महाकुंभ में डूबी काशी: भीड़, जाम और तीर्थ यात्रियों की घोर उपेक्षा से पीएम मोदी की छवि पर सवाल-ग्राउंड रिपोर्ट

प्रयागराज के पवित्र कुंभ स्नान के बाद तीर्थयात्री बनारस में बाबा विश्वनाथ के दर्शन और गंगा स्नान का पुण्य कमाने पहुंच रहे हैं। लेकिन इस बार आस्था की इस यात्रा का स्वरूप कुछ और ही दिखाई दिया। बनारस, जो शांति, आध्यात्म और सांस्कृतिक गरिमा का प्रतीक माना जाता है, वहां हर तरफ अव्यवस्था और बेचैनी पसरी हुई है। चौरतरफा भीड़, हर तरफ जाम और तीर्थयात्रियों की घोर उपेक्षा से बनारस के सांसद एवं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इमेज पर बट्टा लग रहा है। बाहर से आने वाला हर तीर्थयात्री एक ही सवाल कर रहा है कि क्या मोदी की काशी ऐसी ही है?
गंगा किनारे खड़ी प्रियंका नामक एक महिला की आंखों में थकान साफ झलक रही थी। जब मैंने पूछा कि वह इतनी परेशान क्यों दिख रही हैं, तो उनका जवाब मेरे लिए चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा, “हमने सोचा था यहां आकर बाबा विश्वनाथ और कालभैरव के दर्शन करेंगे, गंगा स्नान करेंगे, और पुण्य कमाकर शांति से घर लौटेंगे। लेकिन यहां तो ना खाने की व्यवस्था है, ना ठहरने की। मजबूर होकर बच्चों के साथ पूरी रात गाड़ी में बितानी पड़ी।”

प्रियंका कोई अकेली कहानी नहीं है। घाटों पर, सड़कों पर, और मंदिरों के आसपास सैकड़ों लोग भूखे-प्यासे, जगह-जगह भटकते नजर आ रहे हैं। होटल, गेस्ट हाउस और धर्मशालाएं पूरी तरह भरी हुई हैं। जिनके पास रहने की जगह नहीं, वे खुले आसमान के नीचे ठंडी रातों में अपने परिवार के साथ बैठने को मजबूर हैं। तेलियाबाग से लगायत मिंट हाउस तक रात में सड़कों के किनारे खुले में सैकड़ों लोग गाड़ियों और फुटपाथों पर रात गुजार रहे हैं। इनकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। बनारस के रेलवे स्टेशनों पर भीड़ का आलम यह है कि कहीं भी पैर रखने की जगह नहीं है। चौतरफा अव्यवस्था और तीर्थयात्रियों की दुर्दशा एक नई कहानी कह रही है।
गाड़ियों में सोने को मजबूर तीर्थयात्री, सड़कों की पटरी पर परिवार समेत रातें बिताने वाले लोग—यह दृश्य किसी के भी दिल को झकझोर देने के लिए काफी है। खाने-पीने की समस्या इतनी विकट हो गई है कि बहुत से लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं। होटल और धर्मशालाएं पूरी तरह भरी हुई हैं, और जो खाली हैं, वहां मनमाना किराया वसूला जा रहा है। कुछ दुकानदारों ने अपनी दुकानों के शटर खोलकर गद्दे डाल दिए हैं और इन मजबूर तीर्थयात्रियों से दो-दो हज़ार रुपये तक वसूल रहे हैं।

भूख और बेबसी की कहानी
बनारस के गोदौलिया चौराहे पर सीता नामक एक महिला तीर्थयात्री ने आंखों में आंसू लिए कहा, “हमने सोचा था कि बनारस आकर शांति मिलेगी, लेकिन यहां तो बाबा के दर्शन से पहले भूख और बेबसी से लड़ना पड़ रहा है। बच्चों ने सुबह से खाना नहीं खाया।” बनारस में दुकानों के शटर के भीतर गद्दे डालकर रात बिताने के लिए 2,000 रुपये तक वसूले जा रहे हैं। यह देखकर कोई भी शर्मिंदा हो जाए कि बनारस जैसे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक शहर में अब लूट-खसोट का आलम है।
बनारस की पहचान इसकी सादगी और मेहमाननवाज़ी है। यहां का हर निवासी बाहर से आने वालों को अपने परिवार का हिस्सा मानता है। लेकिन इस बार यहां के सीधे-साधे लोग भी परेशान और खामोश दिखे। स्थानीय लोग कह रहे हैं कि “हम कुछ कहें तो कैसे कहें? भीड़ इतनी है कि खुद के लिए जगह बचाना मुश्किल हो गया है।”
यह देखना बेहद दुखद है कि जिन तीर्थयात्रियों ने इतनी आस्था के साथ यहां का रुख किया, उन्हें हर कदम पर लूटा जा रहा है। ऑटो और नाव चलाने वालों की मनमानी भी चरम पर है। अस्सी घाट से काशी विश्वनाथ मंदिर तक नाव से जाने के लिए जहां सामान्य दिनों में 50-100 रुपये लगते थे, वहीं अब 200-300 रुपये मांगे जा रहे हैं। एक नाविक ने खुलेआम कहा, “भीड़ इतनी है कि पैसे न देने वाले तो ऐसे ही छोड़ दिए जाएंगे।” यह सुनकर तीर्थयात्री लाचार नजर आए, क्योंकि उनके पास और कोई विकल्प नहीं था।
इस अफरातफरी के बीच सबसे अधिक तकलीफ बुजुर्गों और बच्चों को हो रही है। कई वृद्ध तीर्थयात्री, जो गंगा स्नान के लिए घंटों घाटों पर बैठे रहे, भोजन और पानी की कमी से परेशान दिखे। एक वृद्ध व्यक्ति ने रोते हुए कहा, “हमने पूरी जिंदगी भगवान का नाम लिया, सोचा था कि यहाँ आकर शांति मिलेगी। लेकिन इस भीड़ और अव्यवस्था ने हमारी उम्मीदें तोड़ दी हैं।”

