मोदी के बनारस में हुकुलगंज की कई गलियां तोड़ती हैं लोगों के हाथ-पांवः ग्राउंड रिपोर्ट

मोदी के बनारस में हुकुलगंज की कई गलियां तोड़ती हैं लोगों के हाथ-पांवः ग्राउंड रिपोर्ट

आरोपः ”गैर-मुल्क के नागरिकों जैसा सुलूक करते हैं सत्तारूढ़ दल के पार्षद, मेयर और मंत्री”

विशेष संवाददाता

ऊबड़-खाबड़ रास्ते। जगह-जगह उखड़े हुए चौका-पत्थर। जर्जर पानी की पाइप लाइनें। खुले और टूटे सीवर के ढक्कन। नीचे से सड़ चुके बिजली के पोल। बिखरा और बस्साता कूड़ा और उसी रास्ते से गुज़रते तमाम शहरी बाशिंदे। यह हाल है बनारस के हुकुलगंज स्थित उस गली की जहां के पार्षद, विधायक, मंत्री और मेयर भाजपा के हैं। संसद में इस इलाके का प्रतिनिधित्व खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते हैं। हुकुलगंज की जिस गली में जाएंगे, ठोकर लगने और हाथ-पैर टूटने का खतरा हर वक्त बना रहता है। इलाके के लोग सरकार को कोसते हैं और बीजेपी के जनप्रतिनिधि हैं कि वो कभी इस इलाके में झांकने तक नहीं आते।

बनारस के हुकुलगंज के जिस गली का हम जिक्र कर रहे हैं, वह  नगर निगम के अभिलेखों में वॉर्ड 11 में दर्ज है। यहां सबसे बड़ी समस्या है सीवर और चौका-पत्थर की। पुरनियों को भी याद नहीं कि इस वार्ड में चौका-पत्थर कब बिछा था? कुछ लोग बताते हैं कि हुकुलगंज की इस समय जो ठोकरमार गली है वह करीब तीस साल पहले कांग्रेस के वक्त पक्की बनी थी। बसपा-सपा की सरकार सत्ता में आई तो कुछ गलियों की मरम्मत हुई। ये गलियां कुछ दिनों तक ‘वेंटिलेटर’ पर रहीं और अब इन गलियों में बिछाए गए चौका-पत्थर अब अपना वजूद खो चुके हैं। शाम के वक्त बूढ़े और बच्चे इन गलियों में नहीं निकलते। जानते हैं क्यों? अंधेरी रात में कोई भी गली से गुजरता है तो ठोकर जरूर लगता है। ऐसे लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है जिनके हाथ-पैर इन्हीं गलियों में टूटे हैं।

हुकुलगंज इलाके बाशिंदे वार्ड नंबर 11 की जैसल वाली गली समेत तमाम गलियों की री-माडलिंग के लिए सालों से गुहार लगा रहे हैं, लेकिन कोई सुनने वाला ही नहीं है। शायद नगर निगम को किसी बड़े हादसे का इंतजार है। हुकुलगंज के जिन इलाकों में गलियां बदहाल हैं वहां ज्यादातर पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रहते हैं। इस इलाके के लोगों का रंज यह है कि बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता उन्हें अपना वोटर ही नहीं मानते। शायद यही वजह है कि लोगों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। सफाई कर्मचारी भी इस इलाके में गाहे-बगाहे ही आते हैं। हफ्ते में एक-दो दिन। सीवर सफाई तभी हो पाती है जब इस मुहल्ले के लोग सुविधा शुल्क देते हैं। सुविधा शुल्क नहीं देने पर सड़क के किनारे मलबा सड़ता रहता है। छुट्टा पशु गुजरते हैं और मलबे को बिखेर देते हैं।

