तिलिस्म और रहस्यों की खान है स्वामी हरहरानंद महाराज जी का समाधि स्थल
0 सच्चे मन से मांगेंगे तो सब कुछ मिल जाएगा, लेकिन साफ होनी चाहिए नीयत
0 चुनाव जीतने का वरदान भी देते हैं ब्रह्मलीन स्वामी हरहरानंद जी महाराज
विजय विनीत
बनारस में हर देवी-देवताओं की अपनी दास्तां है। हर दास्ता का अपना तिलिस्म है। हर तिलिस्म रोचक और रहस्यमय है। ऐसे ही तमाम रहस्यों की खान है स्वामी हरहरानंद जी महाराज का समाधि स्थल। यह वही स्थान है जहां स्वामीजी ने जिंदा समाधि ले ली थी। स्वामी हरहरानंद जी महाराज की सिद्धपीठ है थाना रामपुर गांव में। फूलपुर से सटा है यह गांव। इसके समीपवर्ती गांव हैं अजईपुर और असबालपुर। मान्यता है कि ब्रह्मलीन स्वामी हरहरानंद जी महाराज के आश्रम में आने वाले हर इंसान की सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं। दुख-तकलीफ, संकट तो बाबा ऐसे हर लेते हैं कि बस पूछिए मत। इनके दरबार से कोई निराश लौटता ही नहीं है। समाधि स्थल पर बाबा की कृपा बरसती है, तभी तो चुनाव लड़ने के इच्छुक लोग आशीर्वाद लेने को यहां आते हैं मत्था टेकने।
करीब पांच बीघे में फैला है ब्रह्मलीन स्वामी हरहरानंद जी महाराज का आश्रम। यहां एक बउली भी है, जिसमें स्वामीजी नहाते थे और जलक्रिया भी करते थे। वो ऐसे संत थे जो अपनी अंतड़ियों को निकालकर पानी में धुलते थे और बाद में अंदर कर लेते थे।
स्वामी हरहरानंदजी महाराज ने जिस जगह जिंदा समधि ली थी वहां एक छोटा सा मंदिर है। बाबा की भक्त पियारी देवी के प्रयास और इलाकाई ग्रामीणों की मदद से इस मंदिर का निर्माण किया गया है। मंदिर का अरघा काफी छोटा है। सिर्फ दो-तीन लोग ही अंदर पूजा-अर्चना कर सकते हैं।
थाना रामपुर के लोग बताते हैं कि मंदिर के नीचे एक बड़ी तिलिस्मी गुफा है। ऐसी गुफा जिसमें आज तक कोई नहीं घुस पाया। गुफा में तिलिस्म ही तिलिस्म है। ख्याल रहे, यहां आप जब भी जाएं तो बहुत अदब से रहें। मंदिर के अंदर स्वामी जी तस्वीर अथवा मूर्ति नहीं, बल्कि उनका विशाल विग्रह है।ऐसा खूबसूरत विग्रह कि देखते ही पत्थर में भी जुम्बिश आ जाए। नास्तिक भी सजदे में गिर जाए। कैफियत में आंखें जार-जार रोने लगे। यह कोई क़िस्सा नहीं, अनेक भत्तों की आपबीती है।
स्वामी हरहरानंद जी महाराज भगवान शिव के भक्त थे। वो जहां शिवलिंग पर पूजा करते थे, वहां उनके भक्तों ने दुर्लभ पंचमुखी शिवजी की मूर्ति स्थापित कराई है। मंदिर के बाहर नंदी भी हैं। इसी मंदिर में मां दुर्गा और गणेश के भी विग्रह हैं। मंदिर के ठीक सामने है यज्ञशाला। स्वामी हरहरानंद के समाधि स्थल पर जाएं तो आस्था और मन शुद्ध होना चाहिए। इस विग्रह पर चढ़ाया जाता है सिंदूरी कपड़ा, फल-माला और किशमिश-बादाम।
