दिल की सबसे खूबसूरत धड़कन: “मैं इश्क लिखूं, तुम बनारस समझना”
समीक्षा-वंदना सिंह
प्रेम… इसे शब्दों में समेटना मानो आकाश को मुट्ठी में भरने जैसा है। यह एक ऐसा अहसास है, जो चुपके से दिल के कोने में बस जाता है। न कोई शोर, न कोई दस्तक। यह वैसा ही है, जैसे सुबह की पहली किरण, जो बिन कहे अंधेरे को मिटा देती है। प्यार को किया नहीं जाता, यह बस हो जाता है। यह सूरज की तरह है, जो हर रोज़ अपनी जगह से उठकर जीवन को रोशन करता है। बारिश की उन बूंदों की तरह है, जो धरती की प्यास बुझाने बिना किसी आमंत्रण के चली आती हैं।
प्यार का कोई नियम नहीं है। यह उम्र, जाति, समय या जगह का मोहताज नहीं। यह तो वो गठिया है, जो जितना पुराना होता है, उतना ही मजबूत हो जाता है। और सच कहें तो जिस दिन दुनिया से प्यार खत्म होगा, उस दिन न आसमान होगा, न जमीन। उस दिन सिर्फ सन्नाटा बचेगा।
वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत का कहानी संग्रह “मैं इश्क लिखूं, तुम बनारस समझना” इसी अनकहे अहसास को शब्दों की बुनाई में पिरोता है। इस संग्रह में प्रेम के तमाम रंग हैं—कभी यह दिल को सुकून देता है, तो कभी बेचैन कर जाता है। लेखक का यह कहना कि,
“प्रेम और मानवता में कोई अंतर नहीं है। यह तो बस समझ का फर्क है। दिल के रिश्ते यकीन पर चलते हैं, शक पर नहीं,” इस संग्रह की गहराई को दर्शाता है।
बनारस और इश्क का रिश्ता
ग़ालिब ने बनारस को “दुनिया के दिल का नुक़्ता” कहा था। यह शहर सिर्फ घाटों, गलियों और गंगा का नाम नहीं, बल्कि यह प्रेम का वह धागा है, जो जीवन को जोड़ता है। विजय विनीत की कहानियां बनारस के इसी प्रेम को पकड़ती हैं। उनकी एक कहानी में नायिका तूलिका बनारस के बारे में कहती है,
“वाह बनारसिया! मुझे भी बनारस देखना है। बनारस की मस्ती और फक्कड़पन का एहसास करना है। बनारस की तरह मुस्कराना और ठहाके लगाना है।”
बनारस में प्रेम और जीवन का ऐसा मेल है, जो इसे अलग बनाता है। यहां की गलियां, घाट और मंदिर सब प्रेम के गवाह हैं। यहां इश्क उस गंगा की तरह है, जो सबको एक समान अपनाती है—बिना किसी भेदभाव के।
सर्वभाषा ट्रस्ट से प्रकाशित “मैं इश्क लिखूं, तुम बनारस समझना” में कुल 11 कहानियां हैं। हर कहानी प्रेम, जीवन और बनारस के रस में डूबी हुई है। लेखक खुद इस संग्रह के बारे में कहते हैं,
“बनारसी इश्क एक रहस्य की तरह है। इसे समझने के लिए इसमें डूबना पड़ता है। किरदार बनना पड़ता है।”
इन कहानियों की सबसे बड़ी खूबी यह है कि हर पाठक खुद को इनमें कहीं न कहीं पाता है। कहानियों की भाषा बेहद सरल और बोलचाल की है, लेकिन यह सरलता आपको सीधे दिल तक पहुंचाती है। इन कहानियों में बनारस के मोहल्लों की खुशबू है, गंगा की लहरों की ठंडक है, और घाटों के चाय के प्यालों की गर्माहट है।