नर्क से बदतर है जैसल वाली गली

हुकुलगंज की गलियों की बदहाली से परेशान युवाओं ने हाल ही में एक ह्वाट्सएप ग्रुप बनाया है। इस ग्रुप का नाम है, ”रामजी डेंटर- गली बनवाने के लिए आंदोलन, आप सभी सहयोग करें।” इसके ग्रुप की डीपी पर लिखा है, ”नर्क से बद्तर हुकुलगंज की जैसल वाली गली में सीवर, पानी, रास्ते की है समस्या।” इलाके के लोगों ने अनगिनत बार इलाके की समस्याओं के समाधान के लिए नगर निगम में अर्जी लगाई। समस्याओं से आज़िज आ चुके बड़े-बुज़ुर्ग अब शिकायत करते-करते थक चुके। बुजुर्गों ने उम्मीद छोड़ दी है। गलियों को सुधारवाने का जिम्मा अब युवाओं ने उठाया है। इन्हीं में से एक हैं सोनू जायसवाल। वह कहते हैं, —हमारी समस्याएं पहाड़ सरीखी हैं। सुबह उठते ही पानी के लिए लाइन लगानी पड़ती है। बजबजाती नालियां, सीवर और गलियों का कोई पुरसाहाल नहीं है। कितनी समस्याएं गिनाएं। सुना था कि मोदी हैं तो मुमकिनन है, लेकिन बीजेपी की सत्ता के दस साल गुजर जाने के बावजूद हमारी समस्याओं का कोई ओर-छोर नहीं है।

जैसल वाली गली में रहने वाले सोनू के पिता बीजेपी के कट्टर समर्थक हैं। इनकी हर कोशिश नाकाम साबित हुई है। अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, ”बीजेपी ने चुनाव को लेकर गांव चलो अभियान शुरू किया है। बनारस में पार्टी को गली चलो अभियान शुरू करने की जरूरत है। जाहिर है कि पीएम मोदी गलिया सुधरवाने नहीं आएंगे। लेकिन इलाके के लोगों ने जिन नुमाइंदों को सभासद और मेयर पद पर चुना है वो भी इधर कभी झांकने नहीं आते। बनारस की आधी से अधिक आबादी गलियों में बसती है और हुकुलगंज की ज्यादातर गलियां गंधा रही रही हैं। सिर्फ सड़कों पर फसाड लाइटें जलाने के क्या होगा। बदहाल गलियों में जिन लोगों का हाथ-पैर टूट रहे हैं उनका दर्द सुनने वाला कोई नहीं है।”

हुकुलगंज इलाके के बबलू बीजेपी के मौजूदा विधायक (मंत्री) और पार्षद से खफा हैं। वह कहते हैं, ”हमारे इलाके का हाल देख लीजिए। कोई यह नहीं कह सकता है ठोकरमार गलियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इलाके की हैं। चुनाव के वक्त इलाकाई पार्षद बृजेश चंद श्रीवास्तव वोट मांगने आए थे। जीतने के बाद कभी लौटे ही नहीं। हमने उन्हें वोट देकर जिताया और वो आश्वासन गुरु बन गए। बदहाल रास्तों के चरते बहुत से छोटे बच्चों ने अब स्कूल जाना छोड़ दिया है। गलियों में गाड़िया ही नहीं, ठेले-खोमचे वाले भी आने से कतराते हैं। सड़क पर भीषण गंदगी के  चलते हर कोई दुखी और सरकार के उपेक्षा के चलते खफा हैं। बारिश के दिनों में इस इलाके की कैफियत देखते बनती है। हर घर में मरीजों का तांता लग जाता है। कोई उल्टी-दश्त की चपेट में होता है तो कोई वायरल बुखार से कराहता मिलता है। मुश्किलों का अंतहीन सिलसिला टूटता नजर नहीं आ रहा है।”