स्वामी हरहरानंद के मंदिर में मत्था टेकने से वो सब कुछ मिल जाता है जिसकी कामना लेकर आप वहां पहुंचते हैं। स्वामी जी महाराज का प्रताप ही कुछ ऐसा है। दरअसल इस मंदिर का आभामंडल ख़ास होने की कई वजहें है। स्वामीजी के प्रताप से अनगिनत महिलाओं की सूनी गोदें हरी-भरी हो चुकी हैं। संतान की इच्छुक महिलाएं सालों पुरानी रवायत के चलते यहां आती हैं।
बुजुर्ग बताते हैं कि इलाके के खरगपुर गांव की श्रीमती पियारी देवी (पत्नी स्व.जयदेव प्रसाद तिवारी) नामक महिला स्वामीजी की अनन्न भक्त थीं। इन्हें कोई बच्चा नहीं था। एक रोज मंदिर में बाबा के पास बैठीं। मन द्रवित हो गया। इनकी आंखों से नीर झरने लगे। सुबक-सुबककर घंटों रोती रहीं। बाबा ने सब कुछ जान लिया। उन्होंने आसमान में हाथ उठाया और मुट्ठी छुहारों से भर गया। वही छुहारे पियारी देवी को खाने के लिए दिए कहा,-‘ जाओ अब तुम्हारी गोंद हरी हो जाएगी। सिर्फ एक बेटा ही पैदा होगा। दूसरा नहीं। तुम्हारे भाग्य में संतान सुख था ही नहीं। तुम्हारी भक्ति और कर्म से तुम्हारा भाग्य बदल जाएगा।’
स्वामीजी की बातें सच हुईं। साल भर के अंदर पियारी देवी की गोंद हरी हो गई। उन्होंने एक सुंदर से बच्चे को जन्म दिया। नामकरण स्वामीजी ने ही किया-जगदीश। स्वामीजी के प्रताप से जन्मे खरगपुर के जगदीश तिवारी हर गुरुवार को मंदिर में जरूर आते हैं और बाबा के दरबार में सपत्नीक मत्था टेकते हैं।
गुरु पूर्णिमा के दिन यहां स्वामी हरहरानंद के आश्रम में मेला लगता है। इलाके भर के लोग अपने मन की मुरादें मांगने के लिए यहां मत्था टेकने आते हैं। यहां जो भी आता है खाली हाथ नहीं लौटता। सबकी मुरादें पूरी हो जाती हैं। जगदीश तिवारी के पुत्र वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार तिवारी कहते हैं कि इस सिद्धपीठ पर कोई विधर्मी टिक नहीं सकता। बुरी नीयत रखने वाले बहुत से लोग आश्रम में आए, पर सबका नाश हो गया। कोई बचा ही नहीं। बेइज्जत हुआ या फिर दुख झेला। मन, कर्म और वचन से बाबा के दरबार में मत्था टेकने वाला आज तक खाली हाथ लौटा ही नहीं। स्वामीजी अपने भक्तों को विपत्तियों से बचाते हैं।
राजकुमार तिवारी यह भी बताते हैं कि मंदिर के सामने पीपल का एक विशाल वृक्ष है। इस वृक्ष के गिरे हुए पत्तों को पूजा स्थल पर रखने से सारी बलाएं भाग खड़ी होती हैं। जिस बौलिया में स्वामी जी स्नान करते हैं उसके पानी के स्पर्श से कुष्ठ रोग का खात्मा हो जाता है। जनता के सहयोग से पियारी देवी ने बउलिया में पक्के घाट का निर्माण कराया है। वो बताते हैं कि स्वामी जी के नाती सुधाकर तिवारी जी गाजियाबाद में रहते हैं और वो समय-समय पर यहां आते-जाते रहते हैं। इस मंदिर पर कब्जा करने के लिए कुछ अराजक तत्वों ने कई बार प्रयास किया, लेकिन ग्रामीणों के कड़े प्रतिरोध के चलते सभी को मुंह की खानी पड़ी। बुरे विचार लेकर यहां जो भी आया, दंड झेला और उसका नाश हो गया।
कौन थे स्वामी हरहरानंद जी महाराज?
