पूर्वांचल में हींग है, फिटकरी है, लेकिन रंग नहीं चोखा
धान के कटोरे’ से अब नहीं आती आदमचीनी व काला नमक की बयार
घटा सुगंधित धान का रकबा
अमेरिका-कनाडा में क्यों नहीं बिकता पूर्वांचल का चावल
बासमती की खेती में यूपी से आगे निकला पड़ोसी एमपी
विजय विनीत
हींग है, फिटकरी है, लेकिन रंग चोखा नहीं है। यह हाल है पूर्वांचल में सुगंधित धान की खेती का। मोटे धान के सहारे किसानों की तरक्की के सपने चूर-चूर हो रहे हैं। हालात अनाथों जैसी होती जा रही है। जानते हैं क्यों? अमेरिका और कनाडा में अगर किसी चावल की सर्वाधिक डिमांड है तो वह है बासमती की। यह चावल पंजाब और हरियाणा से एक्सपोर्ट होता है। इस दौड़ में यूपी का पड़ोसी राज्य एमपी भी शामिल हो गया है। धान के बंपर उत्पादन के बावजूद यूपी सरकार का ध्यान नहीं है। हालत यह है कि इस राज्य में जो भी धान होता है उसकी पूछ सिर्फ राशन की दुकानों पर ही होती है।
खेती के मामले में चंदौली को धान का कटोरा का रुतबा हासिल है। गाजीपुर और जौनपुर में भी रिकार्ड उत्पादन होता है। पूर्वांचल में जो धान पैदा होता है उसकी गुणवत्ता इतनी घटिया होती है कि सरकारी सस्ते गल्ले के कोटेदारों को ही बेचना पड़ता है। यूपी का पड़ोसी राज्य एमपी बासमती उत्पादन के मामले में पंजाब और हरियाणा को मात देने लगा है। धान के लिए पूर्वांचल में उम्दा जलवायु होने के बावजूद बासमती की बयार नहीं बहती। दरअसल यूपी के अफसरों ने पूर्वांचल में एक्सपोर्ट क्वालिटी की सुगंधित धान की खेती को आज तक गंभीरता से नहीं लिया। हाईब्रिड धान के बीजों की बिक्री में कमीशनखोरी का जोर है।
बासमती चावल के लिए पूर्वांचल में प्लांट नहीं
एक्सपोर्ट क्वालिटी का धान पैदा कराने की चिंता कतई नहीं है। पूर्वांचल के किसान बासमती का रिकार्ड उत्पादन कर चुके हैं, लेकिन वे बेच नहीं पाए। एक्सपोर्ट क्वालिटी का बासमती धान काफी लंबा होता है, जिससे चावल निकालने के लिए पूर्वांचल में कहीं कोई संयंत्र ही नहीं है। लाचारी में किसानों को परंपरागत ढंग से पूसा बासमती (बौनी), सुगंधा अथवा जीआर-32 की खेती करनी पड़ रही है। धान की इन प्रजातियों में सुगंध तो है, लेकिन यह तारांकित होटलों और धनाड्य लोगों की पसंद नहीं है। यही वजह है कि बनारस मंडल में सुगंधित धान का रकबा तेजी से घटता जा रहा है।
सरकारी आंकड़ों से इतर देखा जाए तो मंडल में चंदौली में अधिसंख्य किसान बौनी मंसूरी और सोनम की खेती करते हैं। सूखे की स्थिति में भी किसान इसकी फसल उगा लेते हैं। सुगंधित धान का वाजिब दाम न मिल पाने के कारण किसान मुंह मोड़ते जा रहे हैं। वर्ष 2016-17 के लिए शासन ने सुगंधित धान की खेती का लक्ष्य 2 लाख 42 हजार 671 हेक्टेयर का दिया था,लेकिन उसे भी पूरा नहीं किया जा सका।
चुनिंदा किसान ही करते हैं सुगंधित धान की खेती
