थियेटर ओलंपिक में भोजपुरी के शेक्सपीयर भिखारी ठाकुर
बटोही में याद किए याद किए गए भोजपुरी के पुरोधा
बनारस में आयोजित थियेटर ओलंपिक में बटोही की प्रस्तुति बेहद दमदार रही है। दरअसल भिखारी ठाकुर की लंबी रचनात्मक यात्रा का आख्यान है बटोही। इस नाटक के जरिए भोजपुरी के पुरोधा भिखारी ठाकुर को याद किया गया। निम्न जाति का होने के कारण उनके साथ किए गए दुर्व्यवहार के अतिरिक्त उनकी पत्नी और बच्चे की असामयिक मृत्यु, युवा भिखारी ठाकुर के लिए असहनीय सिद्ध होती है। वे अपने पैतृक गांव क़ुतुब पुर को छोड़ कर फ़तेहपुर में बस जाते हैं। बाद में वे मंतरनी से विवाह करते हैं। अपने पुत्र और पुत्री के जन्म के बाद दंपति भिखारी ठाकुर के पुस्तैनी गांव लौटते हैं। उनकी वापसी के बाद शीघ्र ही गांव भयंकर सूखे की चपेट में आ जाता है।
अपने परिवार को वहीं छोड़कर वे खड़गपुर आ जाते हैं, और अंततः कोलकाता पहुंचते हैं। एक बार कोलकाता से लौट आने के बाद वे रामलीलाओं का आयोजन शुरू करते हैं, और बाद में, ग्रामीण समुदाय की संवेदना को जगाने वाले विषयों और कथानकों को उठाते हुए, अपने स्वयं के समूह ‘नाच पार्टी’ की स्थापना करते हैं। अपने नाटकों से वे जल्ह ही विख्यात और लोकप्रिय हो जाते हैं। और अपने जीवन काल में ही वे एक किंवदंती बन जाते हैं।
बनारस के नागरी नाटक मंडली में थियेटर ओलंपिक में बटोही की प्रस्तुति ने दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ी। निर्देशक अभय सिन्हा पिछले 35 सालों से रंगमंच से जुड़े हुए हैं। अपनी प्रस्तुतियों में वे बिहार के लोक संगीत और नृत्यों को प्रयोग करते हैं और अपने प्रांत की लोक संस्कृति को विश्व के अनेक भागों तक ले जाने में सफल रहे हैं। वे आकाशवाणी और दूरदर्शन के कलाकार भी हैं। अभय सिन्हा को कलाश्री, अनिल मुखर्जी सम्मान, आर.पी. तरुण सम्मान, डॉ. षंकर दयाल सिंह सम्मान, पद्मश्री विश्णु श्रीधर वाकनकर पुरस्कार जैसे अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। वे 1981 से प्रांगण सांस्कृतिक संगठन, पटना बिहार के संस्थापक सचिव है।
नाटककार हृशिकेश सुलभ का जन्म बिहार के छपरा ज़िले के लहेजी गांव में 1955 में हुआ था। उनकी कहानियां अंग्रज़ी और अन्य कई भाषाओं में प्रकाषित और अनूदित हुई हैं। ‘कथादेश’ के वे स्तंभकार रहे हैं। उन्हें इन्द्र शर्मा कथा सम्मान, डॉ. सिद्धनाथ कुमार स्मृति सम्मान और 2010 में रामवृक्ष बेनीपुरी सम्मान प्रदान किए गए हैं। प्रांगण के ख़ाते में लगभग 150 मंच-प्रस्तुतियां हैं। भारत भर में प्रर्दशन के अतिरिक्त इसके लोक कलाकारों मॉरिशस, हवाना (क्यूबा), त्रिनिदाद ऐण्ड टोबैगो (वेस्टइंडीज़) और ढाका (बांग्लादेश) में भी अपनी प्रस्तुतियां दी हैं।