फागुनी से गीत गाती आत्मा है उत्सवित
आज मेरा मन सघन आनंद में हैं विप्लवित ,
फागुनी से गीत गाती आत्मा है उत्सवित।
आज उनके आगमन की ,
सूचना मन को मिली है।
आज फिर से सुप्त कलिका ,
पंखुरी खोले खिली है।
चूड़ी, कंगन, हँसुली ,करधन, गोड़हरी डिबिया खुलेगी ,
सामने दर्पन के जाने को हुयी इच्छा त्वरित ।
फागुनी से गीत गाती आत्मा है उत्सवित।
आंगने के चारो कोने,
स्वर्ण दीयना साज दूंगी।
आज हरजाई तिमिर को ,
खरहरे से भांज दूंगी।
मौन ,आखर ,भावना को सुरभियां सब भेंट लेंगी
बन बजूं वीणा स्वयं ही , गंध हो लूं मंजरित।
फागुनी से गीत गाती आत्मा है उत्सवित।
बेहया के पुष्प सी मैं ,
चिरप्रतिक्षारत रही हूं
इस जगत के उत्सवों से ,
मैं सदा ही विरत रही हूं।
आज उर ने तान छेड़े भाव सब संयोग के।
मन अघाता न थके! सुन , गीत जो थे अश्रवित।
फागुनी से गीत गाती आत्मा है उत्सवित।
आकृति विज्ञा ‘अर्पण’
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
परिचय :
आकृति विज्ञा ‘अर्पण ‘
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
शिक्षा: बीएससी, एमएससी, बीएड
वर्तमान में वनस्पति विज्ञान में शोधरत्
कविता ,गीत ,कथा ,पत्र , रिपोर्ताज आदि विधाओं में सक्रिय।
दूरदर्शन, आकाशवाणी में अनेक कार्यक्रमों की उद्घोषणा व पाठ ।
हिंदी , भोजपुरी व अंग्रेजी में सक्रिय लेखन।
अनेक पत्र पत्रिकाओं में गद्य,पद्य ,पत्र व समीक्षायें प्रकाशित।
साहित्यिक सक्रियता को देखते हुये विद्या वाचस्पति ( पर्याय डाक्टरेट मानद उपाधि) से सम्मानित।
प्रेम पत्र संग्रह ‘ लोकगीत सी लड़की ‘ प्रकाशित व पुस्तक मेला 2024 में बेस्ट सेलर घोषित ।