कोर्ट की अवमानना से कैसे बचें पत्रकार?
अदालतों की रिपोर्टिंग दिलचस्प, मगर पेचीदा
विजय विनीत
पत्रकारिता का मूल मकसद है सत्य, सही, निष्पक्ष, स्वतंत्रता, जनहित और जनता के प्रति जवाबदेही। अदालत की कार्यवाही की रिपोर्टिंग पत्रकारिता का अभिन्न हिस्सा है। कोर्ट की रिपोर्टिंग में कई ऐसे प्रतिमान है जिनका पालन करना आवश्यक है। खासतौर पर कोर्ट की अवमानना के मामले में रिपोर्टिंग करते समय पत्रकारों को सतर्कता बरतना बेहद जरूरी है। पत्रकार जिस अखबार, वेबसाइट, टीवी अथवा चैनल में काम करता है उन्हें यह प्रयास करना चाहिए कि अपने विवेक और तथ्यपरक ज्ञान की बदौलत कोर्ट की अवमानना से बचते हुए रिपोर्टिंग करे। अदालती मुकदमों की रिपोर्टिंग जितनी दिलचस्प होती है, उतनी ही पेचीदा। रिपोर्टिंग के दौरान कई बार पत्रकार उसमें डूब जाते हैं और नियम-कानून के पचड़े में फंसकर कोर्ट की अवमानना कर बैठते हैं।
रिपोर्टिंग आसान, मगर पेंचीदगियां भी जानें
अदालती कायर्वाही की रिपोर्टिंग बेहद आसान है तो जटिल भी है। कोर्ट अलग-अलग होती हैं, जहां रिपोर्टिंग के नियम-क़ानून भी अलग हो सकते हैं। कोर्ट के चर्चित मुकदमे अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। इस तरह के मामले समाचार के अहम हिस्से भी बनते हैं। पत्रकारों को कोर्ट के कामकाज के तरीकों से अहम जानकारी रखना जरूरी है।
रिपोर्टिंग करते समय कोर्ट आपसे अपेक्षा करती है कि पाबंदियों का उल्लंघन कतई न किया जाए। पाबंदियों का उल्लंघन करने पर इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जिसकी वजह से पत्रकार और मीडिया संस्थान को जुर्माना भरना पड़ सकता है। पत्रकारों को चाहिए कि वे कानूनी मामलों में विशेषज्ञों की टीम से सुस्पष्ट जानकारी हासिल कर लें। पत्रकारों को पता होना चाहिए कि अदालतें कितनी तरह की होती हैं, और उनमें चल रही गतिविधियों की रिपोर्टिंग करने में क्या-क्या बंदिशें लगी हो सकती हैं।
जरूरी है कोर्ट की पाबंदियों की जानकारी
पत्रकारिता के क्षेत्र में कोर्ट की अवमानना सबसे अहम मुद्दा होता है। ऐसे मामले में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोर्ट की अवमानना करने का आपका इरादा था अथवा नहीं? कोई मामला कोर्ट में चल रहा होता है तो हो सकता है कि उसमें कुछ पाबंदियां लगी हों। कुछ पाबंदियां खुद ही लागू हो सकती हैं। कोर्ट की रिपोर्टिंग के दौरान इस तरह की पाबंदियों पर गौर करना बेहद जरूरी है।
कोर्ट की अवमानना के मामले में इस बात का कोई अर्थ नहीं है कि पत्रकार ने ऐसा अनजाने में किया है अथवा जानते-समझते गलती की है। जब कोई मामला कोर्ट में चल रहा हो तो रिपोर्टिंग पर अनेक तरह की पाबंदियां लगी हो सकती हैं, जिसमें कई ऐसी होती हैं जो मीडिया पर लागू होती हैं। कुछ पाबंदियां कोर्ट के आदेश पर लगाई जाती हैं। रिपोर्टिंग करते समय इस बात पर गौर करना बेहद जरूरी है।
कोर्ट में रिपोर्टिंग पर लगी पाबंदियों के अलावा अवमानना के बारे में पत्रकारों को जानना बेहद जरूरी है। पत्रकारों को चाहिए कि कोर्ट में मामलों के ट्रायल के दौरान रिपोर्टिंग के नियमों के बारे में कानूनी विशेषज्ञों से पहले ही जानकारी हासिल कर लें। रिपोर्टिंग करते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि भारत के अलग-अलग राज्यों के नियम-कानून अलग-अलग हो सकते हैं, जिनका पालन करना बेहद जरूरी है। अदालतें अवमानना कानून का इसलिए कड़ाई पालन कराती हैं कि वहां होने वाली कार्यवाही पर किसी तरह का दबाव अथवा प्रभाव न पड़ सके।
कोर्ट में मीडिया पर पाबंदी लगाने का मकसद यह भी होता है कि जब मुकदमा चल रहा हो तो ऐसी कोई बात न छप जाए, जिसकी वजह से न्यायाधीश अथवा जूरी की राय किसी एक पक्ष को निर्दोष अथवा दोषी मानने के लिए प्रेरित करने लगे। उदाहरण के तौर पर कोर्ट में पेशी से पूर्व अथवा बाद में किसी गवाह का इंटरव्यू छापना अवमाना का मामला बन सकता है।
खबरों से न पड़े मुकदमों पर प्रभाव
