तकियाशाह की मजार पर नहीं लगता मजहबी चश्मा

तकियाशाह की मजार पर नहीं लगता मजहबी चश्मा

जियारत करने वालों के दिलों में न तो हिन्दू होता है,न मुसलमान

भूतों और बुरी आत्माओं को मौके पर ही बाबा दे देते हैं थर्ड डिग्री

सत्य प्रकाश सोनिया की रिपोर्ट

चंदौली की एक वीरान सी बस्ती में है सूफी संत हजरत तकिया शाह भोला की मजार। चाहे हिन्दू हो या मुसलमान। यहां हर सिर अकीदत से झुकता है। बाबा की मजार पर कोई मजहबी चश्मा नहीं लगाता। जियारत करने वालों के दिलों में न तो हिन्दू होता है, न मुसलमान। यहां सिर्फ इंसान हाजिरी लगाते हैंं।

लेवा-इलिया मार्ग पर उतरौत से करीब एक किमी उत्तर में तकिया शाह भोला के नाम से बसी है एक छोटी सी बस्ती। बाबा तकिया शाह भोला की मजार लोगों के लिए मनौती का केंद्र ही नहीं, इंसानियत की भाषा सिखाने वाला मजहबी मरकज भी है। दरअसल बाबा तकिया शाह भोला इस्लाम धर्म के ऐसे रहस्यवादी संत थे जिनकी साधना, प्रवृत्ति, विश्वास, और मान्यताएं सूफी मत का सामंजस्य स्थापित करती हैं। एक विशाल नीम के नीचे है बाबा की मजार। सदियों पुराना है नीम का पेड़। पास में है एक विशाल तालाब, जिसके किनारे बाबा विश्वनाथ का एक विशाल मंदिर भी था। इतिहासकारों के मुताबिक सूफी संत हजरत तकिया शाह भोला ने ही मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर तो कब का ढह चुका है, लेकिन उसके अवशेष तालाब में अब भी दफन हैं। बाबा तकिया शाह भोला ने खुद तालाब के भीटों पर ताड़ और खजूर के बगान लगाए थे। ये कोई मामूली बाग नहीं थे। इन पेड़ों से ऐसी ताड़ी निकलती थी जिसकी तासीर चीनी सरीखी थी। ताड़ के फलों की तो बात ही न कीजिए।

इंसानियत की भाषा सिखाने वाला मजहबी मरकज है सूफी संत की मजार

मनमोहक,खुशबूदार और बेहद मीठे ताड़ के फलों का हर कोई दीवाना था। दिलचस्प यह है कि जहां बाबा तकिया शाह की मजार है उसके आसपास के सभी गांव चकिया ब्लाक से जुड़े हैं और वह बस्ती शहाबगंज ब्लाक में है। इस मजरे को चकिया से जोड़ने के लिए अफसरों ने बहुत कवायद की, लेकिन वे कामयाब नहीं हो सके। जिसने भी ब्लाक बदलने की कोशिश की उसे ऐसी अनहोनी का सामना करना पड़ा, जिससे रुह कांप जाए। उतरौत और उसके आसपास के गांवों में बाबा तकिया शाह भोला के रहस्यमयी किस्से आज भी हर पुरनियों की जुबान पर हैं। बाबा तकिया शाह भोला के दरबार में मत्था टेकने वाला कोई खाली हाथ नहीं लौटता। बाबा सबकी झोली में कुछ न कुछ जरूर डाल देते हैं। भूतों और बुरी आत्माओं को तो बाबा मौके पर ही थर्ड डिग्री दे देते हैं और लोग चंगा होकर लौटते हैं। पुरनियों से बातचीत में बाबा तकिया शाह भोला के बारे में कई रहस्यमयी कहानियां सुनने को मिलीं। ऐसी कहानियां जो आज भी आस्था का स्वर जगाती हैं। बताते हैं कि चकिया के सूफी संत हजरत लतीफ शाह बीर रहमतुल्ला से बाबा तकिया शाह भोला के गहरे संबंध थे। दोनों संत एक-दूसरे का बेहद सम्मान करते थे।

