बनारस की सांझ में ‘जर्नलिज्म AI’ का उजास : राज्यसभा उपसभापति हरिवंश ने किया वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत की पुस्तक का लोकार्पण

विशेष संवाददाता
वाराणसी की 17 जुलाई 2025 की शाम, जब गंगा की लहरों पर सूर्य की अंतिम किरणें झिलमिला रही थीं, इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई। नागरी प्रचारिणी सभा के आर्यभाषा पुस्तकालय परिसर में वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत की बहुचर्चित पुस्तक ‘जर्नलिज्म AI’ का लोकार्पण संपन्न हुआ। यह एक पुस्तक का विमोचन मात्र नहीं था, बल्कि पत्रकारिता के एक नवीन अध्याय का उद्घाटन था, जिसमें तकनीक और संवेदना का समागम हुआ।
इस अवसर पर देश के प्रख्यात पत्रकार, चिंतक और राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश जी की गरिमामयी उपस्थिति ने इस कार्यक्रम को अभूतपूर्व बना दिया। उन्होंने ‘जर्नलिज्म AI’ का लोकार्पण करते हुए जिस गहनता और आत्मीयता से विचार रखे और पत्रकारिता की जड़ों से लेकर उसके संभावित भविष्य तक की एक बहुआयामी यात्रा करवा दी। उनका वक्तव्य मात्र औपचारिक संबोधन नहीं, बल्कि विचारों की वह ज्योति थी जो पत्रकारिता के अग्निपथ को आलोकित करती है।

हरिवंश जी ने स्पष्ट रूप से कहा कि पत्रकारिता का भविष्य जितना तकनीकी उपकरणों से जुड़ा है, उतना ही उसकी आत्मा संवेदना, नैतिकता और सामाजिक जिम्मेदारी में निहित है। ‘जर्नलिज्म AI’ पुस्तक को उन्होंने “आने वाली पीढ़ियों के लिए एक दीपस्तंभ” बताया, जो पत्रकारिता को महज एल्गोरिद्म और डेटा एनालिसिस के हवाले नहीं करती, बल्कि उसके भीतर मनुष्य की उपस्थिति को पुनः रेखांकित करती है। उन्होंने कहा कि “आज जब पत्रकार केवल खबरें नहीं, बल्कि रुझानों को संचालित करने वाले एल्गोरिद्म के सामने खड़ा है, तब यह पुस्तक बताती है कि पत्रकार का पहला औज़ार तकनीक नहीं, विवेक है।”
‘जर्नलिज्म AI’ एक संक्रमणकालीन संदर्भ ग्रंथ है, जहां तकनीक की गति और पत्रकारिता की गरिमा एक-दूसरे से टकराते नहीं, संवाद करते हैं। विजय विनीत ने इस पुस्तक में स्पष्ट किया है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पत्रकारिता में सहायक की भूमिका निभा सकता है, लेकिन वह उसका अधिपति नहीं हो सकता। यह पुस्तक उन युवा पत्रकारों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो मोबाइल पत्रकारिता, डेटा जर्नलिज्म, वर्चुअल रिपोर्टिंग और सोशल मीडिया के दौर में पत्रकारिता को पुनर्परिभाषित कर रहे हैं।

लोकार्पण के अवसर पर नागरी प्रचारिणी सभा के प्रधानमंत्री और प्रसिद्ध कवि-आलोचक व्योमेश शुक्ल ने सभा की ऐतिहासिक भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि “यह वही मिट्टी है जहां आचार्य रामचंद्र शुक्ल जैसे युगद्रष्टा ने हिंदी साहित्य को नया स्वरूप दिया और आज वही भूमि डिजिटल युग के नये शिल्पी विजय विनीत की पुस्तक के बहाने पत्रकारिता के भविष्य की गवाही बन रही है।” उन्होंने इसे डिजिटल युग की वैचारिक चेतना का उद्घोष बताया।
कार्यक्रम में देश के कोने-कोने से आए पत्रकार, लेखक, कला समीक्षक, शिक्षाविद और विद्यार्थी उपस्थित थे। प्रख्यात नाटककारा डॉ. सुमन केशरी ने अपने नाटकों ‘गांधारी’ और ‘हिडिंबा’ से अंश प्रस्तुत करते हुए नारी दृष्टि से इतिहास और वर्तमान की पड़ताल की। यह प्रस्तुति न केवल भावनात्मक थी, बल्कि स्त्री दृष्टिकोण की मौलिक शक्ति का प्रमाण भी बनी। इस भावनात्मक अनुभूति के पश्चात बनारसी शास्त्रीय परंपरा के शीर्षस्थ गायक पं. साजन मिश्र, स्वरांश मिश्र के गायन और अभिषेक मिश्र (तबला), पं. धर्मनाथ मिश्र (संवादिनी) की संगति ने शाम को एक आध्यात्मिक स्वरूप दे दिया।
