योगेंद्र मौर्य: कला, संघर्ष और सृजनशीलता के पर्याय
विजय विनीत (वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक)
योगेंद्र कुमार मौर्य भारतीय कला जगत का वह नाम हैं, जो संघर्ष, समर्पण और सृजनशीलता का प्रतीक है। उनकी कला न केवल सौंदर्य की अभिव्यक्ति है, बल्कि यह समाज, संस्कृति और पर्यावरण से जुड़े गहरे मुद्दों को उजागर करने का एक सशक्त माध्यम है। उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के लैरो बेरुवार गांव में 20 अगस्त 1988 को जन्मे योगेंद्र ने अपने जीवन के संघर्षों को सफलता की सीढ़ी बनाया। उनका जीवन और उनकी कला हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो विपरीत परिस्थितियों में अपने सपनों को पूरा करने की जिद रखता है।
योगेंद्र के जीवन की सबसे पहली चुनौती उस समय आई जब वे मात्र नौवीं कक्षा में पढ़ रहे थे। उनके पिता, स्वर्गीय चंद्रदेव मौर्य, का देहांत हो गया। इस असामयिक घटना ने उनके परिवार को भावनात्मक और आर्थिक रूप से कमजोर कर दिया। परिवार की पूरी जिम्मेदारी उनकी माता, श्रीमती कमली देवी, पर आ गई। संयुक्त परिवार के बिखराव और आर्थिक तंगी के बीच, योगेंद्र ने कभी अपनी इच्छाओं को मरने नहीं दिया। उन्होंने अपने भीतर छुपी कला के प्रति समर्पण को मजबूत किया और इसे अपनी जीवन-यात्रा का आधार बना लिया।
कला के प्रति जुनून
बचपन से ही योगेंद्र को कला के प्रति गहरी रुचि थी। चित्र बनाना और विभिन्न प्रकार की रचनात्मक गतिविधियों में शामिल रहना उनकी पसंदीदा गतिविधियां थीं। हालांकि, समाज और परिवार के कुछ लोग उनकी इस रुचि को समय की बर्बादी मानते थे। लेकिन योगेंद्र ने कभी इन आलोचनाओं को अपने सपनों के रास्ते में बाधा बनने नहीं दिया।
एक घटना ने उनके जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। नौवीं कक्षा की गर्मियों की छुट्टियों के दौरान, इलेक्ट्रॉनिक दुकान पर काम करते हुए उन्होंने सपना देखा। सपने में किसी ने उनसे कहा, “तुम अपने समय को यूं ही बर्बाद क्यों कर रहे हो? अपने भीतर छुपी कला को पहचानो और उसे अपनी मंजिल बनाओ।” इस सपने ने उन्हें न केवल नई ऊर्जा दी, बल्कि उनके जीवन की दिशा भी बदल दी।
शैक्षिक और पेशेवर उपलब्धियां
योगेंद्र ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से दृश्य कला में बीएफए और एमएफए की डिग्री हासिल की। उन्होंने मूर्तिकला (प्लास्टिक आर्ट्स) में विशेष ज्ञान प्राप्त किया और राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) भी उत्तीर्ण की। बीएचयू का सांस्कृतिक और कलात्मक वातावरण उनके लिए प्रेरणा का स्रोत बना और उनकी कला में नई गहराई और दृष्टिकोण जोड़ा।
वर्तमान में, योगेंद्र मथुरा के सेठ प्रेम सुख दास भगत इंटर कॉलेज में कला अध्यापक के रूप में कार्यरत हैं। उनकी शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता और विद्यार्थियों के साथ गहन संवाद ने उन्हें एक प्रेरणादायक शिक्षक बना दिया है। उनके निर्देशन में विद्यार्थियों ने न केवल कला को समझा, बल्कि इसे अपनी रचनात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम भी बनाया।
योगेंद्र कुमार मौर्य की उत्कृष्ट मूर्तिकला को “संगीता जिंदल स्कॉलरशिप पुरस्कार” से सम्मानित किया गया। महाराष्ट्र के गवर्नर द्वारा उन्हें ₹1,20,000 की नगद धनराशि, एक स्मृतिचिन्ह और प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। यह पुरस्कार उनकी कला में सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों को उभारने की क्षमता और उनकी सृजनात्मकता को पहचानता है।
योगेंद्र की कला केवल सौंदर्य तक सीमित नहीं है। उनकी कृतियां जैसे “महिला के सपने” और “ग्लोबल इनवायरनमेंट” गहरे सामाजिक और पर्यावरणीय संदेश देती हैं। वे मानते हैं कि कला केवल देखने और सराहने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का एक प्रभावी जरिया हो सकती है। उनकी मूर्तियां पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक चेतना और मानवीय मूल्यों को दर्शाती हैं।
