चंदौलीः नौगढ़ का एक ऐसा पत्थर जो नहीं होने देता बूढ़ा
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औरवाटांड़ की पहाड़ियों के लौह शिलाजीत से चंगा हो गए थे चंद्रा स्वामी
विजय विनीत
नौगढ़। चंदौली जिले के नौगढ़ में विंध्य की पहाड़ियों पर ऐसा पत्थर पाया जाता है जो इंसान को कभी बूढ़ा नहीं होने देता। यह पत्थर औरवाटांड़ की पहाड़ियों पर पाया जाता है। इसके सेवन से बूढ़े इंसान में भी 20 वर्ष के जवान की तरह ताकत आ जाती है। क्या आप जानते हैं कि वो कौन सा पत्थर है? इसे लौह शिलाजीत के नाम से जाना जाता है। यह ऐसी अचूक दवा है जिसने इंदिरा गांधी के गुरु चंद्रा स्वामी को भी चंगा कर दिया था। नौगढ़ के पहले चिकित्सक डा.श्रीनाथ ने उनका उस समय उपचार किया था, जब वह कई गंभीर बीमारियों से ग्रसित थे।
नौगढ़ के औरवाटांड़ की पहाड़ियों पर लौह शिलाजीत गर्मी के दिनों में पाया जाता है। दरअसल यह पत्थरों का मद होता है। जेठ और अषाढ़ के महीने में जब सूर्य की किरणों से औरवाटांड़ की पहाड़ियां गर्म होती हैं तो पत्थरों से रस बहने लगता है। वनवासी समाज के लोग लौह शिलाजीत को इकट्ठा करते हैं और औने-पौने दाम में बिचौलियों के हाथ बेच देते हैं। औरवाटांड़ की पहाड़ियों पर लौह शिलाजीत की पहचान करीब 17 साल पहले हुई थी। इस शिलाजीत की खोज काशी वन्यजीव प्रभाग के तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी रमेश कुमार पांडेय ने की थी। विंध्य की पहाड़ियों पर जड़ी बूटियों के अनुसंधान के दौरान इस शिलाजीत को पहचाना गया। लैब में टेस्ट कराया गया तो पता चला कि औरवाटांड़ में पाया जाने वाला लौह शिलाजीत दुर्लभ है। यह सिर्फ ताकत ही नहीं, असाध्य शुगर (मधुमेह) की बीमारी का खात्मा करने की ताकत रखता है।
नौगढ़ के पहाड़ तब निकलती है यह अचूक औषधि
आईएफएस रमेश चंद्र पांडेय बताते हैं कि शिलाजीत चार तरह का होता है-स्वर्ण, रजत, ताम्र और लौह। लौह शिलाजीत का रंग काला होता है। यह भी तीन तरह का होता है। गिद्ध की पंख की तरह का लौह शिलाजीत सबसे उत्तम होता है। यह कड़वा, सलोना और शीतवीर्य होता है। दूसरा, गोमूत्र जैसे गंध वाला लौह शिलाजीत। यह लाल रंग का होता है। यह स्निग्ध, मृदु, पचने में भारी, कड़वा, कसैला और शीतल होता है। तीसरा, लौह शिलाजीत गुगल जैसा होता है। यह कड़वा और सलोना होता है। श्री पांडेय बताते हैं कि औरवाटांड में अध्ययन के दौरान दुर्लभ लौह शिलाजीत बूटी को ढूंढने वाली टीम में वन विभाग के अधिकारी एसपी सिंह, एससी मिश्र, सीएल यादव, आरएस उपाध्याय, सीएन सिंह और एसएस राय शामिल थे।
असाध्य शुगर का खात्मा करता है लौह शिलाजीत
हालांकि नौगढ़ के पहले चिकित्सक डा. श्रीनाथ पहले से ही इस बूटी के महत्व के बारे में जानते थे। गर्मी के दिनों में वह वनवासियों के साथ औरवाटांड़ की पहाड़ियों पर जाया करते थे। उनके ज्येष्ठ पुत्र एवं दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार के.अरविंद बताते हैं कि उनके पिता औरवाटांड की पहाड़ियों से लौह शिलाजीत और तमाम जड़ी-बूटियां लाकर वनवासी समाज का इलाज करते थे। विंध्य की पहाड़ियों के लौह शिलाजीत से ही चंद्रा स्वामी को नया जीवन मिला था। उनके पिता आयुर्वेदिक औषधियां खुद ही तैयार करते थे।
नौगढ़ इलाके में लोग जब बीमारियों से मर रहे थे और कोई चिकित्सक वहां जाने के लिए तैयार नहीं था तब उनके पिताजी पहुंचे थे। वह अक्सर बताया करते थे कि महर्षि चरक लौह शिलाजीत को दुर्लभ औषधि मानते थे। पृथ्वी पर कोई ऐसा रोग नहीं है जिसको इस शिलाजीत के विधि पूर्वक प्रयोग करने से खत्म न किया जा सके। लौह शिलाजीत का सेवन करने से तनाव को पैदा करने वाले हार्मोंस संतुलित हो जाते हैं। इंसान को तनाव की समस्या से मुक्ति मिल जाती है।
फायदे लौह शिलाजीत के
लौह शिलाजीत हड्डी की बीमारियों का सफाया करता है। जोड़ों का दर्द और गठिया की समस्या पूरी तरह दूर हो जाती है। साथ ही ब्लड प्रेशर की समस्या का समाधान हो जाता है। यह शरीर में खून को साफ करके नसों में रक्तसंचार को ठीक करता है। इसमें अधिक अधिक मात्र में विटामिन और प्रोटीन मौजूद है, जिसकी की वजह से शरीर में उर्जा का संचार होता है। उम्र बढऩे के साथ साथ चेहरे और शरीर की त्वचा झुर्रीदार होना तो आम बात है। लौह शिलाजीत को सफेद मसूली और अश्वगंधा के साथ संस्तुत मात्रा में सेवन करने पर यह शरीर को फिर से जवां बनाने का काम करता है। यह चर्बी, मधुमेह, श्वास, मिर्गी, बवासीर, उन्माद, सूजन, कोढ़, पथरी, पेट के कीड़े और कई अन्य रोगों को नष्ट करने में सहायक होता है। यह जरूरी नहीं है कि इसका सेवन तभी किया जाए जब कोई बीमारी हो। स्वस्थ मनुष्य भी इसका सेवन कर सकता है। इससे शरीर पुष्ट होता है और बल मिलता है। पाचन शक्ति, स्मरण शक्ति और शारीरिक शक्ति में भी वृद्धि होती है।