हर कहानी प्रेम के किसी न किसी पहलू को छूती है। एक कहानी में लेखक ने अपनी जीवन यात्रा का जिक्र करते हुए लिखा है, “मेरे पिता मुझे डॉक्टर बनाना चाहते थे, लेकिन मेरा मन लेखन और फोटोग्राफी में रमता था। मेरे झोले में हमेशा एक छोटा कैमरा और कहानियों की किताबें रहती थीं।” यह बात दर्शाती है कि लेखक ने अपने जीवन के अनुभवों को कितनी ईमानदारी और भावनात्मक गहराई से कागज पर उतारा है।
बनारसी इश्क का जादू
ग़ालिब ने बनारस को “दुनिया के दिल का नुक़्ता” कहा था। यह सच भी है। बनारस महज एक शहर नहीं, यह इश्क का एक अनूठा अनुभव है। बनारस और प्रेम का रिश्ता ऐसा है, जो हर दिल को छू जाता है। इस किताब की कहानियां न सिर्फ इश्क के अहसास को जीवित करती हैं, बल्कि यह सिखाती हैं कि प्रेम क्या है। यह हमें अपनी आत्मा को टटोलने का मौका देती हैं।
“मैं इश्क लिखूं, तुम बनारस समझना” पढ़ते हुए यह महसूस होता है कि बनारस की गलियों में चलते हुए आप इश्क को हर कोने में महसूस कर सकते हैं। गंगा की लहरों में, घाट की सीढ़ियों पर, और सुबह के सूरज की पहली किरण में।
विजय विनीत की यह किताब प्रेम, जीवन और बनारस का वो संगम है, जिसे एक बार पढ़कर बार-बार जीने का दिल करेगा। यह किताब हर उस दिल के लिए है, जिसने कभी इश्क किया है या करने का ख्वाब देखा है। और यकीन मानिए, बनारस की तरह यह इश्क भी आपको अपनी गिरफ्त से कभी आज़ाद नहीं करेगा।
“मैं इश्क लिखूं, तुम बनारस समझना” का हर पन्ना आपको बनारस की गलियों, घाटों और उसकी आत्मा तक ले जाता है। यह सिर्फ एक कहानी संग्रह नहीं, बल्कि प्रेम की भाषा है। इसे पढ़ते हुए ऐसा लगता है, जैसे आप गंगा के किनारे बैठे किसी प्रेमगीत को सुन रहे हों। इन कहानियों में बनारस की सांस्कृतिक विविधता, उसकी गहराई और वहां के लोगों की सरलता साफ झलकती है।
विजय विनीत की कहानियों में प्रेम के साथ-साथ सामाजिक और मानवीय संबंधों की बारीकियों को भी खूबसूरती से उकेरा गया है। “मैं इश्क लिखूं, तुम बनारस समझना” उन लोगों के लिए है, जिन्होंने कभी प्रेम किया है, या जो अभी भी प्रेम की तलाश में हैं। यह किताब न सिर्फ आपको बनारस के इश्क से जोड़ती है, बल्कि आपके अपने इश्क को भी फिर से जीवित कर देती है।
“मैं इश्क लिखूं, तुम बनारस समझना” विजय विनीत की ऐसी रचना है, जो आपको भावनाओं की गहराई में डुबकी लगाने पर मजबूर कर देती है। इसे पढ़ने के बाद यह यकीनन कहा जा सकता है कि बनारस सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि प्रेम की सबसे खूबसूरत धड़कन है।
तो अगर आप इश्क को महसूस करना चाहते हैं, उसे जीना चाहते हैं, तो यह किताब जरूर पढ़ें। यह आपको न सिर्फ बनारस के रस में सराबोर करेगी, बल्कि आपके दिल को वो सुकून देगी, जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। यह किताब आपके दिल के करीब हमेशा रहेगी, बिल्कुल बनारस की तरह…!!
नोटः “मैं इश्क लिखूं, तुम बनारस समझना” को “अमेजान” पर रियायती दर पर प्राप्त की जा सकती है।