पत्रकार हैं तो क्या? महंगा पड़ सकता है कॉपीराइट कानून का उल्लंघन

पत्रकार हैं तो क्या? महंगा पड़ सकता है कॉपीराइट कानून का उल्लंघन

तीन साल जेल, दो लाख तक हो सकता है जुर्माना

विजय विनीत

अगर अच्छे पत्रकार हैं तो आप कॉपीराइट कानून की गहन जानकारी होनी चाहिए। हर इंसान चाहता है कि कोई दूसरा उसके ज्ञान अथवा विधा की नकल न करे। यह उसका विशेषाधिकार भी है। पत्रकारों को यह जानना बेहद जरूरी है कि किसी भी मौलिक कार्य की नकल को किसी भी रूप में प्रसारित करना कॉपीराइट का उल्लंघन है। इस कानून में मौलिक कार्य करने वाले इंसान के हितों की रक्षा की गई है। कॉपीराइट भले ही साधारण चीज लगती हो मगर उसे तोड़ना काफी महंगा पड़ सकता है।

कॉपीराइट कानून सरल तो है, मगर व्यावहारिक रूप से पत्रकारों में भ्रम की स्थिति भी पैदा करता है। सीधा फंडा यह है कि जिस व्यक्ति अथवा कंपनी ने रचनात्मक काम किया है उसका लाभ उसे ही मिलना चाहिए। किसी मौलिक संपदा का सृजन करने वाले व्यक्ति या संस्था के पास यह तय करने का अधिकार होता है कि वह उसका इस्तेमाल किस तरह कर रहा है?

कॉपीराइट का उल्लंघन तभी माना जाता है जब किसी रचनात्मक सामग्री का पूरी तरह, या उसके अंशों का इस्तेमाल बिना पूर्वअनुमति के किया जाता है। कुछ मामलों में पीराइट कानून में छूट होती है, मसलन-समाचार की रिपोर्टिंग और रचनात्मक सामग्री की समीक्षा, मगर इन मामलों में भी कॉपीराइट नियमों का ध्यान रखना चाहिए।

क्या है कॉपीराइट कानून

भारत में कॉपीराइट कानून साल 1957 में पारित कर इसे लागू किया गया। साल 2012 में संशोधन किया गया। इस कानून का मकसद कॉपीराइट के मूल स्वामी की बेईमानी से की जाने वाली नकल से रक्षा करना और अवैध तरीके से लाभ अर्जित करने पर रोक लगाना है। कॉपीराइट कानून को लागू कराने के लिए दिल्ली में कॉपीराइट बोर्ड एवं कॉपीराइट दफ्तर खोला गया है। यह दफ्तर कॉपीराइट रजिस्ट्रार के प्रत्यक्ष नियंत्रण के अधीन रहता है। केंद्रीय सरकार के अधीक्षण और निदेशन के अधीन कार्य करता है। केंद्र सरकार कॉपीराइट्स का एक रजिस्ट्रार नियुक्त करती है और वह एक या अधिक कॉपीराइट्स के उप रजिस्ट्रार भी नियुक्त करती है। धारा 11 में एक कॉपीराइट बोर्ड के गठन के बारे में प्रावधान किया गया है। इसमें अध्यक्ष के पद पर ऐसे व्यक्ति को नियुक्त किया जाता है जो किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश रह चुका हो अथवा जो हाईकोर्ट का न्यायाधीश होने की अहर्ता पूरी करता हो।
अधिनियम की धारा 12 में कॉपीराइट बोर्ड की शक्तियों का उल्लेख है। कॉपीराइट बोर्ड सामान्यत: अधिनियम के तहत मामले की सुनवाई उसी क्षेत्र में करेगा, जहां कार्यवाही की शुरुआत में संबंधित व्यक्ति स्वेच्छा से निवास करता है या कारोबार करता है। कॉपीराइट बोर्ड को सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 में विहित सिविल न्यायालय की तरह शक्तियां हासिल होती हैं। मसलन, समन करना, हाजिर कराना, शपथ पर उसकी परीक्षा करना। शपथ-पत्र पर साक्ष्य लेना, साक्षियों और दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना।
कॉपीराइट बोर्ड के सदस्यों पर भी पहरा बैठाया गया है। कानूनी तौर पर साफ कर दिया गया है कि बोर्ड का कोई भी सदस्य किसी ऐसे मामले की कार्यवाही में भाग नहीं लेगा, जिसमें उसका खुद का हित निहित हो। पीठासीन अधिकारी के निर्देशों का पालन नहीं करने पर लोकसेवकों को दंडित करने की व्यवस्था भी की गई है। कॉपीराइट का मालिक चाहें, तो कॉपीराइट सोसायटी भी बना सकते हैं, जिसमें कम से कम सात सदस्य हों।

यहां की जा सकती है शिकायत

बगैर अनुमति किसी दूसरे के स्वामित्व वाली कृति को प्रकाशित करना, सार्वजनिक स्थानों पर उसे दिखाना, उसका लाभ उठाना कॉपीराइट कानून का उल्लंघन माना जाता है। कॉपीराइट के उल्लंघन पर नजदीक के थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई जा सकती है। जांच कॉपीराइट रजिस्ट्रार सहयोग देता है। धारा 63 के अनुसार कॉपीराइट के जानबूझकर उल्लंघन के लिए दुष्प्रेरणा को दंडनीय अपराध है। इसके लिए दोषी को कम से कम 6 माह कारावास और 50 हजार रुपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है। अधिकतम तीन वर्ष की जेल और दो लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। यदि कोई बार-बार ऐसा करता है तो सजा व जुर्माना बढ़ सकता है।

