व्याकरण सम्मत होनी चाहिए हिन्दी

व्याकरण सम्मत होनी चाहिए हिन्दी

देवनागरी लिपि व वर्तनी में एकरूपता आवश्यक

विजय विनीत 

हिंदी समाचार पत्रों के विकास के साथ ही उनकी भाषा में दोषपूर्ण व्याकरण तथा लिपि और वर्तनी में एकरूपता न होने से विकृति आ गई है। किसी भी भाषा की समृद्धि के लिए उसका व्याकरण सम्मत होना और उसकी लिपि व वर्तनी में एकरूपता होना आवश्यक है। मुद्रण की सुविधा और सुगमता के नाम पर भाषा के साथ चल रहा खिलवाड़ अब बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। जब तक समाचार पत्रों के मुद्रण में हैंड कंपोजिंग का उपयोग होता था, इन त्रुटियों को स्वीकार किया जा सकता था, क्योंकि कई बार कंपोजिंग केस में कोई अक्षर या मात्रा नहीं होती थी, तो उसका वैकल्पिक रूप बना लिया जाता था। जैसे यदि ‘ ी’ की मात्रा न हो तो स्थायी को स्थाई लिख दिया जाता था, लेकिन फोटो कंपोजिंग ने मुद्रण तकनीक में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है। अब हम किसी भी शब्द को जैसे चाहें लिख सकते हैं। इसलिए अब वर्तनी संबंधी त्रुटियां क्षम्य नहीं होनी चाहिए।

हिंदी विकासशील भाषा है। विदेशी और क्षेत्रीय भाषाओं के शब्द भी शामिल होने से इसके स्वरूप में परिवर्तन आ सकता है। एक ही शब्द को लिखने में विधि वर्णों का प्रयोग वर्तनी को जटिल बना देता है। हालांकि देवनागरी लिपि में यह दोष न्यूनतम है। फिर भी उसकी अपनी कुछ विशिष्ठ कठिनाइयां भी हैं। हिंदी वर्तनी को लेकर लोगों के अलग-अलग विचार हैं, लेकिन एक ही अखबार में एक ही शब्द को दो तरह से लिखना उचित नहीं है। समझदार पाठक पर इसका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता।

 पत्रकारों के लिए अहम सुझाव

देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता को बनाए रखने के लिए नवोदित पत्रकारों के लिए कुछ अहम सुझाव इस प्रकार हैं-

1-श्रुतिमूलक ‘य’ और ‘व’ के वैकल्पित प्रयोग से हिंदी की वर्तनी में अराजकता की स्थिति पैदा हो गई है। ‘य’ और ‘व’ का विकल्प के रूप में प्रयोग रोका जाए तथा इस नियम को क्रिया, विशेषण, अव्यय आदि सभी रूपों और स्थितियों में लागू माना जाए। ‘किए’ को ‘किये’, ‘नई’ की बजाय ‘नयी’ तथा हुआ को हुवा नहीं लिखना चाहिए। लेकिन जहां ‘य’ व्याकरणिक परिवर्तन न होकर शब्द का ही मूल तत्व हो वहां वैकल्पिक श्रुतिमूलक स्वरात्मक परिवर्तन की जरूरत नहीं है। जैसे स्थायी को स्थाई, दायित्व को दाइत्व तथा वाजपेयी को बाजपेई नहीं लिखना चाहिए।

मुद्रण की सुविधा और वर्तनी की एकरूपता के निए ‘ये’ के स्थान पर ‘ए’, ‘यी’ के स्थान पर ‘ई’ तथा ‘व’ के स्थान पर ‘अ’ का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह नियम क्रिया और विशेषण में भी लागू रहना चाहिए। जैसे-दिखाए, बनाए, गए, राम के लिए, खाए, पिए, आए, गए, नए, चाहिए, दीजिए, लीजिए, इसलिए, पराई, पराए आदि। संज्ञा रूप में भी माताएं, कन्याएं, लताएं, पताकाएं आदि लिखना चाहिए।

‘लिये’ और ‘लिए’ का भेद स्पष्ट कर लेना आवश्यक है। हेतु के अर्थ में ‘के लिए’ का प्रयोग किया जाना चाहिए, जबकि ‘लिये’ का प्रयोग ‘लेना’ के अर्थ में किया जाना चाहिए। जैसे-‘देश की एकता और अखंडता के लिए’ तथा ‘राम ने मुझसे दस रुपये लिये’।

