बनारस के कंपनी गार्डन में खिल उठी लीची

बनारस के कंपनी गार्डन में खिल उठी लीची

लीची में मिठास भर रहीं पुरवा हवाएं

विजय विनीत

चीन में रोमांस का प्रतीक मानी जाने वाली लीची अब बनारसियों को भी लुभाने लगी है। वाराणसी विकास प्राधिकरण के सामने कंपनी गार्डन में लीची के पेड़ों पर लकदक फलों को देखकर कोई भी दीवाना हो सकता है। करीब सौ साल पहले अंग्रेजों ने वरुणा नदी के किनारे कंपनी गार्डन विकसित किया था। इस गार्डन में लीची के साथ ही प्योर बनारसी लंगड़ा सहित कई दुर्लभ प्रजाति के पेड़ लगे अब भी मौजूद हैं। इस गार्डन में लंगड़ा आम का भले ही एक ही क्लोन बचा है, लेकिन लीची के कई पेड़ों पर लगे फल हर किसी को ठिठकने पर विवश कर देते हैं।

बनारस के कंपनी गार्डन में लीची के पेड़ों पर पुरवा हवाओं ने फलों में मिठास भरनी शुरू कर दी है। यहां लीची के लकदक फलों को देख बनारस के कई बागवानों ने शौकिया तौर पर इसका पेड़ उगाया है। अमरूद की बागवानी में बनारस का नाम देश भर में रौशन करने वाले चोलापुर के बबियांव निवासी शैलेंद्र सिंह रघुवंशी ने भी लीची की छोटी सी बगिया लगाई है। वह बताते हैं कि अगर आम और अमरूद के बागों के बीच लीची लगाई जाए तो खासा मुनाफा कमाया जा सकता है। लीची के पेड़ों को पछुआ हवाओं से दुश्मनी है। ये हवाएं बहती हैं तो लीची के फल फटने लगते हैं। श्री रघुवंशी बताते हैं कि लीची में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम के अलावा प्रोटीन, फास्फोरस आदि पाए जाते हैं। इसके स्क्वैश, कार्डियल, शिरप, आरटीएस, रस, लीची नट ने बाजार में धमाल मचा रखा है।

बागों में लगाएं विंडब्रेक

बनारस में उद्यान विभाग के उप निदेशक अनिल सिंह  बताते हैं कि लीची को फटने से रोकने के लिए पूर्व और पश्चिमी दिशा में विंडब्रेक जरूरी है। इसके बागों में पानी की उत्तम व्यवस्था की जानी चाहिए। गर्मी में इसके पेड़ों पर पानी का स्प्रे भी लाभकारी होता है। श्री सिंह बताते हैं कि मई महीने में हर साल बनारस का बाजार बिहार की शाही लीची से पट जाता था, लेकिन अब चीन और थाइलैंड की लीची ने धाम जमा ली है। बनारस में लीची का बाजार 20 से 22 दिनों का होता है। अपने अनूठे गुणों के चलते चंद दिनों में ही लीची बाजार में अपनी उपस्थिति दर्ज करा देता है।

चीन रहा है लीची का मातृभूमि

लीची की मातृभूमि चीन रहा है। फिर भी ब्रिटेन और यूरोपीय देशों में बिहार की शाही लीची की जबर्दस्त डिमांड है। चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा लीची पैदा करने वाला देश है। देश में कुल लीची का 70 फीसदी उत्पादन सिर्फ बिहार के मुजफ्फरपुर में होता है। यहां की लीची हर साल रूस, फ्रांस, यमन, ब्रिटेन, कनाडा, लेबनान,नीदरलैंड, यूनाइटेड अरब अमीरात से लेकर सऊदी अरब तक का सफर करती है।

लीची के लिए गहरी बलुई दोमट मिट्टी मुनासिब होती है। जिस जमीन में पानी पचाने की कूवत अधिक होती है, वहां लीची के बाग ज्यादा सुख बदते हैं। इंडिया में लीची की तीन खास किस्में हैं शाही, चाइना और स्वर्ण रूपा। शाही लीची के पुराने पेड़ों से 80 से 100 किलो लीची के फल मिलते हैं। शाही लीची के बाद बाजार में आती है चाइनीज लीची।  बौने पेड़ों पर ज्यादा गूदा देने वाले चाइनीज लीची के फल मिठास के मामले में भी बेजोड़ होते हैं।

लीची की खासियत भी जानिए

अगर आप लीची के शौकीन हैं तो इसकी खासियत भी जान लीजिए। लीची में मौजूद विटामिन लाल रक्त कोशिकाओं को बढ़ाता है और पाचन क्रिया मजबूत करता है। कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखता है। छोटी-सी लीची में कार्बोहाइड्रेट, विटामिन सी, विटामिन ए और बी कॉम्प्लेक्स, पोटैशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, आयरन सरीखे खनिज लवण पाये जाते हैं जो सेहत के लिए लाभकारी माने जाते हैं।

लीची की एक बड़ी विशेषता यह भी है कि यह एक अच्छा ऐंटीऑक्सिडेंट है। लीची फिगर का भी ध्यान रखती है। इसके फाइवर मोटापा को कम करते हैं। दस्त, उल्टी, पेट की खराबी, अल्सर और आंतरिक सूजन में भी यह लाभकारी है। गुर्दे की पथरी से होने वाले पेट दर्द से आराम पहुंचाती है। खांसी-जुकाम, बुखार और गले के संक्रमण को फैलने से रोकती है। थकान और कमजोरी में लीची बेहद लाभकारी है। इसका रस एक पौष्टिक तरल है।

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