भारत के इतर कई देशों में ऑडियो, वीडियो पर व्यक्ति को खुद ही उस काम का कॉपीराइट मिल जाता है। कॉपीराइट के मालिक को उस चीज के इस्तेमाल का खास अधिकार होता है। उसे इस्तेमाल करने की स्वीकृति देने का अधिकार भी कॉपीराइट स्वामी को ही होता है।

किस संपदा का हो सकता है कॉपीराइट

ऑडियो-विज़ुअल वाले काम, टीवी शो, फ़िल्में और ऑनलाइन वीडियो कॉपीराइट कानून के दायरे में आते हैं। साउंड रिकॉर्डिंग और संगीत रचनाएं, लिखित चीज़ें, मसलन-व्याख्यान, लेख, किताबें और संगीत रचनाएं, पेंटिंग, पोस्टर और विज्ञापन, वीडियो गेम और कंप्यूटर सॉफ़्टवेयर, नाटक-संगीत वाले नाटक, विचार, तथ्य, प्रोसेस पर कॉपीराइट लागू नहीं होता। कॉपीराइट कानून के मुताबिक, कॉपीराइट सुरक्षा पाने के लिए, किसी चीज़ को रचनात्मक होना चाहिए और उसे असलियत में मौजूद होना चाहिए (जैसे रिकॉर्ड किए गए वीडियो, आवाज़ या लिखित रूप में मौजूद लेख वगैरह)। नाम और शीर्षक पर तब तक कॉपीराइट लागू नहीं होता जब तक उन्हें कॉपीराइट नहीं किया जाता।
कुछ मामलों में किसी संपदा के मालिक के कॉपीराइट का उल्लंघन किए बिना कॉपीराइट के लिए सुरक्षित चीज़ का इस्तेमाल किया जा सकता है। कोई भी व्यक्ति वीडियो में किसी और व्यक्ति की सामग्री इस्तेमाल करने की मंज़ूरी हासिल कर सकता है।

कॉपीराइट कानून और मालिकाना हक

कॉपीराइट के मालिक आपके वीडियो पर तभी दावा कर सकता हैं, जब आपने कॉपीराइट मालिक को श्रेय दिया हो। उल्लंघन करने वाले वीडियो से कमाई न की हो। आमतौर पर यू-ट्यूब के माध्यम से प्रसारित होने वाले दृश्यों पर विवाद ज्यादा होता है। यू-ट्यूब मालिकाना अधिकार वाले मामलों में बीच-बचाव नहीं कर सकता। जब कॉपीराइट उल्लंघन वाली सामग्री हटाने की सूचना मिलती है तो, यू-ट्यूब कानूनन उस सामग्री को हटा देता है। मान्य कानूनी अनुरोध मिलने पर संबंधित व्यक्ति अथवा संस्था को भेज दिया जाता है।
कॉपीराइट सिर्फ बौद्धिक संपदा का एक रूप है। यह ट्रेडमार्क की तरह नहीं होता। ट्रेडमार्क ब्रैंड के नाम, मोटो, लोगो और स्रोत पहचानने वाली दूसरी चीज़ों की सुरक्षा करता है, ताकि दूसरे लोग किसी खास इरादे से उनका प्रयोग न कर सकें। कॉपीराइट कानून यह नहीं कहता कि वह पेटेंट कानून से भी अलग है, जो आविष्कारों की रक्षा करता है।
किसी वीडियो, इमेज या ऑडियो रिकॉर्डिंग में किसी की मौजूदगी का मतलब यह नहीं है कि आपके पास उसका कॉपीराइट अधिकार है। कॉपीराइट का अधिकार वीडियो रिकार्डिंग करने वाले व्यक्ति के पास होता है। अगर आपको लगता है कि किसी दृश्य अथवा तस्वीर से आपकी निजता या सुरक्षा का उल्लंघन हो रहा है तो, आप यू-ट्यूब में शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

टीवी पत्रकार ये भी बरतें सावधानी

अगर आप टीवी चैनल के लिए रिपोर्टिंग कर रहे हैं तो आपको यह पता होना चाहिए कि आप उक्त तस्वीरों का इस्तेमाल कर सकते हैं या नहीं? टीवी पर किसे दिखाया जा सकता है और किसे नहीं? इसे लेकर कोर्ट में काफी सावधानी बरती जाती है। बहस और गवाही के दौरान गवाह, अभियुक्त या पीड़ित व्यक्ति की पहचान उजागर करने पर कड़ी बंदिश है। ज़्यादातर केसों में सीसीटीवी फुटेज को बतौर सबूत पेश किया जाता है। जूरी जब इस वीडियो को देख लेती है तो उसे मीडिया के लिए जारी किया जाता है। अगर आपको पहले से पता हो कि सीसीटीवी फुटेज जारी किया जाने वाला है तो आप उसे हासिल करने का आग्रह कर सकते हैं।

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