विजय विनीत की पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह पत्रकारिता और AI के बीच संवाद स्थापित करती है, संघर्ष नहीं। वे लिखते हैं, “तकनीक से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन पत्रकारिता वह क्षेत्र है जहां आख़िरी हस्ताक्षर मनुष्य करता है, मशीन नहीं।” यह वाक्य पुस्तक की केंद्रीय धुरी बन जाता है, जहां पत्रकार को केवल एक प्रोसेसर नहीं, बल्कि विचारक और विवेकशील नागरिक के रूप में देखा गया है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं प्रोफेसर अनुराधा बनर्जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि ‘जर्नलिज्म AI’ हिंदी समाज की बौद्धिक प्रगति का एक निर्णायक चरण है। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक पत्रकारिता शिक्षा और शोध के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगी। वरिष्ठ साहित्यकार केएन त्रिपाठी और प्रो. रामसुधार सिंह ने लेखक प्रस्तुति और लेखक की शैली की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह पुस्तक पत्रकारिता की आत्मा को तकनीक के जाल से निकालकर पुनः जीवंत करती है।
हालांकि इस अवसर पर तीन पुस्तकों का लोकार्पण हुआ, जिसमें विजय विनीत की‘जर्नलिज्म AI’ प्रमुख थी। दूसरी पुस्तक ‘कविता क्या है’ और तीसरी आचार्य रामचंद्र शुक्ल की ‘पंच परमेश्वर और ईश्वरीय न्याय’- प्रेमचंद। इन तीनों पुस्तकों ने इस आयोजन को केवल साहित्यिक नहीं, बल्कि वैचारिक, तकनीकी और सांस्कृतिक चेतना का महाकुंभ बना दिया।
राज्यसभा उपसभापति हरिवंश ने अपने वक्तव्य में कहा कि “AI के इस युग में पत्रकारिता की जिम्मेदारियां और भी बढ़ जाती हैं। अब पत्रकार केवल सूचना देने वाला नहीं, बल्कि सूचना के उद्देश्य और प्रभाव को समझाने वाला मार्गदर्शक बन गया है। यह पुस्तक इसी उत्तरदायित्व की पुनर्परिभाषा है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि “जो मीडिया इस बदलाव को नहीं समझेगा, वह अपनी विश्वसनीयता खो देगा और पत्रकार अपनी भूमिका।”
कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित रहे वरिष्ठ चिंतक पुरुषोत्तम अग्रवाल, मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. लेनिन रघुवंशी, भाषाविद दयानंद सिंह, और मीडिया विद्वान डॉ. केसरी नारायण त्रिपाठी ने भी पुस्तक की विषयवस्तु को ‘समय की ज़रूरत’ बताया। इस सांझ की महक केवल उस दिन तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह बनारस की उन सांझों में शामिल हो गई जो न केवल कैलेंडर की तारीख बनती हैं, बल्कि सांस्कृतिक स्मृति का हिस्सा हो जाती हैं।
‘जर्नलिज्म AI’ का यह लोकार्पण भारतीय पत्रकारिता की आत्मा को भविष्य की भाषा में अनुवादित करने का साहसिक प्रयास है। यह पुस्तक एक संवाद है, तकनीक से, समाज से, और स्वयं पत्रकारिता की आत्मा से। यह काशी के उस सतत बहते संवाद की अगली कड़ी है, जहां परंपरा और नवाचार साथ-साथ बहते हैं। विजय विनीत की यह पुस्तक केवल उनका निजी प्रयास नहीं, बल्कि वह साझा मंच है जहां हर पत्रकार, हर छात्र और हर विचारशील नागरिक अपनी भूमिका को पुनः पहचान सकता है।
यह आयोजन साहित्य, पत्रकारिता और चेतना का संगम बन गया। एक सांझ, एक पुस्तक, एक वक्तव्य, लेकिन प्रभाव अनंत। क्योंकि पत्रकारिता जब विचार से जुड़ती है, तब वह केवल समाचार नहीं देती, इतिहास बनाती है। ‘जर्नलिज्म AI’ उसी इतिहास का प्रथम प्रकाश है।

‘जर्नलिज्म AI’ के विमोचन के बाद कार्यक्रम में मौजूद साहित्यकारों, हिंदी प्रेमियों, पत्रकारों, रचनाकारों देश के प्रख्यात पत्रकार, चिंतक और राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश जी जैसे व्यक्तित्व इस विषय पर अपनी बात रखते हैं, तो वह न केवल एक दृष्टिकोण भर होता है, बल्कि एक दर्पण भी होता है जिसमें हम पत्रकारिता, समाज और तकनीक के बदलते रिश्तों को देख सकते हैं। वाराणसी के आर्यभाषा सभागार में हरिवंश जी ने जो वक्तव्य दिया, वह भारतीय मीडिया के वर्तमान, भविष्य और जिम्मेदारियों का ऐसा सूक्ष्म विवेचन था, जो वर्षों तक संदर्भ बिंदु बना रहेगा।
