महिला मामलों की रिपोर्टिंग के लिए पत्रकार अपनाएंं नई विधा
पत्रकार का उसके पाठकों के बीच एक भरोसे का अनुबंध होता है। पत्रकार पाठकों अथवा दर्शकों का भरोसा नहीं जीत पाते तो उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगता है। पाठकों के दिल में जगह बनाने के लिए चाहिए मजबूत कंटेंट और आंकड़े। गंभीर मुद्दों की कवरेज करते समय उसके कानूनी पहलुओं पर जरूर गौर करें। जर्नलिज्म टिप्स में इस बार हम महिला मुद्दों के मामलों की कवरेज और उनसे जुड़े कानूनी पहलुओं पर विस्तार से जानकारी दे रहे हैं।
बलात्कार पीड़िता की पहचान उजागर करने से रोकता है कानून
विजय विनीत
नारी स्वातंत्र्य और समानता के युग में भी आधी दुनिया के लिए पत्रकारिता की कोई विधा विकसित नहीं हुई है। महिलाओं के मुद्दों पर पत्रकारिता की अवधारणा भले ही अटपटी लगती हो, लेकिन इनके लिए अब अलग तरह की विधा की जरूरत महसूस की जा रही है। कई बार पत्रकार महिला के साथ दुष्कर्म की घटना को गंभीरता से नहीं लेते। इस वजह से पीड़ित महिलाएं समाज में तमाशा बना जाती हैं। महिलाओं के निजता के मामलों को उछालने का पत्रकारों के पास कोई अधिकार नहीं होता। उन्हें इस संवेदनशील मुद्दे पर रिपोर्टिंग बेहद सावधानी से करनी चाहिए। महिलाओं के मुद्दों पर रिपोर्टिंग तभी बेहतर और सही तरीके से संभव है जब उनसे जुड़े कानून व दंड के प्रावधानों से पत्रकार अच्छी तरह वाकिफ होंगे।
भारतीय कानून किसी भी स्थिति में बलात्कार पीड़ित महिला की पहचान उजागर करने की अनुमति नहीं देता। बलात्कार चाहे पीड़िता की सहमति से ही क्यों न किया गया हो। बलात्कार अगर किसी करीबी रिश्तेदार द्वारा किया गया हो तो रिपोर्टिंग और भी गंभीर तरीके से की जानी चाहिए। पीड़िता की मौत, नाबालिग अथवा मानसिक कमजोरी की स्थिति में दबोच ली गई महिलाओं के मामलों में कवरेज करते समय सतर्कता बेहद जरूरी है। पत्रकारों को स्पष्ट रूप से पता होना चाहिए कि अदालतें अब बलात्कार के मामलों की सुनवाई बंद कमरों में करती हैं। इस दौरान मीडिया अथवा आम जनता को कोर्ट में प्रवेश करने पर सख्त पाबंदी होती है।
महिला मामलों की रिपोर्टिंग के लिए पत्रकार अपनाएंं नई विधा
भारतीय दंड संहिता में अब भारतीय प्रमाण कानून की धारा 53ए को भी शामिल कर दिया गया है। बलात्कार के मुकदमे के समय पीड़िता के पिछले यौन संबंधों अथवा चरित्र के बारे में सुबूत पेश करने पर पाबंदी लगा दी गई है। साल 2013 के बाद महिलाओं के खिलाफ हिंसा संबंधी कानूनों में बड़ा बदलाव किया गया है। साल 2012-13 के बलात्कार विरोधी आंदोलन के बाद आपराधिक कानून संशोधन 2013 (आ.का.सु. 2013) के जरिए बलात्कार एवं यौन हिंसा संबंधी कानूनों में कई अहम परिवर्तन किए गए हैं, जिनसे पत्रकारों को हर हाल में वाकिफ होना चाहिए।
महिलाओं के खिलाफ हिंसक अपराधों की रिपोर्ट दर्ज न करने की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर अब भारतीय दंड संहिता में धारा 166ए का प्रावधान किया गया है। यदि कोई पुलिस अधिकारी अथवा सरकारी कर्मचारी, महिला की शिकायत दर्ज नहीं करता है, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 326ए, 326बी, 354, 354बी, 370, 370ए, 376, 376ए, 376बी, 376सी, 376डी, 376ई, 509 के तहत उसे दो साल तक का कारावास और जुर्माना हो सकता है। कानून में अब स्पष्ट कर दिया गया है कि यौन अपराध के मामलों या 166ए अथवा 166बी के तहत आरोपी सरकारी कर्मचारी या पुलिसकर्मी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिए 197(1) सीआरपीसी के तहत सरकार से पूर्व अनुमति की जरूरत नहीं है।
