पूनम राय : रंगों में गढ़ा जीवन का सजीव संगीत

पूनम की कला केवल देखने भर का अनुभव नहीं, बल्कि आत्मा को झकझोरने वाली अनुभूति है
✍️ विजय विनीत
बनारस केवल एक शहर नहीं है, यह स्वयं एक जीवंत संस्कृति, एक आध्यात्मिक परंपरा और एक बहता हुआ जीवन-दर्शन है। यहां की गलियां, घाट, मंदिर और आश्रम जितने प्राचीन हैं उतने ही आधुनिक समय के लिए प्रासंगिक भी। बनारस की सुबह केवल गंगा आरती की गूंज से नहीं सजती बल्कि उसमें जीवन का उत्सव भी शामिल होता है। इसी पवित्र भूमि से अनेक कलाकार, संत और साधक जन्म लेते रहे हैं।
बनारस की धरती अपनी माटी की खुशबू में सृजन की शक्ति समेटे रहती है। इसी धरती से निकली हैं पूनम राय, जो आज जानी-मानी चित्रकार के रूप में कला-जगत में अपनी अमिट छाप छोड़ चुकी हैं।

पूनम की कला में रंग केवल रंग नहीं हैं, वे संवेदनाओं की धारा हैं। उनके चित्र जीवन की उन गहराइयों को प्रकट करते हैं जिन्हें सामान्य दृष्टि अक्सर अनदेखा कर देती है। यही कारण है कि पूनम राय की कला केवल देखने भर का अनुभव नहीं बल्कि आत्मा को झकझोरने वाली अनुभूति है।
बनारस की संस्कृति अद्वितीय है। यहां आस्था और कला का संगम सहज रूप से दिखाई देता है। गंगा के किनारे बैठा साधु, संकरी गलियों में बजती शहनाई, घाटों पर जलते दीपक और मंदिरों की घंटियों की ध्वनियां-ये सब एक चित्रकार के मन में अनगिनत रंगों और भावों को जन्म देते हैं। पूनम राय का जीवन और उनकी कला इसी वातावरण से प्रभावित हुई है।
उन्होंने अपनी चित्रकला में बनारस की आत्मा को रचा-बसा दिया है। उनके कैनवस पर गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि जीवन की निरंतरता और पवित्रता का प्रतीक बनकर उभरती है। घाटों की सीढ़ियों पर बैठा साधक केवल आकृति नहीं, बल्कि धैर्य और तप का स्वरूप है। उनके चित्रों में वह सादगी और वह गहराई है जो सीधे बनारस की मिट्टी से निकलती है।
कला को जीने की दृष्टि

पूनम राय के लिए कला केवल पेशा या अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं है। यह उनके जीवन का धर्म है, उनकी साधना है। वे मानती हैं कि चित्रकार का कार्य केवल सुंदर आकृतियां बनाना नहीं बल्कि जीवन की जटिलताओं को रंगों के माध्यम से सहज बनाना है।
उनके चित्रों में साधारण दृश्य भी असाधारण रूप लेकर आते हैं। एक साधारण स्त्री का चेहरा उनके हाथों में करुणा और शक्ति दोनों का प्रतीक बन जाता है। एक बच्चा उनके कैनवास पर मासूमियत से अधिक भविष्य की आशाओं का दर्पण होता है। उनकी कला इस बात को सिद्ध करती है कि सच्चा कलाकार वही है जो साधारण में छिपे असाधारण को प्रकट कर सके।
हर कलाकार की तरह पूनम राय की यात्रा भी संघर्षों से भरी रही है। कला की राह कभी आसान नहीं होती। आर्थिक कठिनाइयों, सामाजिक पूर्वाग्रहों और पारिवारिक जिम्मेदारियों ने कई बार उनके रास्ते में बाधाएं खड़ी कीं। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
उनके लिए चित्रकला केवल समय बिताने का काम नहीं थी। यह उनकी आत्मा की पुकार थी। जब भी जीवन में अंधकार आया, उन्होंने रंगों से उजाला रचा। जब भी परिस्थितियां कठिन हुईं, उन्होंने अपनी कूची को साधना का साधन बना लिया। उनका यह जिद्दी समर्पण ही था जिसने उन्हें एक अलग पहचान दी।
चित्रों की आत्मा : संवेदनाओं का संगीत