कोर्ट में जब कानूनी कार्यवाही आरंभ हो जाती है तो उसके बाद ऐसे किसी तथ्य का प्रकाशन, जिससे मुकदमे पर प्रभाव पड़ सकता है उसे अवमानना की कटेगरी में शामिल किया जा सकता है। कानूनी कार्यवाही की शुरूआत तभी हो जाती है जब जब किसी संदिग्ध व्यक्ति को हिरासत में लिया जाता है। गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी होने के बाद कानूनी प्रकिया निरंतर जारी रहती है। यह प्रक्रिया तब भी जारी रहती है जब किसी व्यक्ति को कोर्ट के सामने उपस्थित होने के लिए समन जारी किया जाता है अथवा अभियोग चलाया जाता है हाजिर होने का सम्मन दिया जाता है अथवा किसी व्यक्ति पर अभियोग लगाया जाता है।
पत्रकारों को इस बात पर गंभीरता से गौर करना चाहिए कि नीयत भले ही कोर्ट की अवमानना की न रही हो, पर वह आपको दोषी ठहरा सकती है। यह नियम सभी कोर्ट और न्यायाधिकरणों में लागू होते हैं। मुख्य रूप से आपराधिक मामलों में सतर्कता अधिक बरतने की जरूरत पड़ती है जहां जज अथवा जूरी फैसला सुनाती है।
कोर्ट की रिपोर्टिंग पर पाबंदी
कोर्ट में कई नियम ऐसे भी होते हैं जिनमें काफी रोक-टोक होती है। ज्यादातर मामलों में अदालत के पास यह अधिकार होता है कि वह रिपोर्टिंग पर लगी पाबंदी में छूट दे सके। इस तरह की पाबंदी खुद लागू होती हैं और कई बार कोर्ट भी लगाती है। रिपोर्टिंग करने से पहले इस बात की पुख्ता जानकारी कर लेनी चाहिए कि कोर्ट में क्या-क्या पाबंदी लागू हैं। पाबंदियों का मकसद ऐसी सामाग्री का प्रकाशन रोकना होता है जिसके कारण जूरी या जजों की राय प्रभावित न हो सके। मसलन, आप किसी व्यक्ति के पिछले मुकदमों का जिक्र नहीं कर सकते, या किसी गवाह या सबूत के बारे में टिप्पणी नहीं कर सकते।
ऐसे करें रिपोर्टिंग की तैयारी
कोर्ट की रिपोर्टिंग करने से पूर्व कई तरह की तैयारियां करनी पड़ती है। जटिल मुकदमों के मामले में जूडिशयल कम्युनिकेशन दफ्तर से जानकारी हासिल करनी चाहिए। इससे पत्रकार को मुकदमे की तारीख़, समय और मौजूदा स्थिति के बारे में जानकारी मिल जाती है। साथ ही यह भी पता चल जाता है कि कोर्ट ने रिपोर्टिंग के लिए क्या-क्या पाबंदियां लगा रखी हैं। कोर्ट ने अगर कोई सुविधा दी है तो वह क्या है? कई बार अदालतों में पत्रकारों को बैठने के लिए स्थान नहीं होता है।
चर्चित मामलों में पत्रकारों की भारी भीड़ एकत्र हो जाती है। ऐसे में पहले से ही कोर्ट की अनुमति हासिल करके जगह की व्यवस्था कर लेनी चाहिए। कई बार जज निर्देश देते हैं कि समाचार में पत्रकार क्या लिख सकते हैं और क्या नहीं? मुकदमों के दौरान भी कई बार अदालतें मीडिया के लिए निर्देश जारी करती हैं। गैर-हाजिर होने पर उन निर्देशों से वाकिफ होना बेहद जरूरी है। कोर्ट के निर्देशों का अनुपालन न करने की स्थिति में पत्रकार और मीडिया हाउस को गंभीर नतीजे झेलने पड़ सकते हैं।
अदालत में चल रहे मुकदमे के बारे में जो तथ्य आप प्रकाशित करते हैं उनके बारे में पुख्ता जानकारी पहले से होनी चाहिए। जैसे, कोर्ट का नाम, जूरी का नाम, अभियोग का विवरण, अभियुक्तों के नाम, शहर के नाम, उनका पेशा, मुकदमे में शामिल वकीलों के नाम वगैरह। अगर आप आप मुकदमे की सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद रह सकते हैं तो ढेर सारी पुख्ता जानकारी जुटा सकते हैं। बाद में अपने ज्ञान और विवेक से तय कर लेना चाहिए कि क्या प्रकाशित किया जा सकता है और क्या नहीं?
रिसर्चर बनें कोर्ट के रिपोर्टर
मुकदमे के बारे में पुख्ता जानकारी रखने के लिए उसकी पृष्ठभूमि को समझना बेहद जरूरी है। खबरों में कोई ऐसी बात नहीं लिखी जानी चाहिए जिसका असर कोर्ट की कार्यवाही पर पड़े। आनलाइन या क्लिपिंग लाइब्रेरी के जरिए मुकदमों के बारे में सटीक जानकारी हासिल की जा सकती है। बुनियादी जानकारी के आधार पर रिपोर्टिंग करना गलत है।
कोर्ट में बैठने की छूट न मिलने पर पत्रकारों को रिपोर्टिंग कोर्ट से मिलने वाली जानकारी तक ही सीमित रहना चाहिए। कोर्ट की खबरों में गलती होने के चांस ज्यादा होते हैं। अदालत की रपट लिखते समय इस बात की जांच-परख जरूरी है कि उसमें तथ्यों के अलावा कोई ऐसी बात तो नहीं जो उसे अवमानना के मामले में घसीट सकती है।
कोर्ट की रिपोर्टिंग तथ्यपरक और निष्पक्ष होनी चाहिए। यह हुनर आना बेहद जरूरी है कि कोर्ट की कार्यवाही में काम की बात कितनी है? खबर लिखते समय अधिवक्ता और जज की शब्दावली का इस्तेमाल करेंगे तो पाठक को समझने में कठिनाई हो सकती है। ऐसे में कोर्ट की कार्यवाही को बोलचाल भाषा में लिखा जाए तो ज्यादा ग्राह्य होगा।