भविष्य की योजनाएं
योगेंद्र का सपना है कि वे अपनी कला के माध्यम से समाज में बड़ा बदलाव लाएं। वे भारतीय संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण के संदेश को देश और विदेश में कला-प्रदर्शनियों के जरिए फैलाने की योजना बना रहे हैं। इसके साथ ही, वे युवा पीढ़ी को कला के प्रति प्रेरित करने और उन्हें सृजनात्मक अभिव्यक्ति का मंच प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
योगेंद्र कुमार मौर्य की कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो कठिनाइयों के बावजूद अपने सपनों को जीना चाहता है। उनका जीवन यह सिखाता है कि यदि आत्मविश्वास और मेहनत के साथ काम किया जाए, तो परिस्थितियां चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, सफलता अवश्य मिलती है।
उनकी कला, उनके विचार और उनकी प्रतिबद्धता समाज को यह संदेश देती है कि हम सभी के पास अपने परिवेश और सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक रहने की क्षमता है। योगेंद्र की कृतियां न केवल उनके विचारों और भावनाओं का प्रतिबिंब हैं, बल्कि यह समाज के प्रति उनकी गहरी जिम्मेदारी को भी प्रदर्शित करती हैं। योगेंद्र कहते हैं, “कला के प्रति उनका समर्पण और समाज के प्रति उनकी संवेदनशीलता ही उन्हें भारतीय कला जगत का एक चमकता सितारा बनाती है।”
पुरस्कार और सम्मान
योगेंद्र कुमार मौर्य को कला और मूर्तिकला के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं। उनके द्वारा प्राप्त किए गए पुरस्कार उनकी मेहनत और रचनात्मकता के साक्षी हैं:
राष्ट्रीय और राज्य पुरस्कार
1. 2006: राज्य पुरस्कार (प्रदेश चैंपियन), वैश्विक पर्यावरण दिवस, लखनऊ।
2. 2020: राज्य ललित कला अकादमी, लखनऊ।
3. 2018: राज्य पुरस्कार, प्रफुल्ल आर्ट फाउंडेशन, मुंबई।
अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख पुरस्कार
1. 2012: अरण्य अवॉर्ड, “Reflection of Another Day & Virasat Art,” कोलकाता।
2. 2013: एआईएफएसीएस पुरस्कार, 86वां अखिल भारतीय ललित कला और शिल्प सोसायटी, नई दिल्ली।
3. 2015: राष्ट्रीय प्रायोजन पुरस्कार, दक्षिण मध्य क्षेत्र, नागपुर।
4. 2023: भारतीय ललित कला अकादमी पुरस्कार, अमृतसर।
5. 2023: आईफैक्स अवार्ड, ऑल इंडिया फाइन आर्ट एंड क्राफ्ट सोसाइटी, नई दिल्ली।
विशेष स्कॉलरशिप और हालिया पुरस्कार
1. 2011-13: एचआरडी युवा कलाकार छात्रवृत्ति, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार।
2. 2024: संगीता जिंदल स्कॉलरशिप पुरस्कार, बॉम्बे आर्ट सोसायटी, मुंबई। इस सम्मान में उन्हें महाराष्ट्र सरकार के गवर्नर के हाथों ₹1,20,000 की नकद राशि, स्मृतिचिन्ह और प्रमाण पत्र प्रदान किया गया।
प्रदर्शनी और भागीदारी
योगेंद्र की कला प्रदर्शित करने वाले कार्यक्रम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित हुए। उनकी प्रमुख भागीदारी और प्रदर्शनी निम्नलिखित हैं:
एकल और समूह प्रदर्शनी
1. 2008: कुरिटिका आर्ट गैलरी, अस्सी घाट, वाराणसी।
2. 2020: राष्ट्रीय गैलरी, रवींद्र भवन, नई दिल्ली।
3. 2024: जहांगीर आर्ट गैलरी, बॉम्बे आर्ट सोसायटी, मुंबई।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन
1. 2012: भारतीय संग्रहालय कोलकाता, अरण्य कला प्रदर्शनी।
2. 2012: ओडिशा ललित कला अकादमी, संस्कार भवन, भुवनेश्वर।
3. 2012: रवींद्रनाथ टैगोर स्मृति समारोह, ललित कला अकादमी, लखनऊ।
कलात्मक कार्यशालाएं और सेमिनार
योगेंद्र ने अपनी कला को और गहराई देने के लिए विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कार्यशालाओं और सेमिनारों में भाग लिया:
1. 2009: रेत मूर्तिशिविर, गाजीपुर।
2. 2014: राष्ट्रीय पेंटिंग कार्यशाला, संस्कार भारती, मऊ।
3. 2014: अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला, बीएचयू वाराणसी।