जीवंत हुई श्रीराम चरित्र की प्रासंगिकता

जीवंत हुई श्रीराम चरित्र की प्रासंगिकता

       राम का चरित्र इतिहास ही नहीं, वर्तमान और भविष्य भी है
विजय विनीत

भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर के अग्रवाल सेवा संस्थान में 27 अगस्त 2018 को ‘श्रीराम चरित्र’ के मंचन ने लोक मानस पर गहरा असर छोड़ा। नाटक के लेखक और निर्देशक सुधीर कुमार पांडेय ने सरल शब्द-सर्जना से भगवान श्रीराम के चरित्र को जिस तरह से प्रस्तुत किया, वैसा कोई दूसरा नहीं कर सकता। नाटक को जीवंत बनाने में संगीत निर्देशक अभिषेक कुमार गुप्ता और अंजलि गुप्ता के पार्श्व गायन ने सराहनीय भूमिका अदा की।

नाटक ‘श्रीराम चरित्र’ में राम जब राजा बनते हैं तब ऐसा लगता है कि राजा शब्द केवल राम के लिए ही बना है। निर्देशक ने नाटक में समाजवाद की स्थापना करना चाहा है। सत्य भी तो है कि सामाजिक मूल्य व्यक्ति के हित और स्वार्थ से ऊपर होते हैं। राम ने भी समाजवाद के इस अर्थ को अपने जीवन में उतारा और अपने आचरण से लोगों को समझाया भी। वास्तव में समाजवाद राम के चरित्र में विशेष महत्व रखता है। सत्ता-सुख को त्यागकर, समाजवाद को ढोकर राम ने अपने साहस का परिचय दिया है। त्याग की भावना साहसिक कृत्य का सर्वोच्च उदाहरण है। अगर व्यक्ति में साहस नहीं है, तो जीवन नहीं है। साहस, सत-जीवन का आधार है।

राम का चरित्र लोक मानस का आदर्श चरित्र है। वे हमारे दैनिक जीवन के प्रेरणा-स्रोत हैं। वे आदर्श व्यक्ति हैं। महानायक हैं। वे ईश्वर के अवतार हैं। दीनानाथ हैं। वे सबके हैं। सभी उनके हैं। नाटक में कलाकारों ने इस गूड़ रहस्य को भी रचने की कोशिश की कि राम ने अपने समय के अनेक विरोधी संस्कृतियों, साधनाओं, जातियों, आचार-निष्ठाओं और विचार-पद्धतियों को आत्मसात करते हुए उनका समन्वय करने का साहस किया। साहस के लिए शारीरिक और भौतिक बलिष्ठता की जरूरत नहीं पड़ती। हृदय में पवित्रता और चरित्र में दृढ़ता की जरूरत पड़ती है। साहस का यह गुण राम में पूर्ण रूप से था। तभी तो उन्होंने कदम-कदम पर साहसिक कार्यों का उदाहरण प्रस्तुत किया।

राज्याभिषेक की तैयारी हो रही थी और पिता की आज्ञा पाकर सपत्नी वन जाने को तैयार हो जाना, साहस का ही तो परिणाम है। वे चाहते तो विद्रोह कर बैठते। वैसे तो उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं था, लेकिन पितृ-आज्ञा को स्वीकार कर उन्होंने एक आदर्श प्रस्तुत किया। राम अयोध्या जैसे देश के युवराज थे। अपनी सारी विलासिता त्यागकर, गंगा तट से रथ भी वापस भेजकर, नंगे पांव, वल्कल वस्त्र धारण करके वन-पथ पर चल पड़े। राम ने अपने साहस के बूते पर सामान्य जनों के कष्ट की अनुभूति करने के साथ ही बड़े आदर्श की स्थापना की।

राम का साहस ही था कि समुद्र को मानव रूप धारण कर उनकी शरण में आना पड़ा। राम जैसा व्यक्ति ही संपूर्ण साहस से यह कह सकता है कि प्रजा की खुशी के लिए अर्धांगिनी सीता का परित्याग करने में रंच मात्र भी क्लेश नहीं होगा। नाटक यह भी संदेश देता है कि साहसी व्यक्ति कर्तव्यपरायण होता है। उसे अपने कर्मों पर अटूट विश्वास होता है। राम ने भी यही किया। वे अच्छी तरह से जानते थे कि रावण महाबलशाली है। उसमें अकूत शक्ति है। उसका बेटा इन्द्र को जीत चुका है। लेकिन राम ने सीता की रक्षा के लिए रावण जैसे महापराक्रमी से युद्ध कर के विजयश्री प्राप्त किया।

‘‘श्रीराम चरित्र’ ने यह भी संदेश दिया कि  समाज में जब सामाजिक समरसता फैलेगी तभी देश खुशहाल होगा। इन दिनों रोजाना कई सीताओं का शील हरण किया जा रहा है। आज का रावण दस नहीं, असंख्य चेहरों में जी रहा है। महंगाई डायन सुरसा बन गई है और वह आम आदमी को निगलने के लिए तैयार है। ‘श्रीराम चरित्र’ नाटक के जरिए समाज को यह भी संदेश देने की कोशिश की गई कि राम का चरित्र इतिहास ही नहीं, वर्तमान और भविष्य भी है। राम सृष्टि के कण-कण में विद्यमान हैं। वे अन्न और जल के समान सुलभ हैं।

राजनीतिक आपाधापी, सामाजिक अस्थिरता और भौतिक आकर्षण के समय में राम के साहस और आदर्श का स्मरण होते ही एक आदर्श समाज की संरचना हृदय-पटल पर चित्रित हो जाती है। समाज को बड़ा संदेश देने वाले इस नाटक के कलाकारों में वृजमोहन यादव (राम), अनुष्का मुखर्जी (सीता), विश्वनाथ शर्मा (दशरथ), रोहित तिवारी (लक्ष्मण), लव कुमार (हनुमान) के मंचन को दर्शकों को तहे दिल से सराहा।

 

 

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