पिछले एक दशक के आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो बनारस मंडल में कभी 35 से 36 हजार हेक्टेयर से अधिक सुगंधित धान नहीं बोए जा सके। कुछ चुनिंदा किसान निजी उपयोग के लिए पूसा बासमती, सुगंधा अथवा जीआर-32 की खेती कर रहे हैं। धान के लिए मशहूर चंदौली में भी सुगंधित धान का रकबा 1200 हेक्टेयर से ज्यादा नहीं बढ़ पाता है।
पूर्वांचल में सुगंधित धान में पूसा बासमती सबसे अधिक लोकप्रिय है। इसके अलावा सुगंधा-एक, सुगंधा-दो और सुगंधा-तीन की खेती होती है। गुजरात की प्रचलित प्रजाति जीआर-32 का उत्पादन नहीं के बराबर होता है। सुगंधित धान की प्रजातियों पर सरकार पहले सात सौ रुपये प्रति कुंतल की दर से अनुदान देती थी, लेकिन अब यह भी देना बंद कर दिया है। वाराणसी के प्रगतिशील किसान चंद्रशेखर सिंह कहते हैं कि पूर्वांचल के किसान सुगंधित धान की खेती को ‘हाथी पालने’ की तरह मानते हैं।
जीआई में शामिल नहीं हो सकी ‘आदमचीनी’
धान के कटोरा के रूप में विख्यात चंदौली में डेढ़ दशक पहले तक करीब 10 हजार हेक्टेयर में आदमचीनी, काला नमक, बादशाह भोग जैसे सुगंधित धान की खेती होती थी, लेकिन अब इसका रकबा करीब दस गुना घट गया है। पूर्वांचल की आदमचीनी, काला नमक, बादशाह भोग की सुगंध के आगे बासमती की कोई प्रजाति नहीं टिकती। इसकी खेती के लिए किसानों को न तो प्रोत्साहन दिया गया, न पर्याप्त अनुदान मिला और न ही तीनों प्रजातियों को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) में शामिल कराने के लिए बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड (आईपीएबी) चेन्नई में की अपील दर्ज कराई गई। जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) में क्षेत्र विशेष में वस्तु अथवा उत्पाद के उत्पादन को कानूनी मान्यता गुणवत्ता व लक्षणों के आधार पर विशिष्ट पहचान मिलती है। जीआई होने के बाद दूसरा व्यक्ति अथवा क्षेत्र इसके उत्पादन पर रजिस्ट्रेशन के लिए दावा पेश नहीं कर सकता। उत्पाद विशेष के निर्यात व वाणिज्यिक कारोबार के लिए क्षेत्र विशेष का दावा पुख्ता हो जाता है। यूपी के अफसरों ने तीनों प्रजातियों को पहचान देने की कोशिश नहीं की।
ब्रांडिंग को तरसीं धान की मशहूर प्रजातियां
बनारस में जिला कृषि अधिकारी रह चुके संजय सिंह (गोरखपुर मंडल के डिप्टी डायरेक्टर) कहते हैं कि पूर्वांचल के किसान हाईब्रिड धान की खेती पर जोर दे रहे हैं। ऐसा करना इनकी मजबूरी है। एक्सपोर्ट क्वालिटी की बासमती उगा भी लें तो उन्हें सिर्फ खुद्दी (टूटा चावल) ही मिलेगा, जिसे एक्सपोर्ट तो दूर, बाजार में बेच कर खर्च निकाल पाना कठिन होगा। बासमती को प्रोत्साहन देने के बाजाय आदमचीनी, काला नमक और बादशाह भोग की ब्राडिंग की जाए तो इस चावन का आसानी से एक्सपोर्ट किया जा सकता है। पुख्ता कार्ययोजना और प्रोत्सान पूर्वांचल में सुगंधित धान की खेती की दिशा बदल सकती है।
पूर्वांचल में धान के गढ़
चंदौली में चकिया, सैयदराजा, चंदौली, जौनपुर में धर्मापुर, सिरकोनी, खुटहन और गाजीपुर में मुहम्मदाबाद, जमानियां, जहूराबाद आदि।
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