बनारसः टाटा-अंबानी के लिए ‘अंगिका’ ब्रांड बनारसी साड़ियां बुनते हैं अमरेश कुशवाहा
बेटी अंगिका कुशवाहा ने विकसित कीअनोखी और क्रांतिकारी तकनीकी, रेशमी कीटों की जगह ‘पाइनएप्पल’ के रेशों से बने धागों से बुनी जा रहीं बनारसी साड़ियां
विजय विनीत
बनारस की एक फनकार ने पाइनएप्पल (अनानास) के रेशों से धागा तैयार करके बनारसी साड़ी उद्योग में एक अनोखी और क्रांतिकारी तकनीकी शुरूआत की है। इस शिल्प कलाकार का नाम है डा.अंगिका कुशवाहा। 29 वर्षीया डा.अंगिका के पिता अमरेश कुशवाहा बनारस के जाने-माने शिल्पकार हैं और वो सोने-चांदी के धागों से बनी बनारसी साड़ियों की बुनाई करते हैं। उन्होंने अपनी बेटी के नाम पर ही ‘अंगिका’ ब्रांड की शुरुआत की, जो बनारसी साड़ी उद्योग में एक नई पहचान बना रहा है। 22 अक्टूबर 2024 को इन्हें लखनऊ में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रेशम रत्न सम्मान से नवाजा। इस सम्मान के साथ इन्हें 50 हजार रुपये का चेक दिया गया।
बनारस के अमरेश कुशवाहा की रामनगर में ‘अंगिका हथकरघा विकास उद्योग सहकारी समिति लिमिटेड’ है। इनकी फर्म में सैकड़ों बुनकर रोजाना हाथ की कारीगरी से अनूठी साड़ियां बुनते हैं। यहां के बुनकरों को अन्य उद्योगों की तुलना में अधिक भुगतान किया जाता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो रही है। अंगिका कुशवाहा ने अपने पिता के काम को संभाल लिया है। देश के सितारा होटलों में आयोजित होने ने वाली शिल्प कला प्रदर्शनियों में अपनी ब्रांडेड बनारसी साड़ियों के साथ डा. अंगिका कुशवाहा खुद मौजूद रहती हैं।
डा.अंगिका कुशवाहा ने बनारसी साड़ी उद्योग को नई ऊंचाई पर ले जाने की कोशिश कर रही हैं। वह कहती हैं कि मैंने रेशम के कीड़ों के बजाय प्राकृतिक रूप से पाइनएप्पल (अनानास) के रेशों से धागा तैयार करने की तकनीक विकसित की है, जिससे बनारसी साड़ियां बनाई जा रही हैं। यह कदम न केवल पर्यावरण के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देता है, बल्कि बनारसी साड़ी की गुणवत्ता और पहचान को भी नया आयाम दे रहा है। इनके पिता अमरेश कुशवाहा बनारसी साड़ी उद्योग में जाना-पहचाना नाम है।
अंगिका हथकरघा विकास उद्योग ने हाल के दिनों में आसमानी छलांग लगाई है। अमरेश कुशवाहा की संस्था टाटा और अंबानी समूह के लिए विशेष रूप से बनारसी साड़ियों की बुनाई करते हैं। टाटा की वीवरशाला इनके निर्देशन में ही संचालित की जा रही है। देश के सभी कारपोरेट घराने अमरेश कुशवाहा की संस्था अंगिका हथकरघा की ब्रांडेड साड़ियां खरीद रहे हैं।
यूपीका बोर्ड के चेयरमैन हैं अमरेश
उत्तर प्रदेश में 25 साल बाद जब यूपिका बोर्ड का पुनर्गठन हुआ तो सबसे पहले अमरेश को निर्विरोध चेयरमैन चुना गया। इनकी नियुक्ति न बनारसी साड़ी और बुनकर समाज के लिए बड़ी उम्मीदें जगाई है, जिस पर वह खरे उतर रहे हैं। UPICA के पुनर्गठन के बाद से अमरेश के नेतृत्व में बुनकरों और ताना-बाना को प्रोत्साहन देने के कई प्रयास किए जा रहे हैं, जिनसे न सिर्फ बुनकरों को रोजगार मिलेगा बल्कि बनारसी साड़ी की शान और भी बढ़ेगी।
अमरेश कहते हैं कि बनारसी साड़ियों की कला और बुनकरों की दशा में सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं। उनका मकसद बनारसी साड़ी की प्रसिद्ध बुनकरी कला को अंतरराष्ट्रीय मंच पर और भी ऊपर ले जाना है। इसके लिए G-20 की बैठक और लखनऊ के इन्वेस्टर समिट के दौरान बनारसी साड़ी के प्रसार के लिए कई बड़े समझौते हुए हैं। इस कला को वैश्विक पहचान दिलाने में ये बैठकें अहम साबित होंगी।