धारा 326ए, 376, 376ए, 376बी, 376सी, 376डी या धारा 376ई के तहत किसी तरह के हमले अथवा हिंसा की शिकार महिला का प्राथमिक उपचार मुफ्त करने का प्रावधान किया गया है। अस्पताल चाहे सरकारी हो अथवा निजी या फिर किसी संस्था द्वारा संचालित, एसिड हमले या बलात्कार की शिकार पीड़िता का मुफ्त इलाज न करने अथवा घटना की सूचना पुलिस को न देने वाले अस्पताल के प्रभारी, व्यक्ति अथवा संस्थाओं के खिलाफ धारा 166बी के तहत सजा हो सकती है। इस तरह के मामलों की पुलिस को त्वरित सूचना देना भी जरूरी कर दिया गया है।
एसिड हमले करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई का प्रावधान
भारतीय दंड संहिता की धारा 326ए और बी के तहत एसिड हमले द्वारा चोट पहुंचाने अथवा कोशिश करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई का प्रावधान है। एसिड का इस्तेमाल करके चोट पहुंचाने के लिए कोई दोषी पाया जाता है तो उसे कम से कम 10 साल का कठोर कारावास अथवा आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। कानून में अब पीड़ित के इलाज के लिए धनराशि अभियुक्त को जुर्माने के रूप में अदा करना होगा।
भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत किसी महिला पर उनके मर्यादा को ठेस पहुंचाने की नीयत से हमला अथवा आपराधिक बल प्रयोग की सजा कम से कम एक साल और अधिकतम पांच साल है। धारा 509 के तहत अगर कोई पुरुष ‘किसी शब्द, आवाज या इशारे के जरिए या किसी वस्तु को दिखाकर महिला के मर्यादा को अपमानित’ करता है, तो उसे तीन साल तक की कैद हो सकती है।
यौन अर्थ वाले जुमले और लतीफे सुनाना भी दंडनीय
यौन उत्पीड़न के लिए भारतीय दंड संहिता में धारा 354 ए का नया क्लाज जोड़ा गया है। अब अनचाहा शारीरिक स्पर्श, अनचाहा यौन प्रस्ताव अथवा यौन की डिमांड, किसी महिला की इच्छा के विरुद्ध अश्लील साहित्य, फोटो, पोर्नोग्राफिक सामग्री दिखाना यौन उत्पीड़न के दायरे में आएगा। यौन हिंसा अथवा यौन अर्थ वाले जुमले, संकेत, लतीफे को सुनाना अथवा इंटरनेट के जरिए भेजना दंडनीय अपराध है। इस अपराध के लिए अभियुक्त को तीन सात तक कठोर करावास हो सकता है। धारा 354बी के तहत किसी महिला को निर्वस्त्र करने का प्रयास अथवा जबरदस्ती कपड़े उतारने या बाध्य करने के जुर्म की सजा तीन से सात तक हो सकती है। साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
पत्रकारों को समझना चाहिए कि महिलाओं के मामले में अब ताकझांक भी अपराध की श्रेणी में आता है। धारा 354सी के तहत ‘निजी’ गतिविधि में लीन अथवा यौन कार्य कर रही महिला को उसकी सहमति के बगैर घर, सार्वजनिक शौचालय, एकांत जगहों पर देखने, या कैमरे में फोटो खींचने पर पर कठोर दंड की व्यवस्था की गई है। किसी महिला को गलत नीयत से घूरने पर भी दंड मिल सकता है। इस मामले में तीन साल कैद हो सकती है। किसी पुरुष को इसी जुर्म के लिए दोबारा सजा होती है तो सजा सात साल तक बढ़ाई जा सकती है। यौन अपराधों की तरह इस अपराध में भी महिला की सहमति का उल्लंघन ही जुर्म है। अगर कोई महिला बिना कपड़े के या यौन कार्य के दौरान अपना फोटो या वीडियो देने के लिए सहमति दे चुकी है, तब भी इस तरह की निजी गतिविधि के फोटो या चित्रों का उसकी सहमति के बिना वितरण भी अपराध की श्रेणी में आएगा।