2-अनुस्वार: देवनागरी लिपि में अनुस्वार का प्रयोग मनमानने तरीके से किया जा रहा है। इस बारे में हमें पुराने नियमों को छोड़ देना चाहिए तथा वर्तनी की एकरूपता और मुद्रण की सुविधा के मद्देनजर केवल उन्हीं शब्दों में अनुस्वार का प्रयोग नहीं करना चाहिए, जहां किसी दूसरे शब्द का भ्रम पैदा होता हो। नियमानुसार संयुक्त व्यंजन के रूप में जहां पंचमाक्षर के बाद संवर्गीय चार वर्णों में से कोई वर्ण हो, तब अनुस्वार का ही प्रयोग करना चाहिए। जैसे-गंगा, चंचल, संपादक, संबंध, ठंडा, संध्या, धंधा लिखना चाहिए। लेकिन पंचमाक्षर के बाद किसी अन्य वर्ग का कोई वर्ण आए अथवा यहीं पंचमाक्षर दोबारा आए तो, पंचमाक्षर अनुस्वार के रूप में परिवर्तित नहीं होगा। जैसे-अन्य, अन्न, उन्मुख, चिन्मय, सम्मेलन को अंय, अंन, उंमुख, चिंमय, संमेलन नहीं लिखना चाहिए। अपवाद के रूप में संन्यासी शब्द में अनुस्वार और पंचमाक्षर दोनों का ही प्रयोग किया जाना चाहिए।

म को हर स्थान पर अनुस्वार में नहीं बदला जाना चाहिए। जैसे सीम्य, सम्यक को सींय, संयक नहीं लिखना चाहिए। हिंदी, संवाद, संहार आदि में अनुस्वार ही लगेगा, लेकिन इनकार को इंकार लिखने की भूल नहीं करनी चाहिए।

3-अनुनासिकता: (चंद्र बिंदु) चंद्र बिंदु का आमतौर पर प्रयोग नहीं किया जाएगा, लेकिन जहां अर्थ से भ्रम पैदा होने की गुंजाइश रहती है, वहां चंद्र बिंदु का प्रयोग किया जाएगा। उदाहरण के तौर पर हंस, हँस तथा अंगना, अ‍ँगना। लेकिन जहां अर्थ में भ्रम पैदा न होता हो वहां चंद्र बिंदु के स्थान पर अनुस्वार का ही प्रयोग किया जाना चाहिए।

4-सुयंक्त वर्ण- (अ) खड़ी पाई वाले व्यंजनों का संयुक्त रूप खड़ी पाई को हटाकर लिखा जाना उचित होगा। जैसे-ख्याति, विध्न, कब्जा, कच्छा, मज्जा, नगण्य, डिब्बा, सभ्य, सम्य, उल्लेख, श्लोक, राष्ट्रीय, प्यास, स्वीकृत आदि।

(ब) हलंत चिह्न का विशेष स्थिति में ही प्रयोग किया जाए।

(स) ‘र’ के तीनों प्रचलित रूपों का यथावत उपयोग जारी रखना चाहिए। जैसे प्रकार, धर्म, राष्ट्र तथा साथ ही ‘रि’ के लिए ( ृ) का ही उपयोग किया जाए, जैसे कृष्ण, बृज, श्रृंगार आदि।

5- विभक्ति चिन्ह-

(अ) हिंदी के विभक्ति चिन्ह सभी प्रकार के संज्ञा शब्दों से अलग लिखे जाने चाहिए। जैसे-सुभाष को, सुभाष से तथा सुमन ने, सुमन को, सुमन से आदि। लेकिन सर्वनाम के साथ विभाजित चिह्न मिलाकर लिखे जाने चाहिए, जैसे-उसने, उसको, उससे आदि।

(ब) सर्वनामों के साथ यदि दो विभाजित चिह्न हों तो उनमें से पहला मिलाकर और दूसरा पृथक लिखा जाए। जैसे- उसके लिए, उनमें से, इसमें से आदि।

(स) सर्वनाम और विभाजित के बीच ‘ही’, ‘तक’ आदि शब्द आते हों तो विभाजित को अलग लिखा जाना चाहिए। जैसे आप ही के लिए, मुझ तक को।

