महाश्मशान में जलते शवों के बीच अनोखी होली

महाश्मशान में जलते शवों के बीच अनोखी होली

एक ओर जल रही थीं चिताएं तो दूसरी ओर भस्म से खेल रहे थे होली

अपनी सदियों पुरानी परंपरा और अनूठी संस्कृति के लिए मशहूर वाराणसी में मंगलवार को एक बार फिर अनोखा नजारा देखने को मिला। हर साल की भांति इस बार भी वाराणसी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर काशीवासियों ने जलते शवों के बीच चिता भस्म से होली खेली। विरक्ति के स्थान, श्मशान भूमि पर जलती चिताओं से निकाली गई गरम भस्म मस्ती में उड़ाई गई। दाहकर्म के दौरान शोक में डूबे लोगों पर संगीत के बादल भी छाए। चिताओं के पास 51 वाद्ययंत्रों के माध्यम से मुखर चिताओं पर लेटे शव रूप शिव को समर्पित था। अपनी तरह के इस खास आयोजन में बनारस के लोगों, साधुओं के साथ साथ विदेशी नागरिकों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।


यह नजारा काशी के मणिकर्णिका घाट पर मंगलवार को दोपहर में देखने को मिला। घाट पर एक ओर जहां चिता जल रही थी वहीं दूसरी ओर चिता भस्म से होली खेली जा रही थी। घाट पर शवदाह करने आये लोगों के लिए यह कम आश्चर्यजनक नहीं था। इस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए विदेशी पर्यटक भी मौजूद थे। विदेशी पर्यटकों के लिए भी यह किसी कौतुहल से कम नहीं था।


घाट पर विदेशी जोड़े भी इसमें शामिल हुए। पूर्व काल में संन्यासियों और औघड़ इस परम्परा को निभाते थे, लेकिन वर्तमान में उस परंपरा का निर्वाह करने के लिए भारी संख्या में गृहस्थ मणिकर्णिका घाट पर जुटे। चिता भस्म से होली और विभिन्न प्रकार के वाद्ययंत्रों का वादन एक साथ शुरू हुआ। संक्षिप्त आलाप के बाद 11 सितारों की झनकार जैसे ही जोड़ की ओर बढ़ी खुद को शिव का गण महसूस करने वाले भक्तों का उत्साह भी बढ़ता रहा।


आराम से एक दूसरे पर भस्म छिड़क रहे भक्त धीरे-धीरे उतावले होने लगे। 11 जोड़ी तबलों के साथ पखावज, मृदंग, ढोलक और ढोल से एक साथ उठने वाली अनुगूंज उनमें और भी जोश भर रही थी। संगीत पर झूमते भक्तों में से पहले एक ने हवा में भस्मी उड़ाई। फिर क्या था देखते ही देखते दर्जनों हाथ एक साथ हवा में चिता भस्म उड़ाने लगे। सितारों पर झाला बजने की नौबत आते-आते समूचा श्मशान स्थल चिता भस्म की धुंध में घिर गया।


देश के विभिन्न हिस्सों से दाहकर्म के लिए घाट पर जुटे लोग आश्चर्य भरी नजरों से पूरे माजरे को देखते रहे। होली के पहले किसी अपने को खोने का दुख भूल कर वह भी कुछ देर के लिए चिताभस्म की होली का हिस्सा बन गए। इससे पूर्व श्मशानेश्वर महादेव की विधान पूर्वक अर्चना की गई। उन्हें भांग, गांजा और मदिरा का विशेष भोग भी अर्पित किया गया।


भगवान शिव ने कभी यहां खेली थी होली

ऐसी मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन देवी पार्वती का गौना कराने के बाद अगले दिन भगवान शंकर ने महाश्मशान पर जाकर भूतों-प्रेतों और गणों सहित वहां निवास करने वाली कई अदृश्य शक्तियों के साथ चिता भस्म की होली खेली थी। काशी के संन्यासी और औघड़ संत उसी स्मृति को ध्यान में रख कर मसान पर चिता भस्म से होली खेलते थे। अब इस परंपरा का निर्वाह गृहस्थों की ओर से किया जा रहा है।

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