पूनम राय के कैनवस पर बनारस की आत्मा सांस लेती है। गंगा की धारा उनके चित्रों में केवल जल नहीं रहती, बल्कि जीवन की अनवरत यात्रा का प्रतीक बन जाती है। घाटों की सीढ़ियाँ आस्था का रूप ले लेती हैं और गलियों का अंधेरा भी उम्मीद की रोशनी में बदल जाता है।
उनकी मशहूर पेंटिंग “सुबहे-बनारस” इसका जीवंत उदाहरण है। इस चित्र में गंगा किनारे उगते सूरज की सुनहरी किरणें जल पर बिखरी हैं। नावों की कतारें धीरे-धीरे बह रही हैं और घाट पर दीपक टिमटिमा रहे हैं। साधारण आंख के लिए यह सुबह का दृश्य भर है, लेकिन पूनम राय ने इसे जीवन की नयी शुरुआत, आस्था की गहराई और आत्मा की शांति के प्रतीक में बदल दिया है।
दूसरी ओर, उनकी पेंटिंग “गलियों की रोशनी” में संकरी बनारसी गलियों के बीच उतरती हल्की किरणें और वहां की दिनचर्या का चित्रण है। यह पेंटिंग हमें यह एहसास कराती है कि संघर्षों के बीच भी जीवन का सौंदर्य और जिजीविषा बनी रहती है।
दरअसल, पूनम राय के चित्र केवल रंगों से बने दृश्य नहीं हैं, वे आत्मा की गहराइयों से उपजे अनुभव हैं। उनके चित्रों को देखने वाला व्यक्ति उनमें अपनी कहानी खोज लेता है। उनकी एक पेंटिंग में गंगा किनारे बैठा एक साधु है। दर्शक को यह केवल एक साधु नहीं, बल्कि अपने भीतर झांकने का अवसर लगता है। दूसरी पेंटिंग में खेत में काम करती एक महिला है।
यह केवल श्रम का चित्रण नहीं बल्कि भारतीय नारी की अटूट शक्ति और सहनशीलता का प्रतीक है। उनके चित्रों की यह विशेषता है कि वे मौन होकर भी संवाद करते हैं। वे हमें यह महसूस कराते हैं कि कला केवल आंखों से देखने की चीज नहीं बल्कि हृदय से महसूस करने की प्रक्रिया है।
पूनम राय का सबसे बड़ा हुनर यह है कि वे साधारण जीवन की बारीकियों को अपनी कला में असाधारण बना देती हैं। एक बच्चा दीप जलाते हुए उनके कैनवास पर केवल धार्मिक अनुष्ठान का दृश्य नहीं रहता, बल्कि वह मासूम आस्था और जीवन की उम्मीद का प्रतीक बन जाता है।
सड़क पर बैठा भिखारी उनके चित्र में केवल गरीबी का द्योतक नहीं रहता, बल्कि समाज की संवेदनशीलता को जगाने वाला आईना बन जाता है। यही उनका जादू है-वे चीजों को वैसा नहीं दिखातीं जैसी वे दिखती हैं, बल्कि वैसा दिखाती हैं जैसी वे भीतर से होती हैं।
पूनम राय की कला का मूल बनारस है, लेकिन उसकी पहुंच वैश्विक है। उनके चित्र न केवल भारतीय दर्शकों को आकर्षित करते हैं बल्कि विदेशों में भी सराहे जाते हैं। उनकी कला यह सिद्ध करती है कि भावनाएं किसी एक देश या संस्कृति की नहीं होतीं। वे सार्वभौमिक होती हैं। यही कारण है कि चाहे दर्शक भारत का हो या विदेश का, उनके चित्र उसे अपने भीतर झांकने को मजबूर कर देते हैं।
ध्यान और साधना का अनुभव

पूनम राय का मानना है कि कला केवल निजी अभिव्यक्ति का साधन नहीं बल्कि समाज को दिशा देने वाली शक्ति भी है। उन्होंने अपनी कला को सामाजिक सरोकारों से जोड़ा है। उनकी पेंटिंग्स में महिलाओं की स्थिति, बच्चों की मासूमियत, प्रकृति की पुकार और मानवीय रिश्तों की जटिलता स्पष्ट दिखाई देती है।
उनका कैनवस केवल सौंदर्य का प्रतीक नहीं बल्कि समाज के आईने की तरह है। उनकी कला दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है। यही कारण है कि वे केवल चित्रकार नहीं बल्कि समाज की संवेदनशील दूत भी मानी जाती हैं।
पूनम राय के लिए चित्रकला ध्यान की तरह है। जब वे रंगों में डूबती हैं तो उन्हें लगता है जैसे वे अपनी आत्मा से संवाद कर रही हों। यही कारण है कि उनके चित्रों में गहरी शांति और आध्यात्मिकता झलकती है। वे मानती हैं कि हर रंग जीवन का एक पहलू है। नीला रंग धैर्य और शांति का प्रतीक है, लाल रंग संघर्ष और ऊर्जा का, हरा रंग जीवन की ताजगी का और पीला रंग आध्यात्मिक रोशनी का। जब ये सारे रंग मिलते हैं तभी जीवन का पूरा चित्र बनता है।
बचपन और संघर्ष की शुरुआत

