जिएं तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले…

जिएं तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले…

गर्मी में ठंड का एहसास कराता गुलमोहर

विजय विनीत

जिएं तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले…/मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिए…। कवि दुष्यंत ने अपनी रचनाओं में गुलमोहर की तारीफ यूं ही नहीं की थी। भरी दोपहरिया में नारंगी रंग के फूलों की चादर ओढ़े गुलमोहर, हीट आईलैंड बनी काशी में हर किसी की आंखों को ठंडक का एहसास कराता है। ज्यों-ज्यों गरमी बढ़ती है, त्यों-त्यों गुलमोहर पर बहार आती है। जब फूलों से बावले हुए सेमल का मौसम बदलता है तब आती है गुलमोहर की बारी।
अंगारों जैसे लाल रंग वाले गुलमोहर की जन्मभूमि मेडागास्कर को माना जाता है। कहते हैं कि सोलहवीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने मेडागास्कर में इसे देखा था। 18वीं शताब्दी में फ्रेंच किटीस के गवर्नर काउंटी डी पोएंशी ने इसका नाम बदल कर अपने नाम से मिलता-जुलता नाम पोइंशियाना रख दिया। बाद में यह सेंट किटीस व नेवीस का राष्ट्रीय फूल भी बनाया गया। रॉयल पोइंशियाना के अलावा इसे अंगारों जैसे रंग के कारण ‘फ्लेम ट्री’के नाम से भी जाना जाता है।
सेंट थॉमस ईसाइयों में यह मान्यकता है कि जब ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था तब उनके क्रॉस के पास गुलमोहर का छोटा सा पेड़ था। ईसा के खून के छींटे जब उस पेड़ पर पड़े तो उसके फूलों का रंग सुर्ख हो गया।

बावले हुए सेमल के बाद गुलमोहर की आती है बारी

फ्रांस के लोगों ने शायद गुलमोहर को सर्वाधिक आकर्षक नाम दिया है। ये इसे स्वर्ग का फूल कहते हैं। वास्तव में गुलमोहर का सही नाम ‘स्वर्ग का फूल’ ही है। भरी गर्मियों में गुलमोहर के पेड़ पर पत्तियां तो नाममात्र होती हैं, लेकिन फूल इतने ज्यादा होते हैं कि गिनना कठिन। बनारस समेत गर्म और नमी वाले भारत के सभी स्थानों में इसे आसानी से उगाया जा सकता है।
गुलमोहर के फूल मकरंद के अच्छे स्रोत हैं। शहद की मक्खियां फूलों पर खूब मंडराती हैं। मकरंद के साथ इन्हें इन फूलों से पराग भी प्राप्त होता है। सूखी कठोर भूमि पर खड़े पसरी हुई शाखाओं वाले गुलमोहर पर पहला फूल निकलने के एक सप्ताह के भीतर ही पूरा वृक्ष गाढ़े लाल रंग के अंगारों जैसे फूलों से भर जाता है। ये फूल लाल के अलावा नारंगी, पीले रंग के भी होते हैं।

दो सौ साल पुराना है इतिहास

भारत में गुलमोहर का इतिहास करीब 200 साल पुराना है। संस्कृत में इसका नाम ‘राज-आभरण’ है। जिसका अर्थ है राजसी आभूषणों से सजा हुआ वृक्ष। गुलमोहर के फूलों से भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा के मुकुट का श्रृंगार किया जाता है। इसलिए संस्कृत में इस वृक्ष को ‘कृष्ण चूड’ भी कहते हैं। अप्रैल से लेकर जून-जुलाई तक गुलमोहर अपने ऊपर लाल नारंगी रंग के फूलों की चादर ओढ़े, हर किसी की आखों को ठंडक का अहसास देता है। इसके बाद फूल कम होने लगते हैं, लेकिन नवंबर तक पेड़ पर फूल देखे जा सकते हैं। इसी वजह से इसे पार्क, बगीचे और सड़क के किनारे लगाया जाता है।

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