6- हाइफन : हाइफन का प्रयोग स्पष्टता के लिए किया जाएगा।

(अ) द्वंद समास में पदों के बीच हाइफन रखा जाना चाहिए, जैसे लेन-देन, पढ़ना-लिखना, हंसी-मजाक, राम-लक्ष्मण, शिव-पार्वती, खाना-पीना, खेलना-कूदना, माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी, गुरू-शिष्य आदि।

(ब) तत्पुरूष समास में हाइफन का प्रयोग केवल वहीं करना चाहिए, जहां उसके बिना अर्थ बदलने की संभावना हो, जैसे भू-तत्व। यदि यहां हाइफन का प्रयोग न किया जाए तो भूतत्व का अर्थ होगा भूत होने का भाव। ऐसे ही अ-नख का अर्थ है बिना नख का, लेकिन यदि यहां हाइफन का प्रयोग न करें तो अनख का अर्थ होगा क्रोध। अ-नति, नम्रता का भाव होता है, लेकिन हाइफन हटाने पर अनति का अर्थ थोड़ा होगा। समान्यत: तत्पुरूष समसों में हाइफन लगाने की आवश्यकता नहीं है, जैसे रामराज्य, राजकुमार, गंगाजल, ग्रामवासी, आत्महत्या आदि। इतना, जरा व थोड़ी के साथ क्रमश: सा, सा, सी, लगाने पर हाइफन का प्रयोग करेंगे जैसे इतना-सा, जरा-सा, थोड़ी-सी।

7- अव्यय-हिंदी में कई तरह के भाव दर्शाने वाले होते हैं, जैसे तक, साथ, जब, तब, कब, यहां, वहां, कहां, आह, ओह, अहा, ऐ, ही, यी, न, जी, श्री, पर, मात्र, कि, किंतु, लेकिन, मगर, या, अथवा, तथा, यथा, चाहे, आदि। कुछ अव्ययों के आगे अविभाजित चिन्ह भी आते हैं। जैसे- तब से, अब से, सदा से, आदि। इन सभी अव्ययों को अलग लिखा जाएगा। उदाहरण के रूप में आप ही के लिए, आपके साथ, गज भर कपड़ा, रात भर, दिन भर, देश भर, वह इतना भर कर दे, मुझे जाने तो दो, पचास रुपये मात्र, काम भी नहीं बना। लेकिन प्रति, मात्र यथा, आदि अव्यय अलग नहीं लिखे जाएंगे। जैसे-प्रतिदिन, प्रतिशत, मानवमात्र, निमित्तमात्र, यथासमय, यथोचित आदि।

8-पूर्णकालिक प्रत्यय को ‘कर’ क्रिया के साथ मिलाकर ही लिखा जाना चाहिए। जैसे-मिलाकर, खा-पीकर, रो-रोकर, डरा-धमकाकर, पहनकर आदि।

9-हिंदी में ऐ ( ै) तथा औ (ौ) का प्रयोग दो तरह की ध्वनियों में व्यक्त करते हैं। पहले प्रकार की ध्वनियां ‘हैं’ ‘और’ आदि में तथा दूसरे प्रकार की ‘गवैया’, ‘कौवा’ आदि में। दोनों प्रकार की ध्वनियां व्यक्त करने के लिए इन्हीं चिन्हों को प्रयोग किया जाए। गवय्या, कव्वा आदि लिखना उचित नहीं होगा।

10- हिंदी में अनेक शब्द ऐसे हैं, जिन्हें दो तरह से लिखा जाता है। जैसे गरदन/गर्दन, बरफ/बर्फ, बरतन/बर्तन, सरदी/सर्दी, गरमी/गर्मी, भरती/भर्ती, कुरसी/कुर्सी, फुरसत/फुर्सत, बरदाश्त/बर्दाश्त, वापिस/वापस, दूकान/दुकान, दुबारा/दोबारा, बिमारी/बीमारी, करफ्यू/कर्फ्यू आदि। इन शब्दों में हम दूसरे रूप को ही प्रयोग करेंगे।

