिक पाया जाता है। यह तत्व मनुष्य की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करता है। 

फकत बनारस जिले में करीब दो सौ हेक्टेयर में शिमला मिर्च की खेती होती है। चिरईगांव और चोलापुर में इसकी खेती पहले से हो रहीलेकिन हाल के कुछ सालों में अराजीलाइनकाशी विद्यापीठ और सेवापुरी ब्लाक में इसकी खेती में भारी इजाफा हुआ है। गाजीपुर के सुहवल  इलाके में भी इसकी बंपर पैदावार की जाती है। 

दरअसल शिमला मिर्च को मीठी मिर्च और घंटीनुमा मिर्च के नाम से भी जाना जाता है। इसमें विटामिन ए, बी  और सी टमाटर से ज्यादा मात्रा में पाई जाती है। तीखा रहित होने के कारण इसे कच्चा अथवा सलाद के रूप में खाया जाता है। मुख्य रूप से चाइनीज फूडमिक्स वेजिटेबल और कलौजी में इसका इस्तेमाल किया जाता है। 

वाराणसी मंडल के उद्यान विभाग के उप निदेशक अनिल सिंह कहते हैं कि किसानों को हरे रंग के बजाय लालपीला और चाकलेटी रंग वाले शिमला मिर्च की खेती के लिए प्रोत्साहन दे रहे हैं। कई निजी कंपनियां डार्क रेड नताशा और एलो स्वर्णा के खेती पर जोर दे रही है। कैप्सिक रेड शिमला मिर्च का भी क्रेज बढ़ता जा रहा है। लाल रंग के शिमला मिर्च की खेती को इसलिए बढ़ावा दिया जा रहा है क्योंकि इसमें एंटी आक्सीडेंट के गुण बहुत अधिक होता है। इसके चलते इसमें बुढ़ापा रोकने वाले तत्व एंथोसाइनिन की क्षमता काफी अधिक होती है।लखनऊ के रहमानखेड़ा स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिक पूर्वांचल के किसानों को लाल शिमला मिर्च की खेती करने के लिए प्रोत्साहन दे रहे हैं। इस बाबत प्रगतिशील किसानों की कार्यशालाएं भी आयोजित की जा रही हैं।

 

केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थानरहमानखेड़ा लखनऊ के वरिष्ठ वैज्ञानिक  डा.वीके सिंह  बताते हैं कि शिमला मिर्च की अगेती अथवा बेमौसमी फसल लेने से लिए बीज को हर हाल में फरवरी में बुआई करनी चाहिए। रोगमुक्त पौधा उगाने के लिए गोबर की खाद और निजीर्वीकृत मिश्रण को रोगमुक्त पौध उगाने के लिए किया जाना आवश्यक है।


 शिमला मिर्च के पौधों को पॉली हाउस में प्लास्टिक की ट्रे में तैयार करने के बाद रोपण किया जाता है। पौधों को पालीथीन फिल्म के छिद्रों के बीच लगाया जाता है। शिमला मिर्च के पौधे को 30 सेमी से ऊपर से काटकर उसकी दो शाखाओं को बढ़ने दिया जाता है। बढ़े हुए पौधों को सहारा देने के लिए नाइलॉन के तार अथवा प्लास्टिक ट्यूब से हर शाखा को बांधा जाता है। इसकी ड्रिप सिंचाई की जाती है। फसल की सुरक्षा के लिए कीटनाशकों का उपयोग भी किया जाता है। शिमला मिर्च का उत्पादन 100 से 120 टन प्रति हेक्टेयर मिलता है।

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