नारियल बदलेगी बनारसी किसानों की तकदीर

नारियल बदलेगी बनारसी किसानों की तकदीर

गंगा की बाढ़ से तबाही को कोकोनट से रोकना चाहते हैं मोदी

ढाब इलाके की बलुई दोमट मिट्टी में बहार ला सकता है नारियल

यूपी के पड़ोसी राज्य बिहार में 14,900 हेक्टेयर भूमि में होती है खेती

विजय विनीत

वाराणसी। पीएम नरेंद्र मोदी बनारस के उन किसानों की तकदीर बदलना चाहते हैं जिन्हें हर साल गंगा, वरुणा और गोमती नदियां तबाह कर देती है। गंगा के किनारे नारियल (कोकोनट) की खेती कराई जाएगी। सबसे पहले बनारस के ढाब इलाके की तस्वीर बदलने की योजना है। पीएम के निर्देश पर केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने बड़ी संख्या में नारियल का पेड़ बनारस भेजा है। लालपुर में चल रहे किसान मेले में टोकेन मनी से किसानों को नारियल का पेड़ मुहैया कराया जा रहा है। पेड़ लेने के लिए पिछले दो दिनों से किसानों का रेला उमड़ रहा है। सिर्फ दो दिनों में 15 हजार से अधिक नारियल के पेड़ों की बिक्री हो चुकी है। बिहार की तर्ज पर बनारस में भी नारियल विकास बोर्ड का दफ्तर खोलने की योजना है।

बनारस में नारियल की खेती को लेकर मोदी सरकार किसानों को प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रही है। यूपी से सटे बिहार में 14,900 हेक्टेयर भूमि में नारियल की खेती होती है। केंद्र सरकार का अनुमान है कि यूपी में गंगा के किनारे बाढ़ प्रभावित इलाकों में नारियल उत्पादन की योजना को मूर्त रूप दिया जाए तो करीब 50 हजार हेक्टेयर खेती हो सकती है। विश्व बाजार में नारियल की जबर्दस्त डिमांड है। बनारस में नारियल को कामयाब फसल बनाने की सारी संभावनाएं मौजूद हैं। यहां किसान आम, अमरूद के साथ नारियल भी लगा सकते हैं। इसकी खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में हो सकती है, लेकिन बलुई-दोमट मिट्टी में सबसे उत्तम खेती होती है। बनारस में नदियों के किनारे के सभी खेतों में इसी तरह की मिट्टी पाई जाती है।

दरअसल समुचित मूल्य-संवर्धन के अभाव में बनारस पिछड़ा हुआ है। बनारस ही नहीं, समूचे उत्तर भारत में ताजे नारियल के पानी जबर्दस्त डिमांड है। इस मांग को पूरा करने के लिए नारियल को और कोलकाता से लाना पड़ता है, जिसमें भारी लागत आती है। अकेले बनारस में हर साल करीब एक करोड़ से ज्यादा का नारियल पानी बिक जाता है। यहां कच्चे नारियल का तेल (सौंदर्य उत्पाद व औषधि), नारियल चिप्स, नारियल का शहद, नारियल गुड़, नारियल चीनी, आइसक्रीम, चॉकलेट और मिठाइयां भी बिकती हैं। नारियल पानी की तरह बोतलबंद नीरा को अहम नारियल उत्पाद के तौर पर देखा जा रहा है।

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.सुधाकर पांडेय के मुताबिक बनारस का ढाब इलाका नारियल की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। लालपुर के मेले में किसानों को नारियल के जो पौधे बांटे जा रहे हैं उन्हें छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक पिछड़े जिले बस्तर से लाया गया है। यहां कोंडागांव के कोपाबेड़ा में नारियल विकास बोर्ड का फार्म है। बनारस के किसानों को संकर प्रजाति की लंबी और बौनी प्रजातियों के पौधे दिए गए हैं।

डा.पांडेय बताते हैं कि बनारस के किसान नारियल की खेती से अपना भविष्य संवार सकते हैं। देश-विदेश में नारियल के उत्पाद डाब, खोपड़ा, नारियल तेल, कच्ची गरी, नारियल तेल खली, नीरा, नारियल फ्लवर सिरप, नारियल गुड़, नारियल चीनी, नारियल ताड़ी, नारियल लकड़ी, नारियल पत्ते और कयर गूदा की मांग बढ़ती ही जा रही है। नारियल चिप्स, नारियल दूध, नारियल शक्कर, नारियल नीरा, डाब, नारियल शहद नारियल गुड़, नारियल दूध शेक, नारियल स्नैक्स, नारियल नेचुरल क्रीम, नीरा कुकीज से बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिल सकता है। नारियल उत्पादन में भारत विश्व में सबसे अग्रणी देश है। भारत का वार्षिक नारियल उत्पादन 20.82 लाख हेक्टर में 2,395 करोड़ नारियल है। उत्पादकता प्रति हेक्टर 11,505 नारियल है।

किसान मेले में आए नारियल बोर्ड के एक अधिकारी ने बताया कि भारत में एक करोड़ से अधिक लोगों की आजीविका नारियल है। बिहार-बंगाल के साथ ही असम, त्रिपुरा, मिजोरम और नागालैंड में नारियल की खेती के प्रति किसानों का रूझान तेजी से बढ़ रहा है। वर्ष 2016-17 में भारत से 2084 करोड़ रुपये के नारियल उत्पादों का निर्यात किया गया। मलेशिया, इंडोनेशिया और श्रीलंका को नारियल तेल का निर्यात किया जा रहा है। किसानों को इसकी खेती के लिए प्रोत्साहित करने की योजना चलाई जा रही है। प्रति हेक्टेयर की दर से दो किस्तों में 8000 रुपये अनुदान दिया रहा है। कम से कम दस पौधे और अधिकतम चार हेक्टेयर नारियल का रोपण करने वाले किसान इसका फायदा उठा सकते हैं।

तकनीक सीखी नहीं, नारियल पौधों के लिए होड़

वाराणसी। लालपुर के मेले में नारियल के पेड़ों के लिए किसानों की लाइन लग रही है। दीगर बात है कि पूर्वांचल के किसानों को यह पता नहीं है कि इसकी खेती कैसे होगी? पेड़ों को कहां और कैसे रोपा जाएगा? कब और कितना उर्वरक दिया जाएगा? कोई बीमारी लगी तो बचाव कैसे होगा? नारियल के पेड़ों पर फूल आते हैं, पर फल क्यों नहीं लगते? कृषि वैज्ञानिकों मुताबिक नारियल उत्पादन के लिए बनारस की आबो-हवा उपयुक्त है। जरूरत है तो किसानों को प्रशिक्षण की। और यह बताने की कि बगैर परागण के नारियल के पेड़ों पर फल नहीं लगते। केरल को छोड़कर भारत में नारियल के पेड़ों पर चढ़ने का काम केवल पुरुष ही करते हैं। अब महिलाओं को भी परागण करने की ट्रेनिंग दी जा रही हैं। यह दायित्व भारतीय कृषि अनुसंधान के केंद्रीय रोपड़ को सौंपा गया है। नारियल के परागणकर्ता को महीने में लगभग आठ से दस बार नारियल के पेड़‍ पर चढ़कर यह काम करना पड़ता है। केरल के कासरगोड़ जिले की केट्टमकुल्ली गांव की महिलाओं ने नारियल के ऊंचे पेड़ों पर चढ़ने की ट्रेनिंग लेकर इसकी खेती को शिखर पर पहुंचाने को नई आधारशिला रखी है।

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