पूर्वांचल में बच्चों की आंखों में फैल रहा रेटिनोब्लास्टोमा का जहर
अब लाइलाज नहीं आंखों का कैंसर
बीएचयू के सरसुंदर लाल अस्पताल में नेत्र कैंसर, चोट एवं आकुलोप्लास्टी यूनिट (नेत्र विभाग) के इंचार्ज डा.आरपी मौर्य ने पूर्वांचल के उन बच्चों में उम्मीद की नई किरण जगाई है जिनकी आंखों में रेटिनोब्लास्टोमा का जहर फैल रहा है। रेटिनोब्लास्टोमा बच्चों की आंखों में होने वाला दुर्लभ किस्म का कैंसर है। बनारस में पहले इस बीमारी का उपचार संभव नहीं था। जाने-माने नेत्र कैंसर रोग विशेषज्ञ डा. मौर्य ने पीड़ित बच्चों की आंखों को बचाने में एक बड़ी उम्मीद जगाई है। ऐसी उम्मीद जिससे रेटिनोब्लास्टोमा को पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। दोनों आंखों व दृष्टि को बचाया जा सकता है।
जागरूकता के अभाव और नीम-हकीम नेत्र चिकित्सकों के गलत इलाज के चलते पूर्वांचल में रेटिनोब्लास्टोमा के मामले बढ़ रहे हैं। कैंसर रेटिनोब्लास्टोमा पीड़ित बच्चों के बारे में परिजनों को यह जानकारी नहीं होती कि उनका बच्चा आंखों की किस बीमारी से पीड़ित है। पहले वे क्लीनिक इत्यादि के चक्कर काटते रहते हैं। बीमारी के अधिक बढ़ने पर उन्हें मालूम पड़ता है कि यह रेटिनोब्लास्टोमा है। डा.मौर्य बताते हैं कि बीएचयू में इस बीमारी का इलाज संभव है। अगर मरीज समय से उपचार शुरू कर दे उसे आसानी से बचाया जा सकता है। कुछ साल पहले तक आंखों के कैंसर का इलाज संभव नहीं था। आंखें ही निकालनी पड़ती थी, लेकिन अब परिदृश्य बदल गया है। दुनिया भर में हर साल रेटिनोब्लास्टोमा के 7000 नए मरीज जुड़ रहे हैं। इनमें भारतीय बच्चों की संख्या करीब डेढ़ होती है। विदेशों में इस बीमारी को लेकर अभिभावक जागरूक होते हैं। इसलिए 90 फीसदी रोगी ठीक हो जाते हैं। भारत में सर्वाइवल रेट सिर्फ 50 फीसदी है।
बीएचयू में रेटिनोब्लास्टोमा के 210 मामले पंजीकृत
डा.मौर्य के मुताबिक बीएचयू में इस साल अब तक रेटिनोब्लास्टोमा के 18 मामले पंजीकृत किए गए हैं। इन्हें मिलाकर कुल पंजीकृत रोगियों की संख्या 209 हो गई है। पूर्वांचल में शिक्षा के अभाव में रेटिनोब्लास्टोमा की बीमारी बढ़ रही है। यह कैंसर आंखों के जरिए खून में पहुंचता है और फिर हड्डियों को क्षति पहुंचाता है। देश में 40 फीसदी रोगी आनुवांशिक और 60 फीसदी गुणसूत्र बदलने से बच्चे रेटिनोब्लास्टोमा के जद में आ रहे हैं। बीएचयू में कीमोथेरेपी, लेजर तकनीक, क्रायोथेरेपी और रेडियोथेरेपी से इसका उपचार किया जा रहा है। रेटिनोब्लास्टोमा से बच्चों को बचाने के लिए बीएचयू ने जागरूकता अभियान शुरू किया है। इस दौरान बच्चों के परिजन नेत्र कैंसर यूनिट में अधिक जानकारी हासिल कर सकते हैं। रेटिनोब्लास्टोमा का पता अभिभावक बच्चे की दोनों आंखों का मध्यम रोशनी में फ्लैश से फोटो खींच कर लगा सकते हैं। अगर इसमें एक आंख लाल व दूसरी सफेद आए तो समझ जाइए कि बच्चा इस बीमारी से पीड़ित है। रेटिनोब्लास्टोमा का ट्यूमर बच्चों की आंखों में तीन वर्ष की आयु से पहले पनप जाता है।
लक्षण और उपचार
डा.मौर्य के मुताबिक आंख पर रोशनी पड़ने पर पुतली का गुलाबी या सफ़ेद दिखाई देना। आंख में दर्द महसूस होना होना अथवा आंखों में अधिक लालपन आ जाना रेटिनोब्लास्टोमा के लक्षण हैं। दिखाई देने में समस्या का होना, आंखों का बाहर उभर आना, आंखों से खून आना, दोनों आंखों की पुतली का रंग अलग-अलग होना भी रेटिनोब्लास्टोमा के लक्षण हैं।
डा.मौर्य ने बताया कि सबसे पहले बच्चों का ब्लड टेस्ट कराने से इसके लक्षण पता लगता है। अगर बच्चा इस रोग से पीड़ित हैं तो आंख की रेडियोथेरेपी और केमोथेरेपी से ही इसका इलाज किया जा सकता है। लेकिन शुरू में ध्यान न देने अथवा ज्यादा देर करने पर सर्जरी के जरिए आंख को निकालना अथवा बदलना पड़ता है। रेडियोथेरेपी में अधिक ऊर्जा के रेडिएशन से रेटिनोब्लास्टोमा के कैंसर ट्यूमर को नष्ट किया जाता है। इसे दवाओं से खत्म किया जा सकता है। थर्मोथेरपी में तापमान बढ़ाकर रेटिनोब्लास्टोमा कैंसर ट्यूमर ग्रसित सेल्स को हटाया जाता है। टोकोएगुलेशन विधि में लेज़र तकनीक से इस ट्यूमर को नष्ट किया जाता है।