साहित्य को नींद से जगाने का काम करता है संगीत

साहित्य को नींद से जगाने का काम करता है संगीत

नागरी प्रचारिणी सभा के बौद्धिक सत्र का शुभारंभ, विदुषी मालिनी अवस्थी का गायन

विशेष संवाददाता

वाराणसी। नागरी प्रचारिणी सभा, बनारस और हिन्दी की पहचान का एक अमिट बिंब है। 131 वर्ष पुरानी इस महान संस्था पर पिछले ढाई दशकों से मुकदमेबाजी, कानूनी लड़ाई और सियासी दांव-पेंच की धूल जमी हुई थी। रविवार की शाम अप्पा जी की शिष्या विदुषी मालिनी अवस्थी के मंगल स्वरों की बरसात में पिछले दशकों की सारी धूल साफ हो गई। इसी के साथ भाषा और साहित्य का सत्रारंभ हो गया।

नागरी प्रचारिणी सभा का प्रबंधकीय विवाद पिछले कई सालों से सुर्खियों में रहा है। इस विवाद में अंततः सरकार और हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा, तब जाकर व्योमेश शुक्ल के नेतृत्व में नई प्रबंध समिति को संस्था का नियंत्रण मिला। पिछले दो महीनों के अंदर ही संस्था के सभी अनुभागों में सुधार और नवनिर्माण का काम जोरों से चल रहा है। इसी सिलसिले में सत्रारंभ शीर्षक यह आयोजन रविवार की शाम ऐतिहासिक आर्य भाषा पुस्तकालय में आयोजित हुआ। साहित्य को समर्पित संस्था में संगीत का आयोजन एक अनूठा अवसर था। नगर के अनेक मूर्धन्य संगीतकार, साहित्यकार, समाजसेवी नागरिक इस अवसर के साक्षी बने।

अतिथियों का स्वागत करते हुए सभा के प्रधानमंत्री व्योमेश शुक्ल ने कहा कि जब साहित्य अनंत अंधेरे से घबराकर गहरी नींद सो जाता है तब संगीत ही सुबह का राग सुनाकर उसे जगाता है। नागरी प्रचारिणी सभा का यह जागरण काल है। यह महान संस्था अपनी ही राख से शोला बनकर भभक उठी है। बीसवीं सदी के आरंभ में सभा ने भाषा की जो अलख जगाई थी, एक बार फिर से उस मशाल को आगे लेकर चलने की आवश्यक्ता है। सभा ने हिन्दी को अनेक शब्द दिए। सुदूर अंचलों में छिपे हुए हस्तलेखों और पांडुलिपियों को खोजकर बाहर निकाला। हिन्दी की सबसे बड़ी डिक्शेनरी तैयार की, हिन्दी साहित्य का इतिहास, हिन्दी भाषा का व्याकरण तैयार करवाया। साथ ही हिन्दी का बड़ा पुस्तकालय खोला और हिन्दी की शार्टहैंड लिपि का आविष्कार किया। भाषा के मुद्दे को देश की पराधीनता के सवाल से जोड़ा। कचहरियों और सरकार के कामकाज में अंग्रेजी की बगल में हिन्दी को स्थान दिलाया।

नागरी प्रचारिणी सभा के सत्रारंभ के अवसर पर विदुषी मालिनी अवस्थी ने कबीर, कीनाराम, महाकवि जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र और महादेवी वर्मा की छंदबद्ध कृतियों का गायन किया। इसके बाद महादेवी वर्मा की रचना बीन भी हूं में तुम्हारी भी रागिनी भी हूं…को स्वरबद्ध किया। कबीर की रचना मोको कहां ढूंढे रे बंदे, मैं तो तेरे अंदर… सुनाया। समापन उन्होंने भारतेंदु हरिश्चंद्र की राग भैरवी में निबद्ध रचना से किया। उनके साथ संवादिनी पर पंडित धर्मनाथ मिश्र और तबले पर पुणे से पधारे अरविंद आजाद ने संगत की।

स्वागत करते हुए सभा के प्रधानमंत्री व्योमेश शुक्ल ने कहा कि जब साहित्य अनंत अंधेरे से घबराकर गहरी नींद सो जाता है तब संगीत ही सुबह का राग सुनाकर उसे जगाता है। नागरी प्रचारिणी सभा का यह जागरण काल है। इस अवसर पर नागरी प्रचारिणी सभा ने अपनी दुर्लभ पुस्तकों का एक विक्रय केंद्र आम पाठकों के लिए खोला। यहां हिन्दी शब्द सागर, कबीर ग्रंथावली, जायसी ग्रंथावली, केशव कोष, रामानंद की हिन्दी रचनाएं, खुसरो की हिन्दी कविता, मुगल दरबार के सरदार, मानस अनुशीलन, गुलेरी गरिमा ग्रंथ, बैताल पचीस और रानी केतकी की कहानी सहित करीब डेढ़ सौ पुस्तकें बिक्री के लिए उपलब्ध हैं।

सभा के सत्रारंभ के अवसर पर पद्मश्री राजेश्वर आचार्य, पद्मश्री शिवनाथ मिश्र, संकटमोचन के महंत विश्वंभर नाथ मिश्र, कला प्रकाश के अशोक कपूर, पंडित पूरन महाराज, डा.सत्यदेव सिंह समेत अनेक मूर्धन्य विद्वान एवं गण्यमान्य नागरिक उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन सौरभ चक्रवर्ती ने किया।

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