कई मकानों में पड़ी दरारें

बेहद जर्जर हो चुकी हुकुलगंज की जैसल वाली गली में कई मकानों की दीवारों पर दरारें पड़ चुकी हैं। 30 वर्षीय युवा मनीष अपने मकान के पिछले हिस्से की दरार दिखाते हुए कहते हैं, ”कुछ ही बरस पहले हमने अपने घर की मरम्मत कराई थी। गलियां दरकी तो हमारा मकान भी दरकने लग गया। मकान की अब दोबरा मरम्मत करानी पड़ेगी। मकान के दरवाजे पर ही सीवर की टंकी है। हमें होश नहीं है कि हमारी गली में नगर निगम ने कभी कोई काम कराया होगा। जब से होश संभाला तब से नए चौका-पत्थर लगाने के लिए हम बीजेपी नेताओं के यहां गुहार लगाते-लगाते थक गए हैं। न कोई इधर आता है और न ही कोई सुनता है।”

वहीं, सोनू बताते हैं कि गली में कोई भी साइकिल चलाकर सड़क पार नहीं कर सकता। वह बताते हैं, ”सड़क के बीच-बीच में जर्जर सीवर लाइनें इतना बदहाल हैं कि जीवन नारकीय हो गया है। अपनी शिकायत लेकर इलाके केलोग कई मर्तबा पार्षद के घर गए। दो-चार बार कहने पर सीवर की सफाई करा दी जाती है, जबकि पूरी गली में नए सीवर और चौका-पत्थर की ज़रुरत है।”

नसीम का दर्द दूसरा है। वह पानी की समस्या को लेकर परेशान हैं। कहते हैं, ”गली से पीने के पानी का जो लाइनें की गुजरी हैं उनमें कई जगह छेद हो गया है। कई जगह पाइपें सीवर लाइनों से जुड़ गई हैं। लोगों को समझ में ही नहीं आता है कि वो सीवर का पानी पी रहे हैं अथवा जल निगम का। पानी से हमेशा बदबू आती रहती है। सप्लाई वाला पानी गंदा रहता है। सुबह जब पानी की सप्लाई चालू होती है तो सीवर जाम होने के कारण गली में पानी लग जाता है। बाद में पानी धीरे-धीरे निकलता है।”

हुकुलगंज इलाके के जैसल वाली गली के जेपी चौधरी कहते हैं, ”दुर्दशा झेलने के हम आदी हो गए है। हम जब भी पार्षद बृजेश चंद श्रीवास्तव के पास जाते हैं तो उनका रटा-रटाया एक ही जवाब मिलता है कि जिस गली के लोगों ने हमें वोट नहीं दिया वहां हम काम क्यों काराएं? वोट लेने वालों के पास जाएं। मुझे वोट नहीं मिला है, लिहाजा हम भी कोई का नहीं कराएंगे। हाल ही में पार्षद से मिलने गए तो बताया गया कि वो गोरखपुर घूमने गए हैं। हम महीनों से परेशान है, मगर वो हमारी सुनने के लिए तैयार नहीं हैं। लगात है जैसे उन्होंने हमें गैर-मुल्क का नागरिक मान लिया है।”

नोटा दबाएंगे लोग

हुकुलगंज की ठोकरमार जैसल वाली गली के रवि, अतुल, गुड्डू सहित दर्ज़नों युवाओं ने अपनी व्यथा का इजहार करते हुए कहा, ”चुनाव आने दीजिए। हम भी नेताओं के बायकाट का बैनर लगवाएंगे। चाहे जिस भी पार्टी का नेता हमारे इलाके में आएगा हम विरोध करेंगे। काला झंडा दिखाएंगे। चुनाव में नोटा दबाएंगे, क्योंकि हमारी समस्याएं नासूर बन चुकी हैं और हमारे दर्द को को सुनने-समझने वाला नहीं है। हमें तो यह भी नहीं मालूम की यह इलाका शहर उत्तरी में आता है और इस इलाके के विधायक रविंद्र जायसवाल सूबे में मंत्री हैं।”

