खतरे में काशी के गंगा घाटों का वजूद

खतरे में काशी के गंगा घाटों का वजूद

खतरे में धरोहर

कहीं बड़े- बड़े पत्थर तो कहीं बालू-मिट्टी का ढूहा

जलस्तर घटने से स्नानार्थियों के समक्ष संकट

देश ही नहीं विदेशों में भी काशी की पहचान घाटों से रही है। कोई भी पर्यटक जब बनारस आता है तो सबसे पहले गंगा घाटों को ही देखना चाहता है। आज काशी के घाटों के समक्ष उसके अस्तित्व का संकट आ खड़ा हुआ है। बरसों पुराने  घाटों का वजूद खतरे में है। वजह गंगा घाटों को लगातार छोड़ती जा रही है। राजघाट से लगायत अस्सी तक कमोवेश यही हालत है। गंगा का जल घाटों को छोड़ कर काफी दूर चला गया है। गंगा के किनारे घाटों की नींव दिख रही है। कहीं पर बड़े-बड़े पत्थर तो कहीं मिट्टी-बालू का ढूहा दिख रहा है। गंगा का जलस्तर घटने से सबसे बड़ी समस्या स्नानार्थियों के समक्ष हो गयी है। घाट खाली- खाली सा दिख रहा है। पानी एकदम नीचे होने से कोई भी सही ढंग से स्नान नहीं कर पा रहा है।

कलिकाल का प्रभाव काशी के घाटों को मां गंगा के सानिध्य से दूर होना इस पवित्र नगरी के एक खतरे की घंटी की तरह परिलक्षित हो रही है। वैसे देखा जाए तो काशी की पहचान काशी विश्वनाथ, गंगा और घाटों से है। एक तरफ जहां गंगा अपने पवित्र अमृतमय जल से बाबा काशी विश्वनाथ का जलाभिषेक और जनमानस को पवित्र करते हुए यहां के घाटों को अपने कल-कल ध्वनि से वैसे ही मुस्कराते हुए पवित्र करती थी, जैसे कोई मां अपने पुत्र को मुस्कराते हुए माथे से चूम लेती है। वर्तमान समय में गंगा का घाटों से अलग हो जाना मातृ सत्ता की उपेक्षा करना है।

घाटों को लगातार छोड़ती जा रही है गंगा, घाटों की दिख रही नींव

गंगा सेवा निधि के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती की माने तो काशीवासी यदि मां गंगा के अस्तित्व को कायम रखने के लिए त्याग व समर्पण के साथ नहीं चले तो वह दिन दूर नहीं जब गंगा जहां वह घाटों पर अठखेलियां करती थी वह वीरान हो जायेगा।  मुताबिक टिहरी में गंगा को कैद करने की वजह से यह स्थिति हुई है। उनका कहना है कि अब तो गंगा को प्रणाम कर लीजिए क्योंकि यह यहां से जाने वाली हैं।

गंगा के प्रमुख प्रह्लादघाट पर घाट से लगभग 12 फुट जलस्तर घट चुका है। घाटों के नींव दिखायी पड़ रहे है। जलस्तर घट जाने से स्नान करने वाले घबरा रहे हैं। लोगों का यह तक कहना है कि गंगा का जलस्तर इतना घट जाना एक बहुत बड़ा आश्चर्य है। पिछले कई सालों से यह स्थिति नहीं आयी थी। प्रह्लादघाट पर जहां सिर्फ महिलाएं स्नान करती हैं वहां हमेशा गर्दन तक पानी रहता था लेकिन अब वह स्थिति नहीं रह गई है। यही हाल उसके बगल में रानीघाट का है जहां पर गंगा के किनारे सिर्फ बड़े-बड़े पत्थर दिख रहे हैं।

 नयाघाट, निषादघाट, पंचअग्नि अखाड़ा, भैंसासुरघाट से लेकर प्रमुख राजघाट की यही स्थिति है। यहां पर घाट नाम की कोई चीज नहीं रह गयी है। लगभग यही हालत त्रिलोचनघाट, गायघाट की भी है। दुगार्घाट के नीचे बालू का रेता पड़ गया है। रामघाट, बालाघाट, जटारघाट पर जो सीढ़ियां बनायी गई थी वह उखड़ गयी है।  स्नानार्थियों के पैर स्नान करते समय फंस जा रहे हैं। दुगार्घाट, ब्रह्माघाट, बूंदीपरकोटाघाट पर गंगा घाट का पानी छोड़ कर दूर चली गयी है। रामघाट व ब्रह्माघाट पर बालू की रेती पड़ गयी है।

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