स्वामी हरहरानंद जी महाराज मूल रूप से आजमगढ़ जनपद के अवधा सरावां गांव के मूल निवासी थे। इनका असली नाम था विंदेश्वरी जी महाराज। इन्होंने भागवत तपस्या में अपनी समूची जिंदगी बिता दी। इनके भक्त जो कुछ लेकर जाते, वही खाकर वह रह जाते थे। हर वक्त साधना में रहते थे लीन। 25 अप्रैल 1950 को उन्होंने जिंदा समाधि ले ली थी। इससे पहले उन्होंने सरकार से आग्रह किया था कि उन्हें समाधि लेने की अनुमति दी जाए, लेकिन तत्कालीन कलेक्टर ने उन्हें ऐसा करने के लिए परमीशन नहीं दिया। बाद में बाबा ने अपने शरीर को स्थूल बनाया और अपने भक्तों के सामने समाधि ले ली।
स्वामी हरहरानंद की महाराज के अनन्य भक्त धरांव निवासी नक्षत्रधारी सिंह और भृगुनाथ शुक्ल कहते हैं कि अगर आप के मन कोई इच्छा हो तो उसकी पूर्णता की कामना लेकर जाएं तो आप कतई निराश नहीं लौटेगें। वो बताते हैं कि महाराज जी के समाधि स्थल पर लगातार पांच वृहस्पतिवार मत्था टेकने के बाद कोई भी संकल्प लें तो वो जरूर पूरा हो जाता है। साथ ही महिलाओं की सूनी गोंद हरी हो जाती है और चुनाव लड़ने वालों को विजयश्री का वरदान देते हैं बाबा। यकीन मानिए, मुराद तो जरूर पूरी होगी, लेकिन अराधना के लिए जरूरी है कि आपका मन शुद्ध हो और आप गरीबों और निराश्रितों के प्रति आस्थावान हो। कुछ ऐसी बातें बताते हैं रामपुर के राम सागर पांडेय और धारू पट्टी के चंद्रभूषण।
अजईपुर के भामू पांडेय, असवालपुर के मुन्ना सिंह बताते हैं कि पिंडरा इलाके में सियासत में वही लोग कामयाब होते हैं, जो बाबा की समाधि स्थल पर पहुंचकर मत्था टेकते हैं। पूर्व विधायक स्व.ऊदल कम्युनिष्ट विचारधारा के नास्तिक इंसान थे, लेकिन वाबा की समाधि पर जरूर आते थे। बाद में वो पर्चा भरते थे और चुनाव जीतते थे। पूर्व विधायक अजय राय की भी इस सिद्धपीठ में गहरी आस्था रही है। स्वामीजी के प्रति अगाथ श्रद्धा के चलते थाना रामपुर, अजईपुर और असबालपुर में श्री राय ने काफी विकास कार्य कराया है। मंदिर के लिए संपर्क मार्ग बनवाया था और एक हैंडपंप, विद्युत कनेक्शन सहित आदि कार्य कराया था। मंदिर में एक पुलिस अफसर ने यज्ञशाला का निर्माण कराया तो वो तरक्की पा गए। साथ ही रूके हुए उनके सभी काम पूरे हो गए।
कैसे पहुंचे स्वामी जी के आश्रम में?
ब्रह्मलीन स्वामी हरहरनंद जी महाराज के आश्रम में मत्था टेकने और अपने मन की मुरादें पूरी करना चाहते हैं तो बाबतपुर एयरपोर्ट से करीब सात किमी आगे पिंडरा की ओर आइए। सड़क के किनारे है थाना रामपुर गांव। हाईवे पर ही आश्रम को इंगित करने वाला एक छोटा से बोर्ड लगा है। वहीं से उत्तर तरफ की ओर एक कच्ची सड़क जाती है। करीब तीन सौ मीटर अंदर जाने पर है बाबा का विशाल आश्रम। आश्रम पांच बीघे में फैला है, जिसमें तरह-तरह के पेड़-पौधे लगे हैं।
अगर आप स्वामी जी के मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए जाएं तो फूल और सूखे मेवे जरूर लेकर जाएं। अगरबत्ती हो तो और भी अच्छा है। बाबा भोले को कच्चा चावल अर्पित करें। अगर आप धनवान है तो गांव के गरीबों को कुछ न कुछ जरूर बांट दें, मन की सभी मुरादें पूरी हो जाएंगी। बाबा का प्रताप कुछ ऐसा है कि यहां सच्चे मन से जो भी मांगेंगे, जरूर मिलेगा। यकीन कीजिए और एक बार दिल से स्वामी हरहरनांद जी महाराज की समाधि स्थल पर मत्था टेकर तो आइए। खुद-ब-खुद पता चल जाएगा बाबा की भक्ति-शक्ति और उनके प्रताप का।