सुरों और शब्दों के संगम से सजी शाम, जहां गुरुओं की परंपरा और साधना ने बांधा श्रोताओं का मन

सुरों और शब्दों के संगम से सजी शाम, जहां गुरुओं की परंपरा और साधना ने बांधा श्रोताओं का मन

· तबले की झंकार और पखावज की गूंज में जीवित हुई बनारस की अमर सांगीतिक परंपरा

विजय विनीत

बनारस-यह नगर जितना पुराना है, उतना ही नया। यहां हर सांस में संगीत है, हर आहट में ताल है और हर धड़कन में लय। गंगा के घाटों पर सुबह की आरती से लेकर संध्या की गूंज तक। बनारस का सांस्कृतिक परिवेश नाद और स्वर के बिना अधूरा है। इसी परंपरा को जीवंत बनाए रखने का एक अनुपम प्रयास है लयोत्सव”, जो प्रतिवर्ष नादश्री म्यूज़िक अकादमी और नागरीप्रचारिणी सभा वाराणसी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित होता है। इस बार गुरुवार की संध्या जब सभा-गृह में दीप प्रज्वलित हुए, तब लगा मानो पूरा शहर संगीत की अनाहद नाद से भर उठा हो।

लयोत्सव का यह संस्करण तबला सम्राट पंडित राम सहाय और पद्मविभूषण पंडित किशन महाराज को समर्पित रहा। दोनों ही महापुरुषों ने बनारस घराने की परंपरा को विश्व पटल पर स्थापित किया था। इस सांगीतिक स्मरण ने महोत्सव को और अधिक पवित्र और श्रद्धापूर्ण बना दिया।

शब्द और संगीत का संवाद

कार्यक्रम का शुभारंभ नागरीप्रचारिणी सभा के प्रधानमंत्री श्री व्योमेश शुक्ल ने अपने स्वागत उद्बोधन से किया। उन्होंने कहा, “जब शब्द थक जाते हैं तो संगीत बोलने लगता है, और जब संगीत गूंजता है तो शब्द स्वयं उसमें विलीन हो जाते हैं।” उनके इस विचार ने सभा के वातावरण को एक गहरी सांगीतिक संवेदना से भर दिया।

पहली प्रस्तुति में प्रशांत मिश्र मंच पर आए। झपताल में उनका स्वतंत्र वादन एक साधक की तपस्या की तरह लगा। उठान, आमद, कायदा, टुकड़ा और परण की बारीकियों ने दर्शकों को बांधे रखा। हर बोल के साथ लगा मानो उनके गुरुजनों की परंपरा उसी क्षण जीवित होकर श्रोताओं से संवाद कर रही हो। हारमोनियम पर आनंद किशोर मिश्र की संगत ने प्रस्तुति को और गरिमा दी।

इसके बाद मथुरा से आए अंकित पारिख ने पखावज पर ताल चारताल में वादन किया। पखावज की गहरी और अनुगूंजित ध्वनि ने सभा-गृह को मंदिर की गर्भगृह जैसी अनुभूति से भर दिया। उनके लयकारी और पारंपरिक बंदिशें सुनते हुए ऐसा लगा मानो समय पीछे लौटकर मध्यकालीन नृत्य-मंडप में जा पहुंचा हो। हारमोनियम पर मोहित साहनी ने सूक्ष्म संगत से पखावज की गहराई को और उजागर किया।

तीनताल की छटा और मनमोहक प्रस्तुति

कार्यक्रम की अंतिम कड़ी में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. प्रवीण उद्धव मंच पर आए। तीनताल में उनका स्वतंत्र वादन एक ओर जहां तकनीकी कसावट से भरा था, वहीं दूसरी ओर उसमें बनारस की सहजता और मिठास भी समाहित थी। उंगलियों की तीव्र गति, बोलों की गूंज और नाद का संतुलन-इन सबने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके साथ गायन पर मृणाल रंजन और हारमोनियम पर प्रेमचंद ने संगत की।

सभा-गृह में बैठा हर श्रोता जैसे इस सांगीतिक यात्रा का सहयात्री बन गया था। तालियों की गूंज और “वाह-वाह” की प्रतिध्वनि बार-बार उठ रही थी। किसी ने आंखें मूंदकर नाद का रसपान किया, तो कोई प्रस्तुति के हर उतार-चढ़ाव पर सर हिलाकर आनंद ले रहा था। यह दृश्य इस बात का प्रमाण था कि बनारस की आत्मा अब भी संगीत की लय में धड़कती है।

लयोत्सव” के मौके पर नादश्री म्यूज़िक अकादमी की संस्थापक श्रीमती मीना मिश्रा ने बताया कि पहले दिन तीन कलाकारों ने प्रस्तुतियां दीं और शुक्रवार की संध्या शेष तीन प्रतिष्ठित कलाकार तबले की गूंज से सभा को रसमय करेंगे। इसी क्रम में संस्था द्वारा लय रत्न सम्मान” की घोषणा और सम्मान समारोह भी होगा।

इस अवसर पर पद्मश्री डॉ. राजेश्वर आचार्य, पंडित कामेश्वरनाथ मिश्र, पंडित पूरण महाराज, पंडित किशन रामडोहकर, पंडित नंदकिशोर मिश्र, श्री राजेश गौतम और पंडित दीपक सहाय जैसे दिग्गजों की उपस्थिति ने आयोजन की गरिमा को और बढ़ा दिया। उनकी उपस्थिति ने यह संदेश दिया कि बनारस की सांगीतिक परंपरा केवल जीवित ही नहीं है, बल्कि निरंतर आगे बढ़ रही है।

बनारस और लय: एक अविभाज्य संबंध

बनारस की पहचान केवल धार्मिक नगरी के रूप में नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक राजधानी के रूप में भी है। यहां लय जीवन का अंग है। गली-कूचों में बजते ढोलक से लेकर घाटों पर गूंजती आरती तक, हर जगह संगीत का स्वरूप बदलता है, लेकिन उसकी आत्मा एक ही रहती है। लयोत्सव इसी आत्मा का उत्सव है-जहां साधक और श्रोता दोनों एक साथ मिलकर उस नाद का अनुभव करते हैं, जो शब्दों से परे है।

लयोत्सव का पहला दिन यह संदेश देकर समाप्त हुआ कि संगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि आत्मा की साधना है। तबला और पखावज की गूंज से गूंजता यह आयोजन आने वाले वर्षों तक बनारस की सांस्कृतिक स्मृति में दर्ज रहेगा। बनारस के सांस्कृतिक परिवेश में यह उत्सव मानो एक ऐसा दीप है, जो हर बार जलकर नई पीढ़ियों को लय, नाद और परंपरा की रोशनी दिखाता है।

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