जलती चिताओं के बीच नगर वधुओं ने किया नृत्य

घुंघरुओं की झनकार से महाश्मशान में राग-विराग एकाकार
महाश्मशान घाट पर नृत्य देखने को उमड़े रहे लोग
वाराणसी केे मणिकर्णिका घाट स्थित महाश्मशान पर एक ओर जहां जलती चिताएं मन में विराग का भाव पैदा कर रही थीं तो दूसरी तरफ वहीं पर घुंघरुओं की झंकार मानो जिंदगी को हर पल जीभर कर जीने का खुला आमंत्रण दे रही थीं। जीवन और मृत्यु के फलसफों के एक साथ एक ही तुला पर तुलने का यह अद्भुत नयनाभिराम दृश्य शनिवार को महाश्मशान पर देखने को मिला।
बाबा के दरबार में हिलोरे लेता मस्ती का समंदर और इसके दोनों ओर दुनियावी चिंताओं से गाफिलों की लंबी कतार। कुछ इस पल को काशी के अल्हड़ अंदाज में जीते तो कई इन सबसे पूरी तरह अनजान। अवसर था महाश्मशान नाथ के श्रृंगार महोत्सव की अंतिम निशा का। सुबह जहां बाबा का रूद्राभिषेक किया गया वहीं शाम को श्रृंगार बाद महाआरती की गयी। रात में नगरवधुओं ने मंदिर में स्वरांजलि दी और नृत्य का अनुपम नजराना पेश किया। साथ ही बाबा के मुक्ताकाशीय दरबार में जमकर ठुमके लगाए। शाम के साथ जमी महफिल में भजनों के साथ शुरू हुआ सिलसिला मस्ती के तरानों के काफिले के रूप में रात भर परवान चढ़ता रहा। पूरी रात महाश्मशान में अविनाशी काशी का अल्हड़ अंदाज जारी रहा।
मोक्ष की कामना से बाबा दरबार में आती हैं नगर वधुएं
मान्यता है कि नगरवधुएं मोक्ष की कामना से महानिशा पर बाबा के दरबार में स्वत: नजराना पेश करने आती हैं। अकबर के समय में राजा मानसिंह ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। निर्माण के बाद वहा भजन-कीर्तन होना था पर श्मशान होने की वजह से यहा कोई भी लब्ध कलाकर आने को राजी नही हुआ। बाद में नगर वधुओं ने यहा कार्यक्रम की इच्छा जाहिर की और राजा ने उनकी इस आमंत्रण को स्वीकार कर लिया। तब से यहां नगर वधुओं के नृत्य की परम्परा शुरू हुई। शिव को समर्पित गणिकाओं की यह भाव पूर्ण नृत्याजली मोक्ष की कामना से युक्त होती है।