बीएचयू में प्रोफेसरों की प्रोन्नति में गजब की हेराफेरी
प्रोन्नति घोटाला
मालवीय जी की तोपोस्थली में अयोग्य प्रोफेसरों की भरमार
कायदा-कानून को ताक पर रखकर पहना दिया गया ताज
महामना मदन मोहन मालवीय ने बीएचयू की स्थापना करते समय कभी सोचा भी नहीं होगा कि उनकी तपोस्थली में गुरुजनों की प्रोन्नति में हेराफेरी की जाएगी और कायदा-कानून को ताख पर रख दिया जाएगा। जी हां! प्रोफेसरों की प्रोन्नति में धांधली के मामले में बीएचयू गढ़ बन गया है। अब हर नियुक्ति पर सवाल उठने लगा है। इस विश्वविद्यालय में ऐसे शिक्षकों की भरमार हो गई है जो मानकों को पूरा नहीं करते, लेकिन अवैध तरीके से उन्हें ऊंची कुर्सी दे दी गई है। साथ ही वेतन भी बढ़ा दिया गया है। अवैध तरीके से प्रोन्नति पाने वाले शिक्षकों का जवाब भी अनूठा है। इनका तर्क यह है कि बीएचूय प्रशासन ने उन्हें जबरिया प्रोफेसर बना दिया है। उनकी कोई गलती ही नहीं है। दीगर बात है कि अवैध तरीके से प्रोफेसर बने शिक्षकों का तर्क गले से नीचे उतरने वाला नहीं है।
बीएचयू के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के न्यूरोलाजी विभाग में प्रोफेसर के पद पर तैनात डा.दीपिका जोशी की प्रोन्नति में गजब का गड़बड़झाला है। साल 2009-10 में पोस्ट कोड 1268 के लिए इन्होंने सामान्य अभ्यर्थी के रूप में प्रोफेसर पद के लिए अप्लाई किया था। ये पहले इसी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर थीं। यूजीसी की गाइडलाइन के मुताबिक दस साल की शैक्षणिक अहर्ता पूरी करने के बाद ही प्रोफेसर पद के लिए आवेदन किया जा सकता है। जिस समय डा.दीपिका जोशी ने प्रोफेसर पद के लिए आवेदन किया उस समय उनकी शैक्षणिक अहर्ता छह साल सात महीने थी। 18 मार्च 2010 को उन्होंने अर्जी दी।
मजे की बात यह है कि डा.जोशी पर बीएचयू प्रशासन इतना मेहरबान रहा कि उसने उनकी योग्यता जांचने-परखने की जरूरत ही नहीं समझी। बीएचयू प्रशासन ने आंख बंद करके डा.जोशी को प्रोफेसर का ताज पहना दिया।
डा.दीपिका जोशी व डा.एचपी सिंह की प्रोन्नति पर सवाल
इसी तरह इंस्टीट्यूट आफ एग्रीकल्चर साइंस में डा.हरिंद्र प्रसाद सिंह (एचपी सिंह) को भी कानून को ताक पर रखकर प्रोफेसर बनाया गया। इनकी नियुक्ति की गाथा अनंत है। ये बीएचयू में 7 अप्रैल 2002 लेक्चर पद पर नियुक्त हुए। एक साल बाद ही सीनियर स्केल हासिल कर लिया। साल 2003 में छह दिसंबर को रीडर बन गए। इसके तीन साल बाद ही ये एसोसिएट प्रोफेसर बना दिए गए। इनके पास महज आठ साल का शैक्षणिक अनुभव था। प्रोफेसर के लिए इन्होंने आवेदन किया। बीएचयू प्रशासन ने इनकी भी योग्यता जांचने की जरूरत नहीं समझी। लिफाफा खुला और प्रोफेसर बन गए। इन प्रोफेसरों की अवैध तरीके से नियुक्ति तत्कालीन कुलपति प्रो.डीपी सिंह के समय हुई थी। प्रो.सिंह मौजूदा समय में यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) के चेयरमैन हैं।
आरटीआई एक्टिविस्ट संजय कुमार सिंह ने इस बाबत बीएचयू प्रशासन से जानकारी मांगी तो गोलमोल जवाब दिया गया। शैक्षणिक अहर्ता पूरी न करने वाले प्रोफेसरों के बारे में न तो स्पष्ट जानकारी दी और न ही इनकी नियुक्ति की जांच कराई गई। अवैध तरीके नियुक्त होने वाले प्रोफेसरों के मामले में सिर्फ बीएचयू प्रशासन ही नहीं, एक्जक्यूटिव काउंसिल तक ने खामोशी की चादर ओढ़ रखी है। नियुक्ति घोटाले की शिकायत राष्ट्रपति, मानव संसाधन विकास मंत्री, मुख्य सतर्कता आयुक्त, सीबीआई तक से की जा चुकी है। हैरत की बात यह है कि घोटाले की जांच करने वाली एजेंसियां भी इस मामले में खामोश हैं। नवनियुक्त कुलपति प्रो.राकेश भटनागर के बुधवार को चार्ज लेने उम्मीद है। बीएचयू में ऐसी प्रोन्नतियों और नियुक्तियों के घोटाले की जांच उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी।
बीएचयू प्रशासन से पूछिए कि क्यों बना दिया प्रोफसर
बीएचयू में अवैध तरीके प्रोफेसर बने शिक्षकों का जवाब मजेदार है। इस मामले में प्रो.दीपिका जोशी का पक्ष जानने की कोशिश की गई तो जवाब मिला, बीएचयू प्रशासन से पूछिए कि उन्हें प्रोफेसर क्यों बना दिया गया? हालांकि डा.जोशी प्रोन्नति को वैध होने का दावा करती हैं। दूसरे प्रोफेसर एचपी सिंह भी अपनी नियुक्ति को जायज ठहराते हैं। दावा करते हैं कि प्रोफेसर बनने से पहले उनका शैक्षणिक अनुभव दस साल से अधिक था। शायद शिकायत करने वालों को जानकारी नहीं होगी। हालांकि इन्होंने जो आवेदन किया था उसमें इनका शैक्षणिक कार्यकाल महज दस साल ही अंकित है। बाकी किसी अन्य योग्यता का उल्लेख नहीं है।