11- सम्मान सूचक शब्दों श्री, जी के साथ ही कामरेड, लायन तथा लायनेस, रोटेरियन, रोट्रेक्ट, इंट्रेक्ट जैसे शब्दों का प्रयोग करना अनावश्यक है। इसलिए व्यक्ति वाचक सर्वनाम ‘वह’ के लिए आदर सूचक बहुवचन ‘वे’ का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए।

12-द्वारा, किंतु, परंतु, एवं, और, तथा शब्दों का कम से कम प्रयोग किया जाना चाहिए। शीर्षकों में तो नहीं ही करना चाहिए।

13-संबंधकारक विभक्तियों के प्रयोग के बारे में ख्याल रखा जाए कि जिन दो शब्दों में संबंध बताया जाए वे विभक्ति के पास है। जैसे निर्गुट विदेश मंत्रियों का दिल्ली में सम्मेलन, लिखा जाना चाहिए।

14-अंग्रेजी से अनुवाद के प्रभाव में हिंदी व्याकरण के साथ चल रहे खिलवाड़ को तत्काल रोका जाना चाहिए। वाक्य में ‘अब’ के बाद ‘तब’ आना चाहिए। अंग्रेजी से अनुवाद में ‘तब’ का प्रयोग पहले किया जा रहा है, यह अनुचित है। हिंदी में वाक्य रचना कर्ता पर टिकी रहती है। कर्मवाक्य रूप में मात्र क्रिया पर जोर वैसे समय रखा जाना चाहिए, लेकिन अंग्रेजी से अनुवाद का प्रभाव यह पड़ा है कि वाक्य को अनावश्यक कर्म पर टिकाया जा रहा है। जैसे-‘जिलाधिकारी द्वारा बैठक बुलाई गई है।’ लिखा जाता है, जबकि हमें ‘जिलाधिकारी ने बैठक बुलाई है।’ लिखना चाहिए। अंग्रेजी में ‘ए’ (एक) का प्रयोग होता है, लेकिन उसका हर जगह हिंदी में प्रयोग अनुचित है। ‘जिलाधिकारी ने बैठक बुलाई’ पर्याप्त है, ‘एक’ लिखने की कोई आवश्यकता नहीं है।

15-कुछ लोग ‘अनेक’ को भी बहुवचन बनाने के लिए ‘अनेकों’ लिखते हैं, जो कतई अनुचित है। देहात, जमीन, मानव, प्रजा, समय जैसे शब्दों को भी बहुवचन में लिखना गलत है। देहातों की बजाए ग्रामीण क्षेत्र, जमीनों की जगह भूखंडों लिखना चाहिए।

16-कार्यवाही और कार्रवाई दो अलग-अलग अर्थ वाले शब्द हैं। कार्यवाही का प्रयोग प्रक्रिया के अर्थ में किया जाना चाहिए, जैसे-‘सदन की कार्यवाही में लगातार तीन घंटे तक व्यवधान पैदा होता रहा’, जबकि कार्रवाई का अर्थ कदम उठाने से है। जैसे- ‘जनता की शिकायत के बावजूद प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की।’

17-राजनीतिक और राजनैतिक शब्द का भेद स्पष्ट समझा जाए। ‘राजनीतिक’ संज्ञा के रूप में, जबकि शब्द का इस्तेमाल विशेषण के रूप में किया जाना चाहिए। ‘राजनीतिज्ञ’ शब्द राजनैतिक का इस्तेमान राजनीति के पंडित का अर्थ बताने के लिए सुरक्षित रहना चाहिए। नेताओं के लिए पार्टी का नेता लिखा जाए।

18-उत्पादन शब्द का प्रयोग औद्योगिक और खनिज उत्पादन के लिए ही किया जाना चाहिए। कृषि उत्पादन गलत है। कृषि के लिए उपज या पैदावार का ही प्रयोग उचित होगा।

19-आखिर और आखीर का भेद स्पष्ट कर लेना जरूरी है। आखिर का प्रयोग अंतत: के अर्थ में तथा आखिर का प्रयोग अंतिम में के अर्थ में किया जाना चाहिए।

20-‘लोकतंत्र’, ‘प्रजातंत्र’, ‘जनतंत्र’ समानार्थी शब्द हैं। हम लोकतंत्र का ही प्रयोग करेंगे।

