“मैं इश्क लिखूं, तुम बनारस समझना”: मोहब्बत से बड़ा रिश्ता बनाती हैं विजय विनीत की रुहानी कहानियां

बनारस के घाटों का इश्क, साधारण प्रेम नहीं है; यह एक धीमा, गहरा और आत्मिक अनुभव है, जो आत्मा से आत्मा के लिए जिया जाता है
@ अराधना
कुछ रिश्ते समय, दूरी, और भौतिक सीमाओं से परे होते हैं। ये आत्माओं के स्तर पर गहरे जुड़ाव से उत्पन्न होते हैं और इन्हें “हाई-लेवल सोलमेट्स” कहा जाता है। इस प्रकार का प्रेम साधारण परिभाषाओं से परे आत्मा की गहराइयों तक पहुंचता है, जैसे कि बनारस के वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत की कहानियों में मिलता है। खासकर उनके संग्रह “मैं इश्क लिखूं, तुम बनारस समझना” में। इस पुस्तक में बनारसी इश्क और आत्मिक प्रेम के रूहानी भावों को बड़ी खूबसूरती से पिरोया गया है।
आत्मा के साथ प्रेम में पड़ जाना एक अत्यंत गहरा और रहस्यमयी अनुभव है, जो शारीरिक और मानसिक सीमाओं से परे होता है। यह प्रेम तब शुरू होता है जब व्यक्ति अपने भीतर की वास्तविकता को पहचानता है। इसमें न कोई अपेक्षा होती है, न कोई शर्त। यह अवस्था प्रेम के उस शुद्ध स्वरूप को दर्शाती है, जहां बाहरी सौंदर्य, गुण या दोष महत्वहीन हो जाते हैं, और यह प्रेम आत्मिक अस्तित्व से सीधे जुड़ जाता है – एक अनंत, शाश्वत और शुद्ध बंधन।
जब हम आत्मा से प्रेम करते हैं, तो यह न केवल एक व्यक्ति विशेष के प्रति होता है, बल्कि समस्त सृष्टि और जीवन के प्रति होता है। यह गहराई विजय विनीत की कहानियों में भी स्पष्ट होती है, जहां बनारसी इश्क आत्मा के स्तर पर खिलता है और समय व स्थान की सीमाओं से परे होता है। विनीत की रुहानी कहानियों में बहुत शोर सुनाई देता है। ऐसा शोर जिसे सुनने वाला कोई नहीं होता। आंखों से आंसुओं की धारा बहती है, लेकिन पोछने वाला कोई नहीं होता। अपनों में एक भी कोई अपना नहीं होता, क्योंकि सच्ची केयर और सच्चा प्यार करने वाला जा चुका होता है…!
इसे शहर कहें या मोहब्बत?
बनारस शहर नहीं, मुहब्बत है। बनारस के घाटों का इश्क साधारण प्रेम नहीं है; यह एक धीमा, गहरा और आत्मिक अनुभव है, जो आत्मा से आत्मा के लिए जिया जाता है। है। बनारस के वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक विजय विनीत की कहानियों में गंगा घाटों का इश्क गहराई से उभरता है, जो प्रेमियों के रिश्ते के साथ-साथ बनारस की पुरानी संस्कृति को भी बयां करता है। इसी तरह, आत्मा से प्रेम भी गहरा और स्थायी होता है, जो भौतिक सीमाओं को लांघकर सीधे अस्तित्व की गहराइयों से जुड़ता है। आत्मा के साथ प्रेम में पड़ना आत्म-ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में पहला कदम है, जहां प्रेम निस्वार्थ और शुद्ध होता है।
“मैं इश्क लिखूं, तुम बनारस समझना” में भी प्रेम एक साधारण भावना नहीं है, बल्कि यह आत्मा की यात्रा का प्रतीक है। जैसे बनारस की गलियों और घाटों में हर मोड़ पर एक नई कहानी बसी होती है, वैसे ही आत्मा से प्रेम करने वाला व्यक्ति हर क्षण में एक नई गहराई और आनंद की खोज करता है।
बनारस सिर्फ एक शहर नहीं है, यह एक मिजाज है, जो प्रेम और जीवन के हर पहलू में रच-बस जाता है। यहां के लोग, उनकी चाय की चर्चा, घाटों पर बैठी आत्मीयता, और गंगा की लहरों में बहता हुआ प्रेम – ये सब मिलकर बनारसी इश्क की तासीर बनाते हैं। विजय विनीत की कहानियों में यह इश्क समय और स्थान की सीमाओं से मुक्त है। “मैं इश्क लिखूं, तुम बनारस समझना” में प्रेमियों का यही गहरा संबंध दिखाई देता है, जो बाहरी दुनिया से परे आत्मिक जुड़ाव को दर्शाता है।
हाई-लेवल सोलमेट्स का रिश्ता भी बनारसी घाट के जिद्दी इश्क इसी तरह होता है। यह केवल भौतिक या भावनात्मक स्तर तक सीमित नहीं रहता, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक जुड़ाव को दर्शाता है। यह जुड़ाव उसी तरह शाश्वत होता है, जैसे बनारस का इश्क और उसमें बसी कहानियों में प्रेम की गहराइयां। आत्मा के साथ प्रेम में पड़ने वाला व्यक्ति बनारस की आत्मा से जुड़ता है, जो उसकी हर सांस में बहती है और उसे जीवन के हर पहलू से जोड़ती है।