उतरौत निवासी सियाराम विश्वकर्मा बेहद रोचक तरीके से बाबा के चमत्कार के किस्से सुनाते हैं। बताते हैं कि एक बार बाबा लतीफ शाह शेर पर सवार होकर बाबा तकियाशाह से मिलने आए। उस वक्त तकिया शाह एक टूटी हुई दीवार पर बैठकर दातुवन कर रहे थे। लतीफशाह बाबा के आगमन की सूचना मिलते ही उन्होंने दातुवन को मिट्टी मे खोंस दिया। दीवार से बोले, चलो लतीफ शाह की अगवानी करने। दीवार चल पड़ी। बाबा ने जिस स्थान पर नीम का दातुवन खोंसा था वहां कुछ ही सालों में एक विशाल वृक्ष बन गया। नीम का यह वृक्ष आज भी मजार से सटकर ऐसे खड़ा है, मानो उसने सदियों से बाबा का छत्र बनने का बीड़ा उठा लिया हो।

प्रकृति प्रेमी थे बाबा

पूर्व ग्राम प्रधान महेंद्र सिंह बताते हैं कि बाबा तकियाशाह भोला बड़े  प्रकृति प्रेमी थे। उनके लगाए ताड़ के दो विशाल पेड़ आज भी मौजूद हैं। उतरौत निवासी ब्रजेश सिंह बताते हैं कि सूफी संत बाबा तकियाशाह भोला के नाम को सरनाम करने के लिए साल 1972 में उनके बड़े पिताजी ब्रह्मदेव सिंह ने ग्रामीणों की मदद से मिडिल स्कूल की स्थापना की थी। बाबा तकियाशाह के सम्मान में विद्यालय का नाम रखा गया शांति निकेतन जूनियर हाईस्कूल तकियाशाह भोलारखा। इस स्कूल से तमाम अफसर, इंजीनियर,डाक्टर, वकील और पत्रकार भी निकले। मान्यता है कि इस स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने वाला कोई बेरोजगार नहीं बैठता। ग्रामीण बताते हैं कि स्कूल के पास 40 साल पहले तक तकिया शाह द्वारा स्थापित शिवालय मौजूद था।

ढहा तो अवांछनीय तत्वों ने उस स्थान पर कब्जा कर लिया। हैरत की बात यह है कि तालाब के भीटे पर जहरीले जंतुओं का डेरा है, लेकिन किसी को उनसे समस्या नहीं हुई। तकियाशाह बस्ती की नूरजहां बताती हैं कि करीब 30 साल पहले बाबा के नीम के पेड़ की एक विशाल डाली टूटी तो आसपास के सात मकान प्रभावित हुए। आश्चर्य की बात तो यह रही कि किसी को खरोंच तक नहीं आई। नूरजहां यह भी बताती हैं कि उतरौत निवासी बचऊ सिंह इलाके में रसूखदार व्यक्ति थे। वे बड़े काश्तकार भी थे। एक रोज खेत जोतने निकले तो बाबा की नीम की जड़ से सटाकर जुताई करनी चाही। अचानक ट्रैक्टर पलट गया और उनका एक पैर टूट गया। लाख कोशिशों के बावजूद बनारस के नामी डाक्टर भी बचऊ सिंह का पैर ठीक नहीं कर पाए। बाद में बचऊ सिंह जब तक जिंदा रहे, हर साल बाबा के आस्ताने पर उर्स कराते रहे। बाबा की मजार पर आज भी हर रोज सैकड़ों लोग शीश नवाने पहुंचते हैं। रोते-विलखते पहुंचने वाले हंसते-हंसाते लौटते हैं।

जब बाबा के गाय ने निगल लिया शेर

डंवक। सियाराम यह भी बताते हैं कि सूफी संत हजरत लतीफ शाह बीर रहमतुल्ला के शेर को बाबा तकिया शाह ने रात में गाय के साथ एक गोशाला में बंधवा दिया। लोगों ने सोचा कि शेर तो गाय को जरूर ही निवाला बना लेगा। सुबह जब हजरत लतीफ शाह बीर रहमतुल्ला बाबा के लौटने का समय हुआ तो हड़कंप मच गया। जानते हैं क्यों? गाय तो सलामत थी। लतीफ शाह बाबा का शेर ही गायब था। बात तकिया शाह तक पहुंची तो वह लतीफ शाह को साथ लेकर गोशाले में पहुंचे। बाबा के चेहरे पर मुस्कान दौड़ गई। उन्होंने गाय को दुलराया। उसकी तरफ इशारा करके बोले, क्या गोमाता,मेहमान के सामने मेरी इज्जत उतारने का मन बनाया है? जल्दी से शेर को आजाद कीजिए। तकिया शाह का आदेश मिलते ही गाय ने शेर को उगल दिया। मौके पर मौजूद लोग अवाक रह गए।

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