21-‘रेल’ शब्द का अर्थ पटरी होता है। रेलगाड़ी के लिए केवल रेल लिखना उचित नहीं है। हम ट्रेन शब्द का प्रयोग कर सकते हैं। हेलीकॉप्टर के लिए केवल कॉप्टर लिखा जा सकता है। लेकिन रेल दुर्घटना शब्द  उसी तरह सही है, जिस तरह विमान दुर्घटना या सड़क दुर्घटना।

22-बावजूद के बाद ‘भी’ शब्द का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। बावजूद का अर्थ होता है बाद भी।

23-अर्थात् के लिए उर्दू का शब्द यानि है, उसे यानी या याने लिखना गलत है।

24-‘मद्देनजर’ के बाद ‘रखते हुए’ का प्रयोग नहीं करना चाहिए। मद्देनजर का अर्थ ही ‘निगाह में रखते हुए’ है। कुछ लोग लिखते हैं ‘मद्देनजर रखते हुए’ यह कतई गलत है।

25-‘चलते’ शब्द मुहावरे के रूप में प्रयोग किया जा रहा है, जिसका अर्थ ‘जारी रखते’ है, लेकिन ‘कारण’ के विकल्प के रूप में इसका प्रयोग उचित नहीं है।

26-हत्या से पूर्व जघन्य या नृशंस शब्दों का अनावश्यक प्रयोग न किया जाए।

27-निर्णय और संकल्प लिए जाते हैं, जबकि निश्चय और फैसले किए जाते हैं।

28-संख्या बोधक ‘बड़ी’ शब्द का मात्रा के साथ तथा परिणाम बोधक ‘भारी’ शब्द संख्या के साथ प्रयोग नहीं किया जाएगा। ‘बड़ी मात्रा’ तथा ‘भारी संख्या’ के बजाए ‘बड़ी संख्या’ में प्रयोग किया जाए।

29-‘मारे गए’ का उपयोग पुलिस मुठभेड़, संघर्ष और युद्ध के संदर्भ में तो उचित है, लेकिन दुर्घटना और प्राकृतिक आपदा में ‘मरे’ का प्रयोग करना चाहिए। व्यक्ति की गरिमा के मद्देनजर ‘एक मरा’ की बजाय ‘एक की मृत्यु’ लिखा जाना चाहिए, लेकिन ‘दुर्घटना में चार मरे’ का प्रयोग सही है।

30-किसी स्थान या व्यक्ति का बोध कराने वाली व्यक्ति वाचक संज्ञाओं का रूप विभक्तियों के जुड़ने के कारण बदला जाना उचित नहीं है। जैसे ‘आगरे का पेठा’, ‘ढाके की मलमल’, ‘पटने का गांधी मैदान’ या ‘कलकत्ते की सड़कें’ लिखना गलत है। हमें ‘आगरा का पेठा’, ‘ढाके की मलमल’, ‘पटना का गांधी मैदान’ या ‘कलकत्ता की सड़कें’ ही लिखना चाहिए।

31-भविष्य में होने वाने कार्यक्रमों, सभाओं  और बैठकों की सूचना देने वाली खबरों की शीर्षक में ‘शुरू होगा’ शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। जैसे-‘18 मार्च से वाराणसी में संकटमोचन संगीत समारोह शुरू होगा’ के स्थान पर ‘संकटमोचन संगीत समारोह 18 मार्च से’ लिखना चाहिए।

32-अंग्रेजी के ‘इंस्लमेंट’ शब्द के लिए ‘किश्त’ के बजाए ‘किस्त’ शब्द लिखना चाहिए।

33-अखबारों में इन दिनों ‘अभूतपूर्व’ शब्द का बहुत उपयोग किया जाता है, जबकि इस विशेषण का विशेष स्थितियों में ही उपयोग किया जाना चाहिए।

34-प्रात:, अपराह्न, सायं और रात्रि की जगह, सुबह, दोपहर, शाम और रात का ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

35-उद्धरण चिह्नों का उपयोग विराम से पूर्व नहीं करना चाहिए। जैसे राम ने कहा, ‘इधर आओ’, की बजाय राम ने कहा, ‘इधर आओ।’ लिखा जाना चाहिए।

36-हथियारबंद या सशस्त्र डकैत लिखना गलत है, क्योंकि डकैत सशस्त्र ही होते हैं, लेकिन हथियार विशेष का जिक्र किया जा सकता है। जैसे चीनी रायफलों से लैसे डकैत।

