जीवन के तत्वबोध का जयकारा लगाती मिराज, मृगतृष्णा, माया
पुस्तक समीक्षाः चेन्नई की लेखिका डा.छवि कालरा की किताब बहुत कुछ कहती है…!
विजय विनीत
चेन्नई शहर की जानी-मानी लेखिका और चित्रकार डॉ. छवि कालरा की पुस्तक “मिराज, मृगतृष्णा और माया” एक गहरी और विचारशील यात्रा का प्रतीक है, जो मानव अनुभव की जटिलताओं और भ्रमित करने वाली वास्तविकताओं को उजागर करती है। यह पुस्तक जीवन के उन पहलुओं को छूने का प्रयास करती है जो अक्सर हमारे सामान्य सोच से परे होते हैं।
“मिराज, मृगतृष्णा और माया” के शीर्षक में ही जीवन की उन तीन महत्वपूर्ण अवस्थाओं की छवि मिलती है जो हम सभी के अनुभव का हिस्सा हैं। ‘मिराज’ आभास और भ्रांतियों को, ‘मृगतृष्णा’ निरंतर असंतोष और झूठी आशाओं को, और ‘माया’ वास्तविकता से भ्रमित होने की प्रवृत्ति को दर्शाता है। इन तीन तत्वों को जोड़कर, डॉ. कालरा ने एक ऐसी कथा बनाई है जो पाठकों को जीवन की गहराई और जटिलता को समझने में मदद करती है।
लेखक ने पुस्तक में जीवन की गहराई को छूने के लिए विभिन्न परिप्रेक्ष्यों से विचार किया है। उन्होंने मानव भावनाओं, सामाजिक जटिलताओं और आत्म-मंथन की अवधारणाओं को सजीव और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है। इस पुस्तक में, पाठक अनुभव करेंगे कि कैसे मृगतृष्णा और माया हमारे जीवन को प्रभावित करती हैं, और यह कैसे हमें सच्चाई से दूर कर सकती हैं।
डॉ. छवि कालरा की लेखन शैली सुगम और प्रभावशाली है, जो पाठकों को सीधे उनकी भावनाओं और विचारों से जोड़ती है। उनकी भाषा की सरलता और संवेदनशीलता पुस्तक को एक सहज और आकर्षक अनुभव बनाती है। लेखक की गहरी समझ और विचारशीलता उनकी लेखनी में स्पष्ट होती है, जो पाठक को आत्म-संवाद और विचारशीलता की ओर प्रेरित करती है।
“मिराज, मृगतृष्णा और माया” डॉ. छवि कालरा की एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली कृति है, जो जीवन की जटिलताओं और भ्रांतियों को नए दृष्टिकोण से देखने की चुनौती पेश करती है। यह पुस्तक उन पाठकों के लिए है जो जीवन की गहराई को समझने और अपने आत्म-मंथन को प्रासंगिक बनाने की खोज में हैं। डॉ. कालरा ने इस पुस्तक के माध्यम से जीवन के अनगिनत पहलुओं को उजागर किया है और इसे एक प्रासंगिक और प्रेरणादायक कृति बना दिया है।