पूनम राय का जीवन बचपन से ही आसान नहीं था। पूनम जन्म से विकलांग नहीं थी। दहेज लोभियों ने उन्हें विकलांग बनाया। शादी के बाद दहेज के लिए उन्हें प्रताड़ित किया गया। बाद में उन्हें छत से नीचे फेंक दिया गया और वह करीब डेढ़ दशक तक कोमा में रहीं। इससे उबरीं तो एक नई पूनम बनकर शिखर पर छा गईं। उन्होंने अपनी कमजोरी को ताक़त में बदल दिया। छोटी उम्र से ही उनके हाथों में रंग और ब्रश खेलने लगे। जहां अन्य बच्चे खेलकूद में समय बिताते, पूनम रंगों से खेलकर अपने भीतर की दुनिया रचती थीं। पूनम ने हर सवाल का जवाब अपनी चित्रकला से दिया। उन्होंने यह साबित कर दिया कि शरीर की सीमाएं आत्मा की उड़ान को रोक नहीं सकतीं।
पूनम राय ने चित्रकला को केवल शौक़ की तरह नहीं, बल्कि जीवन की साधना की तरह अपनाया। बनारस की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि ने उनकी संवेदनशीलता को और धार दी। घाटों की खामोशी, गलियों की भीड़, गंगा का प्रवाह और मंदिरों की घंटियों की गूँज-इन सबने उनके भीतर कलाकार की दृष्टि को जाग्रत किया। उन्होंने औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ खुद को कला में लगातार निखारा। उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें बनारस की ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय कला-जगत की पहचान दिलाई।
पूनम राय का नाम गिनीज बुक आफ रिकार्ड में भी दर्ज है। इन्हें जितने पुरस्कार और सम्मान मिले हैं उसकी फेहरिश्त बहुत लंबी है। आज पूनम राय न सिर्फ़ बनारस, बल्कि पूरे कला-जगत की धरोहर हैं। उन्होंने यह दिखा दिया है कि कला केवल एक शौक़ या प्रदर्शन नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है। उनका हर चित्र यह याद दिलाता है कि गहराई से देखने और महसूस करने की क्षमता ही इंसान की असली संपत्ति है।
पूनम राय का जीवन हमें यह सिखाता है कि विकलांगता केवल शरीर तक सीमित रहती है, आत्मा पर उसका कोई असर नहीं होता। उनकी कला ने यह सिद्ध कर दिया है कि संवेदनशीलता और आत्मबल किसी भी सीमा को पार कर सकते हैं। वे हर उस क्षण को कैनवास पर उतार देती हैं जिसे हम अपनी व्यस्तताओं में खो देते हैं। यही उनकी कला की सबसे बड़ी ताक़त है-साधारण में असाधारण को पहचानना।
गर्व की बात
मेरे लिए यह गर्व का विषय है कि पूनम राय हमारी बहन हैं। उन्होंने न केवल परिवार, बल्कि पूरे समाज और कला-जगत को यह सिखाया है कि सच्चा कलाकार वही है जो जीवन की बारीकियों को पकड़ सके और उन्हें रंगों के माध्यम से अमर कर दे।

पूनम राय की कला हमें यह सिखाती है कि जीवन की सुंदरता साधारण क्षणों में छिपी होती है। यदि हम संवेदनशील दृष्टि से देखें तो हर दृश्य असाधारण बन सकता है। यही उनका संदेश है और यही उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि भी। उनका जीवन और उनकी कला दोनों हमें यह प्रेरणा देते हैं कि यदि हम अपने भीतर की पुकार सुनें और उसे साधना का रूप दें तो कोई भी कठिनाई हमें रोक नहीं सकती।
पूनम राय केवल चित्रकार नहीं बल्कि संवेदनाओं की जीवंत अभिव्यक्ति हैं। उनके चित्रों में संघर्ष है, साधना है, समाज की पीड़ा है और जीवन का उत्सव भी। वे हमें यह एहसास कराती हैं कि कला केवल रंगों का संयोजन नहीं बल्कि आत्मा की गहराई से उपजा हुआ संगीत है।

पूनम राय का जीवन यह साबित करता है कि सच्चा कलाकार वही है जो साधारण में असाधारण को देख सके और उसे दुनिया के सामने ला सके। उनकी कला हमें यह अनुभव कराती है कि जीवन केवल घटनाओं का क्रम नहीं बल्कि रंगों और संवेदनाओं का सजीव संगीत है।
पूनम राय की कला बनारस की आत्मा का विस्तार है। इसमें गंगा की शांति है, घाटों की जीवंतता है, गलियों की चहल-पहल है और साधना की गहराई है। यही कारण है कि उनके चित्र हमें भीतर तक छू जाते हैं। उनका जीवन यह साबित करता है कि सच्चा कलाकार वही है जो परिस्थितियों के आगे झुके नहीं, बल्कि उन्हें कला का हिस्सा बना ले।