बनारस क़ा रुहानी इश्क
विजय विनीत की कहानियों में बनारस केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि आत्मिक प्रेम का प्रतीक है। “मैं इश्क लिखूं, तुम बनारस समझना” में प्रेम आत्मा के स्तर पर जिया जाता है, और यह किसी बाहरी दिखावे या सामाजिक सीमाओं से मुक्त होता है। हर कहानी में प्रेम एक आत्मिक संवाद बन जाता है, जिसमें पात्र सिर्फ भौतिक दुनिया में नहीं, बल्कि अपनी आत्मा की गहराइयों में एक-दूसरे से जुड़ते हैं। विनीत के कहानियां रुहानी संदेश देती हैं। ऐसा संदेश जो आत्म से आत्मा के लिए होता है।
1. गहरी समझ और स्वीकृति: हाई-लेवल सोलमेट्स और बनारसी प्रेम दोनों में एक खास समानता है—प्रेमी एक-दूसरे को बिना शर्त स्वीकार करते हैं। यह प्रेम निस्वार्थ और शुद्ध होता है, जिसमें बाहरी रूप, गुण, और दोष कोई महत्व नहीं रखते।
2. आध्यात्मिक विकास: बनारसी इश्क और आत्मा से प्रेम दोनों आत्मिक विकास का माध्यम बनते हैं। यह प्रेम हमारे अस्तित्व के हर पहलू में गहराई लाता है, जिससे हम आध्यात्मिक ऊंचाइयों तक पहुंचते हैं।
3. समय और दूरी से परे: “मैं इश्क लिखूं, तुम बनारस समझना” की कहानियों में दिखाया गया प्रेम समय और दूरी की सीमाओं से परे है। ठीक वैसे ही जैसे आत्मा का प्रेम कभी समाप्त नहीं होता, चाहे कितनी भी दूरियां क्यों न हों।
4. गहन भावनात्मक और मानसिक कनेक्शन: विजय विनीत की कहानियों में पात्रों के बीच का संबंध इतना गहरा होता है कि वे बिना कुछ कहे भी एक-दूसरे की भावनाओं को समझ सकते हैं। यही गहराई आत्मा से प्रेम के रिश्ते में होती है, जहां शब्दों की आवश्यकता नहीं होती।
5. पुनर्जन्म और कर्म: बनारस में पुनर्जन्म और कर्म की अवधारणा गहरी है, जो आत्मा के रिश्ते को शाश्वत बनाती है। आत्मा से प्रेम करना उस ऊर्जा को पहचानने जैसा है जो हर जन्म में हमारे साथ रहती है।

विजय विनीत की कहानियां, बनारसी इश्क और आत्मिक प्रेम तीनों प्रेम की गहराइयों को आत्मा के स्तर पर छूते हैं। यह प्रेम निस्वार्थ, शाश्वत, और समय की सीमाओं से परे है। आत्मा से प्रेम में पड़ना वास्तव में उस सत्य का अनुभव करना है, जो हमेशा हमारे भीतर था, बस हम उसे पहचानने में देर कर देते हैं।
“मैं इश्क लिखूं, तुम बनारस समझना” का यह प्रेम केवल कहानियों तक सीमित नहीं है; यह आत्मा के उस गहन बंधन का प्रतीक है, जिसे केवल महसूस किया जा सकता है। जैसे बनारस को केवल देखा नहीं जा सकता, वैसे ही इस प्रेम को केवल समझा नहीं जा सकता—इसे आत्मा से जिया जाता है।