कैथी से मार्कंडेय महादेव तक की टूटी सड़क पर चल रही आस्था, पर अब भी अधूरी हैं उम्मीदें

विशेष संवाददाता
वाराणसी। कभी हरियाली से आच्छादित, आस्था और संस्कृति से भरा कैथी गांव आज खामोश है। सन्नाटा ऐसा कि जैसे गांव की धड़कन ही थम गई हो। वाराणसी-गोरखपुर राष्ट्रीय राजमार्ग से मार्कंडेय महादेव धाम को जोड़ने वाली सड़क, जो कभी ग्रामीणों और श्रद्धालुओं की जीवनरेखा हुआ करती थी, आज खुद एक पीड़ा बन चुकी है।
कैथी चौराहे से महज ढाई किलोमीटर दूर स्थित मार्कंडेय महादेव धाम तक का रास्ता आज विकास की बाट जोह रहा है। लोक निर्माण विभाग द्वारा इस मार्ग का चौड़ीकरण कार्य प्रारंभ तो हुआ, लेकिन बीच राह में ही सुस्त पड़ गया। लगभग 2400 मीटर लंबी इस सड़क में से 1600 मीटर तक का निर्माण कार्य तो पूरा कर लिया गया है, लेकिन शेष 800 मीटर का कार्य आज भी अधूरा पड़ा है। और यही अधूरापन गांव की पीड़ा बन गया है।
सड़क की पुरानी परतें उखड़ चुकी हैं, नई बिछ नहीं सकी हैं। सड़क पर बने गड्ढे अब छोटे जलाशयों में तब्दील हो चुके हैं, जहां पैदल चलना तो दूर, साइकिल से गुजरना भी किसी जंग जीतने जैसा अनुभव होता है। कैथी गांव का मध्य हिस्सा पूरी तरह उबड़-खाबड़ हो चुका है। बारिश के मौसम में इन गड्ढों में भरा पानी बच्चों की मुस्कान नहीं, बल्कि बुजुर्गों की चिंता बन गया है।

ग्रामवासियों की आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं। 90 से अधिक परिवार, जिनकी संपत्तियां इस चौड़ीकरण की जद में आईं, उन्होंने स्वेच्छा से अपने मकानों को हटा लिया, ताकि विकास का पहिया चल सके। लेकिन क्या मिला? नाली निर्माण अधूरा, बिजली के खंभे अब भी बीच सड़क खड़े हैं, और निर्माण सामग्री कूड़े की तरह इधर-उधर पड़ी हुई है। लोक निर्माण विभाग ने मई माह तक काम पूरा करने का वादा किया था, लेकिन जून शुरू हो चुका है और केवल आधा काम ही पूरा हो पाया है।
अब सावन का महीना सिर पर है। वह महीना जब काशी के निकट स्थित यह मार्कंडेय धाम शिवभक्तों से गूंजता है। कांवरियों की कतारें, हर-हर महादेव के जयकारे, और प्रसाद की दुकानों से उठती खुशबुएं—ये सब अब उबड़-खाबड़ रास्तों की तपस्या में खो जाएंगी। जो कांवरिया 100 किलोमीटर दूर से नंगे पांव चलकर बाबा के दर्शन के लिए आते हैं, उन्हें इस 2.4 किलोमीटर की दूरी में हिम्मत हारनी पड़ सकती है।
गांव के बुजुर्गों की आंखों में आंसू हैं। कहते हैं, “बाबा तो हमारे गांव में विराजते हैं, लेकिन उनके घर तक जाने का रास्ता ही टूट गया है। अगर यही हाल रहा तो इस बार सावन फीका जाएगा।”

यह सिर्फ सड़क नहीं है, यह गांव के जीवन का हिस्सा है, श्रद्धा की डोर है, और पर्यटकों को गांव से जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण मार्ग है। एक्टिविस्ट वल्लभ पांडेय कहते हैं कि आज जब देश “विकसित भारत” की बात कर रहा है, तब इस गांव में टूटी सड़क पर चलती उम्मीदें कुछ सवाल पूछ रही हैं, क्या विकास सिर्फ शहरी आंकड़ों तक सीमित रहेगा?
वह सवाल करते हैं कि क्या श्रद्धा की राहों को इस तरह की अनदेखी का शिकार होना पड़ेगा? कैथी की सड़क का हर गड्ढा सिर्फ एक निर्माण की कमी नहीं, बल्कि उपेक्षा की एक गहरी कहानी है। उम्मीद की जा रही है कि यह कहानी जल्द ही बदले, क्योंकि आस्था इंतज़ार नहीं करती।