ये नर्क से गुजरते हैं ताकि आप रहें साफ

ये नर्क से गुजरते हैं ताकि आप रहें साफ

दर्द न जाने कोय

दूसरों की गंदगी साफ करने वालों हेय दृष्टि से देखता है समाज

बदबू, सड़ांध, गंदगी और बीमारियों के टीले पर गुजरती है इनकी जिंदगी

जान जोखिम में डाल जहरीली गैस से भरे चैंबरों में करते हैं सफाई

सफाई कर्मियों को चेंजिंग रूम जैसी सुविधाएं भी नहीं होती नसीब

 

बदबू, सड़ांध, गंदगी। साथ में बीमारियों का टीला। कभी गटर में गोता लगाते हैं तो कभी कूड़े का पहाड़ हटाते हैं। यह मोदी  की काशी में रहने वाले उन सैकड़ों कहानी उन लोगों की है जो नर्क  से गुजरते हुए शहर भर की गंदगी साफ करते हैं। इनमें से कई ऐसे भी हैं जो जान जोखिम में डालकर जहरीली गैस से भरे चैंबरों में घुसकर सफाई करते हैं। इनके पास न तो सुविधाएं हैं और न ही परिजनों की शिक्षा आदि की पुख्ता व्यवस्था।

बनारस शहर में प्रतिदिन करीब 550 टन गंदगी निकलती है।  हैज़ा, टाइफाइड, हेपेटाइटिस जैसी कई घातक बीमारियां गंदगी के कारण फैलती हैं। उल्फत बीवी के अहाते में सफाई करने वाले मल्लू कहते हैं कि सफाई से एकत्र हुए कूड़े को समेटना भी होता है, ताकि हवा और छुट्टा व आवारा पशु उसे दोबारा बिखेर न दें। काम के दबाव की वजह से ये कमर्चारी थोड़ी देर के लिए भी आराम नहीं कर पाते हैं। इन सफाई कर्मियों को पशुओं के मल-मूत्र, फेंके गए सड़े खाद्य पदार्थ, धातुओं के टुकड़े, तार, अस्पतालों से निकले कूड़े, कांच के टुकड़े, ब्लेड जैसी चीज़ों की सफाई करनी पड़ती है।

गीलट बाजार  में सफाई करने वाले राधेश्याम सुबह 6 बजे काम पर पहुंच जाते हैं। इनकी गिनती जुझारू कर्मचारियों में होती है। गले में फोड़ा हो चुुका है, लेकिन शहर की सफाई करने की मजबूरी के चलते ये अपनी बीमारी की उपचार नहीं करा पा रहे हैं। करीब 11 बजे तक इन्हें घरों के बीच की गलियों की सफाई करने के साथ कूड़े को कूड़ाघर में पहुंचाना पड़ता है। 50 वर्षीय राधेश्याम बताते हैं कि गली में सफाई करने के दौरान उनके ऊपर मांस, मछलियों के छिलके, बीयर की बोतलें वगैरह गिरती रहती हैं। एक बार उनके ऊपर सैनिटरी पैड भी गिरा था। उनके साथियों ने अपनी झाड़ू से उनके चेहरे से ख़ून हटाया था। फिर भी वो गली की सफाई करके ही बाहर निकले थे।

शहर में तमाम नाले हैं। इनकी सफाई जलकल विभाग कराता है, लेकिन सुविधाएं नसीब नहीं होतीं। गटर साफ  करने वाले शंकर कहते हैं कि शहर के कुछ नाले इतने गहरे हैं कि उनमें बड़ी गाडियां भी समा जाए। जाड़ेÞ में जब ये सफाई कर्मी अपना काम पूरा कर नालों से बाहर निकलते हैं वे ठंड से कांप रहे होते हैं। जब सफाई कर्मी नालों में उतरते हैं तो अंदर घुप अंधेरा होता है। बाहरी दुनिया से उनका संपर्क पूरी तरह ख़त्म हो जाता है। जहरीली गैसों की चपेट में आने या फिसल जाने का खतरा रहता है। कई बार वे बेहोश हो जाते हैं।

कई बार तो पानी और कूड़े के बहाव से भी मुश्किलें पैदा हो जाती हैं। इस तरह का काम शायद किसी भी व्यक्ति को नहीं करना चाहिए, लेकिन सच तो यह है कि सैकड़ों लोग इस काम में लगे हैं। गटर साफ करने के लिए जलकल विभाग ने कई साल पहले कई मशीनें भी मंगाई थी। मकसद यही था कि कर्मचारियों को गटर में घुसना न पड़े। अब ये मशीनें अब  शो-पीस बन गई हैं।

दूसरों की गंदगी साफ करने वालों की सबसे बड़ी पीड़ा यह है कि उन्हें समाज में हेय नजरिये से देखा जाता है। कुछ सफाई कर्मचारी  मानते हैं कि इस काम की वजह से समाज उन्हें कूड़ा-करकट ही समझता है। शहर के अलग-अलग क्षेत्रों से आने वाले कूड़े भरे ट्रकों से कूड़ा उतारने का काम दिन में होता है। इसलिए सफाई कमिर्यों को कई बार कड़ी धूप या बारिश में यह काम करना होता है। कूड़े के डम्पिंग ग्राउंड के आसपास कैंटीन या चेंजिंग रूम जैसी सुविधाएं नहीं हैं, ताकि वे अपने कपड़े बदल सकें या आराम कर सकें। सभी कूूड़ाघर बदबू और गंदगी से भरपूर रहते हैं। ये सभी अपने क्षमता से अधिक भरे होते हैं। सफाई कर्मी के रूप में काम करने ज्यादातर के पास आवास तक नहीं हैं। जिनके पास है भी वह एक खोली (कमरा) भर है।

एक खोली में दो या तीन परिवारों का रहना साधारण बात है। ज्यादातर खोलियों में बारिश का पानी टपकता है। सफाई कर्मचारियों के आवास मलदहयिा, भैसासुर घाट, छोटी मलदहिया, सेनपुरा, रेवड़ी तालाब और घोड़ा अस्पताल के पास बने हैं। सफाई कर्मचारी नेता सोनचंद वाल्मीकि और शिवराम करते हैं कि कुछ खोलियों पर पूर्व कर्मचारियों और दबंगों का कब्जा भी है। अधिकतर सफाई कर्मचारी शराब पीते हैं। इनमें से कई लोगों पर शराब के नशे में अपनी बीवी और बच्चों को मारने-पीटने के भी आरोप अक्सर लगते रहते हैं।

काम मुश्किल है, फिर भी वेतन थोड़ा

वाराणसी शहर को साफ करने वाले कर्मचारियों को इतना वेतन अथवा मानदेय नहीं मिलता कि वे अपने परिवार की ठीक से परवरिश कर सकें। शहर में कुल 1700 स्थायी सफाई कर्मी हैं। इनकी रोजी-रोटी तो चल भी जाती है, 1129 संविदा कर्मियों कीी जिंदगी पहाड़Þ जैसी है। 3600 रुपये ही हर महीने नसीब होते हैं। इनके अलवा 1200 आउट सोर्सिंग पर सफाई कर्मी  काम करते हैं।

हर दस हजार की आबादी पर 35 सफाई कर्मचारियों की तैनाती होनी चाहिए, लेकिन तैनात हैं आधे से भी कम। 698 संविदा सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति का प्रस्ताव शासन के पास भेजा गया था, लेकिन निरस्त हो गया। कारण-मिनी सदन में पास कराये बगैर ही इस प्रस्तव को प्रदेश सरकार के पास भेज दिया गया था।

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