किसान मक्का से कमाएं मोटा मुनाफा

मक्का के लाभ ही लाभ
विजय विनीत
खरीफ फसलों में धान के बाद मक्का प्रदेश की मुख्य फसल है। इसकी खेती भुट्टे एवं हरे चारे के लिए की जाती है। मिट्टी मक्का की खेती के लिए उत्तम जल निकासी वाली बलुई दोमट भूमि उपयुक्त होती है। बीज मक्के की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए उन्नतिशील प्रजातियों का शुद्ध बीज ही बोना चाहिये। बुवाई के समय क्षेत्र अनुकूलता के आधार पर प्रजाति का चयन करना चाहिए। विभिन्न क्षेत्रों के लिये संस्तुत कुछ प्रजातियों में (संकर)- गंगा-11, सरताज,एच. क्यू. पी.-एम-5, दकन- 107,(संकुल)-प्रभात, नवज्योति, पूसा कम्पोजिट, स्वेता सफेद, नवीन, आजाद उत्तम आदि मक्के की मुख्य किस्में हैं।
मक्का की अच्छी उपज लेने के लिये आवश्यक है कि समय से बुवाई, निराई-गुड़ाई, तथा खरपतवार पर नियंत्रण किया जाय। उर्वरकों की संतुलित मात्रा में प्रयोग तथा सिंचाई एवं कृषि रक्षा को समय-समय पर अपनाया जाय। किसान उपयुक्त पद्धतियों को अपनाकर संकर या संकुल प्रजातियों की उपज आसानी से 35 से 40 कुन्तल प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।
1-जुताई पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा अन्य दो या तीन जुताईयां देशी हल या कल्टीवेटर द्वारा करनी चाहिए।
2-समय मक्का की बुवाई का उपयुक्त समय मध्य जून से लेकर अगस्त के प्रथम सप्ताह तक होता है। बुवाई के 15 दिन बाद एक निराई अवश्य कर देनी चाहिए।
3-बीजोपचार बीज बोने से पहले कार्बेन्डाजिम से शोधित कर लेना चाहिए।
4-बीज दर देशी – छोटे दाने वाली प्रजाति के लिये 18 से 20 किग्रा प्रति हेक्टे0 संकर एवं अन्य प्रजातियों के लिए 20 किग्रा प्रति हेक्टे0 बीज की आवश्यकता होती है।
5-बुवाई बुवाई के समय लाइन से लाइन की दूरी अगैती किस्मों में 45 सेमी., मध्यम एवं देर से पकने वाली प्रजातियों में 60 सेमी. रखनी चाहिए।
6-खाद मक्का की भरपूर उपज लेने के लिए किसानों को मिट्टी की जांच के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। जिंक तत्व की कमी के क्षेत्रों में अन्तिम जुताई के समय 20 किग्रा प्रति हेक्टे0 की दर से जिंक सल्फेट को मिट्टी में मिलाकर बुवाई करनी चाहिए।
7-निराई-गुड़ाई मक्का की खेती में निराई-गुड़ाई का विशेष महत्व है। इसके द्वारा खरपतवार नियंत्रण के साथ आक्सीजन का भी संचार बना रहता है। पहली निराई जमाव के पन्द्रह दिन बाद और दूसरी पैंतीस से चालीस दिन बाद करनी चाहिए। खरपतवारों को नष्ट करने के लिए एट्रजीन अथवा एराक्लोर का प्रयोग करना चाहिए।
8-रोग एवं कीट मक्के में कई प्रकार के रोगों का प्रकोप देखा जाता है। जिनमें तुलासिता, झुलसा, तना सड़न, तना छेदक, पत्ती लपेटककीट, टिड्डा, भुड़ली आदि मुख्य हैं। इनसे बचाव और उपचार के लिए समय-समय पर कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करते रहना चाहिए।
9-अन्य सावधानियां वर्षा के पानी व तेज हवा से फसल को बचाने के लिए पौधों की जड़ों पर मिट्टी पलटने वाले हल से मिट्टी चढ़ा देना चाहिए। कौओं, चिड़ियों तथा जानवारों से फसल की रक्षा के लिए रखवाली आवश्यक है।
10-मक्के की बालियों की पत्तियां पीली होने पर फसल की कटाई शुरू कर देनी चाहिए।
मक्का और हमारा स्वास्थ्य
पौष्टिकता से भरपूर मक्का पूरी दुनिया में प्रधान भोजन के रूप में जाना जाता है। इसे कई रूपों में प्रयोग किया जाता है। यह विटामिन्स, मिनिरल्स, कार्बोहाइड्रेट्स, फाइबर व मैगनीज का अच्छा श्रोत है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए कई तरह से लाभप्रद है।
* यह एंटीआक्सीडेन्ट का काम करता है। जो अच्छे स्वास्थ्य और युवावस्था को बनाए रखने में सहायक है।
* यह फाइबर का अच्छा स्त्रोत है। इसमें घुलनशील और अघुलनशील फाइबर का उच्च अनुपात होता है । जिसके कारण यह पेट के कैंसर से बचाव करता है।
* इसमें मौजूद फाइबर, प्रोटीन और विटामिन बी ब्लड शुगर को नियंत्रित करता है और अत्यधिक उतार-चढ़ाव से बचाता है।
* यह फोलिक एसिड का अच्छा स्त्रोत है जो गर्भवती महिलाओं और शिशुओं के लिए बहुत ही उपयोगी है।
* इसमें मौजूद बीटा कैरोटीन त्वचा और आंखों को स्वस्थ रखता है।
* इसका तेल हृदय संबंधी रोगों के नियंत्रण में लाभदायक है। यह शरीर में कोलेस्ट्रोल की मात्रा को नियंत्रित करता है।
* वैज्ञानिक खोजों में पाया गया है कि इसमें एसआईवी की रोकथाम के गुण होते हैं।
* इसके अलावा यह कई प्रकार के सौन्दर्य प्रसाधनों के निर्माण में भी काम आता है।
* इसका प्रयोग कार्नफ्लेक्स और पॉपकार्न के रुप में पूरी दुनिया में बहुतायत से किया जाता है।