अमरेश कुशवाहा की पुत्री डा.अंगिका कुशवाहा ने जयपुर के एक प्रतिष्ठित संस्थान से टेक्सटाइल में मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद पीएचडी की और अब बनारसी साड़ी उद्योग को ऊंचाइयों पर पहुंचाने के लिए शोध कर रही हैं। टेक्सटाइल के क्षेत्र में अंगिका की गहरी रुचि ने उन्हें इस उद्योग में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाने की प्रेरणा दी है। उन्होंने अपने पिता अमरेश कुशवाहा, जो बनारसी साड़ी के डिजाइन पर वर्षों से काम कर रहे हैं, के साथ मिलकर इस उद्योग को एक नई दिशा में ले जाने की ठानी है।
डा.अंगिका का कहना है कि उनके परिवार ने उनका नाम ‘अंगिका’ इसलिए रखा क्योंकि इसका अर्थ कपड़े से जुड़ा हुआ है। इसी नाम का प्रभाव उनके जीवन पर भी पड़ा, और उन्होंने अपने बचपन से ही बुनकरी और हथकरघा का काम होते देखा। यही वजह रही कि उन्होंने इसी दिशा में अपना करियर बनाने का फैसला किया। अंगिका बताती हैं कि उनके खून में ही बुनकरी का काम दौड़ता है, और उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर बचपन से ही हथकरघा पर काम करना शुरू कर दिया था।
‘अंगिका‘ ब्रांड की साड़ियां
अंगिका ने जब इस क्षेत्र में कदम रखा, तो उन्हें एहसास हुआ कि चीन से आयातित सिल्क (रेशम) बनारसी साड़ी उद्योग को नुकसान पहुंचा रहा है। यह न केवल स्थानीय बुनकरों की आजीविका पर असर डाल रहा था, बल्कि साड़ियों की गुणवत्ता में भी कमी आ रही थी। इसी कारण से अंगिका ने नेचुरल सिल्क यार्न (धागा) बनाने की सोची, और उन्होंने पाइनएप्पल के रेशों से सिल्क तैयार करने की तकनीक विकसित की।
यह सिल्क पूरी तरह से प्राकृतिक है, और इसे तैयार करने की प्रक्रिया पर्यावरण के अनुकूल है। पाइनएप्पल के रेशों से बनाए गए इस सिल्क को डाई करने के बाद उससे साड़ियां बुनी जाती हैं। इस तकनीक की सबसे खास बात यह है कि इससे साड़ियों की गुणवत्ता में सुधार हुआ है और उनका बाजार मूल्य भी बढ़ा है। इससे बुनकरों को भी बेहतर रोजगार के अवसर मिल रहे हैं, और बनारसी साड़ी उद्योग में नई जान आई है।
अंगिका के इस अनोखे प्रयास को न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी सराहा जा रहा है। हाल ही में लखनऊ में हुए ग्लोबल समिट में उनके काम को गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और नितिन गडकरी समेत कई देशों के प्रतिनिधियों ने सराहा। सबसे बड़ी बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भी अंगिका की मुलाकात हुई, जहां उन्होंने अपने काम और साड़ी बनाने की नई तकनीक के बारे में बताया। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने अंगिका के इस नवाचार की प्रशंसा की और इसे बनारसी साड़ी उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया।
भविष्य की योजनाएं
अंगिका का सपना है कि वह बनारसी साड़ी को पूरी दुनिया में एक नई पहचान दिलाएं और इसे एक अंतरराष्ट्रीय ब्रांड के रूप में स्थापित करें। वह चाहती हैं कि पाइनएप्पल से बने धागों से बनने वाली यह साड़ी दुनिया के हर कोने में पहचानी जाए और इसे पर्यावरण के अनुकूल फैशन के रूप में देखा जाए।
उनका यह प्रयास न केवल बनारसी साड़ी उद्योग को नई दिशा दे रहा है, बल्कि यह बुनकरों की आर्थिक स्थिति को भी सुधार रहा है। इस तकनीक से साड़ियों की मांग में इजाफा हो रहा है, जिससे बुनकरों को भी बेहतर अवसर मिल रहे हैं। अंगिका की इस पहल से साबित होता है कि जब पारंपरिक कला को आधुनिक तकनीक से जोड़ा जाए, तो वह न केवल सशक्त होती है, बल्कि इसका भविष्य भी सुरक्षित हो जाता है। अंगिका कुशवाहा की यह कहानी बताती है कि कैसे युवा पीढ़ी अपनी परंपराओं को आधुनिकता के साथ जोड़कर न केवल अपनी पहचान बना रही है, बल्कि समाज और देश को भी एक नई दिशा दे रही है।