अफसरों की नीयत पर सवाल
बनारस के स्थानीय नागरिक भी इस अव्यवस्था के शिकार हैं। हर चौराहे पर जाम की स्थिति है। एंबुलेंस तक समय पर नहीं पहुंच पा रही है। अस्पताल जाने वाले मरीज और उनके परिजन इस भीड़ में फंसे रह जाते हैं। कई परिवारों ने बताया कि उनके बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं, क्योंकि स्कूल बंद कर दिए गए हैं। लेकिन उन बंद स्कूलों का उपयोग तीर्थ यात्रियों के ठहरने के लिए भी नहीं किया जा रहा है। एक स्थानीय बुजुर्ग ने कहा, “हमने बनारस को हमेशा शांत और व्यवस्थित देखा था, लेकिन ऐसा लुंज-पुंज प्रशासन पहले कभी नहीं देखा।”
यह दुखद है कि बनारस, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है, वहां की यह स्थिति सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर रही है। क्या प्रशासन को यह अंदाजा नहीं था कि कुम्भ स्नान के बाद बनारस में तीर्थयात्रियों की भारी भीड़ उमड़ेगी? अचरज की बात यह है कि अफसरों ने प्रयागराज से बनारस आने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या का न कोई सटीक अनुमान लगाया और न ही किसी प्रकार की अस्थायी व्यवस्था की। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, विद्यापीठ, डीएवी कॉलेज, और डीरेका के मैदानों में टेंट लगाकर व्यवस्था की जा सकती थी, लेकिन प्रशासन ने इन विकल्पों पर विचार करना भी जरूरी नहीं समझा।
एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हमें ऊपर से कोई आदेश नहीं मिला, इसलिए कुछ भी करना हमारे लिए संभव नहीं था।” यह बयान उस प्रशासन की निष्क्रियता का प्रतीक है, जो जनता की सेवा के लिए नियुक्त किया गया है। यह वक्त है कि प्रशासन जागे और अपनी जिम्मेदारी निभाए। बनारस को तीर्थयात्रियों और स्थानीय निवासियों दोनों के लिए सुखद और व्यवस्थित बनाया जाए, ताकि इस पवित्र नगरी की गरिमा बनी रहे।
बनारस में तीर्थयात्रियों और स्थानीय नागरिकों की पीड़ा उस आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गरिमा पर धब्बा है, जिसे यह शहर सदियों से संजोए हुए है। यह केवल तीर्थयात्रियों की यात्रा को कठिन नहीं बना रहा, बल्कि स्थानीय निवासियों के जीवन को भी दूभर कर रहा है। बनारस की गंगा किनारे बैठा हर यात्री और काशी हर नागरिक यही पूछ रहा है—क्या यह वही काशी है, जो मोक्ष की नगरी कही जाती है? अगर हां, तो फिर इस शहर की आत्मा को कौन सा ग्रहण लग गया है?
एक नजरः प्रशासन की विफलता
बनारस के प्रशासन ने इस भारी भीड़ को संभालने के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनाई।
योजना का अभाव: प्रशासन को यह तक अंदाज़ा नहीं है कि इस बार कितने तीर्थयात्री आएंगे और शहर की क्षमता क्या है।
अस्थायी व्यवस्था की कमी: स्कूल, कॉलेज, और मैदानों में टेंट लगाकर अस्थायी रहने की व्यवस्था आसानी से की जा सकती थी, लेकिन प्रशासन की लापरवाही ने यह संभव नहीं किया।
स्वास्थ्य सेवाएं: सड़कों पर जाम की स्थिति इतनी गंभीर है कि एंबुलेंस भी फंस जा रही हैं। बुजुर्ग और बच्चे इस हालात में सबसे ज्यादा परेशान हो रहे हैं।
आवश्यक समाधान
यह स्थिति तीर्थयात्रियों के साथ अन्याय है। इसे सुधारने के लिए त्वरित और प्रभावी कदम उठाने की ज़रूरत है।
सरकारी हस्तक्षेप: सरकारी स्कूलों, विश्वविद्यालयों, और बड़े संस्थानों में टेंट लगाकर अस्थायी व्यवस्था तुरंत की जाए।
एनजीओ की भूमिका: समाजसेवी संस्थाओं और एनजीओ को सक्रिय कर भोजन और अन्य सुविधाओं की व्यवस्था कराई जाए।
दर और नियम तय करें: होटल, टैक्सी, नाव, और टेम्पो का किराया तय किया जाए और उसका पालन सुनिश्चित किया जाए।
जागरूकता: प्रशासन को बयान जारी कर लोगों को मौजूदा स्थिति के बारे में बताना चाहिए ताकि तीर्थयात्री अपनी यात्रा की योजना बेहतर तरीके से बना सकें।
स्थायी सुधार: बनारस जैसे धार्मिक स्थल पर स्थायी सुविधाओं का विस्तार किया जाना चाहिए ताकि ऐसी स्थितियों से बचा जा सके।