साल 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी विधायक रविंद्र जायसवाल 1,34,471 वोटों के अंतर चुनाव जीते थे। वो विधायक से मंत्री भी बन गए, लेकिन उनके इलाके में गलियों का बुरा हाल है। यहां विकास सपना है। योगी सरकार 2.0 में मंत्री रविंद्र जायसवाल ने तीसरी बार जीत दर्ज़ की है। तीसरी मर्तबा पीएम नरेंद्र मोदी के लिए भी बीजेपी के नेताओं का रेला दौड़ लगा रहा है, लेकिन जो भी इधर आता है उसकी बोलती बंद हो जाया करती है। बीजेपी का नेता सिर्फ मुड़ी हिलाता है और बैरंग लौट जाता है।

सत्तारूढ़ दल के मंत्री और नेताओं की विकास सिर्फ अखबारों में ही नजर आता है। कभी-कभी खबरिया चैनलों में। बनारस में बीजेपी का कद बढ़ रहा है, लेकिन जनता की पूछ घटती जा रही है। लगता है कि प्रशासन ने बनारस में सारा विकास सिर्फ विश्वनाथ मंदिर के आसपास की गलियों में ही उड़ेल दिया है। बाकी इलाके के लोग अपनी बदहाली पर आज भी आसूं बहा रहे हैं।

हुकुलगंज की ज्यादातर गलियों में आबादी ज्यादा है। सैकड़ों से आज हज़ारों मकान हो गए। लोग हाउस टैक्स और वाटर टैक्स भी अदा करते हैं, लेकिन बीजेपी के नेता और सरकारी मशीनरी ने पूरी तरह मुंह फेर लिया है। इस इलाके में जो भी काम हुआ वह पूर्व पार्षद महेंद्र सिंह ‘शक्ति’ के कार्यकाल में हुआ। सालों से लोग विकास की विकास की राह देख रहे हैं। सरकार के साथ निज़ाम भी बदल गए, लेकिन यहां के बाशिंदे विकास के लिए सालों से तरस रहे हैं।

क्या कहते हैं पार्षद

हुकुलगंज के पार्षद बृजेश चंद श्रीवास्तव इलाकाई लोगों के आरोपों को सिरे खारिज करते हैं। वह कहते हैं, ”हम विकास के मामले में कोई भेदभाव नहीं करते। हमारे पास जो भी आता है, हमसे जितना बन पड़ता है, करते हैं। सीवर और पानी की समस्या हमारे इलाके में पहले से ही गंभीर है। धीरे-धीरे उसे पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं। यह आरोप गलत और बेबुनियाद है कि हम वोट के आधार पर विकास कार्य कराते हैं। सभी की समस्याओं से हम वाकिफ हैं और कुछ इलाकों में हम चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। अफसरों  का हमें सहयोग नहीं मिल पा रहा है।”

दूसरी ओर, पूर्व पार्षद महेंद्र सिंह ‘शक्ति’ कहते हैं, ”साल 2000 से 2015 तक हमने हुकुलगंज में कई गलियों का निर्माण कराया। उसके बाद से आज तक इन गलियों में सिर्फ आधी-अधूरी मरम्मत होती रही है। यहां काम हुए बरसों बीत गए। ज़ाहिर है कि समस्याएं उनका त्वरित निराकरण नहीं होने पर वो विकराल रूप धारण करेंगी ही। हुकुलगंज के तमाम लोग मेरे पास आते हैं। हमें अपनी पीड़ा बताते हैं।”

”दिक्कत यह है कि हमारी न सरकार है और न ही मेयर। फिर भी निजी तौर पर लोगों की समस्याओं को निपटाने की कोशिश करता हूं। मौजूदा सभासद बृजेश चंद श्रीवास्तव अगर कुछ काम कर रहे होते तो हुकुलगंज की जनता मेरे पास क्यों आती? हुकुलगंज के लोग सिर्फ अपने पार्षद से ही नहीं, मेयर, विधायक और पीएम नरेंद्र मोदी से जवाब मांग रहे हैं कि उनका गुनाह क्या है? आखिर हजारों लोगों को ठोकरमार गलियों में विलखने के लिए क्यों छोड़ दिया गया है? ”

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