37-‘मुजाहिद’ का बहुवचन ‘मुजाहिदीन’ होता है। हिंदी अखबारों में ‘मुजाहिदीनों’ लिखा जा रहा है। हिंदी में इसे मुजाहिदों लिखा जा सकता है। ऐसे ही ‘जियारत’ का कर्ताकारक ‘जियारती’ है। इसका बहुवचन रूप ‘जायरीन’ है, लेकिन कुछ लोग जायरीनों शब्द का प्रयोग करत हैं, जो गलत है।

38-‘यद्यपि’ शब्द के साथ ‘किन्तु’ की बजाय लेकिन शब्द का प्रयोग किया जाना चाहिए। ‘हालांकि’ के साथ ‘फिर भी’ शब्द का वाक्य रचना में उपयोग उचित होगा।

39-प्रत्यय: किसी मूल शब्द के साथ जुड़ने वाले पद को प्रत्यय कहते हैं। जैसे प्रत्यक्षीकरण, एकीकरण, केंद्रीयकरण, यानी प्रत्यक्ष करना, एक करना, केंद्रित करना। लेकिन इनके साथ करना शब्द जोड़ना बेतुका है। ज्यादा से ज्यादा ‘होना’ शब्द जोड़ा जा सकता है। सौंदर्यीकरण और पृथकीकरण शब्द लिखना गलत है। इसके स्थान पर सौंदर्यकरण, पृथककरण लिखना उचित होगा।

40-देवनागरी वर्णमाला-देवनागरी वर्णमाला के कुछ अक्षरों को अभी पुराने रूप में लिखा जा रहा है। जैसे ‘अ’ को अभी कुछ लोग ‘अं’ लिखते हैं, जो गलत है। ‘ख’ का ‘रव’ लिखने से भी भ्रम पैदा होता है। ऐसे ही ‘रु’ और ‘रू’ में भेद स्पष्ट होना चाहिए। जैसे अरुण और अरूण।

41-विदेशी ध्वनियां-हिंदी का अंग बन चुके अंग्रेजी, अरबी या फारसी शब्दों को हिंदी रूप में ही स्वीकार करना चाहिए। जैसे कलम, किला, दाग, आदि। इनमें नुक्ता लगाना जरूरी नहीं है। अंग्रेजी, अरबी और फारसी की मुख्यत: पांच ध्वनियां, क, ग, ख, ज और फ का हिंदी में समावेश हुआ है। इनमें क और ग तो हिंदी उच्चारण क और ग में बदल चुकी हैं, ख हिंदी में खपने की प्रक्रिया में है तथा बाकी दो ज और फ भी धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोती जा रहीं हैं। अत: बेहतर होगा कि ‘नुक्ते’ का इस्तेमाल न करें। जैसे जिन शब्दों में आधा ‘ओ’ ध्वनि का प्रयोग होता है, उनके शुद्ध रूप का हिंदी में प्रयोग अभीष्ट होने पर ‘आ’ की मात्रा के ऊपर बिना बिंदी का अर्धचंद्र का प्रयोग किया जाना चाहिए। जैसे-आॅटोमोबाइल, आॅटोमेटिक, ब्लॉक आदि।

42-देवनागरी अंक-हालांकि भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप में अंग्रेजी के अंक ही हैं, लेकिन देवनागरी अंकों का ही प्रयोग उत्तम माना जाता है  जैसे- 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 0 की बजाय एक, दो, तीन, चार, पांच, छह, सात, आठ, नौ,  दस ही लिखेंगे। हमें से 1 से 10 तक के अंकों को शब्दों में लिखना चाहिए। इसके आगे अंकों का प्रयोग करना उचित होता है।

43-नया पैराग्राफ शुरू करते समय भी संख्या से शुरू न करें। संख्या को शब्दों में लिखकर शुरू करें जैसे- पंद्रह अगस्त सिर्फ एक तारीख नहीं है। यह भारतीय इतिहास का एक अविस्मरणीय दिन है।

44-फुल स्टाप यानी पूर्ण विराम को छोड़कर शेष विराम चिह्न अंग्रेजी के प्रचलित चिह्नों को ही ग्रहण किया जाए। फुलस्टाप के लिए खड़ी पाई का ही प्रयोग किया जाना उचित है।

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