भारतीय दंड संहिता की धारा 354डी के तहत किसी महिला का जबरन पीछा अथवा बदनाम करना दंडनीय अपराध है। महिला को खुलेआम, छिपकर या उसके फोन, इंटरनेट, ईमेल या अन्य संचार उपकरणों की ताका-झांकी को भी अपराध के दायरे में ला दिया गया है। इस मामले में तीन साल और दोबारा अपराध करने पर पांच साल की सजा का प्रावधान किया गया है। दोबारा अपराध करने पर जुर्म गैरजमानती होगा। रिपोर्ट लिखते समय पत्रकारों को यह अहम जानकारी होना जरूरी है। मानव तस्करी का कानून अब महिलाओं और बच्चों के लिए भी इस्तेमाल करने की व्यवस्था की गई है। इसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 370 का इस्तेमाल किया जाएगा।
बलात्कार के मामलों में कानून की गंभीरता को भी जानें
भारतीय दंड संहिता की धारा एस. 375 में बलात्कार की परिभाषा को और व्यापक बनाया गया है। महिला के गुप्तांग, मुंह, योनि, गुदा, या मूत्र मार्ग में कोई वस्तु अथवा शरीर का कोई अंग जबरन घुसेड़ने अथवा इसके लिए बाध्य करने अथवा करवाने को बलात्कार माना जाएगा। कानून में साफ कर दिया गया है कि नशा, बेहोशी, दवा के असर या कोमा, धमकी या डर की हालत में किसी महिला के साथ यौन कार्य को भी बलात्कार ही माना जाएगा। अगर महिला यह नहीं समझ पाती कि वह किस बात की सहमति दे रही है (भाषा न आने पर, मानसिक कमजोरी, विकलांगता, अक्षमता या पागलपन में) तब भी बलात्कार माना जाएगा।
यौन सहमति तभी मानी जाएगी जब महिला ने सकरात्मक तरीके से और जानबूझकर ‘हां’ जताया हो। यौन संबंध को उस पल से बलात्कार माना जाएगा, जिस पल से महिला ने अपनी सहमति वापस ली। अगर महिला यौन संबंध के लिए सहमत हो जाती है और बाद में अपना इरादा बदलती है तो इसे बलात्कार नहीं माना जाएगा। ऐसे मामलों में महिला को साबित करना होगा कि उसकी सहमति धोखे से ली गई। नए कानून में बलात्कार की सजा को कम से कम सात साल तय कर दिया गया है। इससे कम की सजा का प्रावधान हटा दिया गया है।
संगीन बलात्कार के मामलों को भी जानिए
पत्रकारों को यह भी जानना जरूरी है कि हिरासत में ली गई महिला के साथ पुलिसकर्मी, सेनाकर्मी, संस्थानों (जेल, रिमांड होम आदि) के आधिकारिक पदाधिकारी, सरकारी कर्मचारी, अस्पताल के कर्मचारी, वर्दीधारी पुरुष द्वारा किया गया बलात्कार भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (2) तहत संगीन बलात्कार की श्रेणी में रखा गया है। महिला का रिश्तेदार, अभिभावक, अध्यापक या फिर महिला का विश्वास पात्र प्राधिकारी बलात्कार करता है तो वह भी इसी धारा के दायरे में आएगा। सांप्रदायिक हिंसा के दौरान अथवा किसी अफसर द्वारा महिला के साथ किया गया जबरन संभोग भी संगीन बलात्कार माना जाएगा। एक ही महिला के साथ बार-बार अथवा संभोग के लिए सहमति देने में असमर्थ महिला के साथ बलात्कार के मामले में भी यही धारा लगेगी।
