लौकी: सेहत संवरे, बैंक बैलेंस भी बढ़े
लौकी से बनाएंरायता, कोफ्ता, अचार, हलवा, खीर
विजय विनीत
लौकी गर्मी की महत्वपूर्ण सब्जी है। यह सब्जी गर्मी में तरवाट देती है। इसके बीज को औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके कच्चे फलों से रायता, कोफ्ता, अचार, हलवा, खीर आदि स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं। यह कब्ज को दूर करने में बेहद लाभकारी माना जाता है। इसकी पत्तियों, तनों और गूदे से कई तरह की दवाइयां बनाई जाती हैं। इसका शारीरिक प्रभाव ठंडा होता है। इसके बीज का तेल सरदर्द में राहत दिलाता है। सुपाच्य होने के कारण चिकित्सक रोगियों को इसकी सब्जी खाने की सलाह देते हैं। लौकी गर्म जलवायु की फसल है। इसके फलों की आकृति दो तरह की होती है-लंबी और गोल। आमतौर पर लंबी और पतली लौकी उगाने का प्रचलन अधिक है। इसे हर तरह की जमीन में उगाया जा सकता है। बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए बेहद उपयुक्त है। गर्मी के सीजन में इसकी हर हफ्ते सिंचाई करनी जरूरी होती है।
उन्नतशील किस्में
पूसा समर प्रोलीफिक लांग लौकी की गोल किस्म है। औसतन उपज 150-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। पूसा समर प्रोलीफिक राउण्ड लौकी की गोल किस्म है। औसतन उपज 150-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। जबकि पूसा नीवन निर्यात के लिए उपयुक्त किस्म है। इसके फल बेलनाकर होते हैं। औसतन उपज 250-300 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है। यह दो माह में तैयार हो जाती है। पूसा संदेश को हर सीजन में उगाया जा सकता है। पूसा संकर के फल हरे, सीधे लंबे व हल्के रूप के होते हैं। यह सुगम पैकिंग व दूर तक ले जाने के लिए उपयुक्त होती है। इसके फल तुड़ाई के लिए 45 -55 दिन में तैयार हो जाते हैं। इसका उत्पादन पूसा नवीन की तुलना में डेढ़ गुना है। इनके अलावा संकर पूसा मेघदूत, पंजाब लंबी, पंजाब कोमल आदि प्रजातियां काफी लोकप्रिय हैं। कोयम्बटूर-एक और अर्का बहार का उत्पादन 40 से 50 टन होता है। इसका अतिरिक्त पूसा संकर-1, पूसा संकर-2, पूसा संकर-3 किस्म के फल 50 से 55 दिन में आने लगते हैं। पीबीओजी-61, बीजीएलसी-2-1 की खेती उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर की जाती है। तीन से चार किग्रा बीज बुआई के लिए पर्याप्त होता है। नरें?द्र रश्मि, नरेंद्र शिशिर और नरेंद्र धारीदार का विकास नरें?द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने किया है। ये किस्में अधिक उपज देने वाली हैं। नरेंद्र संकर लौकी-4 और आजाद नूतन हर मौसम के लिए उपयुक्त है।
बुआई का समय
इसकी बुआई का समय पहली फरवरी से लेकर मार्च के पहले सप्ताह तक होती है। लौकी की बुआई नालियों पर की जाती है। नालियों के बीच इसका फासला ढाई मीटर रखा जाता है। अच्छी पैदावार के लिए प्रति हेक्टेयर 30 टन गोबर खाद, 400 कि०ग्रा० कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट, 200 किग्रा यूरिया, 300 किग्रा सुपर फॉस्फेट और 100 किग्रा म्यूरेट आॅफ पोटाश का उपयोग करना चाहिए। जब फल आने शुरू हो जाएं तो फसल पर एक दो तुड़ाई के बाद एक प्रतिशत यूरिया का घोल छिड़कने से पौधों की बढ़वार व फलत बनी रहती है। इसे हर तरह की जमीन में उगाया जा सकता है। नदियों के किनारे वाली जमीन में भी इसकी खेती उपयुक्त रहती है। कुछ अम्लीय भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है। इसकी पंक्ति से पंक्ति की दूरी डेढ़ मीटर और पौधे से पौधे की दूरी एक मीटर होनी चाहिए। जून-जुलाई की फसल के लिए 3.4 किग्रा बीज की जरूरत पड़ती है। प ौधों को पाले से बचाने के लिए उत्तर-पश्चिम दिशा में टट्टियां लगा देनी चाहिए।
सिंचाई
फूल आने की अवस्था में हर पांचवे दिन सिंचाई करनी चाहिए इन फसलों को पानी की अधिक आवश्यकता होती है। अत: खेत में नमी बनाये रखें। लौकी की फसल के साथ कई तरह के खर-पतवार उग जाते हैं। उनकी रोकथाम के लिए तीन-चार बार निराई करनी चाहिए। मैलिक हाइड्राजाइड नाम वृद्धि नियाम के उपयोग से लोकी की उपज में डेढ़ से दो गुनी वृद्धि होती है। इस दवा के छिड़काव से लौकी में मादा फूल जल्दी और अधिक आते हैं। इससे पैदावार बढ़ जाती है। इसे गर्म पानी में घोलें। बाद में संस्तुत मात्रा पानी में मिला दें।
कीट नियंत्रण
फसल को कीटों से बचाने के लिए समय-समय पर कीटनाशकों का इस्तेमाल करना चाहिए। लौकी पर लालड़ी कीट का प्रकोप बड़े पैमाने पर होता है। यह कीट पत्तियों और फूलों को खाता है। इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियान का छिड़काव विशेषज्ञ की सलाह पर करनी चाहिए। फल की मक्खी की रोकथाम के लिए प्रभावित फलों को एकत्र कर नष्ट कर दें। बाद में मैलाथियान का छिड़काव करें। चूर्णित आसिता (पाउडरी मिल्डयू) और मृदुरोमिल आसिता (डाउनी मिल्ड्यू ) की रोकथाम करना चाहिए। लौकी की फसल की अवधि 70 से 130 दिनों की है। गर्मी के सीजन में लौकी की उपज 250 से 300 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है।