सोशल मीडिया में बुस्ट हुई पांड़ेजी की गाली
पत्रकार विजय विनीत का चर्चित कालम
इन दिनों
बनारस की गलियों में गालियों की नई गाइडबुक
दूरदर्शी ने सुना है कि भाजपा के कद्दावर नेता पांड़ेजी ने जब से बनारस के एक विधायक को चोर बताया है तब से अधिसंख्य माननीय बात-बात में गालियों का तड़का लगाने लगे हैं। एक्ट्रेस विद्या बालन की फिल्म ‘बेगम जान’ की तरह। पुरबिया नेताओं को लगता है कि है कि यूपी में इन दिनों गालियां ही बिकती हैं। गालियां नेता बनाती हैं। गालियां विधायक बनाती हैं। मंत्री बनाती हैं। अपने पांड़ेजी पूर्वांचल में सबसे बड़े पढ़ाकू नेता हैं…. बड़ी डिग्री भी है। बनारस में डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा की मौजूदगी में इलाकाई विधायक को उन्होंने निर्लज्ज तरीके से चोर बता दिया। तभी से विधायकजी की बिरादरी बिदकी हुई है। पांड़ेजी को पानी पी-पीकर गरिया रही है। कसम खा रही है कि वे अबकी भाजपा को वोट नहीं देंगे। विधायक की पार्टी सुभासपा के नेता भी कम नहीं। वे भी पांड़ेजी पर खूब गालियां उलीच रहे हैं। उन्हें महाचोर बता रहे हैं।
मंगरू चचा को लगता है कि भगवान कृष्ण पर भी चोरी के आरोप लगे थे। माखन चोरी के, गोपियों के कपड़े चुराने के। हर बनारसी जानता है कि घिनौनी, दिखावटी, बेशर्म, क्रूर गालियां तो निर्लज्ज लोग ही देते हैं। अपने पांड़ेजी का भी कोई कुसूर नहीं है। कुसूर तो मीडिया का है। मीडिया को तो सियासी दलों के फायरब्रांड और मुंहफट नेता ही भाते हैं। तभी तो विकास योजनाओं के उद्घाटन अथवा टीवी के लाइव शो में नेता ऎसी गालियां उलेचते हैं कि हिट हो जाएं। उनकी गालियां, उनके शर्मनाक बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो जाएं। पांड़ेजी की तरह फेसबुकिया लाइक में चोर शब्द बुस्ट हो जाए। रही बात अपशब्दों की तो यह चलन नया नहीं है। कौन नेता कहां क्या बोल जाए उसे खुद पता नहीं होता।
चचा को लगता है कि विधायकजी को चोर बताकर पांड़ेजी खुद ऐसे जाल में फंस गए हैं, जिससे निकल पाना उनके लिए आसान नहीं है। एमएलए के समर्थक अब पांड़ेजी पर एलानिया आरोप चस्पा कर रहे हैं कि वे विधायक निधि में मनमानी और हिस्सेदारी चाहते थे। उनकी और उनके चहेतों की डिमांड पूरी न होने पर बिदके हुए हैं। उनके इशारे पर ही विधायक के खिलाफ चंडुल आंदोलन शुरू हुआ। आंदोलन का लक्ष्य विधायक नहीं, सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर का कान उमेठना भी था। पांड़ेजी ने चोर शब्द को नया अर्थ क्या दिया, बनारस की गलियों में गालियों की नई गाइड बुक खुल गई। वैसे भी पूर्वांचल में सबसे अधिक गालियां दलितों और पिछड़ों पर हैं। विधायकजी दलित हैं, इसलिए बेशर्म और घिनौने तरीके से पांड़़ेजी ने उन्हें चोर बता दिया। वैसे तो गांवों में असभ्य औरतें भी रोजमर्रा के मामूली झगड़ों में नट्टिन, चमारिन, कंजरिन, खनगिन, कस्बिन, भटियारिन कह कर कोसती हैं। दूरदर्शी का मानना है कि समाज को सुधारना है तो सबसे पहले नेताओं को बदलना होगा। भाषा तो उसके बाद बदलेगी।