बलात्कार के दौरान अगर महिला शारीरिक रूप से विकलांग या मानसिक तौर पर असक्षम हो गई हो अथवा उसको गंभीर चोटें आई हो तब भी धारा 376 (2) लगेगी। नाबालिग अथवा गर्भवती महिला के साथ बलात्कार को भी इसी श्रेणी में रखा गया है। संगीन अपराध के मामलों में कम से कम दस साल की सजा हो सकती है। इस मामले में आजीवन कारावास तक का प्रावधान भी किया गया है। बलात्कार पीड़िता की मौत होने पर 376 ए के तहत कम से कम बीस साल तक की कैद अथवा मृत्युदंड दिया जा सकता है।
धारा376बी के तहत बिना सहमति के पति द्वारा पत्नी के साथ यौन संबंध को भी बलात्कार माना जाएगा। इस मामले में दो से पांच साल तक की सजा सुनाई हो सकती है। महिला की सहमति के बावजूद हिरासत में बनाए गए यौन संबंध को जुर्म माना जाएगा। इसे धारा 376 (2) के तहत बलात्कार माना जाएगा।
गैंग रेप में अब बीस साल तक की सजा
भारतीय दंड संहिता 376 डी के तहत सामूहिक बलात्कार की सजा दस साल से बढ़ाकर बीस वर्ष कर दी गई है। आजीवन कैद भी हो सकती है। पीड़िता को इलाज और पुनर्वास खर्च भी देना पड़ सकता है। धारा 376ई के तहत बलात्कार का अपराध बार-बार करने वाले को उम्रकैद या मृत्यु की सजा का प्रावधान किया गया है।
महिलाओं के मामले में अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में और भी कई महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं। बलात्कार के आरोपी की शिनाख्त करने वाला व्यक्ति अगर अक्षम या विकलांग है तो न्यायिक मजिस्ट्रेट की निगरानी में अथवा वीडियोग्राफी एवं योग्य अनुवादक की मौजूदगी में बयान दर्ज किया जाएगा। पीडित महिला का बयान सिर्फ महिला पुलिस अफसर ही दर्ज कर सकेगी। बलात्कार के मामलों की सुनवाई अब चार्जशीट दाखिल होने के दो माह के अंदर करना अनिवार्य कर दिया गया।
भारतीय दंड संहिता में दलित वर्ग की महिलाओं के खिलाफ जुर्म को नई परिभाषा दी गई है, जिसमें कई नई धाराएं जोड़ी गई हैं। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून के सेक्शन 3 (w) (i) और (ii) के तहत गैर वर्ग का व्यक्ति दलित महिला को यौनिक तरीके से छूता है अथवा इशारे करता हो तो उसे अत्याचार का दोषी माना जाएगा। पहले से शारीरिक संबंध रहने के बावजूद यह नतीजा नहीं निकाला जाएगा कि वह सहमत थी। इस मामले में अपराध को हल्का नहीं माना जाएगा। अनुसूचित जाति या जनजाति के महिलाओं को चप्पलों की माला पहनाना, नंगे या अधनंगे तरीके से घुमाना, जबरदस्ती कपड़े उतारना, बाल छीलना, शरीर या चेहरे पर कालिख पोत देना अथवा सार्वजनिक रूप से उसके सम्मान को ठेस पहुंचाने को अत्याचार माना जाएगा। इस वर्ग के किसी महिला को डायन अथवा टोनही कहकर शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना देना भी अत्याचार माना जाएगा।
पॉक्सो कानून को भी जानें
पत्रकारों को अब पॉक्सो कानून के बारे में गहन जानकारी जरूरी है। पॉक्सो कानून 2012 ने यौन सहमति की उम्र 16 से बढ़ाकर 18 साल कर दी है। ‘सहमति’ वह उम्र है जिसके नीचे किसी महिला अथवा व्यक्ति को बच्चा माना जाएगा। इसे सहमति देने के काबिल नहीं माना जाएगा और हर हाल में बलात्कार की श्रेणी में रखा जाएगा। यह कानून कम उम्र में शादी के बाद यौन संबंध को भी बलात्कार मानता है।