बाद में हरिवंश जी ने पत्रकारिता की ऐतिहासिक यात्रा को स्मरण करते हुए बताया कि कैसे युगल किशोर शुक्ल ने अपना वकालत का व्यवसाय छोड़कर कोलकाता में ‘उदंत मार्तंड’ जैसा हिंदी का पहला साप्ताहिक पत्र आरंभ किया। यह वह साहस था जो पत्रकारिता को मिशन बनाता है, न कि मात्र व्यवसाय। उन्होंने यह रेखांकित किया कि आरंभिक हिंदी पत्रकारिता एक संपूर्ण त्याग की उपज थी, जहां प्रकाशक ही संपादक थे, और वही वितरक भी। न विज्ञापन था, न संसाधन, केवल विचार था, और समाज के लिए एक उद्देश्य था। यह वह बुनियाद थी, जिसने पत्रकारिता को देश के चौथे स्तंभ की मर्यादा दी।
इस ऐतिहासिक संदर्भ को रखते हुए हरिवंश जी ने आज की पत्रकारिता की नैतिक संरचना पर प्रश्न उठाए। उन्होंने बताया कि पत्रकारिता के पहले सिद्धांत, जैसे किसी पर लिखते समय उसका पक्ष लेना, गलती होने पर सार्वजनिक रूप से क्षमा मांगना-ये सब मूल्य अब विस्मृति के गर्त में जा रहे हैं। सोशल मीडिया, एल्गोरिदम और रेटिंग्स की दौड़ ने पत्रकारिता के मूल उद्देश्य को पीछे छोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि आज विचार पीछे छूट रहे हैं और तकनीक आगे निकल चुकी है। विचार अब पत्रकारिता की दिशा नहीं तय कर रहे, बल्कि मशीन लर्निंग और डेटा एनालिसिस तय कर रहे हैं कि जनता क्या पढ़ेगी, क्या देखेगी और क्या सोचेगी।
हरिवंश जी ने डेनियल बेल की “The End of Ideology” और फ्रांसिस फुकुयामा की “The End of History and the Last Man” का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे अब विचारधाराएं दम तोड़ रही हैं और AI जैसे तकनीकी आयाम समाज की चेतना को नियंत्रित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि तीन साल पहले रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने यह भविष्यवाणी की थी कि जो देश AI में आगे होगा, वही दुनिया पर शासन करेगा। यानी अब युद्ध मैदान में नहीं, माइक्रोचिप्स और कोडिंग लैब्स में लड़े जाएंगे।
उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि पत्रकारिता अब अपने पारंपरिक कार्यों से भटक रही है। पहले मीडिया का कार्य होता था जनता को शिक्षित करना, जागरूक बनाना और स्वस्थ मनोरंजन देना। लेकिन आज मीडिया एक हथियार बन गया है-कभी सूचना देने का, तो कभी झूठ फैलाने का। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, जो कभी जन अभिव्यक्ति के सबसे सशक्त माध्यम माने गए थे, अब ऐसे मंच बन चुके हैं जहां बिना प्रमाण, बिना साक्ष्य और बिना उत्तरदायित्व के कुछ भी कहा जा सकता है।
हरिवंश जी ने निकोलस कार की पुस्तक “The Shallows” का हवाला देते हुए यह भी चेताया कि स्क्रीन पर लगातार उपभोग, क्लिकिंग और सतही खपत ने हमारी सोच की गहराई को नष्ट कर दिया है। पहले जहां हम किसी विषय को गंभीरता से समझते थे, अब त्वरित प्रतिक्रियाओं और ऊपरी विमर्श ने हमारी बौद्धिक संरचना को विकृत कर दिया है। इसीलिए आज की पत्रकारिता को केवल तकनीकी नहीं, आत्ममंथन की आवश्यकता है। पत्रकार का कार्य केवल सूचना देना नहीं, बल्कि दिशा देना है-यह बताना है कि दरवाजे पर कौन-सी नई तकनीकी दस्तक दे रही है और उसका समाज पर क्या असर होगा।
उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की उस रिसर्च का उल्लेख किया जिसमें यह निष्कर्ष निकाला गया कि जनता अब मीडिया पर पहले जैसा भरोसा नहीं करती। यह केवल सूचना की अधिकता का परिणाम नहीं, बल्कि उत्तरदायित्व की कमी का दुष्परिणाम है। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता की “ग्रामर” बदल चुकी है, अब न भाषा वही है, न प्रस्तुति, न दर्शक की अपेक्षाएं। ऐसे में केवल वही पत्रकार टिक पाएगा, जो इस बदलाव को न केवल समझे, बल्कि उसमें सक्रिय भूमिका निभाए।
हरिवंश जी ने यह भी बताया कि भारत के पास मस्तिष्क की वह शक्ति है जिसे उन्होंने “माइंड सेक्टर” कहा। आज जब भारत ने 5G तकनीक, वैक्सीन उत्पादन, स्वदेशी रडार और ब्रह्मोस जैसी मिसाइलों का निर्माण स्वयंपूर्ण रूप से किया है, तब पत्रकारिता का यह उत्तरदायित्व बनता है कि वह इन उपलब्धियों को सही संदर्भों में समाज तक पहुंचाए। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि जब भारत ने कोविड वैक्सीन का निर्माण किया, तो पश्चिमी मीडिया ने उसे शक की निगाह से देखा और भारतीय मीडिया का एक वर्ग भी उसी के सुर में सुर मिलाने लगा। ऐसे में पत्रकार की भूमिका केवल सूचना देने की नहीं, बल्कि आत्मविश्वास निर्माण की हो जाती है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि हम तकनीकी नवाचार की दौड़ में पीछे रह गए, तो 1954 की तरह फिर से 70 वर्ष पीछे चले जाएंगे। उन्होंने कहा कि एक समय था जब लोग भविष्य की योजना समझने के लिए अमेरिका जाकर अलविन टॉफ्लर जैसे फ्यूचरिस्ट्स से मिलते थे। आज भारत के पास वह अवसर है कि वह खुद भविष्य निर्माता बने, लेकिन इसके लिए मीडिया को अपनी भूमिका पुनः परिभाषित करनी होगी।

AI के संदर्भ में उन्होंने कहा कि यह केवल एक तकनीक नहीं, एक दर्शन है, जो मानवता के भविष्य को गढ़ रहा है। अब पत्रकार की भूमिका केवल रिपोर्टर की नहीं, टेक-नैरेटिव गाइड की हो गई है। जो पत्रकार AI, डेटा, एल्गोरिदम, सेंसर, क्वांटम कंप्यूटिंग की बुनियादी समझ नहीं रखता, वह भविष्य की पत्रकारिता में अप्रासंगिक हो जाएगा। उन्होंने कहा कि आज की पत्रकारिता में “विवेक का स्थान वोल्यूम ले चुका है, और सत्य का स्थान स्पीड ने।” यही वह संकट है जिससे हमें जूझना है।
हरिवंश जी ने यह भी बताया कि कैसे तकनीक के दुरुपयोग से राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था तक को गिराया जा सकता है। 2019 के नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्रियों की टीम ने यह दिखाया कि कैसे मीडिया की नकारात्मकता किसी देश की आर्थिक छवि को नष्ट कर सकती है। उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि अगर सोशल मीडिया को बिना उत्तरदायित्व के चलने दिया गया, तो वह केवल पत्रकारिता के लिए नहीं, लोकतंत्र के लिए भी विनाशकारी हो सकता है।
उन्होंने स्टार्टअप, बायोफ्यूल, बायोइंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और सौर ऊर्जा जैसे विषयों पर भी पत्रकारों से आग्रह किया कि इन पर भी गंभीर विमर्श करें, क्योंकि आज की तकनीकी दुनिया में केवल राजनीति और अपराध की खबरें ही पत्रकारिता नहीं हैं। बल्कि नवाचार, विज्ञान, इंजीनियरिंग, अनुसंधान और उद्यमिता की कहानियां ही भारत को 2047 तक एक सशक्त राष्ट्र बना सकती हैं। उन्होंने उदाहरण दिया कि जब देश के बंदरगाहों पर विदेशी नियंत्रण था, तब भारत को प्रत्येक कंटेनर पर अतिरिक्त कर देना पड़ता था, लेकिन अब “विझिंजम् पोर्ट” जैसे बंदरगाह सीधे भारत की शक्ति को बढ़ा रहे हैं, क्या यह खबर मीडिया में सही तरह से आई?
हरिवंश जी ने कहा कि मीडिया के लिए सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि वह राष्ट्र निर्माण के साथ है या केवल खबरों के उपभोग में उलझा है। उन्होंने एक बार फिर चेताया कि यदि मीडिया इस तकनीकी क्रांति के साथ नहीं चला, तो न केवल उसका भविष्य खतरे में है, बल्कि समाज का विवेक भी अपंग हो जाएगा।