कंकरीट के जंगल में कराहती मोदी की काशी

कंकरीट के जंगल में कराहती मोदी की काशी

आंकड़े लच्छेदार पर ‘हीट आईलैंड’ बना  महानगर

हरियाली के नाम पर नगर निगम हर साल खर्च करता है लाखों रुपये

विजय विनीत

शहर में भले ही गिने-चुने पेड़ रह गए हैं, लेकिन वन विभाग और नगर निगम के उद्यान विभाग के आंकड़े काफी लच्छेदार हैं। इनकी बातों पर  यकीन किया जाए तो शहर पूरी तरह हरा-भरा है। हजारों पेड़़ सड़कों, पार्कों, कालोनियों में लहलहा रहे हैं। यह बात और है कि अब तक रोपे गए हजारों पेड़ों का कहीं अता-पता नहीं है। कहीं ब्रिकगार्ड की ईंटें गायब हैं तो कहीं पौधे। आंकड़ों के खेल में वन विभाग भी पीछ नहीं है। यह महकमा भी पिछले चार सालों में कागजों पर बड़ी संख्या में पेड़ रोपकर सरकार की बड़ी धनराशि खर्च कर चुका है।

‘अर्बन हीट आईलैंड’ बन चुके शहर को हरा-भरा करने की जिम्मेदारी वन विभाग के अलावा नगर निगम की है। नगर निगम में तो विधिवत उद्यान अनुभाग है। शहर के 143 पार्कों के रख-रखाव के अलावा खाली स्थान पर पेड़ रोपने की जिम्मेदारी इसी विभाग की है। दोनों महकमे हर साल पेड़ रोपते हैं और सूख जाते हैं। पिछले एक दशक में शहर में रोपे गए कितने पेड़ सही-सलामत हैं इसका नगर निगम के पास सही हिसाब नहीं है। यह स्थिति तब है जब उद्यान विभाग के कर्मचारियों के वेतन पर हर महीने करीब सात लाख रुपये से अधिक धनराशि खर्च होती है। नगर निगम के आंकड़ों पर यकीन करें तो शहर पूरी तरह हरा-भरा है और 70 हजार से अधिक पेड़ सड़कों, पार्कों और कालोनियों में लहलहा रहे हैं। वन विभाग के आंकड़े भी लच्छेदार हैं। इस महकमे की फाइलों में तो महानगर में लगाए गए पेड़ों की संख्या लाखों में हैं। दीगर है कि इन पेड़ों का अस्तित्व शायद ही कहीं नजर आता हो। शहर में आमतौर पर वही पार्क देखने लायक है जिनकी देखरेख स्थानीय नागरिक करते हैं। मजे की बात यह है कि नगर निगम के उद्यान विभाग में कुछ ऐसे अधिकारी हैं जो सालों से बनारस में जमे हैं। निगम में तैनात मालियों को अफसरों के घरों में ड्यूटी लगाकर अपनी नौकरी पक्की करने में जुटे रहते हैं।

क्या है पौधरोपण का सच

बीएचयू के वनस्पति विभाग के प्रो.एएस रघुवंशी ने इनसेट से प्राप्त चित्रों के आधार पर शहर की हरियाली की तहकीकात की तो चौंकाने वाली रिपोर्ट हासिल हुई। रिपोर्ट के अनुसार बीएचयू, डीएलडब्ल्यू, और छावनी क्षेत्र के 1660.98 हेक्टेयर क्षेत्रफल में से 540.2 हेक्टेयर पेड़ों से ढंका है। दूसरी ओर शहर के बचे हुए 13, 830.64 हेक्टेयर क्षेत्रफल में महज 674.12 हेक्टेयर क्षेत्र ही पेड़ों से ढंका है। पर्यावरणविदों की मानें तो हरियाली गायब होने से शहर का तापमान तेजी से बढ़ रहा है। शहर का तापमान बढ़ने का मुख्य कारण है कंकरीट का जंगल। मौसम विज्ञानी पीआरडी गुप्ता कहते हैं कि भवनों के गर्म होने के कारण हवा का रेडिएशन आकाश में नहीं हो पाता है। पेड़ों के अभाव में कार्बन डाई आक्साइड जैसी गैसें वातावरण में बनी रहती हैं जो गर्मी को बढ़ाती हैं।

शहर में हरियाली की स्थिति (हेक्टेयर में)

स्थान   बीएचयू     डीएलडब्ल्यू  छवानी      बाकी शहर

कुल क्षेत्र    657.1     481.14    522.74    13,830.64

हरियाली क्षेत्र   138.67    152.61    248.92     674.12

भवन निर्माण 82.73     166.83    218.4     5,775.80

    कैसे बचेगी काशी ?

0 आम जनता को अधिक से अधिक पेड़ लगाने के लिए प्रेरित किया जाए।

0 गंगा पार और हाइवे पर बड़े पैमाने पर पेड़ रोपे जाएं।

0 शहर में ग्रीन बेल्ट बनाया जाए।

0 माल और बहुमंजिली इमारतों के एक तिहाई हिस्से में पौधरोपण अनिवार्य हो।

0 भवनों की छतों पर छोटे-छोटो पेड़ उगाया जाए।

0 भवनों और कंक्रीट से बने स्थानों पर सफेद रंग पोता जाए।

0 प्रशासनिक भवनों, स्कूल-कालेजों व खाली स्थानों पर पेड़ लगाना अनिवार्य हो।

‘शहर से हरियाली गायब होने के लिए प्रशासन और जनता दोनों ही जिम्मेदार है। मोतीझील, ब्रिज इंक्लेव, ककरमत्ता, नगवा, सामने घाट, डाफी जैसे इलाके कंकरीट के जंगल में बदल गए हैं। शहर में गिने-चुने पेड़ बचे हैं। पहले शहर में हर प्रमुख सड़कों के किनारे पेड़ दिखते थे। अब तो पेड़ ढूंढने के लिए लंबी दूरी तय करनी होगी। अब कागजों से निकलकर यथार्थ के धरातल पर वास्तविक वृक्षारोपण करना होगा।’-डा.दयाशंकर त्रिपाठी (पर्यावरणविद) वाराणसी

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