पत्रकारों को रिपोर्ट लिखते समय यह अच्छी तरह समझना चाहिए कि बलात्कार का कानून कहां इस्तेमाल हो सकता है और कहां नहीं? बलात्कार को लेकर कई तरह की गलतफहमियां भी हैं। साल 2013 के संशोधित कानून में ऐसे मामलों को बलात्कार नहीं माना गया है जब कोई पुरुष यौन संबंध के लिए किसी महिला की सहमति यह कहकर लेता है कि वह बाद में उससे शादी करेगा और बाद में मुकर जाता है। अगर अदालत में यह साबित हुआ कि उस पुरुष का उस महिला से शादी करने का कभी इरादा नहीं था। सिर्फ यौन संबंध बनाने के लिए सहमति ली गई तब उसे बलात्कार माना जा सकता है।
बलात्कार पीड़िता से न करें ऐसा सवाल
बलात्कार के मामलों पर रिपोर्टिंग के दौरान पत्रकारों को घटना के प्रति कभी अविश्वास नहीं जताना चाहिए। साथ ही पीड़िता से यह कतई नहीं पूछना चाहिए कि वह भागी और चिल्लाई क्यों नहीं? नशे में होने और आलोचनात्मक टिप्पणी करने से बचना चाहिए।
कवरेज के दौरान बलात्कार पीड़िता और उसके परिवार के सदस्यों को यह भरोसा दिलाने की कोशिश करनी चाहिए कि घटना के लिए पीड़िता कतई जिम्मेदार नहीं है। बलात्कार के लिए सिर्फ बलात्कारी ही जिम्मेदार है। पीड़िता अगर अवसाद में है तो उसे समझाया जाना चाहिए कि बलात्कार एक जुर्म है। उसके खिलाफ हुई घटना, सिर्फ हिंसा है, वासना की वजह से किया गया कृत्य नहीं।
खबर लिखते समय पत्रकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बलात्कार से पीड़िता की मान-मर्यादा और शुचिता का नहीं, उसके अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। कवरेज के दौरान पीड़िता को भरोसा दिलाने की कोशिश कीजिए कि बलात्कार के बावजूद वह खुशहाल जीवन जी सकेगी। उसे कानून प्रदत्त अधिकारों के बारे में बताइए और उसे स्वेच्छा से निर्णय लेने के लिए अभिप्रेरित कीजिए।
पत्रकार सजग प्रहरी की तरह अदा करें भूमिका
बलात्कार की घटना के बाद कई बार पत्रकार पुलिस से पहले मौके पर पहुंच जाते हैं। ऐसे में पत्रकारों को सजग प्रहरी की भूमिका अदा करनी चाहिए। पीड़िता के परिजनों को बताएं कि मेडिकल जांच होने तक महिला को नतो नहाने दें और न ही कपड़ा धोने दें। अगर पीडित बच्चा अथवा किशोर हो तो उसके परिजनों से किसी तरह का सवाल न कीजिए। उन्हें उत्साहित करने की की कोशिश कीजिए कि वे पीड़िता को प्यार दें। रेप करने वाले के अलावा किसी और को दोषी न ठहराएं। सजग नागरिक की तरह पीड़िता के परिजनों को पहले ही अवगत करा दें कि मेडिकल जांच के दौरान घर की कोई महिला अटेंडेंट जरूर हो। मेडिको लीगल जांच करते समय कक्ष में अगर कोई पुलिसकर्मी हो तो उसे बाहर कराने के बाद ही जांच कराएं।
मेडिकल जांच के दौरान अगर पत्रकार अस्पताल परिसर में मौजूद है तो पीड़िता के अभिभावकों को यह जरूर बता देना चाहिए कि मेडिकल ऑफिसर से सभी अभिलेखों पर ‘मुफ्त’ वाली मुहर जरूर लगवा लें। इससे बलात्कार के मामले की सभी जांच और इलाज मुफ्त हो सकेगा। कानून में अब मेडिको लीगल करने वाले डाक्टरों के लिए भी गाइडलाइन जारी की गई है, जिसमें ‘टू फिंगर टेस्ट’ पर पाबंदी लगा दी गई है। योनि अथवा गुदा के लचीलेपन के बारे में टिप्पणी को यौन हिंसा के मामले में अप्रासंगिक करार दे दिया गया है।
मेडिकल जांच के आधार पर डॉक्टरों को ऐसा कोई निर्णय लेने पर रोक लगा दी गई है कि बलात्कार या यौन हिंसा हुआ है कि नहीं? मेडिकल रिपोर्ट में सिर्फ जांच के नतीजे का जिक्र किया जा सकता है। कानूनी पहलुओं की जानकारी रखने वाले पत्रकार जल्द ही पाठकों के बीच अपनी अलग पहचान बना लेते हैं।
बहुत उपयोगी जानकारी दी आपने। इस तरह के लेख जारी रहना चाहिए।