बजटः मोदी ने हटाई किसानों की आंखों से आंसुओं की धुंध
मेहनत करने वाले अन्नदाता के लिए खोला तरक्की का नया गलियारा
विजय विनीत
मोदी सरकार ने बजट में उन किसानों के लिए तरक्की का विशाल गलियारा दिया है जो हरित क्रांति के लिए हाड़तोड़ मेहनत कर रहे हैं…। खेती किसानी में अपने भविष्य का सपना देख रहे हैं…। अपनी उपज को दुनिया भर में पहुंचाने के लिए विकास की नई इबारत लिखने की कोशिश कर रहे हैं…। नए साल के आम बजट ने किसानों के लिए असीमित संभावनाएं जगाई है। साथ इस बात पर जोर दिया है कि किसान खुद अपनी तरक्की की कहानी लिखें। खेती को व्यापार के रूप में विकसित करें। अपने कृषि उत्पाद को दुनिया भर में भेजकर मोटा मुनाफा कमाएं।
मोदी सरकार के बजट पर यह नजरिया है देश के जाने-माने कृषि अर्थशास्त्र वैज्ञानिक प्रो.साकेत कुशवाहा का। पूर्व कुलपति प्रो.कुशवाहा मौजूदा समय में बीएचयू के राजीव गांधी साउथ कैंपस के आचार्य प्रभारी है। प्रो.साकेत नए बजट को तरक्की बजट का मानते हैं। कहते हैं कि सरकार ने बजट में किसानों की उपज पर लागत से 50 फीसदी अधिक समर्थन मूल्य (मिनिमम सपोर्ट प्राइज) देने बात कही है। अब से पहले सिर्फ लागत मूल्य के आसपास ही समर्थन मूल्य घोषित किया जाता था, जिससे किसानों की तरक्की का सपना चकनाचूर हो जाता था। कभी ज्यादा प्याज का उत्पादन किसानों को रुला देता था तो कभी टमाटर और आलू। तीनों उत्पादों की कीमतों को स्थिर रखने के लिए बजट में आपरेशन ग्रीन एग्रीकल्चर शुरू की योजना बनाई गई है। इसके लिए सरकार ने 500 करोड़ अलाट किया है। सरकार का यह कदम किसानों के लिए न सिर्फ हितकर है, बल्कि उन्हें अपरिहार्य स्थितियों में लड़खड़ाने से बचाने की कोशिश की है। ज्यादा कृषि उपज होने पर किसानों को अपने फल और सब्जियों को संरक्षित करने में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। खाद्य प्रसंस्करण के लिए मौजूदा बजट में 1400 करोड़ रुपये का इंतजाम किया गया है। इस धन से देश में बड़े पैमाने पर खाद्य प्रोसेसिंग सेंटर खोले जा सकेंगे।
प्रो.कुशवाहा के मुताबिक बजट में 2022 तक किसानों की आय 30 मिलियन से बढ़ाकर 100 मिलियन करने की पुख्ता योजना बनाई गई है। इसके अलावा कृषि उत्पादों को विदेश भेजने की नीति को सरल बनाने की कोशिश की गई है। भारत अब अमेरिका समेत दुनिया के तीस बड़े देशों में अपने कृषि उत्पाद को आसानी से निर्यात कर सकता है। यूरोपीय बाजार की चावल लाबी ने अपने यहां बासमती को प्रतिबंधित करा दिया है। बहाना फफूंदनाशक दवाओं के इस्तेमाल का बनाया गया है। अमेरिका समेत कई देशों में इस पर बंदिश नहीं है। वहां बासमती जैसे उत्पादों को आसानी से भेजने के लिए सरल नीति तैयार की गई है। बांस अभी तक वन उपज माना जाता था। मोदी सरकार ने इसे कामर्शियल घास का दर्जा देने की उम्दा पहल की है। बांस की खेती के लिए बजट में 1290 करोड़ का इंतजाम किया गया है। जिन गांवों में बड़े पैमाने पर सब्जी और मसालों की खेती होती है वहां कलस्टर समूह गठित कराने के लिए बजट में ठोस प्रबंध किया गया है। सरकार चाहती है कि विदेशी खरीददार सीधे किसानों के खलिहानों तक पहुंचें। इससे सरकार को मूल्य निर्धारण करने में भी आसानी होगी।
मोदी सरकार ने किसानों के लिए ई-बाजार खोजने पर जोर दिया है। साथ ही इस साल के अंत तक 585 गांवों को ई-बाजार से जोड़ने का निर्णय लिया है। प्रो.कुशवाहा के मुताबिक बजट में देश के 90 जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में सिंचाई के नए साधन विकसित करने का निर्णय लिया है। ये वे जिले हैं जहां सिंचित क्षेत्रफल सिर्फ तीस फीसदी है। इन्हें बैकवर्ड सिंचित जिला माना गया है। सिंचाई योजनाओं को बढ़ावा देने के लिए 2600 और मत्स्य व दुग्ध उत्पादन के लिए 10,000 करोड़ का बजट आवंटित किया गया है। सरकार ने पहली बार बड़ी पहल की है कि गांव के युवा कृषि को रोजगार का बड़ा जरिया बनाएं। शहर की ओर न भागें। जब तक गांवों में हरित क्रांति नहीं आएगी, तब तक देश का सकल घरेलू उत्पाद दर ( जीडीपी) नहीं बढ़ सकती।
मोदी सरकार ने 24, 42, 213 करोड़ के आम बजट में कृषि के लिए कुल आठ फीसदी धन का प्रावधान किया है। पिछले साल तक यह सिर्फ छह फीसदी था। पिछले साल का कृषि बजट करीब 1.87 लाख करोड़ का था, जिसे बढ़ाकर 2.3 लाख करोड़ किया गया है। कृषि को बड़े रोजगार के रूप में विकसित करने के लिए इस साल 23 फीसदी ज्यादा धन की व्यवस्था की गई है।
जो नहीं है बजट में
वाराणसी। मोदी सरकार ने किसानों के लिए भले ही मनलुभावन बजट पेश किया है, लेकिन उसे धरातल पर उतारने के लिए पुख्ता प्रबंध करने की भी जरूरत है। प्रो.साकेत कुशवाहा के मुताबिक बजट को जमीनी धरातल पर उतारने में अभी आठ महीने लग जाते हैं। सरकारी मशीनरी पर दबाव बनाना पड़ेगा कि वह 45 दिनों के अंदर बजट को धरातल पर उतारें। किसानों को परेशान करने वाले व्यावसायिक बैंकों पर लगाम कसने के लिए बजट में पुख्ता इंतजाम करने की जरूरत है। किसानों का शोषण करने वाले बैंकों पर अंकुश लगाने के लिए नई गाइडलाइन जारी की जानी चाहिए। उद्यमों की तर्ज पर किसानों को भी बैंकों से सहूलियत दी जानी चाहिए। उन्हें ऋण न देने का तरीका ढूंढने वाले बैंकों के लिए ऋण गारंटी योजना लागू करने की जरूरत है। इसके बगैर सरकार न तो किसानों का भरोसा जीत पाएगी और न ही कृषि बजट को धरातल पर उतार पाएगी।