धीमी चाक पर रेंग रही कुम्हारों की जिंदगी

बनारस के अधिसंख्य गांवों में कुम्हारों के पास मिट्टी पर अपना हक नहीं
विजय विनीत
कुम्हारों का ठहरा हुआ चाक बनारस में समाज के हर वर्ग से कुल्हड़, घड़ा, गगरी और सुराही का इस्तेमाल करने की गुजारिश कर रहा है। जानते हैं क्यों? कुम्हार की जान होती है मिट्टी। अगर मिट्टी नहीं तो खूबसूरत बर्तन बनेंगे कैसे? पेशा भले ही खानदानी है, लेकिन बनारस के अधिसंख्य गांवों में कुम्हारों के पास मिट्टी पर अपना हक भी नहीं है। बनारस में कुम्हारी कला जीवित बची है तो सिर्फ कुल्हड़ों के दम पर। मिट्टी के इसी पात्र की सबसे ज्यादा डिमांड है। जो काशी को जानता है, वह कुल्हड़ के स्वाद को पहचानता है। बनारसी कुम्हारों की चाक पर बना कुल्हड़ दुनिया भर में प्रसिद्ध है। दुर्योग देखिए। वह अब धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोता जा रहा है।
एक समय वह भी था जब गर्मियों में हर कोई सुराही का इस्तेमाल करता था। फ्रिज के आ जाने से सुराहियों की डिमांड घट गई है। औढ़े निवासी गुड्डू प्रजापति बताते हैं कि पहले चाक हमारे पास जीवन-यापन की इकलौती जरिया थी। अब इसकी रफ्तार धीमी पड़ने लगी है। परिवार का भरण-पोषण करने में अक्षम हो गई है। बदलते दौर में कुम्हारी कला विलुप्त होने के कगार पर है। मिट्टी की कीमत में भारी वृद्धि हो गई है। मेहनत को जोड़ दिया जाए तो सामान का लागत भी बाजार से नहीं निकल पाता है। इस पेशे से जुड़कर रहना आत्महत्या करने के बराबर है।
चीन से आयातित बर्तनों के आने से बाजार में गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा है। परंपरागत तरीके से काम कर रहे कुम्हार बाजार में कहीं नहीं टिक पा रहे हैं। वे सौ बरस पहले जिस तकनीक का इस्तेमाल कर रहे थे, आज भी उसी पर काम कर रहे हैं। कुम्हारों के कौशल विकास और व्यावसायिक दक्षता को बढ़ाने के लिए यूपी सरकार कुछ भी नहीं कर रही है। कुम्हारी कला को बचाने के दावे सिर्फ फाइलों में कैद हैं।
प्रजापति समाज के महामंत्री कृपाशंकर प्रजापति कहते हैं कि नई पीढ़ी कुम्हारी कला को सीखने के लिए तैयार नहीं है। कुम्हारी कला को तबज्जो नहीं दिया गया तो आने वाली पीढ़ी इसे तस्वीरों में ही देख पायेगी। बनारसी कुल्हड़ को बचाना है तो इस कला को पर्याप्त संरक्षण देना होगा। प्रजापति समाज के उत्थान के लिए संघर्ष कर रहे लालजी चक्रपाल, चंद्रमा प्रजापति और राजेश प्रजापति ने मांग उठाई है कुम्हार समाज को आदिवासी का दर्जा और अनुसूचित जनजाति को मिलने वाली सुविधाएं मिलनी चाहिए। कुम्हारी शिल्प कला उद्योग निगम की स्थापना की जाए। खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड में कुम्हारों को प्रतिनिधित्व मिले। शिल्प कला महाविद्यालय की स्थापना की जाए। भूमिहीन कुम्हारों को भूमि और मुफ्त आवास भी दिया जाए।