प्यार से निभाई जा रही दो गांवों में दुश्मनी

ढाई हजार साल बाद भी नहीं मिले पसहीं और गोरखी के दिल
सत्य प्रकाश की रिपोर्ट
मीरजापुर जिले में दो ऐसे गांव हैं जहां सदियों से दुश्मनी निभाई जा रही है। दुश्मनी लाठी-डंडे से नहीं, प्यार से निभाई जा रही है। ये गांव हैं जमालपुर प्रखंड के पसहीं और गोरखीं। इन गावों के लोगों में लाठी-डंडे भले ही नहीं चलते…, भाई-चारा नहीं टूटता…, मगर एक-दूसरे को पसंद नहीं करते। पसही के लोग तो गोरखी का पानी तक नहीं पीते। पसही के ब्राह्मण गोरखी में कर्मकांड और पूजापाठ करने के लिए कदम नहीं रखते। जानते हैं क्यों? दोनों गांवों के बीच अदावत करीब ढाई हजार साल पुरानी है।
पसहीं के 90 वर्षीय राममनोहर पांडेय बताते हैं कि चकिया में महाराज काशी नरेश का स्टेट हुआ करता था। जिस स्थान पर आज पसही गांव है वहां थी राजा शालीवाहन के स्टेट की निष्प्रयोज्य भूमि। सदियों पहले मध्य प्रदेश से दो भाई वेदवन और हरसू अपने 1600 हाथियों के साथ यहां पहुंचे। विश्राम के लिए रुक गए। उपयुक्त स्थान होने के कारण दोनों भाइयों ने अपने हाथियों के बदले काशी नरेश से उक्त जमीन मांगी। काशी नरेश के आग्रह पर राजा शालीवाहन ने उक्त भूखंड दोनों ब्राह्मण भाइयों के हवाले कर दिया।
श्री पांडेय बताते हैं कि राजा शालीवाहन से भूमि मिलने के बाद दोनों भाइयों वहां भव्य महल बनवाया। महाराज काशी नरेश के आमंत्रण पर चकिया स्टेट जाते समय शालीवाहन की राजरानी की नजर वेदवन और हरसू के महल पर पड़ी। राजमहल के बजाय ब्राह्मण भाइयों की आलीशान इमारत देख राजरानी आगबलूला हो गईं। उन्होंने अपने सैनिकों को महल का एक तल गिराने का आदेश दिया। तब दोनों भाई परेशान हो गए। अनुनय-विनय के बावजूद महाराज शालीवाहन नहीं माने और कहा कि वे राजरानी के आदेश पर अतिक्रमण नहीं कर सकते। राजा के व्यवहार से दुखी हरसू चंदौली के चकिया प्रखंड उतरौत से लालपुर होते हुए शहाबगंज-इलिया के रास्ते बिहार में कैमूर की एक पहाड़ी पर पहुंचे और वहां अपने इष्टदेव का ध्यान किया। बाद में जनेऊ से गला घोंटकर अपने प्राण दे दिए।
मीरजापुर के पसहीं के ब्राह्मण आज भी नहीं पीते गोरखी गांव का पानी
इधर, राजा सालिवाहन के सैनिको ने गोरखी गांव के जमीदारों की सहायता से वेदवन के महल का दूसरा तल ध्वस्त करना शुरू कर दिया। इस बीच भाई की मृत्यु की सूचना मिलते ही वेदवन का मन वेदना से व्यथित हो गया। उन्होंने सैनिकों के सामने राजा को चेतावनी दी और कहा कि आपके कुकर्मों के कारण मेरे भाई हरसू की मौत हुई है। तुम्हें ब्रह्म हत्या का दोष लगेगा। राजा ! तुम्हारे कुल सर्वनाश हो जाएगा। यह कहकर पास में ही बैठे गोरखी गांव के एक नाई के उस्तरे से अपने गले को काट लिया। बाद में वेदवन की पत्नी और बेटे ने भी अपनी जान दे दी।
सदियों पुरानी इस कहानी को आगे बढ़ाते हुए पसहीं निवासी राजेश पांडेय बताते हैं हरसू ब्रह्म के कोप से राजा शालीवाहन का सर्वनाश हो गया। जान बचाने के लिए पसही के जमींदार गांव छोड़कर भाग खड़े हुए। गोरखी गांव के नाई का उस्तरा वेदवन की मौत का कारण बना इसलिए इस गांव से पसहीं के लोग नफरत करने लगे। पसही ब्राह्मण और गोरखी कुर्मी बहुल गांव है। दोनों गांवों में नफरत की परंपरा आज भी प्यार से निभाई जा रही है।
राजेश बताते हैं कि वेदवन की मौत के बाद इलाके के ग्रामीणों ने मौके पर वेदवन और उनकी पत्नी व पुत्र का चौरा स्थापित किया। सदियों से चौरे पर पूजा-अराधना हो रही है। बाबा के आशीष के बाद ही पसही गांव में कोई मंगल कार्य होता है। ग्रामीणों की ब्रह्म बाबा में अगाध श्रद्धा है। सच्चे मन से मांगी गई मन्नत यहां हर हाल में पूरी होती है। मंदिर के पीछे एक टीला है, जो कभी हरसू और वेदवन की हवेली हुआ करती थी। टीले में इतिहास और रहस्य दफन हैं। खुदाई में महलों के अवशेष आज भी मिलते हैं।
हरसू ब्रह्मधाम में प्रेत बाधा से मिलती है मुक्ति
बिहार के भभुआ इलाके में हरसू ब्रह्म का धाम है। प्रेत बाधा से मुक्ति पाने के लिए लोग यहां मत्था टेकते हैं। इलाके के लोग बताते हैं कि शारदीय चैत्र नवरात्र में हरसू ब्रह्म के धाम पर भूत-प्रेतों का मेला लगता है। इस धाम को भूतों का सुप्रीम कोर्ट भी कहा जाता है। इस शीर्ष से हर किसी को न्याय मिलता है। हरसू ब्रह्म धाम के पंडा राजकेश्वर त्रिपाठी बताते हैं कि इस अलौकिक धाम में सिर्फ बिहार ही नहीं, यूपी, एमपी, बंगाल और महाराष्ट्र के अलावा अमेरिका, सूरीनाम, कनाडा तक के अप्रवासी भारतीय आकर मत्था टेकते हैं। हरसू ब्रह्म धाम में न सिर्फ प्रेत से मुक्ति मिलती है, बल्कि मनवांछित मनोकामना भी पूरी होती है। मुगल शासन के खात्मे के बाद हरसू ब्रह्म धाम का तेजी से प्रचार-प्रसार हुआ। दीगर बात है कि पसही को वेदवन धाम को ज्यादा शोहरत नहीं मिल पाई है।