इन्हें तपन का इंतजार है…जलन का इंतजार है…!

मौसम के मिजाज और ठंडे का धंधा पड़ा मंदा, दुपहरिया झनझनाएगी तभी इनके ठेलों ठन-ठन गिरेंगे सिक्के
तरावट का धंधा करने वाले चाहते हैं कि बरसे ऐसी आग कि डामर की सड़क पर चिपकने लगें जूते
विजय विनीत
बनारस में मौसम ने जरा सा मिजाज क्या बदला, तरावट की दुकानदारी ठंडी हो गई। पिछले कुछ दिनों से गर्मी ने हर किसी को बेचैन कर रखा था। अब मौसम का मिजाज भांपकर रोजी कमाने वाले बेचैन हैं। उन्हें तपन कम होने की तकलीफ है। वे महीनों से बाट जोह रहे थे कि पिछले साल की तरह इस बार भी हरहराती लू चले। आसमान से ऐसी आग बरसे कि डामर की सड़क पर जूता चिपकने लगे। लेकिन दिल्ली में मंगलवार को ऐसा उलटफेर हुआ कि सूरज अचानक नरम पड़ गया।
लू का नकदीकरण करने वालों को लगता है कि यह मद्धिम मौसम बहुत बुरा है। कल तक सत्तू की लस्सी, पना, अमावट, डाब, घड़ा, सुराही, बर्फ, पानी, ताड़ के पंखे और खस की पट्टी बेचने वाले काफी मगन थे और आज सूरज ने नरमी दिखाई तो थोड़ा मायूस हो गए। महीनों से लू का इंतजार करने वालों को लगता है कि जब तक गर्मी मारेगी नहीं, ग्राहक उनके पास आएंगे क्यों? फिर भी उन्हें भरोसा है कि मौसम ज्यादा दिन दगा नहीं देगा। जल्द ही आग बरसाएगा।
लहुराबीर पर क्वींस कालेज के सामने खस की टट्टी बनाने वाली चाची ने कहा कि देखना देवता का कोप है। अबकी सावन-भादो तक लू के थपेड़े चलेंगे। पता नहीं यह उसका अनुभव बोल रहा था कि कमाई की उम्मीद टिमटिमा रही थी। बनारस में मंगलवार को पारा 44 डिग्री पार कर गया। लोग-बाग पसीने-पसीने थे। दोपहरिया में काशी के घाटों पर कर्फ्यू सा नजारा था। बुधवार को पारा लुढ़क कर 41.4 डिग्री पर आ गया। दोपहिया में चिनचिनाहट तो हुई, पर कल की तरह सूरज आग का गोला दागता नजर नहीं आया। दरअसल मौसम का मिजाज खस वाली चाची के अनुभव ने ही पहचाना है।
पांडेयपुर के कोहरान का रामू ठेलिया पर घड़े रखकर कालोनियों में चक्कर लगाता मिला। उसकी कच्चे बर्तनों की दुकान है, लेकिन लोग अभी नहीं आ रहे हैं। इसलिए वह खुद उनके दरवाजे पर पहुंच रहा है। जमाना फ्रिज का है। रामू बताता है कि जिनके घरों में असल फ्रिज है वे ड्राइंग रूम में सजाने के लिए कलात्मक मटके और सुराहियां खरीद रहे हैं। सिर्फ इसलिए कि मिट्टी के मटकों को वे फोक आर्ट का नमूना बता सकें। मटका उनके कला प्रेमी होने का सनद बन सके।
चौकाघाट में घड़े और सुराही बेचने वाले एक दुकानदार ने कहा कि बस जरा मौसम को और गरमाने तो दीजिए। मुंह बिचकाने वाले दुकान के सामने लाइन लगा देंगे। मटकों की मुंहमागी कीमत देंगे। शहर की सैकड़ों दुकानों में किसिम-किसिम के कूलर भरे पड़े हैं। बनारस के फुटपाथों पर खस की टट्टियां बनाने के कई देसी कारखाने खुल गए हैं। सभी को तपन का इंतजार है…जलन का इंतजार है…।
लहुराबीर पर शिकंजी बनाने वाले बनारसी, ढाब बेचने वाला राजेंद्र, मिल्क बार चलाने वाले नन्हें यादव, सबको धूप, लू, पसीना, उमस और अदहन सरीखी गर्मी का इंतजार है। सरसराती हवाओं की ओर इशारा करते हुए ठंडा बेचने वाले प्रकाश ने कहा कि यही हवा एक दिन आग बरसाएगी…। लू के थपेड़े लाएगी…। जब दुपहरिया झनझनाएगी तब देखिएगा उसके ठेले पर कैसे ठन-ठन गिरेंगे सिक्के…। कैंट रेलवे स्टेशन पर ताड़ के पंखे बेचने वालों का झुंड आ चुका है।
लस्सी, ठंडई, मिश्रांबु, जलजीरा और बर्फ के दुकानदार व ठेले वाले मुस्तैद हो गए हैं। ठंडई बेचने वाले नन्हें की नाराजगी मौसम की नजाकत से नहीं, कोक-पेप्सी से है। इस नामुराद बोतलबंद ठंडे के कारण बनारस में लस्सी और ठंडई पीने वाले कम होते जा रहे हैं। नन्हें सवाल करते हैं कि भइया ई कउनो पीयै क चीज हौ? लगय ला कि लोग फटफटहिया की टंकी की तरह मुंह में पेट्रोल डालत हउवन।