यूपी के बागवानों के लिए ‘रोल मॉडल’ शैलेंद्र
शैलेंद्र ने अमरूद की खेती से तरक्की की नई आधारशिला रखी
विशेष रिपोर्ट/ विजय विनीत
मंजिल उन्हीं को मिलती है,
जिनके सपनों में जान होती है।
पंख से कुछ नहीं होता,
हौसलों से उड़ान होती है।
जी हां। हौसलों की उड़ान देखनी हो तो बनारस के बवियांव गांव में जाइए। चोलापुर प्रखंड के बागवान शैलेंद्र सिंह रघुवंशी से मिलिए। करीब 16 बीघे में फैले बागों में अमरुद के लहलहाते पेड़ों को देखिए। कहीं कोयल की कूक सुनाई देगी तो कहीं पपिहा का प्यू-प्यू…।
शैलेंद्र ने अमरूद की खेती से तरक्की की नई आधारशिला रखी है। कुछ साल पहले तक ये मामूली किसान थे। अब समूचे देश के बागवानों के लिए ‘रोल मॉडल’ बन गए हैं। एक वक्त वह भी था जब लोग शैलेंद्र को अमरुद की खेती से तौबा करने की नसीहत देते थे और आज वे ही उनका अनुसरण कर रहे हैं। दरअसल, शैलेंद्र के सपनों में जान है। इसलिए इनके सपनों में पंख लग गए। उड़ान इतनी ऊंची है कि इन्हें किसी के लिए पकड़ पाना अब आसान नहीं है।
अनूठी है जयश्री बाग एंड नर्सरी
शैलेंद्र सिंह रघुवंशी का जयश्री बाग एवं नर्सरी कई मायने में अनूठी है। इनके बाग में जाएंगे तो पांच ग्राम के चाइनीज अमरूद भी देखेंगे तो 400 से 800 ग्राम तक फलने वाले विलास पसंद पर भी मोहित हो जाएंगे। इलाहाबादी सफेदा हो या ललित। श्वेता, संगम, पंत प्रभात, इलाहाबादी सुर्ख, एल-49 के साथ ही उत्तर भारत में लोकप्रिय अमरूद की सभी प्रजातियों के पौधे इनके बाग में मौजूद हैं। अपनी चकाचौध और रंगीनियों से दुनिया भर के पर्यटकों को लुभाने वाली थाईलैंड की एप्पल बेर के भी इनके यहां बगान हैं। सिर्फ बाग ही नहीं, शैलेंद्र हर साल अमरूद और एप्पल बेर के हजारों पौधे तैयार करते हैं।
लोकप्रियता का आलम यह है कि शैलेंद्र की नर्सरी में तैयार अमरूद और एप्पल बेर के पौधे पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, पूर्व गृहमंत्री पी. चिदंबरम के फार्म हाउसों में भी लहलहा रहे हैं। शैलेंद्र को अपने पौधों को बेचने के लिए बाजार की तलाश नहीं करनी पड़ती। अमरूद से साथ ही एप्पल बेर के पेड़ों पर घुंघरू की तरह लकदक फलों को जिसने देखा, पौधों का एडवांस आर्डर दे दिया। श्री रघुवंशी कहते हैं कि अमरूद और एप्पल बेर से वह हर साल करीब बीस लाख से ज्यादा मुनाफा कमाते हैं।
थाईलैंड के बेर भी बेजोड़
शैलेंद्र रघुवंशी के बागों में लगे एप्पल बेर की दीवानगी की वजह यह है कि इसके झाड़ीनुमा पौधों में बेर के फल दो बार लगते हैं। बेर के फलों का आकार और रंग सेब की तरह होता है। दो से ढाई सौ ग्राम के एक-एक बेर। मिठास अधिक। दो बेर खा लीजिए, पेट भर जाएगा। जिसने भी सेबनुमा रंगीन बेर देखा और खाया वह मुरीद हो गया। स्वाद में बेहद मीठे एप्पल बेर की देश भर में डिमांड है। इनके पास थाईलैंड की अमरूद की वह प्रजाति भी है जिसका वजन 500 से एक किलो ग्राम तक होता है। काफी कम बीज वाले इस अमरूद के फल काफी मीठे होते हैं। इसे 5 से 6 दिन तक बाजार में रखकर बेचा जा सकता है। शानदार बागवानी के लिए शैलेंद्र को देश का सबसे बड़ा अवार्ड मिल चुका है। मुंबई में एस्पी एमएल पटेल अवार्ड और एक लाख रुपये के पुरस्कार से इन्हें नवाजा जा चुका है। पीएम नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने शैलेंद्र को बुलाकर सम्मानित किया था। बतौर पुरस्कार के रूप में पचास हजार रुपये भी दिए थे। इन्हें इतने पुरस्कार मिल चुके हैं कि जिसे गिनाया नहीं जा सकता। सम्मान-पत्रों की बानगी इस वीडियों में भी देख सकते हैं।
मुश्किलें बहुत आईं, पर नहीं डिगा हौसला
शैलेंद्र राजनीति शास्त्र से परास्नातक की डिग्री लेने के बाद नौकरी के बजाय बागवानी का रास्ता चुना। मुश्किलें बहुत आईं, लेकिन हौसला नहीं डिगा। वैज्ञानिक तरीके से अमरूद उत्पादन का गुर इन्होंने केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान लखनऊ के डा.गोरख सिंह से सीखा। आमतौर पर अमरूद के बाग में एक हेक्टेयर में 277 पौधे लगते हैं, लेकिन सघन बागवानी के तहत उन्होंने 587 पौधों का रोपण कराया है। इससे इनके बागों की उपज दोगुनी हो गई है। फल की तोड़ाई कराने के बाद ये खुद उसकी ग्रेडिंग कराते हैं और अमरूद बेचने के लिए मंडी में जाते हैं। शैलेंद्र के बागों में तीन सीजन में फल निकलता है। बागों की सिंचाई ड्रिप एरिगेशन के जरिये करते हैं। इसके कम खर्च में अधिक मुनाफा होता है। अमरूद उत्पादक एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनायक राव दंडवते ने इन्हें संस्था का प्रदेश अध्यक्ष मनोनीत किया है। शैलेंद्र अपनी तकनीकी किसानों को मुफ्त में बांट रहे हैं। शैलेंद्र से प्रेरणा लेकर बनारस के तमाम बागवानों ने अमरूद की खेती शुरू कर दी है और वे भी मोटा मुनाफा कमाने लगे हैं।
Nice
भाई शैलेन्द्र जी हम सभी किसान भाईयों हेतु प्रेरणास्रोत हैं। जय हिंद जय किसान