बनारसी नेताओं को शायद यह पता नहीं कि सर्वविद्या की राजधानी बनारस गालियों का नहीं, गलियों का शहर है। बनारस की गलियों में भारत का इतिहास है। गलियों में बंगाल है, मद्रास है, महाराष्ट्र है। गुजरात, आंध्र, उड़ीसा और कर्नाटक भी है। भैरोनाथ गली, शिवाला गली, विश्वनाथ गली, तुलसी गली, कचौड़ी गली, ठठेरी गली, चौरस्ता गली, खिड़की गली, गुदड़ी गली, दिगम्मबरी गली, लट्टू गली, शुकुल गली, पत्थर गली, लक्ष्मण गली, हाथी गली, हनुमान गली, ढुंढिराज गली, संकठा गली, भूतेश्वर गली, हनुमान गली, चौखंभा गली, खोवा गली, दालमंडी गली, नारियल बाजार गली, घुघुरानी गली, गोविंदपुरा गली, रेशम कटरा गली, विंध्यवासिनी गली, भूतही इमली की गली, सप्तसागर गली, आसभैरव गली, कर्णघंटा गली, गोला दीनानाथ गली, गोपाल मंदिर गली, पत्थर गली, हनुमान गली, तुलसी गली, गुदड़ी गली, शिवाला गली, खिड़की गली, जुआरी गली, ढुंढिराज गली, संकठागली, पशुपतेश्वर गली, पंचगंगा गली, चौरस्ता गली, नेपाली गली, सिद्धमाता गली, कामेश्वर महादेव गली, ब्रह्मापुरी गली, सिद्धेश्वर गली, त्रिलोचन महादेव गली, पाटन दरवाजा गली, लट्टू गली, नइचाबेन गली, नचनी कुआं गली, चित्रघंटा गली, गढ़वासी टोला गली, भारद्वाजी टोला गली, हाथी गली, कातरा गली, चौखंभा गली, सुग्गा गली, गोला गली, ननपटिया गली, नरहरपुरा गली, अगस्तकुंडा गली, मणिकर्णिका गली, शवशिवा काली गली, बड़ागणेश वाली गली, कुंज गली, चूहा गली, हाथी गली, उंचवा गली, सूतटोला गली, बंगाली बाड़ा गली, शीतला गली, गणेश गली, काठ गली, दूध बिनायक गली, नीलकंठ गली, राजमंदिर गली, हौज कटोरा गली, बुचई गली, दस पुतरिया गली, भंडारी गली, ढुनमुनाट गली, पाटन दरवाजा गली, खत्री गली, चौधरी धर्मशाला गली, दूध कटरा गली, संतोषी माता गली, राजराजेश्वरी गली, पांडेय गली, मिसिर गली, केदार गली, कोहराने गली, सोना साव वाली गली, बीबी हटिया गली, दलहट्टा गली, दंडपाणि गली…। और न जाने कितनी गलियों में गलियां हैं बनारस में।
खुली गलियां, बंद गलियां, घुमावदार गलियां, पेचदार गलियां, बोलती गलियां, अनबोली गलियां, भाग्यवान गलियां, अभागी गलियां, सुबह-शाम धुएं से भरी गलियां, निखालिस सन्नाटे को चीरती गलियां, कहकहों से खनकती गलियां। बनारस की इन गलियों में जनंत-मंतर है। भूल भुलैया है। गीत-संगीत है। मैना बाई, राजेश्वरी बाई, विद्याधरी बाई, काशी बाई, जद्दन बाई, शिवकुंवर बाई, तौसी बाई, सुग्गन बाई, जानकी बाई, केसर बाई का अदब और सलीका है। हुस्ना बाई जैसी तवायफों के घुंघुरुओं की झनकार की रवायत है। रस है और अलंकार है। बनारस की ये गलियां गालियां नहीं देती। कहकहे लगाती हैं। शंख और घंटों से झनकती हैं। गीतों से रसमसाती हैं। बीच-बीच में अजान भी सुनाती हैं। बूटी छानती हैं। दूध पीती हैं। रसगुल्ले खाती हैं। रबड़ी-मलाई चाभती हैं। दंड मारती हैं। अक्सर जो गली आपको घर तक पहुंचाती है, वही गली आखिरी दिन श्मशान तक ले जाती हैं।
और अंत में —–