योगी सरकार के एक फरमान से पूर्वांचल से विदा हो गई अरहर
छुट्टा पशुओं के आतंक के चलते अरहर की खेती से किसानों ने मोड़ लिया मुंह
विजय विनीत
पूर्वांचल के गाजीपुर जिले का एक गांव है बासेपुर। इस गांव में पहले अरहर के अलावा हर तरह की फसलें लहलहाती थीं। इस गांव के किसानों ने अरहर की विदाई कर दी है। अब पुक्का फाड़-फाड़कर रो रहे हैं। बुरा हाल है इनका। न रात में सो पा रहे हैं और न दिन में। हर समय हाथ में होती है लाठियां और घर से खेतों तक की दौड़। एक-दो दिन नहीं। महीनों से। इस तरह के हालात सिर्फ एक गांव का नहीं। समूचे पूर्वांचल में हैं। इसी वजह से किसानों ने अरहर की विदाई कर दी है। ये है गायों को बचाने के अभियान का साइड इफक्ट।
अगर बात करें अरहर की तो खेती पर तो लागत के मुकाबले मुनाफा काफी कम है। वाराणसी के किसानों ने अरहर को अब हमेशा के लिए विदाई दे दी है। जो किसान इसकी खेती में रुचि दिखाते हैं, उन्हें छुट्टा पशु और घड़रोज (नीलगाय) मिलकर तबाह कर देते हैं। उचित दाम न मिलने के कारण जिले के किसानों का रुझान धान-गेहूं की ओर तेजी से बढ़ रहा है। प्रोत्साहन के अभाव में किसानों ने अरहर की खेती बंद ही कर दी है। आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो वर्ष 2010-11 से अब तक में कृषि विभाग के पास वाराणसी जिले में अरहर के उत्पादन का कोई आंकड़ा ही उपलब्ध नहीं है।
गाय-साड़ोंं केे आतंक से नौ महीने की फसल को बचाना बड़ी चुनौती
यूपी में गोहत्या रोकने के लिए योगी सरकार के फरमान के बाद यहां बूढ़ी गाय, सांड़ और बछड़े काफी बढ़ गए हैं। पशुओं की खरीद-बिक्री पर सख्ती के चलते बूढ़े पशुओं को बेचा नहीं जा सकता है। लाचारी में किसानों को इन्हें लावारिस हाल में छोड़ना पड़ रहा है। बूढ़े गायों और साड़ों को लोग रात के अंधेरे में पड़ोसी गांवों में हांक देते हैं। ये आवारा पशु गांव में लोगों के बीच झगड़े की वजह बन रहे हैं।
तथाकथित गोरक्षकों और पुलिस द्वारा की जा रही उगाही ने पशुओं का व्यापार चौपट कर दिया है। किसान परेशान हैं और योगी सरकार के इस निर्णय से बेहद खफा भी है। योगी के फरमान के बाद से यूपी में पशुओं के मेले बंद हो गए और धंधा चौपट हो गया। अब कोई खरीदार नहीं है। बनारसके प्रगतिशील किसान हरिहर यादव कहते हैं कि छुट्टा पशुओं पर पाबंदी नहीं हटाई गई तो किसानों की स्थिति काफी खराब हो जाएगी।
किसानों के छूट रहे छक्के, जबाव दे रहा धैर्य
कृषि विभाग हर साल खेती का क्षेत्रफल तो तय करता है, लेकिन न तो उत्पादकता का ब्योरा जुटा पाता है और न ही उत्पादन का। कारण-अरहर की जिले से हमेशा के लिए विदाई। अरहर से किसानों के मुंह मोड़ने की कई ठोस वजहें हैं। पूर्वांचल में आमतौर पर इसकी खेती ऐसी जमीन में की जाती है जो उर्वरता के मामले में बेहद कमजोर होती है। फसल नौ महीने में पकती है।
लंबी अवधि तक छुट्टा पशुओं से अरहर की देखभाल में किसानों के छक्के छूट रहे हैं और धैर्य जवाब दे रहा है। बनारस में अरहर की विदाई की सबसे बड़ी वजह हैं योगी का फरमान। छुट्टा पशुओं को न कोई मार सकता है और न ही बेच सकता है। अब गंगा, वरुणा और सरयू नदियों के कछार शरणगाह बनते जा रहे हैं। अरहर की फसल चट करने में छुट्टा पशुओं को आसानी होती है, क्योंकि उन्हें गर्दन झुकाने की जरूरत नहीं पड़ती। ये पशु सबसे पहले इसी फसल को अपना आहार बनाते हैं।
धान-गेहूंं को ज्यादा अहमियत
अरहर पर मौसम की मार सबसे ज्यादा पड़ती है। कभी ओले का तो कभी पाले का। दोनों ही स्थितियों में इसके फूल झड़ जाते हैं, जिससे किसान तबाह हो जाते हैं। चोलापुर ब्लाक के बबियांव के प्रगतिशील किसान शैलेंद्र सिंह रघुवंशी कहते हैं कि अरहर की फसल में बीमारियों से ज्यादा भय छुट्टा पशुओं का हो गया है। सरल बीमा प्रणाली न होने के कारण अरहर की खेती में रिस्क काफी ज्यादा होता है। बनारस में इनदिनों निजी कंपनियों में हाईब्रिड धान का बीज बेचने में गलाकाट प्रतिस्पर्धा चल रही है। प्रलोभन देकर किसानों को बरगलाया जा रहा है। इस वजह से किसान अरहर की खेती की बजाए धान को ज्यादा महत्व दे रहे हैं।
श्री रघुवंशी कहते है कि अरहर की उत्पादकता गिरने की एक और बड़ी वजह है इसकी पुरानी प्रजातियां। पूर्वांचल में सर्वाधिक लोकप्रिय प्रजाति अरहर बहार दो दशक पुरानी हो चुकी है। बीएचयू की प्रजाति मालवीय-13 भी करीब 12 साल पुरानी है। हाल के सालों में बीएचयू के कृषि वैज्ञानिकों ने इसकी कोई ऐसी प्रजाति विकसित नहीं की जिससे पूर्वांचल में इसकी खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ सके।